ॐ
लेखिका सुश्री इला प्रसाद जी के शब्दों में सुनिए ,' चरागे दिल देवी नांगरानी का हिन्दी में पहला ही गजल संग्रह है जिसके माध्यम से उन्होंने बतला दिया है कि उनकी लेखनी का चराग बरसों बरस जलता रहने वाला है। उनकी सोच का फ़लक विस्तृत है और उनकी गजलें जीवन के तमाम पहलुओं को छूती हैं। उन्होंने औरों के काँधों पर चढ़कर विकास नहीं किया। वे अपने पैरों से चली हैं , जिन्दगी की धूप – बारिश झेली है और आग में तप कर निकली हैं। उन्हीं के शब्दों में, " कोई नहीं था ‘देवी’ गर्दिश में मेरे साथ बस मैं, मिरा मुकद्दर और आसमान था। " जब जीवन-डगर कठिन हो और मन सम्वेदनशील, तो अभिव्यक्ति का ज़रिया वह खुद ढूढ़ लेता है। इस संग्रह में ढेरों ऐसी गजले हैं जो पाठकों को अपनी अनुभूतियों के करीब लगेंगी। आज चाहे देवी जी कहती हों कि “शोहरत को घर कभी भी हमारा नहीं मिला”
‘भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ-कहाँ, तेरी नजर के सामने खोए कहाँ-कहाँ। " अथवा
‘न तुम आए न नींद आई निराशा भोर ले आई,
तुम्हें सपने में कल देखा, उसी से आँख भर आई। " अथवा
" उसे इश्क क्या है पता नहीं, कभी शमा पर वो जला नहीं। "
‘देवी की गजलों में आशा है, जिंदगी से लड़ने की हिम्मत है व एक मर्म है जो दिल को छू लेता है। '
आदरणीया देवी नागरानी जी मेरी बड़ी बहन हैं। वे एक बेहतरीन रचनाकार , ग़ज़लगो , कहानीकार , अनुवादक और एक सजग समर्पित साहित्यकार एवं भारतीय भी हैं यह उनकी बहुमुखी प्रतिभा का मिलाजुला स्वरूप है। बड़ी हैं और साहित्य मर्मज्ञ भी इस कारण वे मेरे लिए सदैव प्रेरणा का स्त्रोत रहीं हैं। यह उनके स्नेह से आगे चलकर और अधिक सिंचित व पल्ल्वित हुआ।
अब बीते दिनों को याद करूँ तो, उनसे मेरी सर्व प्रथम मुलाक़ात, विश्व प्रसिद्ध संस्था यूनाइटेड नेशनसँ के मुख्य सभागार, न्यू यॉर्क शहर में आयोजित अष्ठम हिन्दी अधिवेशन के दौरान हुई थी। पूज्य देवी जी को सामने से चलकर आते हुए देखा , उन का लिखा बरबस आँखों के सामने कौंध उठा।
“न बुझा सकेंगी ये आंधियां ये चराग़े दिल है दिया नहीं”
और
" दर्दे दिल की लौ ने रौशन कर दिया सारा जहाँ
और
" दर्दे दिल की लौ ने
इक अंधेरे में चमक उट्ठी कि जै से बिजिलियाँ "
लौ दर्दे दिल की ' देवी बहन का प्रथम ग़ज़ल संग्रह है।
लौ दर्दे दिल की ' देवी बहन का प्रथम ग़ज़ल संग्रह है।
डा मृदुल कीर्ति जी सुश्री देवी नागरानी जी के लिए कहतीं हैं ,
' लौ दर्दे – दिल की '
शब्द सादे भाव गहरे, काव्य की गरिमा मही,
‘लौ दर्दे दिल की’ संकलित, गजलों में ‘देवी’ ने कही
न कोई आडम्बर कहीं, बस बात कह दी सार की,
है पीर अंतस की कहीं, पीड़ा कहीं संसार की.
आघात संघातों की पीड़ा, मर्म में उतरीं घनी, उसी आहत पीर से ‘लौ दर्दे-दिल की’ गजलें बनीं .
