आज हम हिंदी सिनेमा जगत में गीत और ग़ज़लों के लिखनेवाले , कुछ जाने पहचाने और कुछ सदाबहार कलाकारों को याद करते हुए चलें , संगीत और सृजन की, एक अनोखी, सुरीली , संगीतमय यात्रा पर !
आपने भी कई बार , इन कलाकारों के रचे, गीतों को गुनगुनाया होगा - ये मेरा विशवास है - जैसा की अकसर होता है, जब भी हमारी जिंदगी में , ऐसे पल आते हैं जिनसे गुजरते हुए,
अनायास ही हमारे जहन में, कोइ भूला - बिसरा गीत,उभर आता है और हम, हमारी संवेदना को उसी गीत में ढालकर , गीत, गुनगुनाने लगते हैं !....ये कितने आश्चर्य की बात है कि, अकसर हमारे मन में चल रही हलचल को, कोइ ना कोइ गीत, या कोइ ग़ज़ल, हूबहू, उसी के अनुरूप, किसी ख़ास अंदाज़ में मिल ही जाती है और अकसर ये गीत साहित्य या हिंदी फिल्मों से सम्बंधित होता है !
आज हम, कई सारे मशहूर कलाकारों को याद करेंगें जिनके गीत और ग़ज़ल हमारे जीवन में ऐसे रच बस गए हैं मानो वे हमारे परिवार और हमारे जीवन का अभिन्न अंग ही हों ! हाँ, कई ऐसे कालाकार और उनके नाम आज हम चाहकर भी न ले पायेंगें क्यूंकि ये असंभव सी बात है सभी का नाम लेना और उनके गीत याद करना ! अगर सभी का नाम लूं, तब तो मेरा आलेख बहुत लंबा हो जाएगा और आपका समय भी तो कीमती है !
आज बस यही समझें , संगीत की बगिया से फूल नहीं, महज कुछ पंखुरियां ही चुन कर, आपके सामने पेश कर रही हूँ --
मुझे याद है बचपन में देखी फिल्म "जागृति " जिसके तकरीबन सारे गीत, हर भारतीय ने बचपन से लेकर, अपनी जीवन यात्रा के हर मुकाम पार करते हुए ,गुनगुनाये होंगें !
" आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम ..."
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम ..."
और
" दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल
साबरमती के सन्त तू ने कर दिया कमाल
आँधी में भी जलती रही गाँधी तेरी मशाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी ..."...और
साबरमती के सन्त तू ने कर दिया कमाल
आँधी में भी जलती रही गाँधी तेरी मशाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी ..."...और
" हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के "
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के "
इन अमर गीतों के साथ याद कर लें और नमन करें कवि प्रदीप जी की लेखनी को !
ऐसे ही, देश - प्रेम या भारत प्रेम का जज्बा कुछ और गहराता है जब जब हम गाते हैं ,
" सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ओ आसमाँ
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है "
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है "
श्री राम प्रसाद "बिस्मिल " के त्याग और बलिदान के रंग में रंगे ये अक्षर समय के दरिया से भी ना धुन्धलायेंगें !
मुगलिया सल्तन के शाही तख्तो ताज के उजड़ने कि कहानी अगर कोइ चाँद लफ्जों में बयान करे तब यही कहेगा
" उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन
लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इंतज़ार में
दो आरज़ू में कट गये
लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इंतज़ार में
दो आरज़ू में कट गये
कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिये
दफ़्न के लिये
दो ग़ज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में -
लगता नहीं है जी ..."
दफ़्न के लिये
दो ग़ज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में -
लगता नहीं है जी ..."
और ये बेनूरानी के सबब से ख्यालात थे हिन्दोस्तान के अंतिम मुगलिया बादशाह ,
बहादुर शाह जफर के --
गीत और गज़लों की यही तो खूबी है जो महज चाँद लफ्जों से वे हमारे जहन में उभार देते हैं
एक सदी का पूरा इतिहास !
