ॐ
कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में
यादों के पीपल लहराते खड़े हैं यूं ध्यान में
सघन बदली दबे पाँव आती लुटाती कोष जब ,
कुछ नमी लिए संध्या छम से उतरती छाँव से !
अमुवा बगिया से सरसराती बयार, धीमे बहती
कोयल कूकती सुनाती गीत मीठा महुवे की डाल से
मयूर टेर उठती बरखा जल लिए ठुमकती मोरनी ,
किसे लुभाती ' के आऊँ ', मोरनी चपल चलती शान से
मोर संग चलती मोरनी प्रकृति की विजय है सामने !
मेरे गाँव के पेड़ों से लिपटी हैं ये अनगिनत कहानियां
कुछ सुनीं दादी से रात में दुबक कर गोद में कम्बल लपेटे
कुछ घड़ी मन ने मेरे , शैशव से चलीं , फिर , बदलीं
कितने खेल खेले , मिटाए , कुछ बनीं अपने आप भी
याद है ,कौन वो , नित आता दूर से चल कर वहां पर
पेड़ की ओट से छिप निहारता मूक मौन जो है खड़ा
पोखर पे मधुरिमा खडी थी औ' जल में छाया पडी थी
कब भूल सका है मन , खत, उसके बहाए उसी जल में !
डोली उठी वो दुल्हिन बनी पराये देस जा कर बस गयी
आज भी थामे डालियों को देखता सूने पथ को मैं अकेला
फिर फिर याद आते हैं घर आंगन के वे विस्तृत पेड़ सारे
दादा की धूप सी खिलती हंसी औ ' राज गद्दी , चारपाई
दादी ने जो सुखायीं अमिया मिरच, आंगनकी धूप में
ये पुराने पेड़ नहीं , हैं मेरे बचपन के मेरे संगी साथी
छूटे कुछ, कुछ आबाद हैं लिए संग अपने नाते - नातिन !
- लावण्या
Tuesday, October 31, 2017
कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में
Thursday, October 19, 2017
टूटा सिपाही : बाल कहानी
एक था लड़का, ८ या कह सकते हैं कि लगभग ९ वर्ष का होने ही वाला था। उसकी साल गिरह आने में बस १ महीने का समय बाकी था। उसे घर में प्यार से सब 'मुन्ना' कह कर पुकारा करते थे। परन्तु, स्कूल में उसके सहपाठी दोस्त उसे मनोज ही कहते।
मनोज के पास ढेरों खिलौने थे। उसके पापा वीरेन्द्र और मम्मी गिरिजा उसे तरह-तरह के मनपसंद खिलौने बाजार से खरीद कर ला देते थे। खिलौनों में मुन्ना के पास थे, रंग-बिरंगी कंचे, कई सारी छोटी कारें, एक फुटबाल, २ या ३ गेंद, इलेक्ट्रिक ट्रेन, कमाण्डो, गन, बोर्ड गेम - लूडो, कैरम, लेगो, बैड मिन्टन के रेकेट और कई सारे शटल और भी न जाने क्या-क्या मुन्ना के लिए उन्होंने खरीद लिया था। जब भी मुन्ना को समय मिलता, वह अपनी पसंद का खिलौना उठाता और खूब खेलता। हाँ अक्सर वीडीयो गेम्स में भी उसका समय अधिक बीत जाता। कभी कराटे की क्लास में भी मम्मी उसे ले चलती। जब मुन्ना घर पर रहता तब वह कोमिक्स भी पढता। कभी जिमखाना जाकर मुन्ना स्वीमिंग भी सीखता और अब तैराकी में भी मुन्ना कुशल हो गया है। सन्डे को पापा, मम्मी अच्छी पिक्चर लगी हो, तो उसे सिनेमा दिखलाने भी ले चले जाते थे। वहां पॉपकोर्न, आईसक्रीम और चोकलेट भी उसे अवश्य मिलतीं। स्कूल की पढ़ाई, खेल और मनोरंजन के अनगिनत साधन मुन्ना के लिए उपलब्ध थे। मुन्ना की ज़िन्दगी भरीपूरी थी और बड़े मज़े में चल रही थी।
अपने ढेरों खिलौनों में, मुन्ना को एक खेल सबसे ज्यादा पसंद था। उसके पास दस टीन के (पतरे के) बने हुए रंगीन सिपाही थे। सिपाहियों ने ऊपर लाल कोट, नीचे, काली पतलून पहन रखी हो इस तरह उन्हें रंगा गया था। उन सिपाहियों के सर पर बड़ा-सा, काला टॉप लगा हुआ था जो अंडे के आकार का लंबा गोल टोपा था। सिपाही बड़े सुन्दर शक्ल और आकार के थे।
जब भी मुन्ने को समय मिलता तब वह मुड में आ जाता और अपने बिस्तर के एक तरफ राजा के पांच सिपाही और दुसरी ओर राणा के पांच सिपाही बिठलाता। ये खेल मुन्ने को बेहद अच्छा लगता था जो उसने अपने आप खोज निकाला था। खेल-खेल में, अक्सर, राजा और राणा के सिपाहियों के बीच घनघोर लड़ाई छिड़ जाती। दोनों पक्ष बड़े बलवान और बहादुर थे। सो भई युद्ध भी भयानक होता ! पांच-पांच सिपाही अलग-अलग पैंतरे बदलते तब, युद्ध और भी अधिक भीषण हो जाता।
मुन्ना कभी राजा के पक्ष से लड़ता तो कभी राणा के सिपाहियों को बचाव करने में मदद करता। कभी चिल्लाता 'ये मारा ..ले वो मारा ' ..'अरे बचो ..अरे बचाओ' अरे मरा रे ..अरे ये गिरा' ऐसी आवाजों को सुनकर मम्मी भी दरवाजे पर आ खडी होतीं और मुस्कुरातीं। यह खेल, खेलते हुए मुन्ना के दिमाग में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती मानों इस युद्ध की बागडोर थामे, वही लड़ाई का संचालन कर रहा हो ! मुन्ना की कल्पना-शक्ति, मानों उसे लड़ाई के मैदान में अपने पंखों पर बिठला कर ले चलती। आहा ! मुन्ना तो सचमुच रण मैदान में उतर पड़ा है !
यकायक मुन्ना के मनोलोक में सारे सिपाही जीवित हो गये और मुन्ना उन के संग अपने आप को खड़ा हुआ देखने लगा। यह सिपाही तो अब पतरे के माने टीन के न होकर सजीव दीखलायी पड़ने लगे !
