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क्या है ये ' फेसबुक ' ? Face Book is Like this RIVER where Many Lions or
Consumers or users , all drink together :)
अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को यह समझाना चाहें कि जिसने ' फेसबुक ' नाम पहले कभी ना सुना हो या उस व्यक्ति का
कम्प्यूटर से दूर दूर तक का कोयी वास्ता न हो , तब उसे किस तरह समझायेंगें कि ' फेसबुक ' क्या चीज़ है ?
क्या कहेंगें उस व्यक्ति से ? क्या ' व्याख्या ' करेंगें आप इस ' फेसबुक ' की ?
अगर ये आप आलेख वेब - पत्रिका में , कम्प्यूटर के जरिए पढ़ रहें हैं तब यही मान कर आगे बढ़ते हैं कि,
आप २१ वीं सदी के तकनीकी आविष्कारों व उपकरणों से भली भांति परिचित हैं I
खैर ! जो इसका नियमित उपयोग करते हैं, उनके लिए तो ' फेसबुक ' दैनिक क्रिया - कर्म का एक सहज हिस्सा है I
जो व्यक्ति साक्षर हैं , विश्व कुटुंब के सदस्य हैं उनके लिए दूर संचार का' फेसबुक ' एक सशक्त माध्यम एवं उपकरण है I
आईये अब ' फेसबुक ' के इतिहास से वाकिफ हो लें -- फेसबुक एक सामाजिक नेटवर्क है I
WWW __ वर्ल्ड - वाईब वेब , माने विश्व जाल पर एक दुसरे से सम्पर्क का साधन है यह ' फेसबुक ! '
History of Face Book in Brief : फेसबुक का इतिहास नया है I
फेसबुक का आरम्भ फरवरी २००४ से हुआ जब फेसबुक इंक नाम से , यह कम्पनी रजिस्टर्ड हुई थी I
मई महीने की २०१२ तारीख तक आते आते , ९०० मिलीयन व्यक्ति फेसबुक का उपयोग नियमित रूप से कर रहे हैं I
ये जानकारी प्राप्त हुई है और यहाँ सबसे पहले तो ई - मेल से सदस्यता प्राप्त कर के व्यक्ति अपनी स्वयम की प्रोफाईल माने -व्यक्तिगत छवि या रूप रेखा, व्यक्ति की पसंद - नापसंद , परिवार के व्यक्ति, या मित्र , कुछ ऐसे ख़ास ग्रुप
जहां लोगों को एक से शौक हों , कार्य के बारे में, अपने बारे में इत्यादी इत्यादी ऐसी बहुत सी चीजों के बारे में
जानकारी दर्ज करता है I इसे व्यक्ति का प्रोफाईल कहते हैं I
यहाँ आप अपने चित्रोँ को भी स्थान दे सकते हैं I दुनियाभर के तमाम लोगों से अपनी बात, चित्र, जानकारियाँ , अपनी होबी , राजनैतिक सोच वगैरह साझा कर सकते हैं I
कयी प्रकार की सुविधाएं देता है यह फेसबुक का प्लेटफोर्म I आप रोजाना विश्व के हर कोने में बसे विविध देश के रहनेवालों की रोज की जिंदगानी ,उनकी गतिविधियों के बारे में , मात्र कुछ पल में , आसानी से जो फेसबुक पर लिखा जाता है, या दर्शाया जाता है उसे पढ़ लेते हैं I
हर पल ' फेसबुक ' अप - डेट ' होता रहता है और पुरानी सामग्री भी सहेजे रखता है !
जी हां , दूर संचार की यह सामाजिक क्रान्ति, एक अजूबे से कम नहीं ! जहां ' फेसबुक ' जैसी सम्पर्क साधन की आधुनिक विधा के द्वारा आप ' विश्व - चौपाल ' पर बैठे हुए , पूरे विश्व में फैले सदस्यों के बारे में रोजाना जानकारियाँ हासिल करते रहते हैं !
अब अगला प्रश्न सामने आता है , कि, ये ' फेसबुक ' बनाया किसने ?
WHO CREATED FACE BOOK ?
