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कोफी -- कहाँ से आयी ?
कोफी विथ कुश के चिठ्ठे से " कुश की कलम " से पढ़िए ~~
http://kushkikalam.blogspot. com/2009/02/blog-post_25.html
आज कोफी का कप यहाँ ले आए हैं और आप को कोफी के पीछे छिपी,
कोफी की दास्ताँ को उजागर कर दें ... तो शुरू करें ?
चलिए, एक कप कोफी के साथ ही शुरू करते हैं ...
अजी, चाय भी ले लीजिये या शरबत, या सादा जल ही सही .... कॉफी की कहानी : एक कल्डी नामका चरवाह था।
वह भेड बकरियां चरा कर अपना पेट भरता था।
एक शाम, घर जाते समय, वह हैरान रह गया !
क्योंकि उसने एक अजीब नज़ारा उसने देखा !
उसने देखा कि उस के जानवरों के झुण्ड की एक बकरी नाच रही थी !!
...वह बकरी पहाडी रास्तों पर अजीब हरकतें कर रही थी ...
और उसने कौतूहल से आगे बढ़कर देखा तो वह बकरी,
पहाड़ी ढलान पर उगे हुए एक पौधे से तोड़ कर लाल रंग के बेर जैसे दानो को चबा चबा कर चरते हुए खाये जा रही थी।
तब, काल्डी ने भी कुछ दाँने उस पौधे से तोड़े और अपने मुंह में रख लिए !
चबा कर उन दानों को वह खाने लगा और आहा !
अचानक उसने महसूस किया उसे भी एकदम से ताजगी महसूस होने लगी !
अब तो वह खुश हो गया ! कुछ और दाँने तोड़ कर चरवाहे काल्डी ने
अपनी झोली में बाँध लिए फ़िर सोचा ,
"आज इन दानों को अपनी बीवी को भी चखाऊंगा ! "
घर पहुँच कर बीवी को उसने वह बीज दे दिए।
काल्डी की बीवी ने उन्हें अपने चूल्हे परउबल रहे पानी में फेंक दिए !
कुछ देर बाद, उन बीजों समेत उबलते हुए गरम पानी को पी लिया।
तो वह भी बहुत खुश हुई क्योंकि उसे भी फ़ौरन ताज़गी महसूस हुई !
पलटकर अपने शौहर काल्डी से वह बोली,
' अरे सुन, कल कुछ और ये लाल बेरी के दाँने तोड़ लाना
यह पेय मुझे पसंद है ! "
बीवी की तारीफ़ सुनकर काल्डी की बांछें खिल गईं !
वह मुस्कुराकर बोला, 'हाँ लाडो ले आऊंगा ! इधर आ, मुझे तो तू पसंद है ! "
यह कहानी उस काल्डी चरवाहे की कहानी है।
जिस ने खोज निकाले थे ताज़गी देनेवाले कोफी के दाने !!
कॉफी से जुडी एक और कहानी ~~
यह कहानी अफ्रीका के विशाल भूखंड पर बसे इथीओपिया प्रांत की बात है!
कुछ सूफी संतों और धर्मगुरुओं ने (पादरियों ने) इस पेय को अपने अनुभव से
जहाज निकाला था और कॉफी को अपना लिया था। उस के पीछे उनकी धार्मिक प्रवृत्ति मूल कारण रही थी। उनहोंने अनुभव से कॉफी पेय के ताज़गी देनेवाले गन को पहचान लिया था। अपनी धार्मिक क्रियाओं में बाधा डालनेवाली निद्रा का त्याग कर सकें और ईश्वर भक्ति में अधिक समय दे सकें इसी कारण कॉफी अपनाई !
कॉफी की पहचान का समय : ९ वी शताब्दी तक आते हुए, कोफी की खोज कुछ अनुभवी जानकारों में, अपनी ताज़गी प्रदान करनेवाली शक्ति से परिचित करवा चुकी थी। कॉफी के पेय को अपने दैनिक जीवन में अपनाने की आदत और कॉफी का पेय रूप प्रचलन में आ चुका था। ९ वीं शताब्दी में हुई कॉफी के पेय की इस इजाद को निर्धारित करने की तिथि हमें यही बतलाती है कि
९ वीं शताब्दी तक आते आते, कोफी के बीजो व दानों को, कुछ चतुर अरब व्यापारी, अपने कारवाँ में, झोलों में भर कर अपने साथ साथ अपने सफर में साथ ले कर रेगिस्तानों और एक विशाल भूमार्ग पर आगे बढने लगे थे।
इस तरह के सफर को कारवाँ का सफर कहते हैं जिस की मार्फ़त अफ्रीका से अरब देशों तक अब आगे कॉफी आ पहुँची !
http://kushkikalam.blogspot.