मुन्ना आश्चर्य से उनके चेहरों को देखने लगा। एक के मुँह पर ये बड़ी-बड़ी मूँछें हैं ! दुसरे के हाथ में उठी हुई संगीन माने गन है। सामने राणा की फ़ौज से एक सिपाही राजा के सिपाहियों से भिड़ने को उतावला हुआ सामने भागा आ रहा है और चिल्ला रहा है ...'फायर फ़ायर ' आग आग ' ..चौथा घुटनों के बल बैठ निशाना साध रहा है, तभी बन्दूक से एक गोली निकल कर पाँचवें सिपाही की कनपटी के नज़दीक से सुं ...सूँ ..आवाज़ करती गुजर जाती है। ' धाँ य '..का ज़ोरदार स्वर सुनते ही मुन्ना उस पाँचवें सिपाही की और मुड़कर देखने लगा और यह क्या ! पांचवा सिपाही तो घायल हो गया ! उसके दाहिने पैर पे गोली लग गयी थी ! घाव से बेतहाशा खून बहे जा रहा था। सिपाही जमीन पर पड़ा हुआ अब कराहने लगा।
अब तो कल्पना-लोक से उतर कर मुन्ना उछल कर अपने सिपाहियों की ओर दौड़ा। उसे अपने मन के आईने में देखी कहानी सच लगने लगी। उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा।
अब वह सच की दुनिया में लौट आया था। मुना ने आहिस्ता से औन्धे मुँह, पीछे की ओर गिरे हुए, उस पांचवे सिपाही को उठा लिया। परन्तु उसकी आँखें विस्मय से फ़ैल गईं ! दिल अब भी तेज धड़क रहा था। आश्चर्य ! इस सिपाही की टाँगें, घुटनों के पास से सचमुच टूट गयी थी। यह देख कर अब मुन्ना सचमुच परेशान हो गया।
मुन्ने ने अपना टूटा सिपाही, गोद में उठाकर रख लिया। मुन्ना की आँखों से टप टप आंसू बह चले। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह अब क्या करे ! किससे कहे ? उसे पता था कि मम्मी-पापा उस की किसी भी बात को समझेंगें नहीं। बड़ों की दुनिया बच्चों की दुनिया से अलग होती है। यह बात मुन्ना जानता था। परेशान मुन्ने को कमरे के दरवाजे से देख रही माँ गिरिजा जी उसी समय कमरे के भीतर आ गयीं।
पहले तो उन्होंने कमरे में चारों तरफ फ़ैली चीजें बटोर कर उन्हें सही जगह पर रखना शुरू किया। टूटे सिपाही को थाम कर बैठे मुन्ना पर अब माँ की निगाह पड़ी।
टूटे सिपाही को देख कर गिरिजा माँ कुछ सोच में पड गयीं। माँ ने अपना सर हिलाया और समीप आयीं तो माँ की साड़ी का नर्म आँचल मुन्ना के सर पे लहरा गया। माँ ने पूछा- 'मुन्ना ! क्या हुआ बेटा ? '
माँ के ममतामय स्वर से मुन्ना सम्हला उस ने सजल आँखों से माँ की ओर देख कर कहा, ' मम्मी देखो न मेरे बहादुर सिपाही को चोट लग गयी! 'माँ ने मुन्ने के हाथों से टूटा सिपाही उठा लिया और कहा, ' अरे मुन्ने तू चिंता न कर ..बहुत खेल हो गया। चलो खाना तैयार है ! पापा हमारा इंतज़ार कर रहे हैं। तुम हाथ धोकर जल्दी से आ जाओ' इतना कहते हुए माँ ने उस टूटे सिपाही को खिड़की के पास उठाकर रखते हुए कहा 'अब ये बहादुर सिपाही कुछ देर आराम करेंगें।'
भोजन समाप्त करने के बाद मुन्ना फ़ौरन अपने कमरे में आ पहुँचा और अपने घायल सिपाही के पास जा कर मुन्ना खड़ा हो गया। उसने देखा वह टूटा सिपाही बेबस निगाहों से उसी को ताक रहा था। मुन्ने ने कमरे में इधर-उधर देखा और टूटी हुई टांग का हिस्सा उसे दिखलायी दिया तो उसे भी उठाकर उसने खिड़की पर रख दिया। फिर अपने टूटे सिपाही के पास मुँह लाकर फुसफुसाकर वह बोला, 'अब तुम भी आराम करो अच्छा मेरे बहादुर सिपाही ! मैं अब सोने जा रहा हूँ ! कल स्कूल है न जल्दी उठना है' इतना कह कर मुन्ना बिस्तर पर जा कर लेट गया। उदास मुन्ना को नींद आने में आज देर हो रही थी। पर आखिरकार वह बच्चा था, सो गया।
मुन्ने की आँख लगते ही उसे यूँ लगा मानों वह तेज हवा के संग कहीं दूर उड़ा जा रहा है। फिर धमाके से वह नीचे गिर पडा। गिरा भी तो पानी में ..ये तो अच्छा था कि मुन्ना स्वीमिंग करना जानता था। पानी की तेज धारा मुन्ना को घसीट कर नीचे की ओर ले चली। मुन्ना ने साँस रोक ली। वह नीचे की ओर चला जा रहा था। वह और नीचे सरकने लगा। इसी तरह मुन्ना तैरता हुआ बहुत दूर चला गया। डर के मारे अब तो मुन्ना ने कस कर आँखें बंद कर लीं। फिर कुछ मिनटों के बाद आँखें आहिस्ता से खोलीं तो देखा वह किसी नई दुनिया में आ पहुँचा था।
'अरे ये मैं कहाँ आ गया ? 'मुन्ना सोचने लगा। उसने देखा तो चारों तरफ नीले पानी के अन्दर उसे सब कुछ शंखों और सीपियों से बना दिखलाई दिया। मुन्ना के ऊपर, नीचे, लाल, सुनहरी, हरी, नीली, पीली, नारंगी, काली रूपहली, अरे हर रंग की मछलियाँ तैर रहीं थीं। सामने बड़ी सीपी का मुँह आधा खुला हुआ था जिस पर आधी लडकी जिसके नीचे के हिस्से में मछली जैसी पूँछ थी, वैसी जलपरी या अंग्रेज़ी में जिसे 'मरमेड' कहते हैं वह आराम से वहाँ बैठी थी।
मुन्ना को देखते ही वह जलपरी/ मरमेड मुस्कुराई। उसके सुनहरे बाल पानी पर लहरा रहे थे और उसकी भूरी भूरी आँखें मुन्ना को देखे जा रहीं थीं। उसी वक्त तैरती हुईं और भी बहुत सारी सुन्दर जलपरियाँ भी वहाँ आयीं। सभी बड़ी सुन्दर थीं। वे तैरती हुई, मुस्कुराती हुई आयीं और मुन्ना का हाथ थामे अपने राजा के पास ले चलीं।
जलपरी : मरमेड
एक जलपरी मुन्ना से बोली, ' मुन्ना , ये हमारे राजा जी वरूण देव हैं। 'लोग इन्हें' नेपच्यून भगवान भी बुलाते हैं ! वे जल सागर, दरिया, समंदर सभी के स्वामी हैं। जल में जितने भी जीव जंतु और प्राणी रहते हैं वे वरूण देवता को अपना पिता मानते हैं।
वरूण देव : नेपच्यून भगवान
इतना सुनते ही, मुन्ना ने झट से वरूण देवता को नमस्ते किया। उसने देखा के वरुण देवता एक बहुत बड़ी सोने के रंग की चमचमाती सीप से बने राज सिंहासन पर विराजमान हैं। उनके ठीक सामने टेबल की जगह बहुत बड़ा विशाल मोती चमक रहा है। मोती में से कभी गुलाबी, कभी सुनहरी और कभी नीली और पीली रोशनी निकल रही है और चारों तरफ प्रकाश फैल रहा है। चाँदनी जैसी आभा आस-पास झिलमिला रही है। मुन्ना ऐसा सुन्दर दृश्य देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने झुककर जैसे माँ ने उसे भगवान् जी की पूजा करते वक्त सिखलाया था उसी तरह अदब के साथ वरुण देवता को प्रणाम किया। मुन्ना बोला ' नमस्ते वरुण देवता।'
वरुण देव ने मुस्काराते हुए कहा ' क्यों मनोज, कैसे हो बेटा ? '
मुन्ना बोला 'अरे वाह ! आप को मेरा नाम भी मालूम है ! क्या आप मुझे पहचानते हो अंकल ?
वरूण देव ने कहा, ' मुन्ना हम तुम्हें अच्छी तरह पहचानते हैं और हमे ये भी पता है कि तुम बड़े स्मार्ट हो ! अच्छे लडके हो। हम और भी कई सारी बातें जानते हैं। पर तुम बताओ, आज हमारी नगरी में कैसे आना हुआ?'
मुन्ना बोला ' वरुण देवता जी ! मैं नहीं जानता, मैं यहाँ कैसे आ गया ! मैं तो सो रहा था, सच्ची ..और आँखें झपकते ही न, पता नहीं कैसे, मैं यहाँ आ गया ! ये पानी का दरिया बहाकर मुझे आप के पास ले आया ...'
