व्यक्ति सामाजिक प्राणी है। सामजिक जिज्ञासा वश यह प्रश्न उभरता है कि विश्व के हर व्यक्ति के जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण प्रसंग कौन से और क्या हैं ? उत्तर आसान है। पहला तो है जन्म , दूसरा है विवाह और तीसरा मृत्यु !
मानवता के इतिहास का विहंगावलोकन करने पर यह ठोस तथ्य ज्ञात होगा कि इन तीन महत्त्वपूर्ण मुद्दों में सभ्यता के आयाम, देश और काल के अनुरूप होते हैं। सामाजिक संस्कार और रीति रिवाज फिर देशकाल की भौगोलिक परिस्थिति और धार्मिक परम्परा के अनुरूप हर युग में परिवर्तित भी हुए हैं।
पाश्चात्य संस्कृति भिन्न है। यहां का समाज अपने रीति रिवाज़ों के अनुसार जीवन में इन तीन महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर धार्मिक परम्पराओं के अनुरूप बर्ताव करता रहा है।
विश्व के पूर्वीय गोलार्ध में स्थित भारत देश में सनातन धर्मानुसार जन्म, विवाह और मरण अवसर के लिए भारतीय रीति रिवाज बने हुए हैं । मानव जीवन में हर व्यक्ति के साथ इन तीन महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर, हर धर्म के अलग अलग विधि विधान होते हैं और रस्म या रीति रिवाज़ होते हैं।
मानव इतिहास इस सत्य का मूक साक्षी रहा है कि सनातन धर्म के अनुयायी भारतीय, वैदिक काल से आज के आधुनिक युग तक कुछ ख़ास परम्पराओं का अनुसरण करते रहे हैं।
विश्व में कई सभ्यताओं ने जन्म लिया। हर सभ्यता ने व्यक्ति और समाज की जीवन प्रणाली से जुडी अपनी विशिष्ट प्रथाएँ प्रयुक्त कीं।
भारत में मोहनजोदाड़ो सभ्यता सिंधु नदी के किनारे पनपी तो अफ्रीका भूखंड के उत्तर में स्थित नाइल नदी के किनारे प्राचीन ' इजिप्टयन ' सभ्यता ने आकार ग्रहण किया। उसी तरह होआंगहो और यांगसीक्यांग नदियों के किनारे, चीनी सभ्यता का विकास हुआ।
आज के इराक देश के इलाके में हज़ारों बरस पहले युफ्रेटीस और टाइग्रिस नदियों के किनारे, मेसोपोटेमीयन सभ्यता फूली फली। दक्षिण यूरोप में ग्रीक सभ्यता, विश्व में अग्रणी स्थान बना पायी।
प्राचीन काल में व्यक्ति अपनी जड़े जमा रहा था और यात्री या प्रवासी संख्या, कम हुआ करती थी। किन्तु अधिकाँश सभ्यताएं युग परिवर्तन के साथ बदलीं या लुप्तप्राय: हुईं।
भारतीय संस्कृति और रीति रिवाज अपनी परम्पराओं को अबाध गति से संजोता हुआ; आज २१ वीं सदी के आरंभिक काल में पदार्पण कर रहा है। हर सभ्यता के उत्थान के साथ, धरती के हर भूखंड पर मानव जीवन के विकास के साथ परम्पराएं समय के साथ साथ बदलीं हैं। इतिहास दिखलाता है कि हर कॉम में और हर प्रदेश में मानव जीवन में प्राय: कुछ ख़ास रीति रिवाज फिर भी स्थायी रहे। तीन महत्त्वपूर्ण परम्पराएं ,जन्म , विवाह और मृत्यु के बारे में २० वीं शताब्दी तक लगभग स्थायी रहीं।
भारतीय मूल के लोग सदियों से व्यापार हेतु, काम की तलाश में या संयोगवशात तो कभी कुछ नया देखने की उत्सुकता से प्रेरित होकर अपने जन्म स्थान से दूर देशों की यात्रा कर नये ठिकानों में आबाद होते रहे हैँ।
इन्हें हम 'प्रवासी भारतीय' कहेंगें। जहां कहीं हम भारतीय मूल के लोग गए और बसे हैं, हमने, वहीं पर नये सिरे से जीवन जीना सीख लिया है। हमारी संस्कृति, हमारी विरासत, हम अपने संग सहेज कर लेते गए और नयी धरती पर, इन्हें अपनाए रखा। हां, कई बार कुछ नया भी समय के साथ बदला है और इन प्राचीन परम्पराओं के संग जुड़ गया है । आधुनिक जीवन से कुछ नए अंश चुनकर , हमारे वर्तमान जीवन में सम्मिलित करते हुए हम आगे चले हैं ।
हमारे पूर्वज, भारत की कृषि प्रधान समाज व्यवस्था में जीते थे। जमीन से जुड़े हुए थे। उनकी पीढ़ी में भी परिवर्तन का जबरदस्त झोंका आया था जब सन १९४७ में भारत आज़ाद हुआ। अंग्रेज़ सरकार गई, भारत स्वाधीन हुआ और नए सरकारी क़ानून बने, जिनसे समाज में कई परिवर्तन आए।
बीसवीं और अब इक्कीसवीं शताब्दी में तेज़ी से सामाजिक एवं सांस्कृतिक तब्दीलियां आईं हैं। ख़ास तौर से संचार माध्यमों के नित नवीन आविष्कारों ने तो मानों संपर्क माध्यम के विशाल द्वार खोल कर एक नवीन संचार एवं सम्प्रेषण युग का प्रारम्भ किया है ।
इक्कीसवीं शताब्दी के अमरीका के सभी ५२ प्रांतों में; भारतीय मूल के लोग फैले हुए हैं। सन २०११ की सरकारी जन गणना के आधार पर ३. १८ मिलियन भारतीय मूल के अमरीका निवासी भारतीयों का विशाल आंकड़ा जन गणना द्वारा दर्ज किया गया है।
सन १९६४ में पारित हुए ' Luce–Celler Act ' के बाद ही भारतीय मूल के लोग अमरीका में स्थायी हो पाये। परन्तु अमरीका के पश्चिमी तट पर भारतीयों के आगमन के बारे में सन १९०६ में भी सरकारी सूचनाएं दर्ज की हुईं मिल जातीं हैं।
