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Ali Gurshap Khan | |
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Sultan Alauddin Khilji | |
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मेरी, आपकी, अन्य की बात
Ali Gurshap Khan | |
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Sultan Alauddin Khilji | |
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इंग्लैंड की राज परम्परा और साम्राज्ञी एलिजाबेथ
इंग्लैंड की राजधानी एवं प्रमुख शहर लंदन है । स्कोत्लैंड का प्रमुख शहर एडीनबर्ग है तो वेल्स का मुख्य शहर कार्डीफ है ।१ जनवरी सन १८०१ की तारीख आते आते आयरर्लैंड के कुछ हिस्से भी यु. के . में शामिल हुए । अब सन १९२७ में यह युनाटेड किंगडम ग्रेट ब्रिटेन और नोर्धंन आयर लैंड का सयुक्त राष्ट्र संघ बना । इस देश ने विश्व के लगभग सभी भू - भागों पर शासन किया है और आज का सुपर पावर उत्तर अमरीका कि जिसकी १३ कोलोनी या प्रांत भी ब्रिटीश सता के हाथ में थी । भारत पर भी ग्रेट - ब्रिटेन का साज था । सन १७४० से १७५० के बीच भारत में , फ्रांस की कम्पनी ईस्ट इंडीया कम्पनी फ्रांस और ईस्ट इंडीया कम्पनी ग्रेट ब्रिटेन के बीच भारत पर हुकुमत जमाने की कड़ी स्पर्धा जारी रही । रोबर्ट क्लाईव ने फ्रांस की सेना को प्लासी की और बक्सर की लड़ाई में हरा कर बंगाल में अपना डेरा जमा दिया । पृथ्वी के सुदूर क्षेत्र ऑस्ट्रेलिया भूखंड के पूर्वी छोर को केप्टन कूक ने , सन १७७० में खोज निकाला और १७८७ में ब्रिटेन ने इसे , उम्र कैद की सजा पाए कैदियों के लिए चुना और कैदीयों को ऑस्ट्रेलिया भेज दिया गया । सन १७०७ में स्थापित हुई ग्रेट ब्रिटेन की पार्लियामेंट राज्य सभा या हाऊस ऑफ़ लोर्ड और लोक सभा माने हाउस ऑफ़ कोमंस से बनती है जहां कयी सभ्य या तो मनोनीत पदों पर आसीन हैं या चुनाव लड़ कर सभ्यता प्राप्त करते हैं ।
ये ग्रेट ब्रिटेन का राष्ट्रीय ध्वज है ।
लन्दन शहर हरा भरा है . ये एक अतिविशाल और वैभवशाली एवं समृध्ध नगरी है । जहां एतिहासिक , सांस्कृतिक व कला के साथ साथ ,कई तरह के उद्योग और व्यापार की कई बड़ी बड़ी इमारतें हैं । एक सैलानी के लिए, लन्दन शहर का प्रथम दर्शन , काफी रोमांचकारी अनुभव दे जाता है और उस अनुभव पर आप , कई सारे आध्याय लिख सकते हैं ।