आज कोफी का कप यहाँ ले आए हैं और आप को कोफी के पीछे छिपी,
कोफी की दास्ताँ को उजागर कर दें ... तो शुरू करें ?
चलिए, एक कप कोफी के साथ ही शुरू करते हैं ...
अजी, चाय भी ले लीजिये या शरबत, या सादा जल ही सही .... कॉफी की कहानी : एक कल्डी नामका चरवाह था।
वह भेड बकरियां चरा कर अपना पेट भरता था।
एक शाम, घर जाते समय, वह हैरान रह गया !
क्योंकि उसने एक अजीब नज़ारा उसने देखा !
उसने देखा कि उस के जानवरों के झुण्ड की एक बकरी नाच रही थी !!
...वह बकरी पहाडी रास्तों पर अजीब हरकतें कर रही थी ...
और उसने कौतूहल से आगे बढ़कर देखा तो वह बकरी,
पहाड़ी ढलान पर उगे हुए एक पौधे से तोड़ कर लाल रंग के बेर जैसे दानो को चबा चबा कर चरते हुए खाये जा रही थी।
तब, काल्डी ने भी कुछ दाँने उस पौधे से तोड़े और अपने मुंह में रख लिए !
चबा कर उन दानों को वह खाने लगा और आहा !
अचानक उसने महसूस किया उसे भी एकदम से ताजगी महसूस होने लगी !
अब तो वह खुश हो गया ! कुछ और दाँने तोड़ कर चरवाहे काल्डी ने
अपनी झोली में बाँध लिए फ़िर सोचा ,
"आज इन दानों को अपनी बीवी को भी चखाऊंगा ! "
घर पहुँच कर बीवी को उसने वह बीज दे दिए।
काल्डी की बीवी ने उन्हें अपने चूल्हे परउबल रहे पानी में फेंक दिए !
कुछ देर बाद, उन बीजों समेत उबलते हुए गरम पानी को पी लिया।
तो वह भी बहुत खुश हुई क्योंकि उसे भी फ़ौरन ताज़गी महसूस हुई !
पलटकर अपने शौहर काल्डी से वह बोली,
' अरे सुन, कल कुछ और ये लाल बेरी के दाँने तोड़ लाना
यह पेय मुझे पसंद है ! "
बीवी की तारीफ़ सुनकर काल्डी की बांछें खिल गईं !
वह मुस्कुराकर बोला, 'हाँ लाडो ले आऊंगा ! इधर आ, मुझे तो तू पसंद है ! "
यह कहानी उस काल्डी चरवाहे की कहानी है।
जिस ने खोज निकाले थे ताज़गी देनेवाले कोफी के दाने !!
कॉफी से जुडी एक और कहानी ~~
यह कहानी अफ्रीका के विशाल भूखंड पर बसे इथीओपिया प्रांत की बात है!
कुछ सूफी संतों और धर्मगुरुओं ने (पादरियों ने) इस पेय को अपने अनुभव से
जहाज निकाला था और कॉफी को अपना लिया था। उस के पीछे उनकी धार्मिक प्रवृत्ति मूल कारण रही थी। उनहोंने अनुभव से कॉफी पेय के ताज़गी देनेवाले गन को पहचान लिया था। अपनी धार्मिक क्रियाओं में बाधा डालनेवाली निद्रा का त्याग कर सकें और ईश्वर भक्ति में अधिक समय दे सकें इसी कारण कॉफी अपनाई !