उदाहरणार्थ सन १९०६ , नवंबर माह की ३ तारीख के दिन अमरीका के उत्तर पश्चिम में स्थित ओरेगन प्रांत में, ऑस्ट्रिया शहर में ' रोमा सिंह ' नामक प्रथम भारतीय के शव दहन की सूचना, ओरेगन प्रांत के समाचार पत्र में छपी थी। इस प्रथम शव दहन संस्कार में अन्य चार भारतीय हिन्दू भी सहायतार्थ उपस्थित थे। इस से हम कह सकते हैं कि, भारतीय मूल के लोग १९ वीं सदी के आरंभिक काल से उत्तर अमरीका आकर बसने लगे थे।
भारत से, अनेक धर्म के अनुयायी असंख्य जातियाँ, अनेक भाषाभाषी वर्ग अपनी परम्पराओं को संग लेकर चले। आज भारत की संतान अमरीका और केनेडा के साथ विश्व के सातों प्रमुख भूखंड़ पर आबाद हैं। हमारे वही पुराने रीति रिवाज, वही व्रत त्यौहार अब, परदेस की भूमि पर पनपने लगे हैं। वे हमे आज भी अपने लगते हैं।
नतीजन , होली, दिवाली, रक्षा बंधन और नवरात्र जैसे विशुद्ध भारतीय त्यौहार, अब ओस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड इंग्लैंड , हॉलैंड, खाड़ी मुल्क , सिंगापोर, मलेशिया, जापान, अमरीका,कनाडा, अफ्रीका इत्यादी सप्त खण्डों में बसे भारतीय बड़े चाव से मनाने लगे हैं।
नतीजन , होली, दिवाली, रक्षा बंधन और नवरात्र जैसे विशुद्ध भारतीय त्यौहार, अब ओस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड इंग्लैंड , हॉलैंड, खाड़ी मुल्क , सिंगापोर, मलेशिया, जापान, अमरीका,कनाडा, अफ्रीका इत्यादी सप्त खण्डों में बसे भारतीय बड़े चाव से मनाने लगे हैं।
अमरीका में भारत की तरह दीवाली की छुट्टी नहीं होती और ना ही होली की!
ना किसी अन्य भारतीय त्योहारों की! इस का कारण है अमरीका इंग्लैण्ड, यूरोपीय देश, ऑस्ट्रेलिया वगैरह में ख्रिस्ती धर्म का वर्चस्व और त्यौहार भी बड़े दिन या क्रिसमस जैसे ख्रिस्ती धर्म से सम्बंधित त्यौहार ही यहां सार्वजनिक छुट्टी के दिन होते हैं। या फिर अमरीकी इतिहास से जुड़े दिन जैसे ४ जुलाई अमरीका का स्वातंत्र्य पर्व दिवस !
ना किसी अन्य भारतीय त्योहारों की! इस का कारण है अमरीका इंग्लैण्ड, यूरोपीय देश, ऑस्ट्रेलिया वगैरह में ख्रिस्ती धर्म का वर्चस्व और त्यौहार भी बड़े दिन या क्रिसमस जैसे ख्रिस्ती धर्म से सम्बंधित त्यौहार ही यहां सार्वजनिक छुट्टी के दिन होते हैं। या फिर अमरीकी इतिहास से जुड़े दिन जैसे ४ जुलाई अमरीका का स्वातंत्र्य पर्व दिवस !
भारतीय पारम्परिक त्यौहार, भारतीय मूल के लोग आज भी मनाते हैं परन्तु यह उत्सव अब कुछ बदलाव के साथ मनाये जाते हैं ! अब अमरीका में बसे भारतीय लोग अपने पारम्पारिक व्रत - त्यौहार, छुट्टी वाले दिन माने इतवार को या वीकएंड माने शुक्रवार की संध्या से, शनिवार, रविवार के दिन, हिंदू मन्दिर , जैन देरासर या सीखों के गुरूद्वारे में व्रत त्यौहार सम्पन्न करते दिखलाई पड़ते हैं।
नयी नस्ल के बच्चे, जो भारत से दूर, परदेस की भूमि पर पैदा हुए हैं, उन्हें अभी इस बात का अंदेसा नही है कि उनके ' मॉम ' माने माता और ' डेड ' माने पिता या बाबुजी, अपने त्योहारों को और परम्पराओं को ज़िंदा रखने के लिए कितना कठिन परिश्रम कर रहे हैं।
अपनी परम्पराओं के बारे में आनेवाली पीढ़ी भी सीखे इस महत्त्वपूर्ण बात के लिए आज की वर्तमान पीढ़ी कठिन प्रयास कर रही है! यही व्रत त्यौहार, भारत में रहने वाले और जन्म लेने वाले हरेक बालक के लिए एक साधारण - सी घटना होती है। परन्तु जो बच्चे अमरीका या विदेश के किसी शहर में जन्म लेते हैं, उनकी सामाजिक दुनिया भारत से बिलकुल अलग है।
अपनी परम्पराओं के बारे में आनेवाली पीढ़ी भी सीखे इस महत्त्वपूर्ण बात के लिए आज की वर्तमान पीढ़ी कठिन प्रयास कर रही है! यही व्रत त्यौहार, भारत में रहने वाले और जन्म लेने वाले हरेक बालक के लिए एक साधारण - सी घटना होती है। परन्तु जो बच्चे अमरीका या विदेश के किसी शहर में जन्म लेते हैं, उनकी सामाजिक दुनिया भारत से बिलकुल अलग है।
सन १९४८ में अमरीकी गणराज्य द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विरल व्यक्तित्व महात्मा गांधी के सम्मान में जारी की हुई स्टेम्प।
१- जन्म : शिशु के जन्म से जुडी भारतीय परम्परा में अब बदलाव आया है। अमरीकी समाज में " बेबी शावर " मनाने की प्रथा है। अमरीका में बसे भारतीय परिवारों ने भी अब इस अमरीकी प्रथा को अपना लिया है। भारत में शिशु जन्म के पहले सातवे महीने के बाद, कन्या की ' गोद भराई ' की रस्म होती है। अमरीकी समाज में ' बेबी शावर ' उसी से मिलती जुलती रस्म है।
अमरीका में माँ बननेवाली कन्या के सगे संबन्धी, सहेलियां और परिवार की स्त्रियाँ मिल जुल कर किसी दुपहरी में एक जगह इकट्ठा होतीं हैं। चाय, कोफी शरबत, कोल्ड ड्रिंक्स के साथ साथ हंसी मजाक, गायन वगैरह होता है। आनेवाले बच्चे के लिए उपयुक्त तोहफे कन्या को भेंट किये जाते हैं। आत्मीय सन्देश लिखे हुए कार्ड भी दिये जाते हैं। कई बार, परिवार के लोग, सगे संबंधी और परिचित और कन्या की सहेलियां बेबी शावर के ख़ास प्रसंग को " सर्प्राइज़ " रखतीं हैं।