वरुण देव बोले ' बेटा, आज तुम बहुत उदास थे ना, सो हम ने तुम्हें यहाँ बुलाया है। जब भी तुम्हारे जैसे प्यारे प्यारे छोटे, बच्चे, उदास होते हैं, तब हमारे महल में बंधी एक घंटी टन टन कर बजने लगती है। हमें पता लग जाता है कि आज कौन बच्चा उदास है ! घंटी के पास एक शीशे में तुम भी दिखलाई दिए थे सो हमने बुला लिया '
मुन्ना बोला ' वरुण देव, आप को तो सब पता है। आज मेरे बहादुर सिपाही की टाँग टूट गयी न, उस की टूटी हुई टांग देख, मैं सेड हो गया। आज न मैं इसीलिए उदास हूँ ! '
वरुण देव बोले ' मुन्ना हम जानते हैं आप बड़े अच्छे हो। गुड बॉय हो ! अरे सुनहरी जलपरी। मेरी जादुई छड़ी लाना तो .. मुन्ना तुम चिंता मत करो ! मैं तुम्हारे सिपाही की टाँग पहले जैसी जोड़ कर उसे बिलकुल ठीक कर दूँगा ! '
मुन्ना खुश हो गया ताली बजा कर बोला ' सच ? '
तभी सुनहरी जलपरी सोने की छड़ी जिस पर एक चमकता हुआ लाल सितारा भी लगा हुआ था उसे वरुण देवता के सामने ले आयी और वरुण देवता को जादू की छड़ी थमा दी।
तब वरुण देवता ने छड़ी को अपने एक हाथ में उठाकर उसे गोल-गोल घुमाया और बोले ..
' छम छम छाम छूं ..कर दे सही सिपाही की टाँगे तू' .
फिर मुन्ना से कहा 'लो भई मुन्ना अब ये बहादुर सिपाही ठीक हो जाएगा '
मुन्ना के आश्चर्य का ठिकाना न रहा वह बोला ' सच ! आपने मेरे सिपाही को ठीक कर दिया ! अब मैं बहुत खुश हूँ ..' थैंक यू ' और इतना कहते ही मुन्ना पानी के भीतर से ऊपर उठने लगा और ऊपर… और ऊपर उठता गया ... .. अब मुन्ना खुश हो कर तालियाँ बजाने लगा।
' हे ... हे .... वाह वह ..'.... बोल रहा मुन्ना नींद में भी हँसने लगा और उछलने लगा और ऐसा करते हुए मुन्ना अपने बिस्तर से धड़ाम से नीचे गिर पडा !
उस के पलंग के साथ लगी नरम कालीन पर गिरने से उसे चोट नहीं आयी। होश संभाल कर मुन्ना जमीन से उठा और सबसे पहले उसकी नज़र खिड़की पर रखे टूटे सिपाही पर गयी।
मुन्ना ने देखा तो 'अरे ! टूटा सिपाही तो वहाँ नहीं था ! कहाँ चला गया ? अब तो मुन्ना ' माँ माँ ' चिल्लाता हुआ अपने कमरे से बाहर भागा। जोरों से पुकारते हुए पूछने लगा ' मोम ..मोम ..तुम कहाँ हो मम्मा ?
गिरजा माँ ने उत्तर दिया ' मुन्ना ..मैं यहाँ रसोई में हूँ, नाश्ता लगा रही हूँ, क्या बात है बेटा ? '
मुन्ना पास जाकर बोला ' मम्मा आपने मेरा टूटा सिपाही देखा है? कल रात खिड़की पर रखा था पर वो वहाँ नहीं है '
माँ ने हँसते हुए कहा ' जा कर, ठीक से देख ! खिड़की पर नहीं तो शायद फर्श पर गिर पड़ा होगा ! '
मुन्ना बोला ' अच्छा मैं देखता हूँ वहां तो देखा ही नहीं ! ' और मुन्ना फिर कमरे की ओर भागने ही वाला था तो माँ ने याद दिलाते हुए कहा ' अरे ब्रश भी कर लीजो और नहाना भी तो है ' ..
उसी समय मुन्ने के घर के दरवाजे की घंटी दनदना कर बजने लगी। आहो डाक्टर चाचा आये होंगें सोच कर मुन्ना ने जा कर फ़ौरन दरवाजा खोल दिया।
डाक्टर आशुतोष बेनर्जी सुबह शाम मुन्ना के दादा जी शिवनारायण जी की तबियत की जांच करने आया करते थे। वही दरवाजे के पास चौखट पर खड़े थे और वे हाथों में उनका बड़ा सा काला बैग भी थामे हुए थे।
कल रात भी वे मुन्ना के सो जाने बाद आये थे और आज सुबह सुबह फिर आये थे। उनका यही नियम था।
डाक्टर चाचा ने कहा ' गुड मोर्निंग मनोज बेटे ! कैसे हो ? '
मुन्ना ने नमस्ते करते हुए कहा ' मैं ठीक हूँ डाक्टर अंकल। '
डाक्टर चाचा बोले ' अरे भई मुन्ना देखिये, क्या ये सिपाही आपका है ? आज सुबह हमारी क्लीनिक की मेज पर जनाब खड़े थे। शायद अपनी जांच पड़ताल करवाने आयें हों ! मैं यहीं आ रहा था तो इन्हें भी साथ ले आया। संभालो अपने सिपाही को ! ' ये कहते हुए डाक्टर चाचा ने सिपाही, मुन्ना के हाथों में थमा दिया ! मुन्ना आश्चर्य से दो टांगों पर खड़े अपने सिपाही को देखता ही रह गया ! और खुशी के साथ उछल कर बोला ,
' मम्मा ..देखो तो मेरा सिपाही ठीक हो गया ! उसकी टांगें टूटी नहीं ..वाह वाह वाह ! '
मुन्ना को प्रसन्न देख कर गिरिजा माँ और डाक्टर बेनर्जी हल्के से एक दुसरे की और देख कर मुस्कुराने लगे।
मुन्ने को नहीं पता था की, डाक्टर चाचा, डाक्टरी करने के साथ पुरानी, टूटी फूटी चीजों को रिपेयर करना भी बखूबी जानते थे। ये उनकी होबी थी। उनका शौक था। टूटी-फूटी चीजों को जोड़ कर उन्हें दुबारा सही करने का अच्छा तजुर्बा डाक्टर चाचा को था। मुन्ना की माँ यह बात जानतीं थीं। कल रात जब डाक्टर बेनर्जी दादा जी की जांच करने आये थे तब माँ ने इस टूटे सिपाही को उठा कर डाक्टर बेनर्जी क हाथ में रखते हुए पूछा था,
'डाक्टर साहब, देखिये तो, इस टूटे सिपाही की टांगें आप से, ठीक हो पाएंगीं? '
डाक्टर बेनर्जी ने हँसते हुए कहा था ' लो जी ! अब तो हम खिलौनों के डाक्टर भी बन गये ! भाभी जी आप फ़िक्र ना करें। इस सिपाही की टूटी हुई टांगें बड़ी आसानी से जुड़ जायेंगीं ! आप मुन्ने से कुछ न कहना। सुबह हम मुन्ने को एक सुखद भेंट देंगें और मुन्ने को खुश हुआ देखेंगें। '
दादा जी ने मुस्काराते हुए अपनी बात कही
' डाक्टर साहब, हम सभी ईश्वर के खिलौने हैं। आप हमारे परिवार के सदस्य हैं।
आप के उपकार हम सदैव याद रखेंगें।आप जैसे डाक्टर बेटे, ईश्वर हर परिवार को दें मैं यह प्रार्थना करता हूँ। '
अब डाक्टर बेनर्जी कुछ धीमी आवाज़ में बोले 'दादा जी आप मुस्कुराते रहिये और हम सब आपको मुस्कुराता देख प्रसन्न होते रहें। मैं, ईश्वर से यही माँगता हूँ।' और अपना डॉकक्टरों वाला बेग उठाकर घर से बाहर जाने के लिए वे निकल पड़े थे ।
आज दिन भर मुन्ना को स्कूल में दोस्तों के साथ खेलते हुए भी न जाने क्यों उसके डाक्टर बेनर्जी चाचा की याद आती रही ! मुन्ना सोचता रहा ' अरे डाक्टर चाचा की शक्ल वरुण देवता से कितनी मिलती है ! कितने सेम दिखते हैं दोनों ...!'
- लावण्या
Tuesday, October 3, 2017
खिलती कलियाँ :
खिलती कलियाँ : ( बच्चों के लिए कहानी )
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यवनिका उठते गीत संगीत से शुभारम्भ : बच्चों के समवेत स्वर :
" हम फूल हैं, हम फूल हैं,
हम फूल हैं इस बाग़ के - ( ३ )
आओ....सब आओ , सब मिल कर गाओ ,
इस जीवन में कुछ बन कर, इस देश का मान बढाओ
आओ , आओ आओ आओ ....