कॉफी की पहचान का समय : ९ वी शताब्दी तक आते हुए, कोफी की खोज कुछ अनुभवी जानकारों में, अपनी ताज़गी प्रदान करनेवाली शक्ति से परिचित करवा चुकी थी। कॉफी के पेय को अपने दैनिक जीवन में अपनाने की आदत और कॉफी का पेय रूप प्रचलन में आ चुका था। ९ वीं शताब्दी में हुई कॉफी के पेय की इस इजाद को निर्धारित करने की तिथि हमें यही बतलाती है कि
९ वीं शताब्दी तक आते आते, कोफी के बीजो व दानों को, कुछ चतुर अरब व्यापारी, अपने कारवाँ में, झोलों में भर कर अपने साथ साथ अपने सफर में साथ ले कर रेगिस्तानों और एक विशाल भूमार्ग पर आगे बढने लगे थे।
इस तरह के सफर को कारवाँ का सफर कहते हैं जिस की मार्फ़त अफ्रीका से अरब देशों तक अब आगे कॉफी आ पहुँची !
ऊँट की सवारी जिन पर बैठने के लिए हौदा भी रखा रहता था।
चित्र : howdah, by Émile Rouergue, सं १८५५
यूरोप के भूभाग को पार करते हुए आगे कॉफी का सफर मध्य एशिया पहुँचा।
उसके बाद काफिलों के मार्फ़त, कॉफी भारत आकर भारत में फ़ैलने लगी। ब्रिटिश साम्राजयवाद का विस्तार व कॉफी :यूरोप में ब्रिटिश राज्य सत्ता की महत्वपूर्ण संस्था ' ईस्ट इंडिया कम्पनी संस्था का सं. १६०० में संगठन हुआ । उक्त संस्था द्वारा विश्व व्यापार को ब्रिटिश राज्य साम्राज्य ने अपने साम्राजयवाद के विस्तार का महत्वपूर्ण अंग बना लिया था। ईस्ट इंडिया कम्पनी के सामरिक विस्तार के साथ, कोफी का साम्राज्य भी विश्व भर में, सुनिश्चित तौर से फैलने लगा।
ब्रिटिश राज्य सता के सुनियोजित साम्राज्य विस्तार के साथ साथ कॉफी, चाय, ओपियम, सिल्क इत्यादि का ब्रिटिश हुकूमत द्वारा व्यापार भी विश्वभर में फैलता चला गया।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और डच ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा कॉफी १६ वी सदी में यूरोप के इंग्लैंड प्रांतों में में दाखिल हुई थी ।
यूरोप के भूभाग को पार करते हुए आगे कॉफी का सफर मध्य एशिया पहुँचा।
उसके बाद काफिलों के मार्फ़त, कॉफी भारत आकर भारत में फ़ैलने लगी। ब्रिटिश साम्राजयवाद का विस्तार व कॉफी :यूरोप में ब्रिटिश राज्य सत्ता की महत्वपूर्ण संस्था ' ईस्ट इंडिया कम्पनी संस्था का सं. १६०० में संगठन हुआ । उक्त संस्था द्वारा विश्व व्यापार को ब्रिटिश राज्य साम्राज्य ने अपने साम्राजयवाद के विस्तार का महत्वपूर्ण अंग बना लिया था। ईस्ट इंडिया कम्पनी के सामरिक विस्तार के साथ, कोफी का साम्राज्य भी विश्व भर में, सुनिश्चित तौर से फैलने लगा।
ब्रिटिश राज्य सता के सुनियोजित साम्राज्य विस्तार के साथ साथ कॉफी, चाय, ओपियम, सिल्क इत्यादि का ब्रिटिश हुकूमत द्वारा व्यापार भी विश्वभर में फैलता चला गया।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और डच ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा कॉफी १६ वी सदी में यूरोप के इंग्लैंड प्रांतों में में दाखिल हुई थी ।
उत्तर अमरीका में कॉफी :
अमरीकी इतहास में " बोस्टन टी पार्टी " का उल्लेख प्राप्त होता है।
अमरीकी इतहास में " बोस्टन टी पार्टी " का उल्लेख प्राप्त होता है।
अँगरेज़ राज्य सता नए देश अमरिका को चाय, कॉफी व अन्य जीवन उपयोगी संसाधनों का निर्यात किया करता था।
ब्रिटिश साम्राज्य के अधिकारी वर्ग अमरीकी जनता से इन
आम जीवन के दैनिक उपयोग की प्रत्येक चीज वस्तुओं पर