मतलब कि उस गर्भवती कन्या से उसके होनेवाले शिशु के लिए रखे गए इस उत्सव के बारे में सारी योजना छिपाकर, पहले से सारी तैयारियां की जातीं हैं और ऐन मौके पर उसे वहां किसी बहाने बुलवाया जाता है ! जिससे उस कन्या को और अधिक खुशी होती है कि यह प्रसंग उसके और होनेवाले शिशु के लिए आयोजित किया गया । तब यह उत्सव और अधिक यादगार बन जाता है। कन्या को ऐसा महसूस होता है कि इस प्रसंग में उपस्थित सभी उसे कितना चाहते हैं और उसके और आनेवाले शिशु के लिए सभी ने मिलजुल कर बढ़िया इंतजाम किया ! भारत में ' गोद भराई ' की रस्म में गर्भवती कन्या की खूब देखभाल होती है और मायके और ससुराल से उसे भेंट सौगात मिलतीं हैं। अमरीका में गर्भवती कन्या कई बार अपने स्वतंत्र आवास में रहती है और अक्सर खुद गाड़ी चलाकर अपने उत्सव में शामिल होती है। आधुनिक महानगरों में एकल स्वतंत्र परिवारों में बसी आज के भारत की नारी भी पहले की अपेक्षा अधिक स्वतंत्र हुई है।
शिशु आगमन के बाद भी उपहार या गिफ्ट की बौछार जारी रहती है और वो बोनस होते हैं।
२ - शादी : आजकल , प्रवासी भारतीय बहुत शानदार मगर सौम्य विवाह उत्सवों का आयोजन करने लगे हैं। अमरीका में शादी के बंधन में बंधनेवाले जोड़े, लड़का और लडकी एक दूसरे को बहुधा पहले से ही जानते या पहचानते हैं। लड़का , मंगनी के पहले अंगूठी बनवाकर , लडकी से बाकायदा 'प्रोपोज ' करता है। माने लड़की से ' हां ' या ' ना ' के बारे में पूछता है। यदि वह ' हां ' करती है तो लड़का, अपने परिवार तथा कन्या के परिवार के बीच सिलसिला आगे बढ़ाता है। उसके बाद दोनों परिवारों की आपसी सहमति से, विवाह की तारीख तथा समारोह सम्बंधित सारी बातें निश्चित होतीं हैं ।
सबसे पहले , मेहमानों को "सेव ध डे " का कार्ड या ख़त भेजे जाते हैं। ताकि ,विवाह समारोह में सम्मिलित होनेवाले विशिष्ट अतिथिगण पहले से, विवाह के दिन और समय के बारे में अग्रिम जानकारी हासिल कर लें । ताकि उस के मुताबिक़ वे अपना कार्यक्रम निश्चित कर लें और इसके लिए अतिथि को पूरा समय मिले। मतलब अतिथियों को सूचित किया जाता है कि फलॉ की बिटिया और फलॉ के बेटे के विवाह का दिन आप अपने कैलेंडर में निजी व्यस्त्तता रहते हुए कृपया पहले से सुरक्षित कर लें।
इसके बाद , विवाह के मुख्य कार्ड भेजे जाते हैं। जिस में आप की मंजूरी या ना - मंजूरी और परिवार से कितने लोग आयेंगें, ये पहले से लिखकर भेजना जरूरी होता है। यह सारा काम, कई महीने पहले हो जाता है।
शादी से दो चार रोज पहले सहेलियां, कन्या / वधु के लिए "ब्राइडल शावर " रखतीं हैं। जहां सिर्फ़ कन्या व उसकी सहेलियां सम्मिलित होतीं हैं। खूब हंसी - मजाक होता है। ब्युटी पार्लर से लेकर डाँस, डीस्को, रेस्टाँरँटज़ मेँ खाना पीना ये सभी उस का हिस्सा होते हैँ। कन्या पक्ष की तैयारी अलग होती है वैसे ही वर पक्ष से दुल्हे के साथी और दोस्त भी गोल्फ या टेनिस का खेल आयोजित करते हैं या मिलजुल कर पार्टी करते हैं। दुल्हे के साथ भी खूब हंसी मजाक होता है। आज़ादी के चंद लम्हें अब शेष हैं ऐसी छींटाकशी होती है। यार दोस्त होनेवाले दूल्हे को मौज उड़ाने की सलाह देते हैं। 'अभी कुंवारे हो और जल्द ही बंधन में बंधोगे' इन बातों पे खूब हंसी मज़ाक होता है। विवाह के अवसर पर बुफे या वैवाहिक भोज के लिए हर टेबल पे आनेवाले मेहमान का नाम एक कार्ड पर छपा रखा जाता है। भोजन कक्ष या डाइनीँग होल के बाहर, कन्या की सहेली आपको आपकी मेज का नंबर बड़े प्यार से बतलाती है और आपके नाम का निर्देश कार्ड, हाथों में थमा देती है।
कन्या के फेरे , सप्तपदी, ये रस्में, पूरी होतीं हैं और विवाह भोज के समय, दोनों परिवारों से पिता, कन्या की खास सहेलियाँ, वर के खास मित्र इत्यादी लोग, वर -वधू से जुडी अपनी यादेँ , वहां उपस्थित मेहमानों के सामने माइक्रोफोन के आगे खड़े होकर बाँटते हैँ।उसके बाद ३, ४ घंटों तक खूब जोर शोर से नाच गाना होता है। सबसे पहले नवदम्पति, नया जोडा नृत्य करता है। फिर कन्या अपने पिता के साथ और माँ अपने बेटे के साथ नृत्य करती है और उसके बाद सारे मित्र समुदाय को भी हर्षोल्लास के इस अवसर पर सामूहिक नृत्य के लिए आमँत्रित किया जाता है। ये नाच गाना युवा वर्ग , भाँगडा करते हुए , बड़ी देर तक करते हैं तब तक बडे बूढे थक कर बैठ जाते हैँ।
इसके बाद कन्या की विदाई भी होती है। वही मार्मिक प्रसंग होता है जब कन्या एक घर से दुसरे घर के लिए प्रस्थान करती है। नव विवाहितों के लिए अब एक नया जीवन आरम्भ होता है। क्या भारत और क्या अमरीका, आखिर बदला हुआ रूप लिए हुए भी ' विवाह ' तो विवाह ही है !!