है देश हमारा प्यारा , इसे खुशहाल बनाओ
कुछ हैं पिछड़े , कुछ भूखे , इनका माथा सहलाओ ..
आओ , आओ आओ आओ ....
है काम बड़ा अब हमको, है आगे बढ़ते जाना
बीती है समय की आंधी , फिर बाग़ नया लगाओ
आओ , आओ आओ आओ ....
है भारत मेरा प्यारा, हम हैं तुझ पे बलिहारी
यह भूमि है स्वर्ग से प्यारी , इसे स्वर्ग से मधुर बनाओ
आओ , आओ आओ आओ ....
हम फूल हैं इस बाग़ के - ( ३ ) "
सूत्रधार :
बच्चों आज हम ज्ञान की विज्ञान की और आनंद और उमंग से भरी बातें करेंगें। क्या आप सब तैयार हो हमारे संग एक लम्बे सफ़र के लिए ?
भई, जर होंशियार हो जाओ ! वो देखो , चाचा मस्ताना आ रहे हैं !
चाचा मस्ताना :" आहा ! मेरे प्यारे बच्चों नमस्ते !
मैं हूँ आपका चाचा मस्ताना ! आप सब का हमसफ़र और दोस्त !
मैं हूँ आपका चाचा मस्ताना ! आप सब का हमसफ़र और दोस्त !
मुझे बच्चों के संग रहना बहुत अच्छा लगता है ! मैं हमेशा 'मस्त' माने खुश रहता हूँ इसलिए मेरा नाम है " मस्ताना " !
आप सब मुस्कुराते रहीये , खुश रहीये ...हां हां ऐसे ही ! तकलीफों से, मुसीबतों से गभराना कैसा ? हम सदा, निडर रहें और आगे बढें ! आप सब हमारे प्यारे भारत देश की ' खिलती कलियाँ ' हों ! रंगबिरंगी फूलों सी कोमल आपकी मुस्कान है ! आप सब को यूं मुस्कुराता हुआ देख कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है !
एक बालक : चाचा मस्ताना, चचा नेहरू अपने सुफेदकोट में, लाल गुलाब का फूल लगाते थे ना ?
चाचा मस्ताना : अरे शाबाश ! खूब याद किया राकेश ! चाचा नेहरू को !
बिलकुल सही ! उन्हें बच्चे बड़े ही प्रिय थे ! वे भारत को खुशहाल, आबाद देखना चाहते थे और गांधी बापू तो बच्चों के संग, बच्चा हो कर खेलने लग जाते थे ! तब गांधी बापू कुछ समय के लिए अंग्रेजों को भी भूल जाते थे। जिनसे आज़ादी हासिल करवाने का बड़ा काम किया बापू ने ...
कन्याओं के स्वर : " भरा समुन्दर, गोपी चंदर, बोल मेरी मछली , कितना पानी ?
एक कन्या उत्तर देते कहती है : " इतना पानी ..इतना पानी " ..
आहा ! यहां मछली रानी आ गयी ..
आहा ! यहां मछली रानी आ गयी ..
" मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है ,
हाथ लगाओ तो डर जायेगी, बाहर निकालो तो मर जायेगी ! "
( हाहाहा ...बच्चे तालियाँ बजा कर, किलकारियां लेते हुए , खूब हँसते हैं ...)
चाचा मस्ताना : " बच्चों , पानी से एक कहानी याद आ रही है. सुनोगे ?
एक समय की बात है।एक थे महा पुरुष " मनु " ! भारत भूमि पर प्राचीन काल था। मनु महाराज, ' कृतमाला ' नदी में स्नान कर रहे थे। उन्होंने ज्यूं ही पानी में हाथ डाला कि एक सुन्दर सी, छोटी सी, प्यारी सी, चमकते हुए रंगोंवाली एक मछली उनके हाथों में आ गयी ! उस रंगीन मछली को देखकर मनु महाराज बड़े प्रसन्न हुए ! वे उसे आपने महल में ले आये और एक कांच के बड़े से बर्तन में मछली को साफ़ जल भरवाकर उस में रख दिया और मछली तैरने लगी तो उसे देख सभी बड़े प्रसन्न हुए। पर जानते हो आगे क्या हुआ ? वह मछली तो भई, दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ती ही चली गयी !तब मनु महाराज ने उस मछली को बर्तन से निकालकर, अपने महल के पास फैले एक सुंदर सरोवर में रखा। पर ये क्या ! वहां भी वह मछली खूब बड़ी सी हो गई और बस फिर तो वह बढ़ती ही चली गयी ! मनु महाराज परेशान हो गए पर उनहोंने हिम्मत नहीं हारी ! पुन: मछली को सरोवर से हटाकर उनके महल से दूर बहती हुई नदी में ले जाया गया। फिर दो दिन बीते और मछली तो अब अत्यंत विशाल हो गई ! फिर तो वह नदी भी छोटी पड़ गई ! अब तो मनु महाराज सेवकों की सहायता से मछली को विस्तरित सागर किनारे ले आये !
बच्चों, उस चमत्कारी मछली की पूँछ और शरीर अब अतिशय विशाल हो गया था ! जानते हो बच्चों, ये मछली स्वयं भगवान महाविष्णु थे जो मत्स्य अवतार लेकर धरती पर अच्छे लोगों की रक्षा करने आये थे !
उन्होंने मनु राजा से कहा,
उन्होंने मनु राजा से कहा,
' हे राजन ! आप का मन पवित्र है। मैं आपकी रक्षा करने आया हूँ। आप जगत के हर प्रकार के प्राणियों के जोड़े जैसे २ मोर, २ गैया, २ बंदर, २ भालू, २ शेरों को लेकर एक बडी सी नौका पे सवार हो जाइए। नौका को मेरे शरीर से बाँध लें।
आप सावधान होकर सुनें इस धरती पे अब प्रलय वर्षा होगी। आपकी नौका और उस मे सवार सारे प्राणी मुझ से बंधी नौका में सुरक्षित रहेंगें। मैं आप सभी की रक्षा करूंगा। " मनु महाराज ने यह सुनकर प्रणाम किया और भगवान की आज्ञा का पालन किया।
आप सावधान होकर सुनें इस धरती पे अब प्रलय वर्षा होगी। आपकी नौका और उस मे सवार सारे प्राणी मुझ से बंधी नौका में सुरक्षित रहेंगें। मैं आप सभी की रक्षा करूंगा। " मनु महाराज ने यह सुनकर प्रणाम किया और भगवान की आज्ञा का पालन किया।
संत महात्मा महाराज मनु ने मत्स्य के पीछे अपनी नौका बांध दी और जैसा भगवान् ने चेताया था धरती पर खूब वर्षा हुई ! हर तरफ बाढ़ आई ! सारे प्रदेश डूबने लगे परंतु मनु महाराज की नाव को मत्स्य भगवान् की कृपा से, रक्षा का छत्र मिला और वे बच गये और उनकी नाव में सवार कई तरह के प्राणी भी जीवित रहे !
एक बच्चा : सारी दुनिया डूब गयी ! हाय राम !
एक लडकी : मैं नहीं डूबूँगी ! मैं तो मेरे पापा के संग स्वीमींग करती हूँ ....
चाचा मस्ताना : अरे वाह ! बच्चों आप सब भी तैरना अवश्य सीखना, बड़े काम का है और व्यायाम भी है !
बच्चे समवेत : हां हां हम भी तैरना सीखेँगेँ ..फिर हम नहीं डूबेंगें !
चाचा मस्ताना : अच्छा बच्चों ये बतलाओ ,
पानी पे झिलमिलाते सितारे देखे हैं आप ने ?
कुछ बच्चे : जी हां चाचा मस्ताना , हमें ' तारे ' बहोत पसंद हैं !
एक बालक " मैं गाऊँ चाचा ? मेरे माँ ये गीत गातीं हैं ...