जीवन-दर्शन को इतनी सहजता और सरलता से कहा जा सकता है, यह ‘देवी’ जी की लेखन शैली से ही जाना. जैसे किसी बच्चे ने कागज़ की नाव इस किनारे डाली हो और वह लहरों को अपनी बात सुनाती हुई उस पार चली गयी हो. कहीं कोई पांडित्य पूर्ण भाषा नहीं पर भाव में पांडित्य पूर्ण संदेशं हैं. क्लिष्ट भावों की क्लिष्टता नहीं तो लगता है, मेरे अपने ही पीर की बात हो रही है और मैं इन पंक्तियों में जीवंत हो जाती हूँ . जब पाठक स्वयं को उस भाव व्यंजना में समाहित कर लेता है, तब ही रचना में प्राण प्रतिष्ठा होती है.
देवी जी के ही शब्दों में —–
करती हैं रश्क झूम के सागर की मस्तियाँ
पतवार बिन भी पार थी कागज की कश्तियाँ .
यह ‘ दर्दे दिल की लौ’ उजाला बनने को व्याकुल है , सबके दर्द समेट लेने चाहत ही किसी को सबका बनाती है, परान्तः-सुखाय चिंतन ही तो परमार्थ की ओर वृतियों को ले जाती हैं और शुद्ध चिंतन ही चैतन्य तक जीव को ले जाता है. औरों के दर्द से द्रवित और उन्हें समेट लेने की चाह में ही,’ मालिक है कोई मजदूर कोई, बेफिक्र कोई मजबूर कोई.’ संवेदना कहती है ‘ बहता हुआ देखते है सिर्फ पसीना, देखी है कहाँ किसने गरीबों की उदासी’ . ठंडे चूल्हे रहे थे जिस घर के, उनसे पूछा गया कि पका क्या है’ यह सब पंक्तियाँ देवी जी के अंतस को उजागर करतीं हैं. वे सारगर्भित मान्यताओं की भी पक्षधर है कि व्यक्ति केवल अपने कर्मों से ही तो उंचा होता है. ‘ भले छोटा हो कद किरदार से इंसान ऊँचा हो, उसी का जिक्र यारों महफ़िलों में आम होता है’ .
जीवन के मूल सिद्धांतों के प्रति गहरी आस्था है, सब इनका पालन क्यों नहीं करते इसकी छटपटाहट है, साथ ही यथार्थ से भी गहरा परिचय रखतीं है तब ही तो लिख दिया
‘ उसूलों पे चलना जो आसान होता,
जमीरों के सौदे यकीनन ना होते,
कसौटी पे पूरा यहाँ कौन ‘देवी ‘
जो होते, तो क्यों आइने आज रोते’.
सामाजिक, सांप्रदायिक , न्यायिक और राजनैतिक दुर्दशा के प्रति आक्रोश है, धार्मिक मान्यताओं के प्रति उनके उदगार नमन के योग्य हैं.’ वहीँ है शिवाला, वहीँ एक मस्जिद , कहीं सर झुका है, कहीं दिल झुका है.’पुनः है जहॉं मंदिर वहीँ है पास में मस्जिद कोई , साथ ही गूंजी अजाने , शंख भी बजते रहे. न्यायिक व्यवस्था के प्रति आक्रोश है. तिजारत गवाहों की जब तक सलामत क्या इन्साफ कर पायेगी ये अदालत.