३ -मृत्यु : भारत में मृत्यु के बाद पूजा, दिया जलाना इत्यादी बातों का निषेध है। सूतक लगता है ऐसी मान्यता है।
परन्तु अमरीका में बसे भारतीयों में अब बदलाव आ गया है। अक्सर विशाल धार्मिक स्थलों का उपयोग भारतीय समाज आपसी मेलजोल के लिए करता है।
अमरीका में व्यक्ति की मृत्यु के बाद आजकल, मन्दिर या देरासर के साथ लगे हॉल में भजन और पूजा का आयोजन रख कर किया जाता है। साथ साथ, कई बार, दिवंगत को जो चीजेँ खाने में पसंद होती हैं ऐसी बानगी वाला भोजन, भजन के बाद, सभी आनेवालोँ के प्रति, आभार प्रक़ट करने की औपचारिक छोटी स्पीच के बाद परोसा जाता है। दिवंगत के प्रति अपना सम्मान प्रकट करनेवाले लोग जो इस प्रसंग में शामिल होते हैं वे दिन भर काम काज संपन्न कर के दूर दूर से आते हैँ।
अमरीकी समाज मेँ भी अक्सर यही होता है कि ' फ्युनरल ' माने व्यक्ति के निधन और शव को धरती की गॉद सुलाना ' इस के बाद भोजन परोसा जाना। इसमें से भोजन परोसने की प्रथा को अब कई भारतीयोँ ने भी अपनाया है। ये बदलाव हुआ है। अच्छा है या बुरा यह निर्णय समाज तय करे। हम महज भारतीय परम्पराओं और रीति रिवाजों के बदलते स्वरूप की बात कर रहे हैँ।
भारत और अमेरीका मेँ मूलभूत अँतर है। आम अमरीकी, बाहरी दुनिया मेँ, काम करते वक्त, या जिसे कहेँगेँ औपचारिक मामलो मेँ बहुत ज्यादा सभ्यता से पेश आता है। परँतु भीतरी जीवन मेँ, आँतरिक रहन सहन मेँ, यही व्यक्ति, इस बर्ताव से अलग भी हो सकता है। यूं तो हर व्यक्ति पर निर्भर करता है कि उसका बाह्य व आँतरिक स्वभाव या व्यवहार कैसा रहेगा। चाहें वे किसी भी देश के नागरिक क्यों न हों। भारतीयोँ के घर पर आप चले जाइये, वे आगंतुक अतिथि के साथ हमेशा मृदु व्यवहार करेँगे। बेहद आत्मीयता से, सभ्यता से अतिथि की आवभगत करेँगेँ। हो सकता है कि अपने बाह्य जीवन मेँ, रीश्वत देने लेने मेँ, वे हीचकते ना होँ। अमरीकी, यथासँभव, घर पे किसी को बुलायेँगे ही नहीँ। बाहर रेस्टारन्ट मेँ खाना खिलाना पसँद करेँगेँ। भारतीय और अमरीकी प्रजा के बीच क़ुछ इस तरह की असामनताएँ हैँ ! प्राईवेट लाइफ को प्राइवेट रखना अमरीकी आदत है और ये उनका स्वभाव है।
जी हां , अमरीका पेरेडोक्स (paradox) है !! इस देश में अन्य कई देशों की तरह , बहुत सारी अच्छी बातें हैं तो कई दिल दहला देनेवाली बातें भी हैं।
पहले सुख सुविधा की बातें करें। यहां अमरीका में रहते हुए आपके पैरों को, नर्म मुलायम कालीन पर और साफ सुथरे फर्श पे चलने फिरने की बहुत जल्दी आदत हो जाती है। हर मौसम में, सुविधाजनक तापमान में ही सांस लेने की और जीवन जीने की आदत हो जाती है।खाना , पीना विपुल मात्रा में और अनेकविध प्रकार का अमरीका में आसानी से उपलब्ध है। ब्रेड २०० से अधिक प्रकार के बाज़ार में दीखलायी देते हैं। सारी सुख सुविधाएं आसानी से और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं! काम काज भी इंसान की काबिलियत के अनुसार मिल ही जाता है। अगर कोई इंसान काम करना चाहे, तो उसे अपनी शिक्षा के अनुरूप अच्छे वेतनवाली नौकरी मिल ही जाती है। आप अपने बलबूते पर आगे बढ़ें, तरक्की करें, घर खरीद लें, वाहन खरीद लें, यह अमरीका में आसानी से हो जाता है। अमरीका में २४ घंटे बिजली सुलभ है। पीने लायक स्वच्छ पानी और भरपूर भोजन जो इंसान की पहली जरूरत है, यह आवश्यकता पूरी होते, अमरीका में ज्यादा देर नहीं लगती। अमरीका दुनिया का सबसे सम्पन्न और शक्तिशाली देश यूं ही नहीं कहलाता। जो गरीब हैं उनके लिए भी हर प्रांत और केंद्रीय सरकार कई निशुल्क सेवाएं प्रदान करतीं हैं।
दूसरी ओर अमरीकी समाज में विषमताएं ऐसी हो चलीं हैं जिनसे भय है कि तथाकथित सामाजिक व साँस्कृतिक मूल्यों का २१ वीं सदी में आगे , क्या हश्र होगा ? क्या २१ वीं सदी, इस, व्यापारिक सफलता के शिखर पर बिराजे विशाल भूखंड को, रोमन और ग्रीक सभ्यता की तरह स्वयं के अतिरेक तथा असयँम के कारण, विलुप्त होता हुआ देखेगी ?