" अले लल्ला लल्ला लोरी, दूध की कटोरी, दूध में पतासा, मुन्नी करे तमासा " चन्दा मामा दूर के, पूए पकाए भुर के, आप खाओ थाली में, मुन्ने को दें प्याली में "
" अले लल्ला लल्ला लोरी, दूध की कटोरी, दूध में पतासा, मुन्नी करे तमासा " चन्दा मामा दूर के, पूए पकाए भुर के, आप खाओ थाली में, मुन्ने को दें प्याली में "
कुछ बालक : जगमग जगमग करते तारे, कितने सुन्दर कितने प्यारे !
किसने सूरज चाँद बनाए ? किसने काली रात बनायी ?
किसने सारा जगत बनाया ? किसने ? बोलो किसने ?
( मंच के परदे पे निहारिकाएं, तारा मंडल और ग्रहों, उप ग्रहों को घूमता हुआ द्रश्य दीर्घा पट दीखलायी देता है )
" आओ , प्यारे तारे आओ, आकर मीठे सपन सजाओ,
जगमग जगमग करते जाओ, हमें अपना गीत सुनाओ "
एक बड़ा सा प्रकाशमय तारा आकर रूकता है :
" बच्चों क्या आप मेरी कहानी सुनोगे ? मैं सदैव उत्तर दिशा में ही दिखाई देता हूँ और हमेशा स्थिर रहता हूँ। मैं ' ध्रुव तारक ' हूँ !
एक बालक : हां मेरी स्कुल में सिखलाया था - आप तो " नोर्थ - स्टार " हो ! है ना?
ध्रुव तारा : मुझे सब जानते हैं, मुझ से उत्तर दिशा को पहचानते हैं ! मेरी कहानी सुनाऊँ ?
समवेत बच्चे : हां हां , सुनाईयेना ....
सूत्रधार का स्वर :
" एक समय की बात है , एक थे राजा जिनका नाम था ' उत्तानपाद ' जिनकी २ रानियाँ थीं ! एक थीं ' सुरुचि ' और दूसरी थीं ' सुनीति ' !
' ध्रुव ' सुनीति के पुत्र थे और उत्तम सुरुचि के ! राजा उत्तानपाद , उत्तम को बहुत प्यार करते। उसे गोदी में बैठालते पर ध्रुव को ऐसा नहीं करते जिससे बालक ध्रुव के मन को दुःख पहुंचताथा।
" एक समय की बात है , एक थे राजा जिनका नाम था ' उत्तानपाद ' जिनकी २ रानियाँ थीं ! एक थीं ' सुरुचि ' और दूसरी थीं ' सुनीति ' !
' ध्रुव ' सुनीति के पुत्र थे और उत्तम सुरुचि के ! राजा उत्तानपाद , उत्तम को बहुत प्यार करते। उसे गोदी में बैठालते पर ध्रुव को ऐसा नहीं करते जिससे बालक ध्रुव के मन को दुःख पहुंचताथा।
एक दिन की बात है। राज सिंहासन पे माहराज उत्तानपाद , उत्तम को गोद में लेकर बैठे थे तो बालक ध्रुव भी वहां आया।
ध्रुव : ' पिताजी ...पिताजी , मुझे भी बैठना है मुझे भी गोदी ले लो ना ! ध्रुव ने बड़े प्यार से अनुरोध किया।
राजा उत्तानपाद : रूक जाओ ध्रुव ..देखो अभी तुम्हारा छोटा भैया यहां बैठा है ...राजा ने समझाते हुए ध्रुव से कहा।
रानी सुरूचि : " ध्रुव ! तुम बड़े हठी हो ! चलो भागो यहां से ...परेशान मत करो ...'फिर धीमे से वो बोली , ' अपने पिता जी की गोदी में बैठने के लिए तुम्हे नया जन्म लेना पडेगा ..हूंह ....'
ये कड़वी बात को बालक ध्रुव ने सुन लिया और वह रूठ कर वहां से दूर चल दिया और जाते जाते फफक कर रोने लगा।
अब ध्रुव अपनी माँ, रानी सुनीति के पास पहुंचा जो महाविष्णु की आराधना - पूजा करते आँखें मूंदें हाथ जोड़े हुए महाविष्णु की सुन्दर प्रतिमा के समक्ष बैठीं हुईं थीं।
अपने पुत्र की रूलाई के स्वर से माता सुनीति का ध्यान भंग हो गया। उन्होंने ध्रुव को बाहों में भर लिया और माथा चुम लिया और माँ उसे प्यार करने लगीं।
ध्रुव रोते हुए : " माँ, माँ ...पिताजी मुझसे प्यार नहीं करते ! ...आज उन्होंने मुझे गोदी में नहीं बिठलाया , वे सिर्फ भैया को प्यार करते रहे ! ध्रुव ने रोते हुए कहा।
माँ सुनीति : " मेरे बेटे, ईश्वर तुम्हे प्रेम करते हैं। साधारण मनुष्यों के स्नेह से ईश्वर के प्रेम की क्या तुलना होगी बेटे ! शांत हो जा ! "
माता सुनीति ने अपने पुत्र ध्रुव को महाविष्णु की प्रतिमा की ओर सम्मुख करते हुए बहुत सारा स्नेह जतलाया और कहा ' ये ईश्वर हैं बेटे, इन्हें प्रणाम करो '
ध्रुव : ' माँ , मैं महाविष्णु से पूछना चाहता हूँ , क्या वे मुझे प्रेम करते हैं ? मैं जा रहा हूँ तपस्या करूंगा और प्रभू के दर्शन करूंगा ! '
सुनीति : ' अरे रूक जा मेरे लाल ! बेटे ध्रुव ! तू अबोध बालक है ! किस प्रकार ऐसी कड़ी तपस्या कर पायेगा !.. रूक जाओ पुत्र ! देखो यूं, हठ ना करो ...मैं तुम से प्रेम करती हूँ ...सच ! अब मान भी जा बेटे ! '
माँ ने लाख समझाया परंतु, बालक ध्रुव ने एक ना मानी और महाविष्णु के दर्शन करने का प्रण करते हुए घोर तपस्या करने गहन वन में बालक ध्रुव चल दिया।
तपस्या करते महाविष्णु का नाम बार बार जपते हुए ध्रुव ने लंबा समय व्यतीत किया जिससे स्वयं ईश्वर महाविष्णु बालक ध्रुव की तपस्या और लगन देख कर वे ध्रुव के समक्ष एक दिन साक्षात प्रकट हो गये और मुस्कुराते हुए महाविष्णु ने ध्रुव के माथे पर अपना हाथ रख दिया और प्यार से ध्रुव का माथा सहलाया।
तपस्या करते महाविष्णु का नाम बार बार जपते हुए ध्रुव ने लंबा समय व्यतीत किया जिससे स्वयं ईश्वर महाविष्णु बालक ध्रुव की तपस्या और लगन देख कर वे ध्रुव के समक्ष एक दिन साक्षात प्रकट हो गये और मुस्कुराते हुए महाविष्णु ने ध्रुव के माथे पर अपना हाथ रख दिया और प्यार से ध्रुव का माथा सहलाया।
महाविष्णु :' पुत्र ध्रुव ! आँखें खोलो ..मैं आया हूँ और तुम मुझे, सर्वाधिक प्रिय हो ! तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई है , मांगो क्या चाहते हो ?'
ध्रुव ने प्रभू के कँवल जैसे सुन्दर व दिव्य चरण थाम कर अश्रू पूरित स्वर से कहा ,
' हे प्रभो , मैं आपके पास रहना चाहता हूँ '
महाविष्णु : ' तथास्तु पुत्र ! अब तुम्हारा स्थान उत्तर दिशा को प्रकाशित करते हुए, मेरे समीप सदैव अचल रहेगा, तुम अमर रहोगे मेरे पुत्र ध्रुव ! '
चाचा मस्ताना : तो बच्चों, इस तरह उत्तर दिशा में " राजकुमार ध्रुव " तारक बन कर इस तरह स्थिर हो गये और आज भी ध्रुव वहीं हैं !