महारानी विक्टोरिया के आदेश पर , अंग्रेजों द्वारा चलायी जा रही सरकार - ईस्ट इंडीया कंपनी के हाथों से निकाल कर , महारानी ने स्वयम अपने हाथों में भारत की बागडोर लेकर , भारत की साम्राज्ञी बनने का ऐलान किया । वह एतिहासिक तारीख थी १ जनवरी सन १८७७ ! भारत का शासन ग्रेट ब्रेटन की नजर में ' मस्तिष्क मुकुट का सबसे चमकेला मणि ' या अंगरेजी में कहें तो , ' ज्वेल इन ध क्राउन ' सा था । उस वक्त , भारत भूमि पर भी कयी छोटे - बड़े राज परिवार, अपनी स्वतंत्र सता लिए , अपने राज सिंहासनों पर आसीन थे । ट्रावन्कोर राज्य के महाराज ने महारानी विक्टोरिया के लिए, भव्य हाथीदांत से बना हुआ सिंहासन भेंट किया था ।उसी पर महारानी विक्टोरिया विराजमान हुईं थीं भारत की महारानी विक्टोरिया ने अपने सेवक अब्दुल करीम से हिन्दुस्तानी सीखने का प्रयास भी किया था । प्रस्तुत हैं महारानी के संग्रह से प्राप्त कुछ दुर्लभ चित्र :अब्दुल करीम
ग्रेट ब्रिटन की आधुनिक काल में सता रूढ़ महारानी ऐलिज़ाबेथ का विवाह राज कुमार फीलीप्स के संग सन १९४७ में हुआ था तब महात्मा गांधी ने अपने हाथों से बुनी हुई खादी के तागों से गुंथी एक अनमोल शोल , जिसके मध्य में कढाई से लिखा हुआ था ' जय - हिंद ' यह गांधी जी के आदेशानुसार बनवा कर , उन्हें विवाह की भेंट स्वरूप उपहार में भेजी थी देखिये चित्र :
माता:एलिजाबेथ -बोज़ लियोन ( डचेस ओफ योर्क - बाद मेँ राजामाता बनीँ )घर मेँ प्यार का नाम: "लिलीबट "शिक्षा : उनके महल मेँ ही -इतिहास के शिक्षक: सी. एह. के मार्टेन - वे इटन कोलेज के प्रवक्ता थेधार्मिक शिक्षा : आर्चबीशप ओफ केन्टरबरी से पायीबडे ताऊ : राजा ऐडवर्ड अष्टम ने जब एक सामान्य अमरीकी नागरिक एक विधवा, वोलीस सिम्प्सन से प्रेम विवाह कर लिया तब एडवर्ड अष्टम को इंग्लैण्ड का राजपाट छोडना पडा था तब , ऐलिज़ाबेथ के पिता सत्तारुढ हुए - १३ वर्ष की उम्र मेँ , द्वीतीय विश्व युध्ध के समय मेँ , बी.बी.सी. रेडियो कार्यक्रम " १ घँटा बच्चोँ का" मेँ अन्य बच्चोँ को अपने प्रसारित कार्यक्रम से एलिजाबेथ ने हीम्मत बँधाई थी बर्कशायर, वीँडज़र महल मेँ, युध्ध के दौरान निवास किया था
जहाँ भावि पति , राजमुमार फीलिप से उनकी मुलाकात हुई । जो इस मुलाक़ात के बाद , नौसेना सेवा के लिये गए और राजकुमारी उन्हेँ पत्र लिखतीँ रहीँ क्यूँकि उन्हेँ राजकुमार से, प्रेम हो गया था ।सन १९४५ मेँ, नंबर २३०८७३ का सैनिक क्रमांक उन्हें मिला था। सन १९४७ मे पिता के साथ दक्षिण अफ्रीका, केप टाउन शहर की यात्रा की और देश भक्ति जताते हुए रेडियो प्रसारण किया २० नवम्बर, १९४७ मेँ ड्यूक ओफ ऐडीनबोरो, जिनका पूरा नाम है कुँवर फीलिप ( डेनमार्क व ग्रीस के ) , इस राजकुंवर से भव्य विवाह समारोह में , नाता स्थापित हुआ ।
१९४८ मेँ प्रथम सँतान, पुत्र चार्ल्स का जन्म- १९५० मेँ कुमारी ऐन का जन्म -