भारतीयता, हिंदी देश प्रेम, वतन और शहीदों के प्रति रोम-रोम से समर्पित भावनाएं उन्हें प्रणम्य बनाती है. "
देवी नागरानी एक प्रबुद्ध व्यक्तित्व है, बुद्ध का अर्थ बोध गम्यता. इस मोड़ पर जब
चिंतन वृत्ति आ जाती है तो सब कुछ आडम्बर हीन हो जाता है, भावों को सहजता से
व्यक्त करना एक स्वभाव बन जाता है. कितनी सहजता है, ‘ यूँ तो पड़ाव आये गए
लाख राह में, खेमे कभी भी हमने लगाए नहीं कहीं’ . वे मानती हैं कि अभिमान ठीक
नहीं पर स्वाभिमान की पक्षधर हैं, ‘ नफरत से अगर बख्शे कोई, अमृत भी निगलना
मुश्किल है , देवी शतरंज है ये दुनिया, शह उससे पाना मुश्किल है’
चिंतन वृत्ति आ जाती है तो सब कुछ आडम्बर हीन हो जाता है, भावों को सहजता से
व्यक्त करना एक स्वभाव बन जाता है. कितनी सहजता है, ‘ यूँ तो पड़ाव आये गए
लाख राह में, खेमे कभी भी हमने लगाए नहीं कहीं’ . वे मानती हैं कि अभिमान ठीक
नहीं पर स्वाभिमान की पक्षधर हैं, ‘ नफरत से अगर बख्शे कोई, अमृत भी निगलना
मुश्किल है , देवी शतरंज है ये दुनिया, शह उससे पाना मुश्किल है’
- डा मृदुल कीिर्ति
फिर आगे , ' चराग़े दिल ' से देवी जी के ग़ज़लों की खुशबु गुलाब की पंखुड़ियों सी सारी साहित्य की दिशाओं को और फ़िज़ां को महकाने लगीं। देवी जी की एक और किताब ' “चराग - दिल” का भारतीय विदेश राज्य मंत्री श्री आँनंद शर्मा ने अपने हाथों से
८ वें हिन्दी अधिवेशन में , विमोचन किया था।
८ वें हिन्दी अधिवेशन में , विमोचन किया था।
लेखिका सुश्री इला प्रसाद जी के शब्दों में सुनिए ,' चरागे दिल देवी नांगरानी का हिन्दी में पहला ही गजल संग्रह है जिसके माध्यम से उन्होंने बतला दिया है कि उनकी लेखनी का चराग बरसों बरस जलता रहने वाला है। उनकी सोच का फ़लक विस्तृत है और उनकी गजलें जीवन के तमाम पहलुओं को छूती हैं। उन्होंने औरों के काँधों पर चढ़कर विकास नहीं किया। वे अपने पैरों से चली हैं , जिन्दगी की धूप – बारिश झेली है और आग में तप कर निकली हैं। उन्हीं के शब्दों में, " कोई नहीं था ‘देवी’ गर्दिश में मेरे साथ बस मैं, मिरा मुकद्दर और आसमान था। " जब जीवन-डगर कठिन हो और मन सम्वेदनशील, तो अभिव्यक्ति का ज़रिया वह खुद ढूढ़ लेता है। इस संग्रह में ढेरों ऐसी गजले हैं जो पाठकों को अपनी अनुभूतियों के करीब लगेंगी। आज चाहे देवी जी कहती हों कि “शोहरत को घर कभी भी हमारा नहीं मिला”
- इला प्रसाद
अब सुनिए डा॰ अंजना संधीर का देवी जी के बारे में ,
' सिंधी का लहजा और मिठास उनकी जुबान में है। न्यूयॉर्क के सत्यनारायण मंदिर में कवि सम्मेलन- २००६ में अपने कोकिल कंठ से जब उन्होंने गजल सुनाई तो महफिल में सब वाह-वाह कर उठे। किसी की फरमाइश थी कि वे सिंधी की भी गजल सुनाएँ और तुरंत एक गजल का उन्होंने हिंदी अनुवाद पहले किया और सिंधी में उसे गाया। सब लोगों को देवी की गजल ने मोह लिया। तो ये थी मेरी देवी से रूबरू पहली मुलाकात। हमने एक दूसरे को देखा न था, बस बातचीत हुई थी। मेरी कविता पाठ के बाद वो उठकर आईं, मुझे गले लगाया और बोलीं-
' अंजना, मैं तुम्हें मिलने ही इस कवि सम्मेलन में आई हूँ। '
समर्पण, निर्मल मन, भाषा के लगाव का परिणाम आपके सामने है ' चिरागे दिल।
देवी आध्यात्मिक रास्तों पर चलने वाली एक शिक्षिका का मन रखने वाली
कवयित्री हैं, इसलिए उनकी गजलों में सच्चाई और जिंदगी को खूबसूरत ढंग से देखने का एक अलग अंदाज है। उनकी लेखनी में एक सशक्त औरत दिखाई देती है जो तूफानों से लड़ने को तैयार है। गजल में नाजुकी पाई जाती है, उसका असर देवी की गजलों में दिखाई पड़ता है। उदाहरण के तौर पर देखिए-
कवयित्री हैं, इसलिए उनकी गजलों में सच्चाई और जिंदगी को खूबसूरत ढंग से देखने का एक अलग अंदाज है। उनकी लेखनी में एक सशक्त औरत दिखाई देती है जो तूफानों से लड़ने को तैयार है। गजल में नाजुकी पाई जाती है, उसका असर देवी की गजलों में दिखाई पड़ता है। उदाहरण के तौर पर देखिए-
‘भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ-कहाँ, तेरी नजर के सामने खोए कहाँ-कहाँ। " अथवा
‘न तुम आए न नींद आई निराशा भोर ले आई,
तुम्हें सपने में कल देखा, उसी से आँख भर आई। " अथवा
" उसे इश्क क्या है पता नहीं, कभी शमा पर वो जला नहीं। "
‘देवी की गजलों में आशा है, जिंदगी से लड़ने की हिम्मत है व एक मर्म है जो दिल को छू लेता है। '
- डा॰ अंजना संधीर
श्री गणेश बिहारी “तर्ज़” लखनवी साहिब ने ‘चराग़े-दिल’ के लोकार्पण के समय श्रीमती देवी नागरानी जी के इस गज़ल-संग्रह से मुतासिर होकर बड़ी ही ख़ुशबयानी से उनकी शान में एक कत्ता स्वरूप नज़्म तरन्नुम में सुनाई थी।
लफ्ज़ों की ये रानाई मुबारक तुम्हें देवी
रिंदी में पारसाई मुबारक तुम्हें देवी
फिर प्रज्वलित हुआ ‘चराग़े-दिल’ देवी
ये जशने रुनुमाई मुबारक तुम्हें देवी.