एक बालक : " चाचा जी, तब ध्रुव कितने यर्ज़ ( साल ) का था ? "
चाचा मस्ताना : अरे बेटे तपस्या करते हुए ध्रुव की उम्र थी बस पाँच साल की जब उसने इतनी कठोर तपस्या की थी ! अगर वह ५ साल का अबोध बालक ऐसी कड़ी तपस्या कर सकता है तो बताओ, स्कूल का होम - वर्क क्या भला कोई कठिन काम है ? आप सब अपना रोज का , स्वाध्याय = मतलब होम - वर्क, नियमित रूप से किया करो तब खूब तरक्की करोगे और उसी से एक दिन बहुत बड़े इंसान बनोगे। तो बच्चों आप मन लगाकर अपना काम करना।
मेरे बच्चों ...सुनो ,
' मेहनत से जो करते काम, जग में होता उनका नाम,
परबत की छाती को फोड़, ऊपर जो है धारा आती ,
बाधाओं से लड़नेवाली, वह जीवन झरना कहलाती
कलकल करती रहती हरदम, कभी नहीं करती आराम
सात समुन्दर को कर पार, जो आता लेकर आलोक,
उस सूरज को किसी मोड़ पर, अन्धकार न सकता रोक !
आता लेकर सुबह सुहानी, जाता हमें दे कर मीठी शाम।
कितनी छोटी ये चींटी रानी, पर हैं बडी लगन की पक्कीं,
हो गर्मी सर्दी , बरखा हर दिन चलती रहती जीवन चक्की
उनके काम के आगे भारी भरकम हाथी हो जाता नाकाम !
मेहनत से जो करते काम, जग में होता उनका नाम .... "
चाचा मस्ताना : अच्छा बच्चों अब बतलाओ, आपको कौन से खेल पसंद हैं ?
बबलू ..आप बताओ .
बबलू : ' मुझे तो लुका छिपी सबसे अच्छी गेम लगती हैं !
चाचा : खूब कही बबलू जी ! हम भी खूब खेला करते थे पर अब तो चाची, हमें पकड कर ' आऊट ' कर देतीं हैं ! अच्छा अब आगे सुनो, एक दिन एक बहादुर बच्चे को उसके दुष्ट पिता ने चोरी - छिपे भगवान की पूजा करते हुए देख लिया था।
कुछ बच्चे : कौन था वो बालक चाचा जी ?
मस्ताना : एक समय की बात सुनो, एक था राक्षस - उसका नाम था हिरण्यकश्यपु ! वह दुष्ट बड़ा ही बलशाली था। वह बड़ा घमंडी था। अपने बाहुबल के कारण वह मनमानी करने लगा। भगवान के नाम स्मरण से वह चिढ जाता और उस दुराचारी ने पूजा - पाठ ही बंद करवाने का हुक्म दे दिया ! वह दुष्ट और घमंडी कहने लगा
' मुझे प्रणाम करो ! ईश्वर कोई नहीं हैं ! बस मेरा ही सब ध्यान धरो "
एक बालक : मेरी मम्मी उसकी बात कभी नहीं मानतीं
वो तो रोज कृष्ण जी की पूजा करतीं हैं !
दूसरा बालक : मेरी मम्मी गिरजाघर जातीं हैं। मोमबतियां जलातीं हैं
तीसरा बालक : मेरी अम्मी रोजाना नमाज पढ़तीं हैं ....
चौथा बालक : हम गुरूद्वारे जाकर " वाहे गुरु दा खालसा जपते हैं जी ! "
पांचवा बालक : मेरी मम्मी पापा और मैं, ' अगियारी ' जाते हैं। हम अग्नि देव की पूजा करते हैं।
चाचा मस्ताना : बच्चों, रास्ते अलग अलग हैं पर भगवान एक हैं ! यूं समझ लो एक सुंदर बाग़ है जिस बाग़ के बीचों बीच एक सुंदर पानी का फव्वारा है। अलग अलग रास्तों से चलकर हम सब वहां फव्वारे के पास पहुँचते हैं। पानी पीते हैं और अपनी प्यास बुझाते हैं। हाँ अब कहो , ' पानी ' तो एक सा ही रहेगा न ? जिस किसी रूप में आप सब को परम पिता ईश्वर पसंद हों उन्हें पूजो। ईश्वर ही हमें सत्य का रास्ता दिखलाते हैं। उसी सत्य के रास्ते पे चलना सीखना मेरे बच्चों !
बच्चे : हां चाचा जी , फिर आगे क्या हुआ ? कहानी तो अधूरी रह गयी !
चाचा मस्ताना : हां तो उस दुष्ट राक्ष्स के घर, एक सुंदर , नन्हा सा, कोमल सा, भोला भाला, बालक ' प्रहलाद ' पैदा हुआ जो जन्म से ही सदा हरिनाम ' हरि ' हरि ' जपा करता था और ईश्वर का नाम लिया करता !
' बालक प्रहलाद ' की भक्ति से उसके पिता ' हिरण्यकश्यपु ' नाराज होते रहे। उस निर्दयी ने अपने ही फूल से कोमल बालक को, पहाडी से नीचे फिंकवा दिया पर प्रभू ने प्रहलाद की रक्षा की और प्रहलाद बच गया !
" जाको राखे सांईया, मारी सके न कोई " ये सच हुआ !
कुछ बच्चे : कैसा दुष्ट था ये राक्षस ! हाय !
चाचा मस्ताना : अब तो बच्चों, उस दुष्ट राक्षस का क्रोध और अधिक बढ़ गया। उसने अपनी बहन प्रहलाद की बुआ ' होलिका ' को बुलवाने सेवकों को भेज दिया। वो आयी ! इसे प्रभू से वरदान मिला था कि, अग्नि से वह नहीं जलेगी। तो वह दुष्ट बुआ होलिका, प्रहलाद को गोदी में लेकर आग के भीतर जाकर बैठ गयी ! पर आश्चर्य ! प्रहलाद का बाल भी बांका न हुआ और यही होलिका धू - धू करती हुई आग की प्रचंड लपटों में जल कर भस्म हो गई ! इस दारूण घटना को देखकर, भगवान जी को भी क्रोध आ गया ! शेर का मुख धरे, आधे सिंह और नीचे बलवान पुरुष का रूप लिए, भगवान नरसिंह स्वरूप लेकर प्रकट हुए ! हिरण्यकस्यप के राजमहल के एक खम्भे को चीर कर नरसिंह बाहर निकले और जोर से चिंघाड़े ..तो दसों दिशाएं भी भय से थर थर कांपने लगीं !
भगवान नरसिंह : ' हे पापी हिरण्यकस्यप ! अब तेरा अंतकाल आया ! 'और उसी क्षण अपने शेर के रूप लिए, तीखे नुकीले नाखूनों से, नरसिंह भगवान ने उस गंदे राक्षस को मार दिया ! तब, प्रहलाद ने आकर नरसिंह भगवान की स्तुति की तो भगवान् शांत हुए और अपने चतुर्भुज स्वरूप में आकर नरसिंह भगवान ने अपना असली सुन्दर कल्याणकारी स्वरूप दिखलाया। वे ' महाविष्णु ' स्वरूप में चतुर्भुज रूप में निर्मल, मधुर स्मित लिए प्रकट हुए और उन्होंने प्रहलाद को ' राजा ' बना कर सिंहासन पर बैठाल दिया।
समवेत बच्चे : हे ! हे !! हम भी राजा बनेंगें ....हम भी राजा बनेंगें ....
सूत्रधार :
चाचा मस्ताना बच्चों को लेकर एक उड़ने वाली कालीन पे जा खड़े हुए तो वह उड़ने लगी और अब वह भारत से आगे पश्चिम दिशा में उड़ चली।
चाचा मस्ताना बच्चों को लेकर एक उड़ने वाली कालीन पे जा खड़े हुए तो वह उड़ने लगी और अब वह भारत से आगे पश्चिम दिशा में उड़ चली।
चाचा : अरे ! ये हम कहाँ आ पहुंचे ? बताओ बच्चों, हम कहां हैं ?
बच्चे : ( नीचे झांकते हुए ) ये तो अरबस्तान लग रहा है चाचा जी .......