तगड़ा कर लगाया करते थे तथा अमरीकी भूखंड पर बसे
नए आगंतुकों से माने आम जनता से तगड़ा कर - वसूल किया करते थे।
इस का विरोध अमरीकी जनता के मन ने विद्रोह की भावना बढ़ाने लगा।
ब्रिटिश साम्राज्य के अधिकारी वर्ग अमरीकी जनता से इन
आम जीवन के दैनिक उपयोग की प्रत्येक चीज वस्तुओं पर
तगड़ा कर लगाया करते थे तथा अमरीकी भूखंड पर बसे
नए आगंतुकों से माने आम जनता से तगड़ा कर - वसूल किया करते थे।
इस का विरोध अमरीकी जनता के मन ने विद्रोह की भावना बढ़ाने लगा।
महंगाई की मार झेलकर,ब्रिटिश हुकूमत को पैसा देते हुए
परेशान होकर जनता ने ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करना शुरू किया।
ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद होने की इच्छा भी अमरीका आकर बसे इन
योरोपीय जन के मन में ब्रिटिश सत्ता के विरोध में आग में घी समान बना ।
नतीजा यह हुआ कि उत्तर अमरीका के मैसेच्युसेटस प्रान्त के बोस्टन शहर में
एक ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में विशाल विरोध प्रदर्शन का आयोजन निश्चित किया गया।
विश्व के चाय एवं कॉफी उत्पादक देशों से ब्रिटिश हुकूमत द्वारा उत्तर अमरीका निर्यात की हुई महँगी चाय को बोस्टन शहर के पास सीधे जहाज से उठा उठाकर अमरीकी विरोधकारी प्रदर्शनकर्ताओं ने ४३२ बक्सों को डार्टमाउथ जहाज से एटलांटिक समुद्र में फेंक कर, अपना विरोध जताया ! ब्रिटिश राज्य सत्ता के साथ साथ महंगी निर्यात की हुई, तगड़े कर से लदी इस महंगी चाय का निषेध अमरीकी जनता ने गर्मजोशी के साथ प्रर्दशित किया। अमरीकी आज़ादी की क्रांति का बीजारोपण भी इसी निषेध द्वारा आरम्भ हुआ।
योरोपीय जन के मन में ब्रिटिश सत्ता के विरोध में आग में घी समान बना ।
नतीजा यह हुआ कि उत्तर अमरीका के मैसेच्युसेटस प्रान्त के बोस्टन शहर में
एक ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में विशाल विरोध प्रदर्शन का आयोजन निश्चित किया गया।
विश्व के चाय एवं कॉफी उत्पादक देशों से ब्रिटिश हुकूमत द्वारा उत्तर अमरीका निर्यात की हुई महँगी चाय को बोस्टन शहर के पास सीधे जहाज से उठा उठाकर अमरीकी विरोधकारी प्रदर्शनकर्ताओं ने ४३२ बक्सों को डार्टमाउथ जहाज से एटलांटिक समुद्र में फेंक कर, अपना विरोध जताया ! ब्रिटिश राज्य सत्ता के साथ साथ महंगी निर्यात की हुई, तगड़े कर से लदी इस महंगी चाय का निषेध अमरीकी जनता ने गर्मजोशी के साथ प्रर्दशित किया। अमरीकी आज़ादी की क्रांति का बीजारोपण भी इसी निषेध द्वारा आरम्भ हुआ।
लिंक : Key Events Leading to the Boston Tea Party
The US economy is so large that the GDP of individual states is often comparable to entire other countries.
कोफी के निद्रा विरोधक गुण को पहले तो ईस्लामी और ख्रिस्ती धर्म का समझकर दोनोँ ही धर्म के अनुयायीओँ ने पहले तो कोफी का विरोध किया था
परन्तु कोफी के चाहक वर्ग ने, कोफी को अपना लिया और आगे बढ़कर कॉफी का खूब प्रचार प्रसार किया।
अफ्रीका के यामीन इलाके में भी प्राकृतिक रूप से कोफी की पैदाइश होती है ।
काफ़ी हाउस मूलत अरब और तुर्क्स ही चालाया करते थे ।
काफ़ी पीने का चलन, मक्का व मदीना (सौदी अरेबिया ) से कैरो (ईजिप्ट ), दमस्कुस (सिरिया ), बगदाद (इराक ) इस्तांबुल (तुर्की ) से आगे बढ़ा।
मोक्का कोफी का नाम - यामिनी कोफी से पहचान में आया !