अश्कों को तोड़ तोड़ के तुमने लिखी गज़ल
पत्थर के शहर में भी लिखी तुमने गज़ल
कि यूँ डूबकर लिखी के हुई बंदगी गज़ल
गज़लों की आशनाई मुबारक तुम्हें देवी
ये जशने रुनुमाई मुबारक तुम्हें देवी.
शोलों को तुमने प्यार से शबनम बना दिया
एहसास की उड़ानों को संगम बना दिया
दो अक्षरों के ग्यान का आलम बना दिया
‘महरिष’ की रहनुमाई मुबारक तुम्हें देवी
ये जशने रुनुमाई मुबारक तुम्हें देवी.
- श्री गणेश बिहारी “तर्ज़” लखनवी
देवी जी के ग़ज़ल संग्रह ,हिन्दुस्तानी और सिंधी दोनों भाषाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। अंग्रेज़ी, हिन्दी, उर्दू और सिंधी जैसी सभी भाषाओं में देवी जी सिध्धहस्त हैं। वर्षों से सृजन प्रक्रिया में देवी जी व्यस्त रहीं हैं। इस वर्ष दिनांक १२ अप्रैल, २०१४ को चाँदीबाई हिम्मतलाल मनसुखानी कॉलेज में देवी नागरानी के सिन्धी कहानी संग्रह ‘अपनी धरती’ का लोकार्पण समारोह सम्पन्न हुआ।
सुश्री देवी नागरानी के अनुदित कहानी संग्रह “बारिश की दुआ” में भारत के अनेक प्रान्तों से स्थापित १७ कहानीकरों की कहानियाँ हिन्दी से सिन्धी भाषा में अनुवाद की हुई हैं। पुस्तक का स्वरूप सिंधी अरबी लिपि में है।
दिनांक-रविवार ९ जून २०१३ सीता सिंधु भवन, सांताक्रूज, मुम्बई के एक भव्य समारोह में सुश्री देवी नागरानी के अनुदित कहानी संग्रह “बारिश की दुआ” का लोकार्पण संपन्न हुआ।
अनेक साहित्यकारों पर देवी जी ने मार्मिक कथन लिखा है जैसे साथी स्व श्री मरीयम गज़ाला,
स्व श्री महावीर जी तथा लंदनवासी ग़ज़लकार श्री प्राण शर्मा ,पिंगलाचार्य श्री महरिष जी,
श्री जीवतराम सेतपाल जी , सुश्री सुधा ढींगरा , डा अंजना संधीर इत्यादी।
अपने साथी रचनाकारों की प्रशंशा में देवी जी मुखर रहीं हैं और उनके साहित्यिक अवदान के प्रति देवी जी सदैव सचेत रहतीं हैं।
मुम्बई हो या अमरीका का पूर्व में बसा न्यू जर्सी शहर हो या मध्य अमरीका का शिकागो शहर हो या कि पश्चिम अमरीका कैलीफोर्निया का मिलटीपास शहर हो उन्होंने की साहित्य सभाओं में शिरकत करते हुए सफल यात्राएं संपन्न कीं हैं।
चित्र में देवी जी व अन्य साहित्यकार मिल्टीपास केलिफोर्निया में -
सुदूर नॉर्वे हो या गोवा रायपुर या जयपुर ,अजमेर या अमदावाद , या फिर बेलापुर हो या तमिलनाडु ! देवी जी ने विभिन्न मंचों से अपनी रचनाओं का स स्वर पाठ किया है और श्रोताओं और साहित्यकारों ने उन्हें सुना और सराहा है। लिंक http://sindhacademy. wordpress.com2013. april Ajmer
अखिल भारत सिंधी बोली प्रचार सभा की और से देवी नागरानी जी की ' भजन - महिमा ' पुस्तक का लोकार्पण संत शिरोमणि युधिष्ठिर लाल जी हस्ते संपन्न हुआ। देवी जी गाती बहुत बढ़िया हैं। भजन हों या गीत ग़ज़ल या कविता उनके स्वर में ढलकर हर रचना श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करतीं रहीं हैं और सभा में, वाहवाही लूट लेतीं हैं। उदाहरणार्थ , शुक्रवार दिनांक ९ नवम्बर २०१२ , रवीद्र भवन मडगांव, गोवा में ‘अस्मिता’ कार्यक्रम सुबह १० बजे से दो
