Saturday, January 17, 2015

मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई

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मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई 
रूठ कर रात बन्नो भी नींद में खोई हुई 

उसने कहा था ' आ जाऊंगा ईद को  
माहताब जी भर देखूंगा, कसम से।'
 फीकी रह गई ईद, हाय, वो न आये 
सूनी  हवेली,सिवईयें  रह गईं अनछुई !

नई दुल्हन का सिंगार फीका बोझिल गलहार  
डूबते आफताब सी वीरां,फीकी, ईद की साँझ। 
अश्क सूखे इंतज़ार करते नैन दीप अकुलाए थे 
मोगरे के फूल पर सोई हुई थी चांदनी उस रात !
- लावण्या