देखिये लिंक : — क्लीक करें --
Yemeni - coffee Mocha।
कारवाँ से ऊंटों के काफिलों में थैलियों में बंध कर आई, कॉफी,
धीरे धीरे यूरोपीय प्रजा को पसंद आने लगी।
लोगों को महसूस हुआ कि कॉफी के पेय से अच्छी खासी ताज़गी होने लगी।
पहले पहल योरोप के इटली में, कोफी पीने के रेस्तरां खुले।
आज ऐसे कोफी रेस्तरां या कोफी हाउस, दुनिया भर में, मिल जायेंगे
पहले पहल योरोप के इटली में, कोफी पीने के रेस्तरां खुले।
आज ऐसे कोफी रेस्तरां या कोफी हाउस, दुनिया भर में, मिल जायेंगे
" केफ्फे " इटालियन शब्द है जो, काहवा का बिगडा रूप है -
मूल टर्की भाषा के शब्द को बदल कर " खावे " बना लिया गया
जो " काहवा - अल बुन " शब्द -मूल अरब शब्द है उसके करीब है।
जिसका अर्थ है " कोफी बीन का रस - या
" काहवा - अल बुन "
यमन के मक्खा बंदरगाह से चली कोफी ,
आज मोका कोफी के नाम से मशहूर है !!
किव हाँ ने इस्तांबुल में सं.१४७१ में सबसे पहला " कोफी हाउस " खोला था।
मूल टर्की भाषा के शब्द को बदल कर " खावे " बना लिया गया
जो " काहवा - अल बुन " शब्द -मूल अरब शब्द है उसके करीब है।
जिसका अर्थ है " कोफी बीन का रस - या
" काहवा - अल बुन "
यमन के मक्खा बंदरगाह से चली कोफी ,
आज मोका कोफी के नाम से मशहूर है !!
किव हाँ ने इस्तांबुल में सं.१४७१ में सबसे पहला " कोफी हाउस " खोला था।
बाद में यूरोप के इटली में कई काफी हाउस खुल गए।
वहाँ से फ्रांस में भी इसका प्रचलन हुआ।
जहाँ कलाकार सार्त्र और कलाकार सिमोन दे बेऔवोइर पिकासो जैसे असंख्य चित्रकार, कवि, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक वर्ग के लोगों में सं. १६५४ के बाद कॉफी हाउस में अक्सर मुलाकातें होने लगीं। बुद्धिजीवी, कला क्षेत्रों से जुड़े वर्ग के विचारशील लोग कॉफी की चुस्कियों के साथ गंभीर विचार विमर्श करने लगे - अक्सर कॉफी हाउस में वे मिलने लगे और दुनियाभर को अपने विचार विमर्श करते हुए, उनसे उपजे नए नए विचार भी देने लगे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि, एक तरह से," विश्व पटल पर ' वैचारिक क्रान्ति का सूत्रपात 'भी कोफी हाउस से जुडी व कॉफी के रोचक सफर से उपजी हुई देन रही है।
वहाँ से फ्रांस में भी इसका प्रचलन हुआ।
जहाँ कलाकार सार्त्र और कलाकार सिमोन दे बेऔवोइर पिकासो जैसे असंख्य चित्रकार, कवि, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक वर्ग के लोगों में सं. १६५४ के बाद कॉफी हाउस में अक्सर मुलाकातें होने लगीं। बुद्धिजीवी, कला क्षेत्रों से जुड़े वर्ग के विचारशील लोग कॉफी की चुस्कियों के साथ गंभीर विचार विमर्श करने लगे - अक्सर कॉफी हाउस में वे मिलने लगे और दुनियाभर को अपने विचार विमर्श करते हुए, उनसे उपजे नए नए विचार भी देने लगे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि, एक तरह से," विश्व पटल पर ' वैचारिक क्रान्ति का सूत्रपात 'भी कोफी हाउस से जुडी व कॉफी के रोचक सफर से उपजी हुई देन रही है।
चित्र : कॉफी रेस्त्रां : ~~
कुछ
समय बीतने पर विश्व के अनेकानेक देशों में व प्रांतों में कॉफी प्रचलित हो गयी। विश्व
के विभिन्न प्रांतों की कॉफी उत्पाद के लिंक्स प्रस्तुत हैं ~ विस्तृत जानकारी के लिए प्लीज़ प्रत्येक लिंक पर क्लिक करें ~~
१ - कोलंबियन : Colombian
२ - कोस्टा रीकन : Costa Rican
३ - हवाईयन कोना : Hawaiian Kona
४ - इथीयोपियन सिड़ामो : Ethiopian Sidamo
५ - ग्वातमाला : Guatemala : (ब्रांड : हेहेतेनांगो)
६ -- जमैकन नीली पहाड़ी ब्रांड - Jamaican Blue Mountain
७ -- जावा -- Java
८ -- केन्यन -- Kenyan
९ -- पानामा -- Panama
१० -- सुमात्रा -- Sumatra
११ -- इंडोनेशिया -- Indonesia
१२ --- सुलेवासी -- Sulawesi ( ब्रांड : तोराजा कलोस्सी )
१३ -- तान्ज़ानिया -- Tanzania ( ब्रांड : पाबेर्री)
१४ -- उगांडा -- Uganda- (ब्रांड : रोबुस्ता काफ़ी )
१५ : यमन कोफी को " अरेबिया फीलिक्स " कहते हैं ।
लिंक : https://www.coffeesheikh.com/?