तो उत्तर है --> मार्क ज़ुच्केर्बेर्ग ने अपने सहपाठीयों, एडुँर्दो सवेरिन , दुस्तीं मोस्कोवित्ज़ और च्रिस हुघेस के साथ फेसबुक की स्थापना की I
सन २००९ तक आते आते, फेसबुक सर्वाधिक उपयोग में ली जानेवाली , व्यक्ति से व्यक्ति के सम्पर्क की वेब साईट बन चुकी थी I
सर्व प्रथम फेसबुक की सदस्यता एक मात्र हार्वर्ड विश्व विद्यालय के छात्रों तक सीमित थी I फिर धीरे धीरे, उत्तर अमरीका की सबसे नामचीन यूनिवर्सिटी जैसे, स्टेनफर्ड तथा बोस्टन विश्व विद्यालय के छात्रों के लिए भी सदस्यता को खोल दिया गया I उसके बाद , १३ वर्ष की आयु से ऊपर के व्यक्ति के लिए फेसबुक - सदस्यता स्वीकृत हुई I
मई २०११ के कांज़ुमेर रिपोर्ट्स सर्वे के अनुसार , ७ .५ मिलियन १३ साल से नीचे की उम्र के एवं ५ मिलीयन , १० साल के नीचे की उम्र के शिशु भी आज , फेसबुक के सदस्य हैं I यह प्रणाली ' फेसबुक कम्पनी ' ने शुरुआत में जो वादा किया था उसके विरुध्ध है और इस कारण चिंता भी है I
हाल ही में, न्यू - योर्क स्टोक एक्सचेंज ने फेसबुक के शेर को, [ आईपीओ ] को बाज़ार में रखा है I
कुछ लोगों को फेसबुक से एतराज है उनका कहना है कि, ' फेसबुक ' ' फ्रोड ' है I याने ' एक फरेब ' या छलावा ' है एक ऐसा आभासी मंच है ये फेसबुक , जहां लोग अपनी खुद की झूठी तारीफें लिखते हैं और इन झूठी तारीफों को स्वयम भी , सच मानने लगते हैं !!
शायद ७५ % झूठ हो और महज २५ % सच ! प्रश्न ये उभरता है , कि, क्या ऐसा नजरिया दुनिया जिसने परखी है उसके अंदाज से सही है ?
Some Opinions & Views about Face Book :
कुछ व्यक्तियों का मत है , कि फेसबुक पर , व्यक्तियों को महत्त्व देने की
अपेक्षा विचार/चिन्तनो/समाचारों को महत्त्व देना चाहिए,वह भी विवेक की
कसौटी पर कस कर..... कौन क्या है, इससे क्या फर्क पड़ता है या पड़ना
चाहिए... अंगरेजी में संपर्क के लिए "फ्रेंड" ऑप्शन दिया
हुआ है,तो मजबूरी है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि, संपर्क लिस्ट के सभी मित्र हैं.
एक विचार यह भी है कि , फेसबुक दूर संचार के सशक्त माद्यम के रूप में , अभी विकसित हो रहा है I अत : इस माध्यम द्वारा क्या सही है , कौन से नियम यहाँ लागू हों , इत्यादी बातें भी विकसित हो रहीं हैं I
कुछ लोगों को अपनी बौध्दिक गरिमा व अपने मंतव्यों के लिए खुला मंच मिला हुआ है जो फेसबुक ने उन्हें सदस्यता देकर , प्रदान किया है I तो किसी के लिए यह राजनैतिक हथियार है ! फेसबुक पर " व्यक्तिगत स्वतंत्रता " भी है !
जिस तरह सभ्य समाज में रहते हुए, व्यक्ति अपना बर्ताव भी सभ्य रखता है I वैसी ही अपेक्षा ' फेसबुक ' पर आप दूसरों से मेल मिलाप के दौरान करते हैं I कभी ये आदान - प्रदान नितांत निकम्मा भी हो सकता है I हंसी ठिठोली भी इसका हिस्सा है I तो कभी महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ भी आप तक पहुंचतीं हैं I
हर फेसबुक सदस्य को पूरी पूरी स्वतंत्रता है कि वह क्या पढ़ें , और क्या न पढ़ें , क्या पसंद करे, और क्या नापसंद करें, क्या सहेजे और क्या मिटा दे या डीलीट करे ! '
फेसबुक ' गोया एक जादुई चिराग से निकला अल्लादीन का सेवक 'जिन्न ' है !