कुछ ज्वलंत प्रश्न आज अमरीकी समाज में प्रश्न चिन्ह बने हुए हैं। जिनमे से एक है, समलैंगिक विवाह! आज न्यूयोर्क और केलीफोर्नीया जो सबसे बड़े और कार्य व्यवहार कुशलता में अत्याधिक सफल और घनी आबादी से समृध्ध प्रांत हैं वहां ऐसे विवाह को कानूनन मान्यता प्राप्त हो गई है । २१ वीं सदी में आगे आनेवाली नस्ल के लिए परिवार का बदलता हुआ रूप एक गंभीर सामाजिक प्रश्न है। अमरीका में ऐसे परिवार भी हैं जहां दो स्त्रियां रहतीं हैं और बच्चे पल रहे हैं। भृण द्वारा गर्भधारण किये हुए और गोद लिए बच्चे, स्कूल जाते हैं और मिश्र परिवार में बड़े हो रहे हैं।
किसी परिवार में दो पुरूष हैं। कई परिवार में बिन ब्याही माता बच्चे को बड़ा करती है। ये एकल परिवार कहलाते हैं। जहां एक व्यक्ति ही परिवार का कर्ताधर्ता हो। कहीं तलाक होने के बाद, २ या ३ शादियाँ होतीं हैं और नये दम्पति के एक से ज्यादा जोड़े होते हैं। जिनके बीच बच्चे पल रहे हैं। नशीले पदार्थों का सेवन ड्रग्स, मादक द्रव्यों का असीमित उपभोग, आल्कोहोल या शराब पीना, बहुत कम ऊमर में यौन सँबँध स्थापित करना तथा यौन सँबँधोँ को महज मनोरञन का साधन मान, अकृत्रिमता की हद्द तक या अमानवीय तरीके से स्वेच्छाचारी होकर असंयमित उपभोग करना इत्यादी कुरीतियाँ यहाँ के कुछ बच्चे कम उम्र में सीख जाते हैँ।
ऐसे भयंकर दूषण, कुछ परिवार, सशक्त प्रयास करते हुए अपनी सँतानोँ से दूर रखने मेँ सफल भी हुए हैँ। ऐसे संयमित, ऊर्जाशील एवं उद्यमी परिवार की बड़ी संख्या भी अमरीका में मौजूद है ।
अमरीका में युवा कन्याओं को सबसे ज्यादा खतरा है टीन प्रेग्नन्सी का। कम उमर की लडकियाँ माँ बनकर अपने भविष्य को अँधकार मेँ ढकेल देतीँ हैँ। फिर आगे चलकर शिक्षा के अभाव में उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिलती। कई परिवारों में, कम पढे लिखे माता पिता अपने नाबालिग या कम उम्र बच्चोँ को दुसरे अवयस्क बच्चों के संग अकेले ही शाम बिताने की छूट देते हैं। इसे ' डेट पर जाना ' कहते हैं। कई माता पिता इसे आसानी से स्वीकार कर लेते हैँ। कई बार माता पिता अपने संतानों को विवाह से पूर्व मित्रता करते हुए लड़का, लड़की को एक साथ जाने देना या ' डेट पर जाना ' इस चलन को प्रोत्साहित भी करते हैँ।
कई बच्चे अकसर ११ वीँ पास करने के बाद, आगे पढाई न करके, नौकरी कर लेते हैँ और अपना अलग घर बसा लेते हैँ। फिर उनका सँसार शुरु होता है। जैसा भी वे सम्हाल पायेँ ! अपने आप को और अपनी गृहस्थी को ! वैसी ही उनकी गृहस्थी की गाड़ी भी आधुनिक समाज की खुली सड़कों पर चल देती है। कम पढे लिखे, खुद नशे की चपेट मेँ रहते माता पिता, अपने बच्चोँ को भला क्या सिखलायेंगें ? ऐसे परिवार से आये अधिकाँश बच्चे गुनाह करने लगते हैं। क्राइम करते हैँ। अमरीका में, जेलेँ भरीँ पडीँ हैँ। जेल जाने वाले कैदियों में अश्वेत नागरिकों की संख्या अधिक है। अमरीकी जेल मेँ जुर्म कर, सजा भुगत रहे, हिंसक बंदी, शायद दुनिया के क्रूरतम और सबसे भयानक होते हैँ। उनसे भरी हुई यहाँ की जेल एक भयँकर और अलग दुनिया हैँ।
अमरीका के पास हथियारों का विशाल जखीरा है। हर प्रकार की बंदूकें बड़ी आसानी से और बाज़ारों में धड़ल्ले से बिकतीं हैं ।
दुसरे विश्व युध्ध के अनुभवोँ से उभरकर आगे बढ़ता हुआ, सँचार, सूचना और टेक्नोलोजी से लैस अमरीका वास्तव मेँ एक प्रगतिशील और शक्तिशाली देश है। परँतु, यहां, हर व्यक्ति अपने आप मेँ एक तटस्थ एकल द्वीप की तरह है। ये भी सामजिक सत्य है। वैयक्तिक आज़ादी के हिमायती अमरीकी समाज में, हर व्यक्ति अलग रहना चाहता है। स्वार्थरत, अपने अहम्` को हर प्रकार से पोषित करते हुए अपने आनंद के प्रति अमरीकी नागरिक सदा सजग रहता है। यहाँ कक्षा 4 से सिखलाया जाता है, कि अपने आपको खुश रखो और उसके लिये किसी से डरो नहीँ और ना ही किसी के आगे झुको। अमरीकी स्वभाव में प्रतिद्वंद्व या होड़ की भावना प्रचूर मात्रा में विध्यमान है। यहां हर बात में, हर क्षेत्र में, रोज प्रतियोगिता होती है। चाहे वह शिक्षण क्षेत्र हो, या खेलकूद हो या विश्व के सिरमौर बने रहने की धुन ही क्यों न हो !