बजे तक सफलता पूर्ण सम्पन्न हुआ वहां देवी नागरानी जी ने (सिन्धी) भाषा का प्रतिनिधत्व
किया।
बजे तक सफलता पूर्ण सम्पन्न हुआ वहां देवी नागरानी जी ने (सिन्धी) भाषा का प्रतिनिधत्व
किया।
तमिलनाडू हिन्दी अकादमी एवं धर्ममूर्ति राव बहादुर कलवल कणन चेट्टि हिन्दू कॉलेज, चेन्नई के संयुक्त तत्वधान में आयोजित विश्व हिन्दी दिवस एवं अकादमी के वर्षोत्सव का यह भव्य समारोह (१० जनवरी २०१३ में देवी जी का सन्मान हुआ ) श्रीमती देवी नागरानी ग़ज़ल के विषय में ख्यालात कुछ इस तरह हैं --
“कुछ खुशी की किरणें, कुछ पिघलता दर्द आँख की पोर से बहता हुआ, कुछ शबनमी सी ताज़गी अहसासों में, तो कभी भँवर गुफा की गहराइयों से उठती उस गूँज को सुनने की तड़प मन में जब जाग उठती है तब कला का जन्म होता है। सोच की भाषा बोलने लगती है, चलने लगती है, कभी कभी तो चीखने भी लगती है। यह कविता बस और कुछ नहीं, केवल मन के भाव प्रकट करने का माध्यम है, चाहे वह गीत हो या ग़ज़ल, रुबाई हो या कोई लेख, इन्हें शब्दों का लिबास पहना कर एक आकृति तैयार करते हैं जो हमारी सोच की उपज होती है। ” दर्दे दिल की लौ ने रौशन कर दिया सारा जहाँ, इक अंधेरे में चमक उट्ठी कि जै से बिजिलियाँ "
रचनाकार देवी जी के कहानी संग्रह संस्कार सारथी संस्थान ट्रस्ट, राज॰ के तत्वधान में पुस्तक लोकार्पन एवं साहित्यकार सन्मान समारोह में सन्मान समारोह में दिनांक-मंगलवार, १२ मार्च २०१३ गांधी शांति प्रतिष्ठान में एक भाव्य समारोह को अंजाम दिया गया। सुश्री देवी नागरानी के अनुदित कहानी संग्रह “और मैं बड़ी हो गई” का लोकार्पण संपन हुआ और अक्षर शिल्पी सन्मान से उन्हें नवाजा गया।
साहित्य के प्रति देवी नागरानी जी के विविध आयामी योगदान को देखते हुए सं २०१४ इसी वर्ष दिनांक रविवार ३१ अगस्त २०१४ अखिल भारत सिंधी बोली एवं साहित्य प्रचार की ओर से ११२ सेमिनार -“साहित्य व साहित्यकार " के तहत , जानी मानी नामवर लेखिका व शायरा देवी
नागरानी पर यह सेमिनार आयोजित हुआ।
नागरानी पर यह सेमिनार आयोजित हुआ।
भारतीयता, साहित्यिक मनोभूमि, सर्व लोक उथ्थान के
निर्मल भाव से ओतप्रोत देवी जी के उदगार सुनिए ,
निर्मल भाव से ओतप्रोत देवी जी के उदगार सुनिए ,
' हमें अपनी हिंदी ज़ुबाँ चाहिये
सुनाए जो लोरी वो माँ चाहिये
कहा किसने सारा जहाँ चाहिये
हमें सिर्फ़ हिन्दोस्ताँ चाहिये
तिरंगा हमारा हो ऊँचा जहाँ
निगाहों में वो आसमाँ चाहिये
मुहब्बत के बहते हों धारे जहाँ
वतन ऐसा जन्नत निशाँ चाहुये
जहाँ देवी भाषा के महके सुमन
वो सुन्दर हमें गुलसिताँ चाहिये '
देवी जी के शब्दों में बसी तमाम उम्र भर की सच्चाई उनकी ग़ज़लों में यूं मुखरित हुई है ,
' यूं उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
इक मैं ही तो नहीं जिसे सब कुछ मिला ना था.