१९६० मेँ कुमार ऐन्ड्रु जन्मे -१९६४ मेँ कुमार ऐडवर्ड चौथी और अँतिम सँतान का जन्म हुआ१९५१ तक "माल्टा " मेँ भी रहीँ जहाँ फीलिप सेना मेँ कार्यरत थे ।६ फरवरी,१९५२ वे आफ्रीका के केन्या शहर पहुँचे जहाँ के ट्रीटोप होटेल "ठीका" में वे , नैरोबी शहर से २ घंटे की दूरी पर थे वहाँ उन्हेँ बतलाया गया कि उनके पिता की ( नीँद मेँ ) रात्रि को मृत्यु हो गई है सो, जो राजकुमारी पेडोँ पर बसे होटल पर चढीँ थीँ वे रानी बनकर उतरीँ !!राज्याभिषेक का अतिशय भव्य समारोह २ जून १९५२ को वेस्ट मीनीस्टर ऐबी मेँ सम्पन्न हुआजब वे धार्मिक रीति रिवाज से ब्रिटन की महारानी के पद पर आसीन हुईं ।
विश्व का सबसे बड़ा हीरा " कुलियन " है जो ५३० केरेट वजन का है और महारानी एलिजाबेथ के स्केप्टर में लगा हुआ है और भारत से इंग्लैंड पहुंचा कोहीनूर हीरा विश्व का सबसे विशाल हीरा है जिसे एलिजाबेथ की माता ने अपने मुकुट में जड्वाकर पहना था ।कोहीनूर की चमक दमक आज भी वैसी ही बकरार है जैसी सदियों पहले थी ।सन २०१२ , का जून माह है और इंग्लैंड के राज सिंहासन पर महारानी एलिजाबेथ आज भी शान से विराजमान हैं । ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय नेमहारानी के पद पर रहते हुए 6 फरवरी 2012 को 60 वर्ष पूरे किए हैं ।
परंतु आज उनका परिवार कई बदलावों से गुजर चुका है और ना सिर्फ इंग्लैंड में बल्कि संसार भर में अब कई नयी प्रमुख व्यक्तियों के नाम मशहूर हो चुके हैं जैसे बील गेट्स ! जो आज संसार के सबसे धनवान व्यक्ति कहलाते हैं !संसार चक्र , अपने नये दौर से गुजर रहा है । भारत में आज अम्बानी परिवार के वैभव के किस्से सुर्ख़ियों में हैं और विश्व के कयी पहले समृध्ध खे जानेवाले देशों में जैसे ग्रीस आज आर्थिक मंदी के बादल मंडराने लगे हैं । भविष्य के भारत के उत्थान के लिए एवं विश्व के हरेक दलित व गरीब इंसान के लिए सद्भावनाएं लेकर आओ कहें ....जयहिंद !!- लावण्या दीपक शाह
विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद है । अथर्व वेद , साम वेद व यजुर्वेद ऋग्वेद के बाद प्रकाश में आये । अथर्व वेद के प्रणेता ऋषि अथर्ववान हैं । अथर्व वेद में प्रयुक्त कयी सूक्त ऋग्वेद में भी सम्मिलित हैं । ऋषि अथर्ववान ने ‘ अग्नि या अथर्व ‘ पूजन की विधि इन सूक्तों में बतलायी हैं । पिप्पलाद ऋषि व शौनक ऋषि ने अथर्व वेद में सूक्त लिखे हैं । शौनक ऋषि से पिप्पलाद ऋषि की शाखा अधिक प्राचीन हैं । ९ शाखाएं जो पिप्पलाद ऋषि द्वारा प्रणत हुईं हैं उन में से २ आधुनिक समय तक आते हुए अप्राप्य हो चुकीं हैं । पिप्पलाद ऋषि के तथ्यों को आधार बनाकर उन पर , आगे पाणिनी व पतंजलि ने भाष्य पर लिखा । भाष्य ‘ ब्रह्मविद्या ‘ का ज्ञान समझाते हैं और यही भाष्य , आगे चलकर ‘ वेदान्त ‘ की पूर्व पीठिका बने । भारतीय सनातन धर्म प्रणाली के यह तथ्य एवं सत्य , संस्कृति , भाषा एवं धर्म के प्रथम आध्याय हैं ।योगाचार्य पतंजलि ने २१ शाखाओं का निर्देश दिया है । इन शाखाओं में निर्देशित कुछ नाम इस प्रकार हैं —