अमरीका में हर शिशु के लिए ग्यारहवीं कक्षा तक की शिक्षा मुफ्त है। हरेक प्राँत की सरकार इस के लिए जिम्मेदार है। हर प्रांत के निवासी से, हर नागरिक से, सम्पत्तिकर / या / वेल्थ टेक्स लिया जाता है। उसी के अंश से शिक्षा व्यवस्था सुचारु रूप से चलती है। यानि कि, ग्यारहवीं तक स्कूल की शिक्षा और स्कूल तक आने जाने के लिए बस सेवा इत्यादी निशुल्क है ! माता पिता से ताकीद की जाती है कि , बच्चोँ को ११ वीं कक्षा तक रोजाना स्कूल भेजना अनिवार्य है। अगर माता पिता पूर्व सूचना ना दें तो सरकारी कर्मचारी घर पर आ धमकते हैं और पूछ ताछ करते हैं। यहां बच्चोँ को मारना कानूनन् अपराध है जिसके तहत टीचर और किसी भी वयस्क को जेल भी जाना पड सकता है।
स्कुल की अपेक्षा अमरीका में कोलिज की शिक्षा अधिक महँगी है। आस पास के इलाके के छोटे कॉलिज, जिन्हें कम्यूनिटी कॉलेज कहते हैं वहां फीस कम होती है। व्यक्ति जिस प्रांत में रहता है उसी प्रांत की यूनिवर्सिटी में भी अपेक्षाकृत फीस कम रहती है। अगर कोई छात्र अपने आवास से दूर, किसी अन्य प्रांत में शिक्षा ग्रहण करने जाता है तो उस छात्र के लिए कॉलेज में फीस ज्यादा होती है। बनिस्बत उसी प्रांत में रहनेवाले छात्र की अपेक्षा और अधिक फीस देना अनिवार्य है।
कई भारतीय बुद्धिजीवी, भारत से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद अमरीका में तगड़े वेतन वाली नौकरी प्राप्त करते हैं। जैसे इंजीनियर और डाक्टर और आईटी के नौकरीशुदा प्रवासी भारतीय!
इस प्रक्रिया को 'ब्रेन - ड्रेन ' कहा जाता है। इससे व्यक्तिगत फायदा अवश्य होता है परन्तु भारत की शिक्षा प्रणाली से पारित हुए उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीय परदेस चले आते हैं इस प्रक्रिया से भारतीय सरकार और समाज का काफी नुक्सान होता है। यह प्रसन्नता की बात है कि अब ' ब्रेन - ड्रेन ' से विपरीत स्थिति बन रही है और अमरीका में बसे भारतीय पुनः उन्नतिशील भारत की ओर लौटने लगे हैं।
अमरीकी प्रजा मुख्यतः यूरोपीय देशों से यहां स्थाई हुई ।
अमरीकी प्रजा में देश प्रेम और जुनून गज़ब का है। जीवन भरपूर जीने का जज्बा पागलोँ जैसा! जिस मे एक ही जिँदगी मेँ दुनिया की हर खुशी, हर चीज़, हासिल करने की तडप है। काबिलियत पैदा करने का साहस भी है। अमरीकी जीवन शैली के प्रति दीवानगी की हद्द तक लगाव है ! मेक डोनाल्ड का चीज़ बर्गर और बीग मेक और बडा स्टेक बीफ, फीश, चीकन, प्रोन्ज़, पीग ये खूब सारा खाना अमरीकी नागरिकों को पसंद है। अमरीकी मुख्यतः मांसाहारी होते हैं। अपनी शारिरिक शक्ति पर ध्यान केँद्रीत रखना, स्वाभिमान से जीवन जीना, घमँड की हद्द तक का बर्ताव ये सारे अमरीकी आम नागरिक के गुण हैँ। अमरीका की छवि कुछ हद्द तक क्लास के बुली या सबसे दबंग व्यक्ति जैसी है !
अमरीका मेँ बसने की, काम करने की, धर्म पालन की, खुलकर अपनी बात कहने की और राजनेता से कुछ भी पूछने की सबको आज़ादी है। यहां सामाजिक आज़ादी इतनी है कि, आप जो चाहेँ करेँ आपसे कोई कुछ पूछनेवाला नहीँ।
कई अमरीकी शिक्षित वर्ग के और अच्छे सँस्कारी लोग मेहनत से कमाया हुआ अपना धन, हारवर्ड और येल जैसी शैक्षिणिक संस्थाओं को दान कर देते हैँ। अपने चर्च को भी खूब दान करते हैं। गरीबोँके लिए अपनी आय से, नियमित दान करते हैं। बेहतर शिक्षा सँस्थानोँ को भी भरपूर दान मिलता है। उच्च शिक्षा अमरीका में सुलभ और सुव्यवस्थित है।
' शोध और विकास ' पर यहां बहुत जोर दिया जाता है। हर उद्योग तथा संस्था में ' शोध और विकास शाखा ' का महत्वपूर्ण स्थान होता है और उस पर भार दिया जाता है। ये ना सिर्फ़ वैज्ञानिक शोध के बारे में सच है परन्तु कई अन्य विभागों में ' शोध और विकास ' शाखा प्रमुख होती है। शोध एवं विकास की शाखा की मजबूत व्यवस्था अमरीका में सर्वव्यापी है।
राजनीति के क्षेत्र के लिए कई "थिंक टेन्क " बनाये जाते हैं। जो विश्व के हर क्षेत्र की गतिविधियों पर पैनी नज़र रख, सामग्री एवं सूचनाओं को बटोरते हैं। जिनमें भविष्य के संभवित बदलाव, कि जैसे किसी देश में होनेवाले नए चुनाव जैसे मुद्दों पर प्रचुर मात्रा में सामग्री बटोरी जाती है। खुफिया तंत्र भी इस मामले में अमरीका को फायदा हो इस तरह अपना योगदान देता है। वर्तमान के ज्वलंत प्रश्नों पर काफी सामग्री इकट्ठा की जाती है और अमरीका के हितों को ध्यान में रखते हुए और उन्हें मजबूत करते हुए दुनिया भर में अमरीकी वर्चस्व और नज़रिये का प्रसार-प्रचार किया जाता है। विमर्श के बाद इन संस्थाओं द्वारा दी गई सलाह के मुताबिक़ कार्यवाही होती है। जिसमे अमरीकी राष्ट्रसंघ के हित एवं उन्नति को ख़ास तवज्जो दी जाती है।