जो नित नये रूप भरता है हरेक नई मांग को चुटकियों में पूरी करता है और खामोश होकर एक आकाश की तरह सम्पूर्ण विश्व को एक जाल से जोड़े हुए भी रखता है I कभी तो फेसबुक, गंभीर , गहरी व चिंताजनक बातों , उनसे जुड़े समाचारों व उन पे विमर्श को भी स्थान देता है I तो कभी किसी कवि की कविता, या आलेख या पुस्तक से भी आपको परिचित करवाता है I तो कभी किसी कलाकार के चित्र या फोटोग्राफ को भी आपके सामने ला कर रख देता है I सुंदर मधुर गीतों को आप यू - ट्यूब से लिंक करने पर सुन पाते हैं और दूर सुदूर देशों के बदलते हुए मौसम के साथ मुस्कुराते अपने परिवार के सदस्यों के चित्रोँ को देख पाते हैं I या पुराने बिछुड़े सहपाठी , पडौसी और उनके बच्चों को मित्र रूप में पाकर हर्षित होते हैं ! फेसबुक में कोयी बहुत कड़े नियम नहीं हैं I हां अगर आपको किसी सदस्य की लिखी बात से , शिकायत हो ,
तो उसे दर्ज भी करने का हक्क है और फेसबुक उस की जांच भी करता है I यहाँ युवा पीढी , नित नये दोस्त बनाने में मग्न है और अगर पाबंदी है तो हर सदस्य को अपने ऊपर यह पाबंदी या रोक स्वयम लगानी है I इस बात को देखते हुए फेसबुक की कार्य क्षमता एवं कार्य प्रणाली के नित विकसित होते स्वरूप को देख कर , हैरानी के साथ साथ एक मुस्कान भरी असमंजसता भी पैदा हो ही जता है !
आईये अब, फेसबुक पर लिखे हुए , कुछ अभिप्राय भी सुन लिए जाएँ ...
कोयी कहता है ....
अगर मैं रोज़ मेरी सोच को , दूसरों के लिए ' जीवन जीने के राज़ '
इस शीर्षक से पेश करूं , तब भी , लोग मेरा लिखा
पढेंगे और डिलीट कर देंगे - क्यों ? क्यूं कि , उन्हें ऐसा करने की
सम्पूर्ण स्वतंत्रता है ! यही ' व्यक्ति - स्वतंत्रता ' है !
दुसरे सदस्य का कहना है , सोचें और इन के बारे में लिखें --
कई उप विषय हैं -->
जैसे कि, मीडिया का बदलता स्वरूप और इन्टरनेट
व्यक्तिगत पत्रकारिता और वेब मीडिया
वेब मीडिया और हिंदी
हिंदी के विकास में वेब मीडिया का योगदान
भारत में इन्टरनेट का विकास
वेब मीडिया और शोसल नेटवरकिंग साइट्स
लोकतंत्र और वेब मीडिया
वेब मीडिया और प्रवासी भारतीय
हिंदी ब्लागिंग स्थिति और संभावनाएं
इंटरनेट जगत में हिंदी की वर्तमान स्थिति
हिंदी भाषा के विकाश से जुड़ी तकनीक और संभावनाएं
इन्टरनेट और हिंदी ; प्रौद्योगिकी सापेक्ष विकास यात्रा
व्यक्तिगत पत्रकारिता और ब्लागिंग
हिंदी ब्लागिंग पर हो रहे शोध कार्य
हिंदी की वेब पत्रकारिता
हिंदी की ई पत्रिकाएँ
हिंदी के अध्ययन-अध्यापन में इंटरनेट की भूमिका
हिंदी भाषा से जुड़े महत्वपूर्ण साफ्टव्येर
हिंदी टंकण से जुड़े साफ्टव्येर और संभावनाएं
वेब मीडिया , सामाजिक सरोकार और व्यवसाय
शोसल नेटवरकिंग का इतिहास
वेब मीडिया और अभिव्यक्ति के खतरे
वेब मीडिया बनाम सरकारी नियंत्रण की पहल
वेब मीडिया ; स्व्तंत्रता बनाम स्वछंदता
इन्टरनेट और कापी राइट
वेब मीडिया और हिंदी साहित्य
वेब मीडिया पर उपलब्ध हिंदी की पुस्तकें
हिंदी वेब मीडिया और रोजगार
भारत में इन्टरनेट की दशा और दिशा
हिंदी को विश्व भाषा बनाने में तकनीक और इन्टरनेट का योगदान
बदलती भारती शिक्षा पद्धति में इन्टरनेट की भूमिका
लोकतंत्र , वेब मीडिया और आम आदमी
सामाजिक न्याय दिलाने में वेब मीडिया का योगदान
भारतीय युवा पीढ़ी और इन्टरनेट
ऐसे प्रश्न भी उभरते है कि,
क्या फ़ेसबुक पर अपना स्वयं का प्रचार प्रसार या फिर अपने लेखन को ढोल
पीटना, बाज़ारवाद का हिस्सा है या नहीं ?