दरिया की रवानी सी बहती गीत की तर्ज पे हम डूबते उतरते हुए सिन्धु से गंगा और वोल्गा से नाईल पार करते हुए, एमेजोन और मिसिसिपी या तैग्रीस और होआन्ग्हो भी घूम आते हैं और
श्री भारत व्यास और हिंदी संगीत निर्देशकों के पितामह
श्री अनिल बिस्वास द्वारा रचा ये गीत भी नदी किनारे पर सुन लें
श्री भारत व्यास और हिंदी संगीत निर्देशकों के पितामह
श्री अनिल बिस्वास द्वारा रचा ये गीत भी नदी किनारे पर सुन लें
"घबराए जब मन अनमोल,
और ह्रदय हो डाँवाडोल,
तब मानव, तू मुख से बोल,
बुद्धम सरणम गच्छामी.....
और ह्रदय हो डाँवाडोल,
तब मानव, तू मुख से बोल,
बुद्धम सरणम गच्छामी.....
बुद्धम सरणम गच्छामी,
धम्मम सरणम गच्छामी,
संघम सरणम गच्छामी." फिल्म थी ' अंगुलीमाल "
धम्मम सरणम गच्छामी,
संघम सरणम गच्छामी." फिल्म थी ' अंगुलीमाल "
संत ज्ञानेश्वर फिल्म में ये गीत था~
"ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आए जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो "
राह में आए जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो "
" हरी भरी वसुंधरा पर नीला नीला ये गगन
के जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाएं देखो रंग भरी
दिशाएं देखो रंग भरी चमक रहीं उमंग भरी
ये किसने फूल फूल से किया श्रृंगार है
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार"
के जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाएं देखो रंग भरी
दिशाएं देखो रंग भरी चमक रहीं उमंग भरी
ये किसने फूल फूल से किया श्रृंगार है
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार"
फिल्म : " बूँद जो बन गयी मोती " से
प्रकृति के सौन्दर्य की पूजा का गीत है और भारत व्यास जी की लेखनी राजस्थान की रंगोली परोसते हैं ऐसे उत्कृष्ट प्रणय गीत से
प्रकृति के सौन्दर्य की पूजा का गीत है और भारत व्यास जी की लेखनी राजस्थान की रंगोली परोसते हैं ऐसे उत्कृष्ट प्रणय गीत से
फिल्म थी "दुर्गादास " और गीत के शब्द हैं,
" थाणे काजळियो बणालयूं म्हारे नैणा में रमाल्यूं -२
राज पळकां में बन्द कर राखूँली
हो हो हो, राज पळकां में बन्द कर राखूँली "
राज पळकां में बन्द कर राखूँली
हो हो हो, राज पळकां में बन्द कर राखूँली "
और फिल्म नवरंग का ये सदाबहार गीत
"आधा है चंद्रमा रात आधी
रह न जाए तेरी मेरी बात आधी, मुलाक़ात आधी
आधा है चंद्रमा..."
रह न जाए तेरी मेरी बात आधी, मुलाक़ात आधी
आधा है चंद्रमा..."
और तब नयी " परिणीता "( यही शीर्षक भी था ) का मनभावन रूप इन शब्दों में ढलता है ~
" गोरे-गोरे हाथों में मेहंदी रचा के
नयनों में कजरा डाल के
चली दुल्हनिया पिया से मिलने
छोटा सा घूँघट निकाल के -२
गोरे-गोरे हाथों ..में."
नयनों में कजरा डाल के
चली दुल्हनिया पिया से मिलने
छोटा सा घूँघट निकाल के -२
गोरे-गोरे हाथों ..में."
