वेदना की सीमाओं से परे
एक दबी चीख सुनी क्या
' निर्भया ' खामोश है अब
क्या कहे ? कह चुकी सब
यातनाओं से परे जो भी सहा
मौत से आँख मिलाये पड़ी
' नारी ' होने की सजा
मौत से भी बदतर है
शब्द नहीं संभव जहां
उस घोर यन्त्रणा से परे
निर्भया अभया रहेगी
निर्भ रा , अब सो रहेगी
यांत्रिकी उपचार सारे
चलते रहेंगें जब तक
सांस आतीं जातीं रहेंगीं
हर प्रार्थना में तुम रहोगी
हर दुआ तुम तक चलेगी
हे भारत की बिटिया
हम सब तुम्हारे संग दोषी
न बदला समाज अगर
न किसी की बहन बेटी
सुरक्षित जीवन जियेगी
- लावण्या
दिल्ली में सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई लड़की ज़िंदगी की जंग हार गई है. हालत बिगड़ने के बाद उसे गुरुवार को सिंगापुर भर्ती कराया गया था जहाँ अब से कुछ देर पहले डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
11 comments:
निःशब्द हूँ!
दुखद...
दुखद !
नितांत दुखद, ऐसा तो शायद पाषाण युग मे भी नही होता होगा.
रामराम.
मन दुखी हो गया..
sahi kahan aapane .. mahilayo ko nari hone ke hi saja milti hai.. http://womenempowerment.jagranjunction.com/2012/12/29/%E0%A4%B5%E0%A4%9C%E0%A4%B9-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A4%BF/
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (बिटिया देश को जगाकर सो गई) पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
dardnaak... ham sharminda hain :(
बेहद दुखद एयर हृदयविदारक.
निर्भया को भावपूर्ण श्रद्धांजलि
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।
ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...
आखिर कब तक ...
जिंदगी मौत से हारी ...
डर लगता है ,
जाने अब हो किसकी बारी ...
सोते सोते क्या वो ,
जागा गयी इस देश को ..
बस यही दुविधा है मन की ..
क्या अब कुछ बदलाव होगा ..
या बस सब यु ही खो जायेगा ..
फिर कही कुछ ऐसा होगा ..
और देश फिर हिल जायेगा ...
जिंदगी मौत से हारी ...
डर लगता है ,
जाने अब हो किसकी बारी ...
आज कोई अनजाना था ..
जाने कब आ जाये अपनों की बारी ...
क्या तब जागेंगे हम ...
नहीं सह सकते अब ...
शासन परशासन तुम जगोगे कब ...
तुमको तो मिली सुरक्षा पूरी ...
मगर ये जनता क्या करे बेचारी ...
जिंदगी मौत से हारी ...
डर लगता है ,
जाने अब हो किसकी बारी ...
-AC
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