घूँघरूओं की , दिलरुबा की और मुरली जैसे सुरीले वाध्य यन्त्रों के स्वर सुनायी दीये और बच्चों ने देखा कि, रेत ही रेत बिछी हुई थी और ऊंटों के काफिले गुजर रहे थे। खजूर के पेड़ों से कहीं कहीं हरियाली भी थी जहां चश्मों का पानी बह कर नन्ही झील बनी हुई थी।
चाचा : बच्चों, यहीं पर हजरत मुहम्मद साहब का जन्म हुआ था उन्होंने इंसानियत को इस्लाम का पाक पैगाम दिया था और कुराने शरीफ भी यहीं की सरज़मीन से आयी है। वे फ़रिश्ते थे जिनके पैगाम ने हज़ारों लोगों को अमन चैन का रास्ता दीखलाया !
' अय खुदा.. . तू है कहां, हम तेरे बंदें हैं ,
ये आसमां तेरा है सारा , ये नूर तेरा है -
अय खुदा ...अय खुदा ...
अय खुदा हम तेरे दामन में हैं पले,
तेरी बदौलत , हम सभी , तेरा नाम लेकर चले
अय खुदा ....अय खुदा ...."
एक बालक : मैं ईद के चाँद को देख कर खुश होता हूँ बड़े अब्बू को सलाम करता हूँ मौलवी चाचा के साथ इबादत करता हूँ !
मौलवी : शाबाश मेरे बच्चे ..खुश रहो ...फूलो फलो ...
सूत्रधार :
अरे ये चाचा आगे बढ़ते तेजी से कहाँ चल दीये ? अब कौन देस पहुंचे जनाब ?
चाचा : ये लो हम आ पहुंचे ' येरूस्शालेम ! ईसा की भूमि ! यहीं वे पैदा हुए थे
ज़ोन, तुम बतलाओ, ईसा माने जीज़स क्राइस्ट ! उनके बारे में कुछ बतलाओ हाँ जॉन कहो ...कहो, शरमाओ नहीं ...
ज़ोन : ईसा मसीह मुझे बहुत प्यारे लगते हैं। उन्हें सलीब पर देख मेरी आँखें भर आतीं हैं। ईसा मसीह, माता मरीयम के बेटे थे। ईसू ने भाईचारे व प्रेम का पाठ पढ़ाया था। हमारी ' बाईबल ' में बहुत सी सुंदर कहानियां हैं। सुनोगे एक कथा ? लो सुनो
' एक समय की बात है। .. एक बार, एक बीमार आदमी, सडक पर, थक कर गिर पडा ! वहां से एक सेठ गुजर रहे थे उन्होंने इस बीमार को देखा पर उन्हें दया नहीं आयी और वे उस बीमार आदमी को अनदेखा कर वहाँ से दूर चले गये।
इसी तरह कई सारे लोग आये और किसी ने भी मदद नहीं की और सब चले गये। कुछ देर बाद, वहां से एक गरीब आदमी गुजरा। वह बीमार आदमी के नजदीक आया। उसे सहारा देकर बैठाया, पानी पिलाया और अपनी रोटी तोडकर उसे खीलायी। फिर उस बीमार के घावों को साफ कर, इन घावों पर पट्टी भी बाँध दी तब वह बीमार स्वस्थ लगने लगा और उठ कर खड़ा हो गया ! रास्ते पर जो राहगीर लोग थे वे चकित होकर देखने लगे तो ! वहां प्रकाश की किरणें छाने लगीं और वही बीमार आदमी खुद, भगवान बन गये ! उस गरीब आदमी का हाथ पकड़ कर वे उसे अपने संग ' स्वर्ग में माने ' हेवन ' में ले गये !
चाचा : अरे वाह ज़ोन बड़ी उम्दा कहानी सुनायी तुमने ! इस कथा को " ध गुड समारीटन " कहा है धर्म ग्रन्थ बाईबल में !
तो बच्चों इस कथा से हमें ये सबक मिलता है कि, हमेशा हमसे जो भी बन पड़े, हर किसी जरूरतमंद की सहायता करें ! जो हमसे कमजोर है उन पर दया भाव रखें ..
तो बच्चों इस कथा से हमें ये सबक मिलता है कि, हमेशा हमसे जो भी बन पड़े, हर किसी जरूरतमंद की सहायता करें ! जो हमसे कमजोर है उन पर दया भाव रखें ..
सुनो ,
' मिलजुल कर हम काम करें तो, कोई काम कठिन नहीं रहता
एक दूजे का हाथ बंटाएं तो कोई मुश्किल काम नहीं रहता !
क्यों बच्चों, सही कह रहा हूँ ना ?
एक लडकी : गुरप्रीत , क्या इस राखी पे मैं तुम्हें राखी बाँध सकती हूँ ?
गुरप्रीत : हां बहना , जरूर बाँधना ! मैं तेरी रक्षा करूंगा ...
मेरी लाडली बहना के लिए जान भी कुरबान है ..
लडकी : ना ना मेरा वीर, मेरा भईया, सौ साल जीये ...खूब मज़े करे
मेरा भाई बड़ा बलशाली है भईया ...भईया ....
है बहन बांधती राखी जिसको, वही उसका सच्चा भाई
हर मुश्किल में आकर सहलाता, वही है मेरा प्यारा भाई
भैया मेरे, मेरे गहना, देखूं मैं तुझे हरदम यूं मेरे अंगना
आया सावन झूला लेकर, भैया घर तेरे, मेरे सूना रे अंगना '
बच्चे : झूला हमें कितना प्यारा लगता है जिस बच्चे ने झूला नहीं झूला हो उसका कैसा बचपन !
चाचा : झूला झूलते हमें न भूल जाना !
बच्चे : नहीं चाचा, हम आपके दोस्त हैं ! आपको कभी नहीं भूलेंगें न ही छोड़ेंगें !
चाचा " बेहराम ,बेटे, थक गये हो क्या ? तुम भी कुछ बोलो न ..
बेहराम : मैं हूँ पारसी ..भारत भूमि पर हमारे पडदादा ईरान से आये थे और भारत में घुलमिल गये। पारसी लोग गुजरात प्रांत के ' संजाण ' नामके बंदरगाह पे, उतरे थे।
एक छोटी बच्ची : बंदर ? कहाँ है बंदर ?
चाचा : अरे छुटकी! बंदरगाह का मतलब है समुद्र किनारे जो धरती सागर से मिलती है वह सागर का किनारा बंदरगाह कहलाता है।वही जहां बड़ी बड़ी नाव किनारे आतीं हैं।
तुतलाकर : मैं बोट में एक बाल पानी में घूमने गयी थी ...
दूसरी : हां ...ऐसे ही एक बोट आयी थी उसकी कहानी बेहराम सुना रहा है अब सुनो
बेहराम : ' संजाण के राजा ने दूध से भरा कटोरा, पारसी भाईयों के पास भेजा मतलब था कि मेरा नगर इस लबालब भरे हुए कटोरे की तरह लोगों से भरा हुआ है इस में जगह ही नहीं ! तब हमारे गुणी दादाओं ने उसी दूध से भरे कटोरे में थोड़ी चीनी मिला दी ! मतलब उनका जवाब था कि, ' हम दूध में शक्कर घुल जाती है उस तरह , घुलमिल कर रहेंगें। '
एक बच्चा : देखूं क्या तू भी शक्कर जैसा मीठा है क्या बेहराम ? काटूं तुझे ?
चाचा : अरे भाई अब हल्ला गुल्ला मत शुरू कर देना ! बेहराम शाबाश बेटे -शाबाश
अच्छा अब यह कथा सुनो !
एक थे बालक अष्टावक्र! नहीं सुना उनका नाम ? वे थे एक ऋषि के पुत्र ! अष्टावक्र के पिता बड़े ही विद्वान और महात्मा थे। अब अष्टावक्र का नाम ऐसे क्यूं रखा गया था पता है क्या ? नहीं ? कोई बात नहीं। चलो मैं बतलाता हूँ क्योंकि, उस कुमार का शरीर आठ जगह से वक्र माने टेढा मेढ़ा था! पाँव,हाथ, कमर, गरदन, मूंह वगैरह ..कई लोगों को इसी तरह बीमारी के कारण शरीर ऐसे टेढ़ा हो जाता है !
