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होली की रंगीन यादें ..." पिया के घर में पहला दिन "
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मेरी अम्मा श्रीमती सुशीला नरेंद्र शर्मा की हमे सुनायी हुई यह यादें आपके संग बाँट रही हूँ।
मेरी अम्मा सुशीला का विवाह प्रसिध्ध गीतकार नरेंद्र शर्मा के संग , सन १९४७ की १२ मई के दिन , छायावाद के मूर्धन्य कविवर श्री सुमित्रानंदन पन्त जी के आग्रह से बंबई शहर में संपन्न हुआ था।
पन्त जी अपने अनुज समान कवि नरेंद्र शर्मा के साथ बंबई शहर के उपनगर माटुंगा के शिवाजी पार्क इलाके में रहते थे। हिन्दी के प्रसिध्ध साहित्यकार श्री अमृतलाल नागर जी व उनकी धर्मपत्नी प्रतिभा जी ने कुमारी सुशीला गोदीवाला को गृह प्रवेश करवाने का मांगलिक आयोजन संपन्न किया था।
सुशीला , मेरी अम्मा अत्यंत रूपवती थीं और दुल्हन के वेष में उनका चित्र आपको मेरी बात से सहमत करवाएगा ऐसा विशवास है।
विधिवत पाणि -- ग्रहण संस्कार संपन्न होने के पश्चात वर वधु नरेंद्र व सुशीला को सुप्रसिध्ध गान कोकिला सु श्री सुब्बुलक्ष्मी जी व सदाशिवम जी की गहरे नीले रंग की गाडी जो सुफेद फूलों से सजी थी उसमे बिठलाकर घर तक लाया गया था।
द्वार पर खडी नव वधु सुशीला को कुमकुम से भरे एक बड़े थाल पर खड़ा किया गया और एक एक पग रखतीं हुईं लक्ष्मी की तरह सुशीला ने गृह प्रवेश किया था। तब दक्षिण भारत की सुप्रसिध्ध गायिका सुश्री सुब्बुलक्ष्मी जी ने मंगल गीत गाये थे। मंगल गीत में भारत कोकिला सुब्बुलक्ष्मी जी का साथ दे रहीं थें उस समय की सुन्दर नायिका और सुमधुर गायिका सुरैया जी भी !
विवाह की बारात में सिने कलाकार श्री अशोक कुमार, दिग्दर्शक श्री चेतन आनंद, श्री विजयानंद, संगीत निर्देशक श्री अनिल बिस्वास, शायर जनाब सफदर आह सीतापुरी, श्री रामानन्द सागर , श्री दिलीप कुमार साहब जैसी मशहूर कला क्षेत्र की हस्तियाँ शामिल थीं।
सौ. प्रतिभा जी ने नई दुल्हन सुशीला को फूलों का घाघरा फूलों की चोली और फूलों की चुनरी और सारे फूलों से बने गहने , जैसे कि , बाजूबंद, गलहार, करधनी , झूमर पहनाकर सजाया था।
कवि शिरोमणि पन्त जी ने सुशीला के इस फुल श्रुंगार से सजे रूप को , एक बार देखने की इच्छा प्रकट की और नव परिणीता सौभाग्यकांक्षिणी सुशीला को देख कर वे
बोले ' शायद , दुष्यंत की शकुन्तला कुछ ऐसी ही लगीं होंगीं ! '
बोले ' शायद , दुष्यंत की शकुन्तला कुछ ऐसी ही लगीं होंगीं ! '
ऐसी सुमधुर ससुराल की स्मृतियाँ सहेजे अम्मा हम ४ बालकों की माता बनीं उसके कई बरसों तक मन में संजोये रख अक्सर प्रसन्न होतीं रहीं और ये सुनहरी यादें हमारे संग बांटने की हमारी उमर हुई तब हमे भी कह कर सुनाईं थीं। जिसे आज दुहरा रही हूँ।
सन १९५५ से कवि श्री नरेंद्र शर्मा को ऑल इंडिया रेडियो के ' विविध भारती ' कार्यक्रम जिसका नामकरण भी उन्हींने किया है उसके प्रथम प्रबंधक, निर्देशक , निर्माता के कार्य के लिए भारत सरकार ने अनुबंधित किया था। इसी पद पर वे १९७१ तक कार्य करते रहे। उस दौरान उन्हें बंबई से नई देहली के आकाशवाणी कार्यालय में स्थानांतरण होकर कुछ वर्ष देहली रहना हुआ था।
हमारे भारतीय त्यौहार ऋतु अनुसार आते जाते रहे हैं। सो इसी तरह एक वर्ष ' होली ' भी आ गयी। उस साल होली का वाकया कुछ यूं हुआ ...
नरेंद्र शर्मा को बंबई से सुशीला का ख़त मिला ! जिसे उन्होंने अपनी लेखन प्रक्रिया की बैठक पर , लेटे हुए ही पढने की उत्सुकता से चिठ्ठी फाड़ कर पढने का उपक्रम किया ! किन्तु, सहसा , ख़त से ' गुलाल ' उनके चश्मे पर, हाथों पे और रेशमी सिल्क के कुर्ते पे बिखर , बिखर गया ! उनकी पत्नी ने बम्बई नगरिया से गुलाल भर कर यह ख़त भेज दिया था और वही गुलाल ख़त के लिफ़ाफ़े से झर झर कर गिर रहा था और उन्हें होली के रंग में रंग रहा था ! आहा ! है ना मजेदार वाकया ?
नरेंद्र शर्मा पत्नी की शरारत पे मुस्कुराने लगे थे !
इस तरह दूर देस बसी पत्नी ने , अपने पति की अनुपस्थिति में भी उन के संग ' होली ' का उत्सव , गुलाल भरे संदेस भेज कर के पवित्र अभिषेक से संपन्न किया ! कहते हैं ना , प्रेम यूं ही दोनों ओर पलता है
हमारे भारतीय उत्सव सर्वथा भारतीयता के विशिष्ट गुण लिए हुए हैं जिन्हें परदेस में बसे हर प्रवासी हसरत भरे दिल से याद करता है।
जैसे आज अमरीकी धरती पे रहते हुए मैं याद कर रही हूँ और आप सभी के लिए सस्नेह, एक दमकता सा गुलाल का टीका भेज रही हूँ , होली मुबारक हो !
सुशीला जी |
- लावण्या शाह
From : http://rashmiravija.blogspot.in/2013/03/blog-post_23.html
3 comments:
बहुत सुन्दर संस्मरण, रश्मिजी के ब्लॉग में भी पढ़ चुके थे, पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा।
congratulation for your wonderful life journey
Ashok Khant
www.akhant.wordpress.com
अत्यंत सुंदर संस्मरण💐
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