Thursday, December 6, 2012


हे माँ ! दे मुझे वरदान ..

घना जो अन्धकार हो तो हो  रहे, हो रहे 
तिमिराच्छादित हो निशा भले हम वे सहें  
चंद्रमा अमा का लुप्त हो आकाश से तो क्या 
हूँ चिर पुरातन, नित नया रहस्यमय बिंदु मैं 
हूँ मानव ! ईश्वर का सृजन अग्नि शस्य हूँ मैं! 

काट तिमिर क्रोड़ फोड़ तज  कठिन कारा , 
नव सृजन निर्मित करूं निज कर से पुनः मैं !
हैं बल भुजाओं में  वर शाश्वत शक्ति पीठ का  
हे माँ ! दे मुझे वरदान ऐसा हूँ शिशु अबोध तेरा  
कन्दराएँ फोड़ निर्झर सा बहूँ  ऐसा वरदान दे !

चन्द्र सूर्य तारक समूह सृष्टि के कण कण पर 
तेरा है सहज अधिकार सर्वत्र हे माँ स्वयं प्रभा 
ब्रह्मांड की सृजन दात्री हैं मेरी माँ अंबे भवानी 
तुझ से ही प्रलय या नव विहान होते साकार ! 
हर सर्जन विसर्जन तेरी भृकुटी का हैं विलास I 

अमावस्या की कालिमा खंडित ये तेरी कृपा  
दीपकों से जगमगा उठे घनी अंधियारी निशा 
धर परम शुभ मंगल स्वरूप महालक्ष्मी प्रकाशित 
आतीं हर घर कृपा का अमृत रस बिखरातीं! 

श्री राम, बुध्ध, महावीर नानक देव ऋषि गण 
तेरी कृपा याचते दीप पर्व उत्सव सभी मानते   

हो शुभ मंगल सदा सुख धरती के जन जन पर 
हों शान्ति पूर्ण अस्तित्त्व ये कर बध्ध अंजलि 
लिए माँ , हम  शुभ आशिष तुझ से मांगते हैं !

- लावण्या दीपक शाह 
2012 ओहायो , यु। एस ए I 

8 comments:

वाणी गीत said...

माँ सब पर करम करें !
आभार !

प्रवीण पाण्डेय said...

सर्व सुमंगल, ऐसा हो जग।

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर ..
हमारी प्रार्थना हर वक्‍त विश्‍व कल्‍याण की होती है

Gyan Dutt Pandey said...

जय हो, सबका शुभ हो मां! सब सुखी हों। सब प्रसन्न हों। सब सृजन करें।

Kulwant Happy said...

बहुत बढ़िया सुंदर रचना

Jack said...

बचपन में पढी थी यह कविता. आज भी पढकर अच्छा लगा. http://days.jagranjunction.com/

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...


हे माँ ! दे मुझे वरदान ..
बहुत सुंदर रचना ...

अदरणीया लावण्या जी
सादर प्रणाम !
आपकी रचनाओं से हिंदी ब्लॉगजगत प्रकाशमान होता रहे ...
आभार!

नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Jack bhai -- > Ye Kavita 2012 mei likhee huee meri Kavita aapne Bachpan mei kaise padh lee ?

Please read till the end of a poem to ' VERIFY ' the name of the poet or poetess ...

This poem is written by ME ! - Lavanya D. Shah