फैज़ अहमद फैज़ के लफ्जों पे गौर करें --
" ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आए जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो "
राह में आए जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो "
और नूरजहाँ की आवाज़ में "कैदी " फिल्म की ये ग़ज़ल
क्या खूब है, अल्फाज़ फिर फैज़ साहब के हैं
क्या खूब है, अल्फाज़ फिर फैज़ साहब के हैं
" लौट जाती है इधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मग़र क्या कीजे - २
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मग़र क्या कीजे - २
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत, मेरे महबूब, न माँग "
" ख़ूँरेज़ करिश्मा नाज़ सितम
ग़मज़ों की झुकावट वैसी ही
पलकों की झपक पुतली की फिरत
सूरमे की घुलावट वैसी ही"~
ग़मज़ों की झुकावट वैसी ही
पलकों की झपक पुतली की फिरत
सूरमे की घुलावट वैसी ही"~
"हुस्ने ए जाना " प्राइवेट आल्बम से जिस गाया छाया गांगुली ने और तैयार किया मुज़फ्फर अली ने~ शायरी नजीर अकबराबादी साहब के कमाल का ये नमूना क्या खूब है !
अब आगे चलें, सुनते हुए,
" मुझपे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई है
ऐ मुहब्बत तेरी दुहाई है
मुझ पे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई है ."
ऐ मुहब्बत तेरी दुहाई है
मुझ पे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई है ."
इस ग़ज़ल के बोल लिखे थे, जां निसार अख्तर साहब ने फिल्म 'यास्मीन" में और संगीत से सजाया था सी. रामचन्द्रने और आवाज़ है स्वर साम्राज्ञी लता जी की !
जनाब जां निसार अख्तर के साहबजादे जावेद अख्तर साहब, अपने अजीम तरीम वालीद से भी ज्यादह मशहूर हुए और कई खूबसूरत नगमे उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने हुनर से पेश कीं थीं वे आज भी अपने लेखन में, मसरूफ हैं~
" ऐ जाते हुए लम्हों ज़रा ठहरो ज़रा ठहरो
मैं भी तो चलता हूँ ज़रा उनसे मिलता हूँ
जो एक बात दिल में है उनसे कहूं
तो चलूं तो चलूं हूं हूं हूं हूं
ऐ जाते हुए लम्हों ..."
मैं भी तो चलता हूँ ज़रा उनसे मिलता हूँ
जो एक बात दिल में है उनसे कहूं
तो चलूं तो चलूं हूं हूं हूं हूं
ऐ जाते हुए लम्हों ..."
गायक रूप कुमार राठोड के स्वर, फिल्म - बॉर्डर, संगीत अनु मल्लिक का और फिल्म " सिलसिला" का ये लोकप्रिय गीत
" देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए
दूर तक निगाहों में हैं गुल खिले हुए
ये ग़िला है आप की निगाहों का
फूल भी हों दर्मियां तो फ़ासले हुए "
दूर तक निगाहों में हैं गुल खिले हुए
ये ग़िला है आप की निगाहों का
फूल भी हों दर्मियां तो फ़ासले हुए "
जगजीत सिंह जी की आवाज़ में "साथ साथ फिल्म का ये गीत,
संगीत कुलदीप सिंह का, एक अलग सा माहौल उभारता है
" तुम को देखा तो ये ख़याल आया
ज़िंदगी धूप तुम घना साया
तुम को..."
ज़िंदगी धूप तुम घना साया
तुम को..."
राजा मेहेंदी अली खान साहब के इन दोनों गीतों को जब लता जी का स्वर मिला तो मानो सोने में सुगंध घुल मिल गई
संगीत मदन मोहन का था और फिल्म " वह कौन थी ? "
संगीत मदन मोहन का था और फिल्म " वह कौन थी ? "
" नैना बरसें, रिमझिम रिमझिम
नैना बरसें, रिमझिम रिमझिम
पिया तोरे आवन की आस
नैना बरसें, रिमझिम रिमझिम
नैना बरसें, बरसें, बरसें "
नैना बरसें, रिमझिम रिमझिम
पिया तोरे आवन की आस
नैना बरसें, रिमझिम रिमझिम
नैना बरसें, बरसें, बरसें "
और अनपढ़ का ये गीत ,
" आप की नज़रों ने समझा, प्यार के काबिल मुझे
दिल की ऐ धड़कन ठहर जा, मिल गई मंज़िल मुझे
आप की नज़रों ने समझा .."