एक थे बालक अष्टावक्र! नहीं सुना उनका नाम ? वे थे एक ऋषि के पुत्र ! अष्टावक्र के पिता बड़े ही विद्वान और महात्मा थे। अब अष्टावक्र का नाम ऐसे क्यूं रखा गया था पता है क्या ? नहीं ? कोई बात नहीं। चलो मैं बतलाता हूँ क्योंकि, उस कुमार का शरीर आठ जगह से वक्र माने टेढा मेढ़ा था! पाँव,हाथ, कमर, गरदन, मूंह वगैरह ..कई लोगों को इसी तरह बीमारी के कारण शरीर ऐसे टेढ़ा हो जाता है !
बच्चे : हाय बेचारा अष्टावक्र !
चाचा : न न ...वह बेचारा नहीं था , वह था अष्टावक्र परम ज्ञानी ऋषि कुमार !
एक दिन महाराज जनक के राज दरबार में अष्टावक्र आ पहुंचा। उसे देख कर पहले तो सब हंसने लगे। कुछ बुरे और शैतान लोगों ने अष्टावक्र का मज़ाक भी उड़ाया पर बच्चों परम् ग्यानी बालक अष्टावक्र शांत ही रहा।
फिर उसने ऐसी ज्ञान ,विज्ञान की बातें सुनाईं तो सभा में जितने भी लोग जमा हुए थे सब चकित रह गए ! अष्टावक्र के ज्ञान पूर्ण बातों को सुन सब सन्न रह गये !
बड़े बड़े पंडितों को बात करते हुए अष्टावक्र ने जो प्रश्न पूछे उन के उत्तर उन भरी सभा में बैठे किसी भी पंडित को नहीं मालूम थे !
बड़े बड़े पंडितों को बात करते हुए अष्टावक्र ने जो प्रश्न पूछे उन के उत्तर उन भरी सभा में बैठे किसी भी पंडित को नहीं मालूम थे !
तब शर्मिंदा होकर बड़े लोगों ने जनक राजा के दरबार में बैठे बड़े बड़े पंडितों ने, सब ने अपनी हार मान ली और अपने अपने कान पकड़े और जनक राजा ने और सभी ने उठकर अष्टावक्र को आदर सहित सर झुकाकर प्रणाम किया और उस वीर ज्ञानी बालक का बहुत सन्मान किया।
तो बच्चों, किसी के आँख न हो, कान न हो, हाथ, पाँव न हों या किसी के शरीर के अवयवों में कमी को , कोई कमजोरी हो उनका कभी मज़ाक नहीं करना!
किसी की कमज़ोरी का मज़ाक उड़ाना ये बहुत बुरी बात है !
कई फूल खिलने से पहले मुरझा जाते हैं ..समझे ना ?
चाचा : गांधी बापू किसी को छोटा या बड़ा नहीं मानते थे सब के साथ एक सा व्यवहार किया करते थे। किसी का काम ऊंचा नहीं किसी का नीचा नहीं !
तो बच्चों, कोइ ऊंचा नहीं कोइ नीचा नहीं है !
एक लडकी : चाचा जी , मैं ' फ्लोरेंस नाईटिंगेल " की तरह नर्स बनना चाहती हूँ और मेरे देश के सैनिकों को घाव लगेगा तो मैं उनकी सेवा करूंगी।
सुनिए ये गीत ..
" चाह नहीं मैं , सुरबाला के घनों में गूंथा जाऊं ,
चाह नहीं प्रेमी माला में बींध प्यारी को ललचाऊँ
मुझे तोड़ लेना वनमाली , उस पथ पर तुम देना फेंक
मातृभूमि पर शीश चढाने , जिस पथ जाएँ वीर अनेक
जिस पथ जाएँ वीर अनेक ...."
एक लडका : चाचा मेरे बापू , खेती करते हैं। वे एक किसान हैं। मैं भी किसान बनूंगा लड़का गीत गाने लगता है ~
" एय किसान गाये जा, प्यारे हल चलाये जा , आज धूप तेज है ,
" एय किसान गाये जा, प्यारे हल चलाये जा , आज धूप तेज है ,
पर तुझे खबर कहाँ ? चल रही है लू चले, तुझको उसका डर कहाँ ?
एय किसान गाये जा....गाये जा.... गाये जा.... गाये जा.... "
चाचा : बच्चों हमारा राष्ट्र गीत रवीन्द्रनाथ टैगौर ने लिखा है एक बार जब वे तुम्हारी तरह छोटे थे तब जिद्द करने लगे कि ' वो जिस पेन से लिखेंगें उस में नीली स्याही नहीं बल्के, फूलों का रस भरा जाएगा ! उनके चाचा जी ने बच्चे का मन रखते हुए ऐसा ही किया।कुछ फूलों से रस निकाला गया और पेन में भरा गया पर अरे , धत्त तेरे की ...फूलों के रस से तो कुछ लिखा ही न गया !
बच्चे : जन गण मन अधिनायक जय हे ये राष्ट्र - गीत उन्हीं ने बड़े होकर लिखा है न ? पर चाचा जी अभी हमारी बातें ख़त्म नहीं हुई अभी ये गीत हम नहीं गाएंगें हम तो आप से और कहानियां सुनना चाहते हैं चाचा मस्ताना ! कुछ और सुनाईये ना !
चाचा मस्ताना : बच्चों समय भागा जा रहा है। अब ये आख़िरी कहानी सुनाता हूँ। भारत देश का नाम कैसे पडा जानते हो ? नहीं ? तो ध्यान से सुनो !
एक थे राजा दुष्यंत उनकी पत्नी थीं शकुन्तला उन्हीं का बालक था वीर ' भरत ' वह बचपन में, सिंहों के साथ खेला करता था ...
हमारे भारत देश में, गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा जैसी महान नदियाँ हैं ! उन्नत शिखर उठाये हिमालय की परबत मालिका हैं और सह्याद्री, सतपुडा और विन्ध्याचल से परबत हैं !
इसी भारत भूमि पर श्री राम, श्री कृष्ण के रूप में स्वयं भगवान अवतरित हुए हैं और उन्हीं सा मधुर बचपन हमारे देश के बच्चों का हो ! ये हमारी प्रार्थना है। हमारे भारत देश की हर माता बड़े प्यार, दुलार से फूलों की तरह सम्हाल कर अपने शिशुओं को पालती पोसतीं हैं !
सच बच्चों , हमारे धन्य भाग्य है कि इस भारत - वर्ष में हम साथ साथ मिलजुल कर स्वतन्त्र भारत में रहते हैं। बच्चों हमें भारत को एक सशक्त और गौरवशाली देश बनाना है। हम भारत माँ की सदैव सेवा करें ! हम भारत को अब कदापि पराधीन न होने देंगें ! आगे बढेंगें, हम मिलजुल कर बड़े बड़े काम करेंगें। ऐसे काम करना कि तुम्हारे माँ पिता का सर ऊंचा हो जाये !
सच बच्चों , हमारे धन्य भाग्य है कि इस भारत - वर्ष में हम साथ साथ मिलजुल कर स्वतन्त्र भारत में रहते हैं। बच्चों हमें भारत को एक सशक्त और गौरवशाली देश बनाना है। हम भारत माँ की सदैव सेवा करें ! हम भारत को अब कदापि पराधीन न होने देंगें ! आगे बढेंगें, हम मिलजुल कर बड़े बड़े काम करेंगें। ऐसे काम करना कि तुम्हारे माँ पिता का सर ऊंचा हो जाये !
समवेत स्वरों में गीत :
" तुम में हिम्मत है पहाड़ों की, तुम में ताकत है हवाओं की
" तुम में हिम्मत है पहाड़ों की, तुम में ताकत है हवाओं की
तुम मीठी बातें बोलोगे, जग को प्यार से जीतोगे
यह भारत अपना देश है, तुम भारत का नया सवेरा हो
भारत के स्त्री एवं पुरुष : हम तो पीछे रह जायेंगें ,
तुम को आगे जाना होगा
आगे बढना यह नारा है,
भारत हमको प्यारा है
भारत हमको प्यारा है
जगती के भू मंडल पर
ये दमकता हुआ सितारा है
ये दमकता हुआ सितारा है
हम भारतीय ! हम भारतीय !
हैं भारतीय हम भारती !
हैं भारतीय हम भारती !
मातृभूमि के चरणों में
कोटि वंदन हमारा है !
कोटि वंदन हमारा है !
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