१ ) शाकालाका संहिता २ ) आश्वलायन संहिता , कप्पझला सूक्त , लक्ष्मी सूक्त , पवमान सूक्त , हिरण्य सूक्त, मेधा सूक्त, मनसा सूक्त इत्यादी
जिन्हें आचार्य आश्वालयन, महीदास , तथा पातंजली ने प्रतिपादीत किया ।
विवेक चूडामणि शंकराचार्य विरचित ग्रन्थ आगे चलकर , पातंजलि योगसूत्र से प्रभावित होकर उन्हीं का ज्ञान लिए रचे गये हैं ।
पातंजलि ने योगसूत्र , जिस में अष्टांग योग, क्रिया योग द्वारा चित्त वृत्ति , प्रत्यय संस्कार वासना , आशय , निरोध, परिणाम , गुण व प्र्तिपश्व का व्यक्ति के जीवन से सम्बन्ध किस तरह हैं उस तथ्य की विशद व्याख्या की । जगदगुरु शंकराचार्य का मत है कि ‘ अद्वैतवाद ‘ ब्रह्म का पूर्ण सत्य स्वरूप है ।
कठोपनिषद : संसार का परम सत्य है , जीव की मृत्यु ! योग पध्धति द्वारा मृत्यु पर विजय की कथा कठोपनिशद की विषय वस्तु है । कथानक है कि योगाभ्यास में रत एक बालक , शरीर छोड़ कर , मृत्यु के अधिदेव , यमराज के पास यमलोक पहुँच जाता है और स्वयं यमराज से ‘ मृत्यु ‘ के संबंध में शिक्षा व ज्ञान प्राप्त करता है और ३ दिवस पश्चात, छोड़े हुए शरीर में , पुन: लौट आता है और जीवित हो जाता है !
महर्षि वेद व्यास ने ‘ योग भाष्य ‘ दीये जिस के टीकाकार ‘ वाचस्पति ‘ हुए ।
साँख्य – योग , द्वैत वाद भी योगाभ्यास के अंश हैं ।
३०० वर्ष , ईसा पूर्व की शताब्दी में चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में मौर्य वंश के सृजक चतुर , मंत्री पद पर आसीन चाणक्य या कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ ” अर्थशास्त्र ” में , सांख्य योग और योगाभ्यास पर अपने विचार लिखे हैं और उनके महत्त्व पर भार दिया है । महाभारत कालीन विदुरनीति नामक ग्रन्थ जो विदुर जी ने लिखा है वह ‘ अर्थशास्त्र ‘ की भांति वेदाभ्यास व अन्य विषयों पर ज्ञान पूर्ण माहिती देता है ।
मांडूक्य उपनिषद : १२ मन्त्र समस्त उपनेषदीय ज्ञान को समेटे हैं । जाग्रत , स्वप्न एवं सुषुप्त मनुष्य अवस्था हर प्राणी का सत्य है और इस सत्य के साथ ही निर्गुण पर ब्रह्म व अद्वैतवाद भी जुडा हुआ है । ऊंकार ही हर साधना , तप एवं ध्यान का मूल मन्त्र है यह मांडूक्य उपनिषद की शिक्षा है ।
अथर्ववेद : ‘ गणपति उपनिषद ‘ का समावेश अथर्व वेद में किया गया है । अंतगोत्वा यही सत्य पर ले चलते हुए कहा गया है कि, ईश्वर समस्त ब्रह्मांड का लय स्थान है ईश्वर सच्चिदान्द घन स्वरूप हैं , अनंत हैं, परम आनंद स्वरूप हैं ।
ब्रह्मसूत्र : इस में १०८ उपनिषदों के नाम एवं उन में निहित ज्ञान का समावेश है । काली सनातन उपनिषद में नारद जी ब्रह्मा से प्रश्न करते हैं कि, ‘ द्वापर युग से आगे कलियुग में, संसार सागर किस आधार पर पार कर सकते हैं ? “