तो उत्तर में लोगों के अभिप्राय ऐसे हैं ,
ये बाजारवाद क्या है ? मैंने हिंदी के कई लेखकों को बाजारवाद,
ग्लोबलाइजेशन जैसे शब्दों को बेवजह खर्च करते हुए देखा है...
आगे ये अभिप्राय भी सुन लें ....
फर्क है नज़रिए का - फेसबुक के जरिए हर किसी के
रचनात्मक कार्यों का पाता सब को आसानी से लग जाता है
वरना यह संभव नहीं है कि दुनिया भर के लोगों
को मेल भेजा जाये या फ़ोन किया जाये .
कोइ कहता है कि,
यहाँ फेसबुक में मित्रों को केवल सूचित करने का सुख है. यही सामाजिकता है फेसबुक बाजारवाद का हिस्सा नहीं है बाज़ार कहीं अलग सजता है.
यहाँ अपने दुःख-सुख है, छोटीमोटी उपलब्धियां है.
इसे सहज रूप में देखें भाई. मसीहाई अंदाज़ में नहीं.
यह काम उन माफियाओं के लिए छोड़ दे, जो बाजारवाद के
बिना ज़िंदा नहीं रहते. जो साहित्य और समाज में बड़े-बड़े खेल करते हैं.
फेसबुक का माध्यम तो 'नवप्यारवाद' का है. यहाँ बाजारवाद कहाँ से आ गया?
और जब मित्रों का परिवार है तो हम अपनी कोइ उपलब्धि, खुशी या दुःख
मित्रों में शेयर करते हैं, तो इसमें कोइ बुरी नहीं. इसे बाजारवाद का नाम न दें....
कोइ कहता है ,
पुस्तक मेले के दौरान तो फ़ेसबुक एक मण्डी ही बन गई थी। हर लेखक बता रहा था कि मेरी पुस्तक का विमोचन अमुक
कर रहा है तो उसका अमुक -
सब नामवर लोग लोकार्पण कर रहे थे... हम बस इस मण्डी की ख़बरे फ़ेसबुक पर पढ़ने को अभिशप्त थे, चाहे हमारी
पढ़ने की इच्छा हो या ना हो....
तो प्रतिवाद में स्वर उठता है कि ,
बिलकुल नहीं ! ये एक मंच है विचारो , भावनाओ घटनाओ ख़ुशी -गम शेयर करने का .
तब किसी अगले ने व्यंग में कहा कि ,
फ़ेसबुक की नई स्कीम - प्रत्येक फ़ेसबुक मेम्बर को एक ढफली मुफ़्त दी जाएगी और एक राग सिखलाया जाएगा
ताकि हर मेम्बर अपनी ढफली अपना राग की कहावत
चरित्रार्थ कर सके।
अंत में , ' फेसबुक ' समाज का दर्पण है -- यहाँ एक विकसित होते समाज की भांति , अच्छाई व बुराई दोनों हैं -
भविष्य में ' फेसबुक ' से क्या हासिल होगा ये तो भविष्य के आवरण में छिपा हुआ है ...आशा तो यही करेंगें कि, आदान
- प्रदान एवं विचार विमर्श द्वारा
सामाजिक सुधार संभव हो पायेगा और अच्छाई की बुराई पर विजय होगी ! सत्यमेव जयते सत्य सिध्ध होगा ...
और हां , मैं भी ' फेसबुक ' की एक सदस्या हूँ !
सम्पर्क :
-- लावण्या दीपक शाह