दिल की ऐ धड़कन ठहर जा, मिल गई मंज़िल मुझे
आप की नज़रों ने समझा .."
फिल्मों में उर्दू ग़ज़लों की बात चले और शकील बदायूनी और साहीर लुधियानवी साहब का नाम ना आये ये भी कहीं हो सकता है ? साहीर ने कितनी बढिया बात कही ,
" तू हिन्दु बनेगा ना मुसलमान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनगा "
इन्सान की औलाद है इन्सान बनगा "
संगीत एन. दता का फिल्म "धर्मपुत्र " गायक मुहम्मद रफी -
गीता दत्त का गाया पुरानी देवदास का गीत जिसे संगीत में ढाला सचिन दा ने इस भजन में,
" आन मिलो आन मिलो श्याम सांवरे ... आन मिलो " भी साहीर का लिखा था और " वक्त " का ये रवि के संगीत से सजा सदाबहार नगमा
" ऐ मेरी ज़ोहरा-ज़बीं
तुझे मालूम नहीं
तू अभी तक है हंसीं
और मैं जवाँ
तुझ पे क़ुरबान मेरी जान मेरी जान
ऐ मेरी ..."
तुझे मालूम नहीं
तू अभी तक है हंसीं
और मैं जवाँ
तुझ पे क़ुरबान मेरी जान मेरी जान
ऐ मेरी ..."
" साधना " फिल्म का लता जी के स्वर में, ये नारी शोषण के लिए लिखा गीत
" औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा कुचला मसला, जब जी चाहा दुत्कार दिया "
जब जी चाहा कुचला मसला, जब जी चाहा दुत्कार दिया "
और
' रेलवे प्लेटफोर्म' का गीत : मनमोहन कृष्ण और रफी के स्वर में मदन मोहन का संगीत
" बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत गाता जाए बंजारा
ले कर दिल का इकतारा
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत ..." ये सारे गीत और गज़लें ,
ले कर दिल का इकतारा
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत ..." ये सारे गीत और गज़लें ,
साहीर साहब की अनोखी प्रतिभा के बस, नन्हे से नमूने हैं -
शकील बदायूनी की ये पाक इल्तजा फिल्म "मुगल ए आज़म " में लता जी की आवाज़ में सदीयों गूंजती रहेगी
" ऐ मेरे मुश्किल-कुशा, फ़रियाद है, फ़रियाद है
आपके होते हुए दुनिया मेरी बरबाद है
आपके होते हुए दुनिया मेरी बरबाद है
बेकस पे करम कीजिये, सर्कार-ए-मदीना
बेकस पे करम कीजिये
गर्दिश में है तक़दीर भँवर में है सफ़ीना -२
बेकस पे करम कीजिये, सर्कार-ए-मदीना
बेकस पे करम कीजिये "
बेकस पे करम कीजिये
गर्दिश में है तक़दीर भँवर में है सफ़ीना -२
बेकस पे करम कीजिये, सर्कार-ए-मदीना
बेकस पे करम कीजिये "
और उमा देवी ( टुनटुन ) का स्वर और नौशाद का संगीत "दर्द" फिल्म में सुरैया जी की अदाकारी से सजा
" अफ़सान लिख रही हूँ (२) दिल-ए-बेक़रार का
आँखोँ में रंग भर के तेरे इंतज़ार का
अफ़साना लिख रही हूँ "
बैजू बावरा " फिल्म के संगीतकार, नौशाद , शायर शकील ,और गायक रफी ने ये सिध्ध कर दिया की कला और संगीत किसी भी मुल्क , कॉम या जाति बिरादरी में बंधे नहीं रहते वे आजाद हैं - हवा और बादल की तरह और पूरी इंसानियत पे एक सा नेह लुटाते हैं !