अमरीका में उद्योग व्यापार वाणिज्य, संशोधन इत्यादी की सफलता के नए नए प्रतिमान स्थापित होते हुए विश्व देखता है। जैसे गूगल और एप्पल जैसे बहुआयामी व्यापार की आशातीत सफलता। जिन्होंने विश्व बाज़ार के उच्चतम शिखर चढ़ कर नव युग के नए कीर्तिमान रचे।
दूसरी ओर अमरीका का ऐसा वर्ग भी है,जो सामाजिक विफलता की करूण गाथा समेटे हुए है। शराब, हर तरह का नशा, धूम्रपान जैसे जानलेवा शौक, जीवन को धुंधला और बीमार बनानेवाला अपनी जहरीली जड़ जमाये हुए है। नाना प्रकार के ऐसे रोगों से साधारण प्रजा ग्रसित है।
परन्तु आखिरकार प्रश्न उठता है कि क्या ये सिर्फ़ यहीं अमरीका में ये सब होता है ? नहीं ना ! सामाजिक पतन आज लगभग हर देश की सभ्यता का और बदलते हुए आधुनिक समाज का हिस्सा है। वर्तमान समाज की गंभीर सामाजिक व्याधि और संघर्ष से पृथ्वी का कोई भूखंड अछूता नहीं रहा। विश्व भर में कई दूषण फ़ैल चुके हैं। ऐड्स जैसे प्राणघातक रोग हर मुल्क को दीमक की तरह चाट कर खोखला कर रहे हैं। कोकेन लेती बिनब्याही माताओं के गर्भ में पडी संतान, जन्म से ही एड्स जैसी भीषण बीमारी का अभिशाप लेकर पैदा होती है। अशिक्षित व बेरोजगार प्रजा, विश्व के हर देश में है। बढ़ती हुई अरबों की आबादी, एकल अभिभावाक वाले परिवार उन में पनपती आगामी नस्ल, समलैंगिक जोड़े और तलाकशुदा, बहुल पति और पत्नियों से बसे घर परिवार, राजनेता और समाज सुधारकों के लिए गहन चिंता के विषय हैं। भूतपूर्व पति और भूतपूर्व पत्नी के रिश्तों में उलझते समाज व उनकी संतानें क्या आज सिर्फ़ अमरीकन समाज की पहचान हैं या ये दृश्य किसी भी मुल्क में अब आम हो चला है ?
अमरीका में ३० साल पहले टीवी पर एक शो आया करता था। पति, पत्नी और उनका प्यारा और सुखी कुटुंब ! उस की छवि को पूरा करते प्रसन्न बच्चे। आज के अमरीका में ऐसे दृश्य अतीत के धुंध में खो गए हैं और तेज़ी से धुंधला रहे हैं। ऐसे सुखी परिवार की छवि आज का सामाजिक सच नहीं है। वे किसी परिकथा के मनगढ़ंत दृश्य से लगते हैं।
शायद भारत में आज भी सुखी परिवार की छवि कायम है। छोटे कस्बो में, गाँवों और शहरों में अभी आधुनिकता का सैलाब दाखिल नहीं हो पाया! हुआ भी हो तब उसकी गति मंथर है। वहाँ आज भी जीवित हैं हमारे पीढियों से संचित सुसंस्कार और सुरक्षित है सामाजिक मूल्यों की धरोहर ! परन्तु दुख इस बात का है कि इन संस्कारों पर आज हर क्षेत्र से आक्रमण जारी है। आधुनिकता का मुखौटा ओढ़े हुए असामाजिक तत्वों के नुकीले तीर और मिसाइल अपना निशाना खोजते हुए विश्व के सभी भूखंडों की ओर तेज़ी से आगे बढ़ते जा रहे हैं। इन सुनामी सी लहरों से हमारा आदर्शवाद कब तक सलामत रहेगा ? इक्कीसवीं शताब्दी के आरम्भ में इनका पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है !
अमरीका में भारत से आकर बसे प्रवासी भारतीय परिवार अनमोल धरोहर को बचाए रखने की कड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं। कईयों को आधुनिकता के प्रदूषणों से बचने में, आशिंक सफलता प्राप्त हुई है। परंतु कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो धीमे से ज़हर घोलते हुए परिवार और समाज में प्रवेश कर रहे हैं। सामान्य नागरिकों को परेशान कर रहे हैं। कई जगह असफलता मिली है। कहने की ज़रुरत नहीं बस इतना ही सही है कि
आना ही बहुत है, इस दर पे तेरा,
शीश झुकाना ही बहुत है।
कुछ है तेरे दिल में उसको ये ख़बर है,
बंदे तेरे हर हाल पर मालिक की नज़र है,
आना है तो आ, राह में कुछ फेर नहीं है,
भगवान के घर देर है अँधेर नहीं है ! '
सनातन धर्म का पाथेय ले, प्राचीन गौरवान्वित संस्कृति के शाश्वत मूल्यों को संजोते हुए हमे आगे बढ़ना है।
२१ वीँ सदी के विश्व नागरिक, हम भारतीय अब आगे कैसा व्यवहार करेँगेँ ? भूतकाल से सीख, हमारी वर्तमान की गल्तियोँ को सुधार, नया और बेहतर भविष्य बनाने मेँ क्या हम, सफल हो पायेँगेँ ? क्या यह विश्व विनाश के मार्ग पर अग्रसर होगा ? बैर भावना जीतेगी या हम विश्व बँधुत्व की भावना का कँवल खिलायेँगेँ ? आधुनिक समाज के सभ्य नागरिकों के सामने यह गंभीर और एक विचारणीय प्रश्न है जिसका उत्तर समय की सीमा से बंधा हर व्यक्ति, स्वयं निर्धारित करेगा।