लिपटे हुए थे झूठ से कोई सच्चा न था
खोटे तमाम सिक्के थे, इक भी खरा न था '
देवी जी ने साहित्य की हरेक विधा में सृजन किया है। देवी जी का लिखा
एक सुन्दर हाइकु प्रस्तुत है , ' श्रम दिव्य है , जीवन सुँदर ये, मंगल धाम '
देवी जी ने साहित्यकार साथियों की पुस्तकों पर सशक्त एवं निष्पक्ष समीक्षाएं भी लिखीं हैं। सामसायिक हिन्दी व अन्य साहित्य पर उनकी पैनी नज़र रहती है। यहां प्रस्तुत चित्र में अमेरिका के प्रवासी भारतीयों के हिन्दी साहित्य में हिन्दी कविता संगोष्ठी में अपना व्यक्तव्य पढ़ते हुए
देवी जी~
डा अंजना संधीर द्वारा संपादित एवं प्रकाशित पुस्तक ' प्रवासिनी के बोल ' एक अनोखा प्रयास इस कारण रहा चूंकि इस पुस्तक में तमाम प्रवासिनी साहित्यकाराओं के उदगार संगृहीत हैं। देवी जी ने इस पुस्तक में कई साथी रचनाकाराओं पर अपने विचार लिखे हैं। मेरे लिए उनका लिखा मेरे मिए मनोबल को सुदृढ़ करनेवाला पाथेय है , बड़ी बहन के स्नेह रूपी वाक्यों का प्रसाद ही समझती हूँ।
' हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं॰ नरेंद्र शर्मा जी की सुपुत्री लावण्या शाह जो Cincinati-Ohio में रहती हैं। लावण्या जी को पढ़ते ही लगता है जैसे हम अपने आराध्य के सामने मंदिर में उपस्थित हुए हैं, सब कुछ अर्पित भावना को लेकर उनके साथ कह रहे हैं—-
' हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं॰ नरेंद्र शर्मा जी की सुपुत्री लावण्या शाह जो Cincinati-Ohio में रहती हैं। लावण्या जी को पढ़ते ही लगता है जैसे हम अपने आराध्य के सामने मंदिर में उपस्थित हुए हैं, सब कुछ अर्पित भावना को लेकर उनके साथ कह रहे हैं—-
ज्योति का जो दीप से / मोती का जो सीप से /वही रिश्ता मेरा, तुम से !
प्रणय का जो मीत से / स्वरों का जो गीत से / वही रिश्ता मेरा, तुम से !
गुलाब का जो इत्र से / तूलिका का जो चित्र से / वही रिश्ता मेरा, तुम से !
सागर का जो नैय्या से / पीपल का जो छैय्याँ से /वही रिश्ता मेरा, तुम से !