यह भौगोलिक स्थान विश्व के कोफी उत्पादन से जुड़े हुए स्थल हैं ।
विश्व के नक्शे में, जहाँ जहां कोफी उगाई जाती है उन का
हरे रंग से उल्लेख किया गया है।
भारत में कॉफी : कर्णाटक के पहाडी इलाकों में, ख़ास कर, चिकमंगलूर इलाके में कोफी की अधिक पैदाइश होती है, मैसूर प्रांत में कोफी बड़े चाव से पी जाती है .
आधुनिक समय मे कोफी कल्चर :
कॉफी पीना यह आज के समय में ' ग्लोबल कल्चर ' बन गया है। विश्व को कोफी के पहचान देने वाले अरब देशों और आफ्रीकी देशों में भी अब विश्व के सर्व शक्तिमान देश अमरीकी व्यापारी कल्चर ने सेंध लगा रखी है।
अमरीकी व्यापारिक दिग्गज कॉर्पोरेशंस अब सर्वत्र घुसपैठ कर गया है और अपना वर्चस्व बढ़ाने में यह सामर्थ्यवान कॉर्पोरेट्स प्रतिदिन व्यस्त हैं !
आज अमरीकी कॉर्पोरेट कल्चर व व्यापार वाणिज्य की देन के मिलियनों डालर कमानेवाले व्यवसाय के प्रतीक समान हैं ~ स्टारबक्स, सीयाटल कॉफी, बीग्बी कोफी, हडसन, एस्प्रेसो हाउस वगैरह ~
काफी हाउस या "पब" एक तरह से आम लोगोँ के मिलने की
ख़ास जगह हो गई है।
मोका कोफी की जानकारी ~ मौका कॉफी शब्द, " अल मखा " शब्द से आया है ( ' शब्दोँ का सफर ' : शब्दों के शोधकार्य से जुड़े अजित भाई का लिंक )
http://shabdavali.blogspot.
भारत में कोफी का आगमन किस तरह हुआ ? इसकी अति रोचक कथा है।
यामिनी सूफी संत बाबा बुदान , ‘बाबा ’
(हज़रात शैक जमेर अल्लाह मज़राबी ) यमन के अल -मखा इलाके से,
पश्चिम घाट के परबत चिकमंगलूर, कर्णाटक प्रांत, भारत तक सफर करते हुए आ पहुंचे थे। वे, कोफी के कुछ दाने, अपने साथ,लेकर आए थे और उन्हें बीजों को भारत की सरज़मीं पर उन्होंने रोप दिए।
यह संवत १६७० की बात है और आज मैसूर कोफी भारत में ही नही
भारत के बाहर भी सुप्रसिध्ध है। उन्ही के नाम से " बाबा बदनगिरी हिल्ज़ "
और 'बाबा बदनगिरी कोफी ' अत्याधिक प्रसिद्ध हुई।
अब आप बतलाएं, आप को चाय पसंद है या कोफी ?
या और कोई पेय आपको ज्यादा प्रिय है ?
आशा है कोफी का रोमांचक सफर आपको पसंद आया होगा .......
- लावण्या
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