भारतीय धर्म एवं सँस्कार की खुशबु हर प्राँत से निकलकर आज विश्वव्यापी बनी है। जिसका आधार है भारतीयोँ का देशाटन तथा अपने सँस्कारोँ की धरोहर को हर भौगोलिक भूखँड पर बसते हुए अपने देश से जो सौगात लेकर चले हैँ उस उद्दात परँपराओँ को सहेजे रखना ! कार्य क्षमता मेँ दक्ष भारतीय, चाहे युरोपीय देशोँ मेँ रहेँ या औस्ट्रेलिया, न्यूझीलैन्ड जैसे पूर्वीय छोर के महाद्वीपीय खँडोँ मेँ जा पहुँचे या कि, उत्तर अमरीका के कनाडा या अमरीका के ही नागरीक क्यों ना बनेँ, हर विषम या अनुकूल परिस्थिती के बीच भारतीय मूल के स्त्री व पुरुष, एक सफल कार्यकर्ता होने के साथ, आदर्श नागरीक तथा अपने मूल वतन भारत के प्रतिनिधि भी हैँ। भारत के प्रति प्रेम, सदभाव और भारत के अतीत से जुडे सँस्कारोँ की विरासत को, भारतीय प्रवासी गण अपने ह्र्दय में बसाये हुए हैँ।
प्रवासी भारतीय दोहरी भूमिका जीते हैं। दोहरा बोझ उठाये हुए हैं।अनेक विषम परिस्थितीयोँ मेँ हँसते हुए, द्रढ मनोबल से वे जीवन यापन करते हैं। प्रवास में पिछला सब कुछ पीछे छूट जाता है। नए सिरे से अपने आपको बसाना पड़ता है। आज का प्रवासी भारतीय नई धरा पर नींव डालने में प्रयत्नशील है। जो धन कमाया उसका सद्` उपयोग , अपनाये देश के अन्य नागरिकोँ के हित मेँ करते हुए, अपनी जिम्मेदारीयाँ उठाते हुए, भारत के करोडोँ भाई बहनो के लिये भी, अमरीका हो या इन्ग्लैँड या कि सिँगापोर या खाडी के अन्य मुल्क, वहाँ से हर भारत माँ का सच्चा सपूत या सुपुत्री, भारत माँ के लिये अपने श्रम बूँदोँ की कतरेँ, सेवा भाव से, चरण कमलोँ पर निछावर करते हैं।
भारत के ज्वलँत प्रश्नोँ व समस्याओँ के प्रति प्रवासी भारतीय सदा जागरुक रहता है।
केरल से कई भारतीय खाडी मुल्कोँ मेँ काम करने जाते हैँ। उनकी कार्य स्थिति के बारे मेँ बहारीन के श्रम मँत्री मजिद अल अलावी से परदेश मँत्री वायलार रवि जी ने (जो भारतीय कार्योँ से सँबँधित थे ) उन्होँने, कई नये मुद्दोँ पर करार स्थापित किया। करीब २८०, ००० भारतीय केरल से बहारीन मेँ काम कर रहे थे आज उनकी संख्या में वृद्धि हुई होगी।
व्यापार और वाणिज्य मँत्री कमल नाथ जी का कहना है कि अगर आफ्रीकी, पिछडे और अकाल व युध्ध की दोहरी मार से व्यथित प्राँतोँ को, खाडी देश, अरब गण राज्य और भारत मिलकर सहायता करते हैँ तब उससे अफ्रीका मेँ जो मदद मिल सकती है तो स्थिती पलट सकती है। ऐसी बातेँ सुनकर भविष्य के प्रति नई आशा बँधती है कि अगर विश्व सचमुच एक ईकाई बन रहा है और भूमँडलीकरण और वैश्वीकरण से लैस बाजार, विश्व बँधुत्व की भावना का प्रणेता भी हो तब, इस २१ वीँ सदी में, भविष्य में, मनुष्य अनेक समस्याओँ के साथ जूझते हुए शायद, एक सँतोषकारक दिशा में अग्रसर होगा।
अनेक विडँबना और वर्जनाओँ के मध्य में आशा की हल्की किरण देख, संतोष होता है। चूँकि, सूरज वहीँ उस किरण के पीछे कुहासे से ढँका हुआ नव प्रभात लेकर आएगा !
एक नया सुवर्ण युग प्रत्येक मानव के लिए सुख का उजाला लाएगा अस्तु सर्वोदय भावना युक्त मंगलकारी पवित्र प्रार्थना है :
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
E mail : Lavnis@gmail.com
12 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन यक लोकतंत्र है, वोट हमारा मंत्र है... मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
विस्तृत जानकारी देता लेख। इसके लियेआप बधाी के पात्र हैं।
कृपया बधाई पढें ।
बहुत सुंदर आलेख ।
अच्छा लेख।
आप के लेख से हमें भी ये जानकारी मिली...बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया (नई ऑडियो रिकार्डिंग)
अमेरिकी जीवन शैली की विस्तृत जानकारी देता महत्वपूर्ण आलेख, आभार!
बहुत ही जानकारीपूर्ण आलेख . अमरीकी जीवन के हर पहलु पर विस्तृत दृष्टि डाली है आपने और उसका बहुत अच्छा विश्लेषण किया है . प्रवासी भारतीयों की जद्दोजहद समझ में आती है .जहाँ वे अपने बच्चों को अमरीकी जीवन शैली अपनाने की अनुमति भी देते हैं और उनमें भारतीय संस्कारों का समावेश करने के लिए प्रयासरत रहते हैं .
सहेज कर रखी जाने वाली पोस्ट .
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं
यहां आकार आपके भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार !
बहुत जानकारी देने वाला लेख। अच्छा लगा इसे पढ़कर।
आप का लेख विशद जानकारी से सम्पन्न और पठनीय लेख है । इस में भारतीय प्रवासियों की दूसरी तीसरी पीढी के मन और व्यवहार के बारे में कुछ नहीं कहा गया है । वहां अपनी जडों से कटे बाबी जिन्दल जैसे लोग भी होंगें जो सफलता के लिए थर्म भी बदल लेते हैं ।
सिर्फ़ धार्मिक परिवर्तन नहीं अनेकानेक बदलाव यहाँ दूसरी पीढ़ी में साफ़ दिख रहे हैं । दूसरी, तीसरी पीढ़ी पर किसी अन्य दिवस जानकारी साझा करूँगी ।
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