- लावण्या शाह
किसी ने खूब कहा है ‘कवि और शब्द का अटूट बंधन होता है, कवि के बिना शब्द तो हो सकते हैं, परंतु शब्द बिना कवि नहीं होता। लावण्या जी की शब्दावली का गणित देखिये कैसे सोच और शब्द का तालमेल बनाए रखता है। '
- देवी नागरानी
प्रवासिनी के बोल की समीक्षा पर अधिक विस्तार से इस लिंक पर : http://charagedil. wordpress.com/2012/03/
भारतीय भाषा संस्कृति संस्थान–गुजरात विध्यापीठ अहमदाबाद में देवी नागरानी का काव्य पाठ अवसर
(संस्थान के निर्देशक श्री के॰ के॰ भास्करन, प्रोफेसर निसार अंसारी (Urdu Dept),
मुख्य मेहमान देवी नागरानी, डॉ॰ अंजना संधीर)
न्यू जर्सी, अमेरिका की प्रवासी साहित्यकार देवी नागरानी को ग़ज़ल लेखन के लिए १६-१७
फरवरी को देश की महत्वपूर्ण साहित्यिक संस्था सृजन-सम्मान द्वारा ' सृजन-श्री ' से अलंकृत
किया गया । उन्हें सम्मानित किया धर्मयुग, नवभारत टाइम्स के पूर्व संपादक व वर्तमान में
नवनीत के संपादक, विश्वनाथ सचदेव, वरिष्ठ आलोचक व प्रवासी साहित्य विशेषज्ञ
कमलकिशोर गोयनका जी ने !
फरवरी को देश की महत्वपूर्ण साहित्यिक संस्था सृजन-सम्मान द्वारा ' सृजन-श्री ' से अलंकृत
किया गया । उन्हें सम्मानित किया धर्मयुग, नवभारत टाइम्स के पूर्व संपादक व वर्तमान में
नवनीत के संपादक, विश्वनाथ सचदेव, वरिष्ठ आलोचक व प्रवासी साहित्य विशेषज्ञ
कमलकिशोर गोयनका जी ने !
उत्तरप्रदेश के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व वरिष्ठ साहित्यकार केशरीनाथ त्रिपाठी दिनांक १३ मार्च, २०१० रविवार सिन्धी नव वर्ष “चेटी चाँद” के अवसर पर फिल्म “जय झूलेलाल” का उद्घाटन उत्सव एवं देवी नागरानी के सिन्धी काव्य संग्रह “मैं सिंध की पैदाइश हूँ ” का लोकार्पण समारोह संपन्न हुआ !"
सिंध की मैं पैदाइश हूँ का विमोचन नोर्वे में ( Indo-Norwegian Informaion and Cultural फोरम) के मंच पर स्वतंत्रता दिवस एवं टैगोर जयंती के मनाया गया।
आप ये ना समझियेगा कि सुश्री देवी नागरानी जी की साहित्य यात्रा का रथ रूका है या थमा है। आज भी देवी नागरानी के जहन में अनेक सुन्दर गीत , मधुर गज़लें और गीत लहरा रहे हैं और पाठकों को रसपान करवाने को आतुर हैं। ऐसी कर्मठं साहित्य सेवी , मिलनसार तथा आज भी नया देखने, सुनने और समझने को सदा सजग रहतीं, मेरी बड़ी बहन सुश्री देवी नागरानी जी को मेरे स्नेह एवं अादर पूर्वक नमस्कार ! उनकी साहित्य सृजन प्रक्रिया अबाध गति से आगे बढ़ती रहे यह मेरी विनम्र शुभकामनाएं भी सहर्ष प्रेषित करती हूँ।
- श्रीमती लावण्या दीपक शाह
सिनसिनाटी , ओहायो प्रांत
उत्तर अमरीका
ई मेल : Lavnis@gmail.com
6 comments:
प्रिय लावण्या
निशब्दता सोचों पर हावी है, क्या कहूँ, ? नहीं जानती थी, कि स्नेह यह करिश्मा भी कर सकता है यह आज जाना....धन्यवाद कह कर छुटकारा नहीं पा सकूँगी। यह स्नेह है स्नेह से चुकाऊंगी।
सस्नेह
प्रिय लावण्या
निशब्दता सोचों पर हावी है, क्या कहूँ, ? नहीं जानती थी, कि स्नेह यह करिश्मा भी कर सकता है यह आज जाना....धन्यवाद कह कर छुटकारा नहीं पा सकूँगी। यह स्नेह है स्नेह से चुकाऊंगी।
सस्नेह
bahut sundar chitrmay alekh ..lekin shabd itne bareek hai ki padhne me bahut dikkat huyee ...
देवी नागरानी जी की रचनाएँ पढ़ी हैं, उनसे बात भी हुई है, प्रभावित हूँ।
सादर!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
Yah Lavanya ji ka sneh hai jo yah prastuti aapke saamne le aai hai.....
tahe dil se unki v sabhi pathakon ki shyukraguzaar hoon
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