लुका छिपी खेलूँ, आओ, तुम ढूंढो मैं छिप जाऊँ ~
तुम ढूंढो मैं छिप जाऊँ ~
वृद्धावस्था की सोच यही है
कैसा उलझा सा यह जीवन जाल
लाचारी, ग़रीबी भूख दुःख
कितने जटिल जीव जंजाल !
लुका छिपी खेलूँ , आओ,
तुम ढूंढो मैं छिप जाऊँ ~
मस्ती है शिशु की हस्ती में
आशा प्राणवती बलवती सी है
निकल भागूँगा अंधियारे से ~
लगा कर सीढी, जो जाए छत पे
लुका छिपी खेलूँ , आओ,
लुका छिपी खेलूँ , आओ,
तुम ढूंढो मैं छिप जाऊँ ~
मैं नहीं रहूँगा, अंधेरों में,
ऊपर उठ जाऊँगा छल बल से
मत उदास हो,मुझ से सी खो
जीवन संघर्ष के खेल में,
हँस हँस कर चढ़ते जाओ
लुका छिपी खेलूँ , आओ,
तुम ढूंढो मैं छिप जाऊँ ~