आँखोँ में रंग भर के तेरे इंतज़ार का
अफ़साना लिख रही हूँ "
बैजू बावरा " फिल्म के संगीतकार, नौशाद , शायर शकील ,और गायक रफी ने ये सिध्ध कर दिया की कला और संगीत किसी भी मुल्क , कॉम या जाति बिरादरी में बंधे नहीं रहते वे आजाद हैं - हवा और बादल की तरह और पूरी इंसानियत पे एक सा नेह लुटाते हैं !
" मन तड़पत हरि दरसन को आज
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज
आ, विनती करत, हूँ, रखियो लाज, मन तड़पत..."
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज
आ, विनती करत, हूँ, रखियो लाज, मन तड़पत..."
सुरीली गायिका आशा भोसले का स्वर और जयदेव का संगीत,
हिंदी कविता की साक्षात सरस्वती महादेवी जी के गीतों को
नॉन फिल्म गीत देकर , अमर करने का काम कर गयी है -
" मधुर मधुर मेरे दीपक जल !
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर !
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर !
सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु अणु गल !
पुलक पुलक मेरे दीपक जल ! "
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु अणु गल !
पुलक पुलक मेरे दीपक जल ! "
डाक्टर राही मासूम रजा ने कहा जगजीत ने गाया नॉन फिल्म गीत : " हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद - २
अपनी रातकी छत पर कितना, तनहा होगा चांद हो ओ ओ
हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद ..."
अपनी रातकी छत पर कितना, तनहा होगा चांद हो ओ ओ
हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद ..."
और निदा फाजली का लिखा जगजीत का गाया ये भी नॉन फिल्म गीत
" ओ मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये, जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है, बाहों भर संसार "
दुख ने दुख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये, जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है, बाहों भर संसार "
तलत का गाया गालिब का कलाम, भी नॉन फिल्म गीत
" देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाये है
मैं उसे देखूँ भला कब मुझसे देखा जाये है "
मैं उसे देखूँ भला कब मुझसे देखा जाये है "
ये भी एक स्वस्थ परिपाटी की और इशारा करते हैं और हमें ये बतलाते हैं कि, जरुरी नहीं है के हरेक गीत सिनेमा में हो !
परंतु फिल्म से जुड़े कलाकोरों ने, ऐसे कई सुन्दर गीत और कलामों को संजोया है, जो हम श्रोताओं के लिए नायाब तोहफा ही तो है !
इन्टरनेट पर हिंदी फिल्म में गीत और ग़ज़ल , लिखनेवालों पर , पिछले कुछ समय में , स - विस्तार और काफी महत्वपूर्ण सामग्री दर्ज की गयी है।
मेरे पापा जी, स्व. पण्डित नरेंद्र शर्मा का नाम "न " अक्षर से खोजते समय, मुझे, इतने सारे नाम और भी मिले !
आप भी गर चाहें और अपने प्रिय गीतकार या संगीतकार या गायक पर खोज करना चाहें तब ये देखिये
लिंक :
Pt. Narendra Sharma
ये भी दुसरे कई सारे गीतकार व गज़लकारों पर लिंक हैं --
राजेन्द्र कृष्ण | रानी मलिक |
रविन्द्र जैन | एस. एच. बिहारी |
साहिर लुधियानवी | समीर |
संतोष आनंद | सावन कुमार |
शहरयार | शैलेन्द्र |
शैली शैलेन्द्र | शकिल बदायुनी |
शेवान रिझवी | वसंत देव |
योगेश |
आशा है आपको ये गीत व ग़ज़ल कि दुनिया से जुडी दीलचस्प बातें पसंद आयी होंगीं। आप अपने सुझाव तथा प्रश्न, यहां लिख कर भेज सकते हैं। ई मेल : lavnis@gmail.com
फिर मिलेंगें -- आज इतना ही। .. ..
" जिंदगी एक सफ़र है सुहाना,
यहां कल क्या हो किसने जाना ! "
स - स्नेह,
- लावण्या
- लावण्या
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Nice Post Sir, visit once
Kannada Songs Lyrics
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