ॐ
प्रीत की अलपनाएं सजी हैं प्रिये
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ
मौन हो तुम , कहूंगा तुम्हें बार बार
आ भी जाओ प्रिये आभी जाओ
थे मूंदें नयन में जो सपने पले
वे सपने मैंने औ' तुमने बुने
सजा आरती साँसों की ओ प्रिये
वे पल छीन जो मैंने औ तुमने गिने
सुख हो या दुःख वे हमने पल जिए
अब ना दूरी रहे सफर पूरा ये कटे
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ
नील नभ तारक सी जगमगाती
हरी दूब सी सिहर लहराती
सिंदूरी संध्या सी हो लजाती
शुक्र चन्द्र युति झिलमिलाती
धानी चुनरिया सरसराती हुई
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ
नव रंग नव रस नव उमंग लिए
प्रीत की अलपनाएं सजी हैं प्रिये
कल्पना सी सजी अलपनाएं हैं
प्रीत के हर रंग हैं तुम्हारे प्रिये
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ
- लावण्या
8 comments:
नव रंग नव रस नव उमंग लिए
प्रीत की अलपनाएं सजी हैं प्रिये
कल्पना सी सजी अलपनाएं हैं
प्रीत के हर रंग हैं तुम्हारे प्रिये
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ
बहुत खूब !!
बड़ी प्रसन्न्ता हुई कविता पढ़कर
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चिरन्तन प्रीति -चिर पुरातन चिर नवीन !
बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ
मेरे ब्लॉग
जीवन विचार पर आपका हार्दिक स्वागत है।
प्रीत की अलपनाओं का सुन्दरतम चित्रण..
बहुत ही सरस और आत्म मुग्ध करने वाली कविता . बहुत बहुत शुभ कामनाएं
शिवे प्रकाश मिश्र
http://shivemishra.blogspot.com
आलोकिक ... जीवन में प्रेम के रंगों को सार्थक करती रचना ...
bhot pyari dil ko chhu lene vali kavita hai..aapki
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