तब ब्रह्माजी उत्तर देते हैं कि, ” मूल मन्त्र , महामंत्र का जाप करने से ही कलियुग में संसार सागर पार होगा – और वह मूल मन्त्र है ,
“ हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।। “
ईश्वर के नाम का १६ बार उच्चारण करने से जीव के अहम भाव के १६ आवरणों का छेदन सूर्य की १६ प्रकार की विविध कला रूपी किरणों से आच्छादित जीव को कलियुग के दूषित प्रभाव से मुक्ति प्राप्त होती है । परिणाम रूप स्वरूप ज्ञान का तिमिराकाश छंट कर पर ब्रह्मरूपी सर्व प्रकाशित स्वयम्भू प्रकाश मात्र शेष रहता है । हरि ऊं तत्सत ।
सीता उपनिषद : सीता नाम प्रणव नाद , ऊंकार स्वरूप है । परा प्रकृति एवं महामाया भी वहीं हैं । ” सी ” – परम सत्य से प्रवाहित हुआ है । ” ता ” वाचा की अधिष्ठात्री वाग्देवी स्वयम हैं । उन्हीं से समस्त ” वेद ‘ प्रवाहित हुए हैं ।सीता पति ” राम ” मुक्ति दाता , मुक्ति धाम , परम प्रकाश श्री राम से समस्त ब्रह्मांड , संसार तथा सृष्टि उत्पन्न हुए हैं जिन्हें ईश्वर की शक्ति ‘ सीता ‘ धारण करतीं हैं कारण वे हीं ऊं कार में निहित प्रणव नाद शक्ति हैं I श्री रूप में, सीता जी पवित्रता का पर्याय हैं । सीता जी भूमि रूप भूमात्म्जा भी हैं । सूर्य , अग्नि एवं चंद्रमा का प्रकाश सीता जी का ‘ नील स्वरूप ‘ है । चंद्रमा की किरणें विध विध औषधियों को , वनस्पति में निहित रोग प्रतिकारक गुण प्रदान करतीं हैं । यह चन्द्र किरणें अमृतदायिनी सीता शक्ति का प्राण दायक , स्वाथ्य वर्धक प्रसाद है । वे ही हर औषधि की प्राण तत्त्व हैं सूर्य की प्रचंड शक्ति द्वारा सीता जी ही काल का निर्माण एवं ह्रास करतीं हैं । सूर्य द्वारा निर्धारित समय भी वही हैं अत: वे काल धात्री हैं । पद्मनाभ, महा विष्णु, क्षीर सागर के शेषशायी श्रीमन्न नारायण के वक्ष स्थल पर ‘ श्री वत्स ‘ रूपी सीता जी विद्यमान हैं । काम धेनू एवं स्यमन्तक मणि भी सीता जी हैं ।
वेद पाठी , अग्नि होत्री द्विज वर्ग के कर्म कांडों के जितने संस्कार, विधि पूजन या हवन हैं उनकी शक्ति भी सीता जी हैं । सीता जी के समक्ष स्वर्ग की अप्सराएं जया , उर्वशी , रम्भा , मेनका नृत्य करतीं हैं एवं नारद ऋषि व् तुम्बरू वीणा वादन कर विविध वाध्य बजाते हैं चन्द्र देव छत्र धरते हैं और स्वाहा व् स्वधा चंवर ढलतीं हैं ।
रत्न खचित दिव्य सिंहासन पर श्री सीता देवी आसीन हैं । उनके नेत्रों से करूणा व् वात्सल्य भाव प्रवाहमान है । जिसे देखकर समस्त देवता गण प्रमुदित हैं । ऐसी सुशोभित एवं देव पूजित श्री सीता देवी ‘ सीता उपनिषद ‘ का रहस्य हैं । वे कालातीत एवं काल के परे हैं ।
यजुर्वेद ने ‘ ऊं कार ‘ , प्रणव – नाद की व्याख्या में कहा है कि ‘ ऊं कार , भूत भविष्य तथा वर्तमान तीनों का स्वरूप है । एवं तत्त्व , मन्त्र, वर्ण , देवता , छन्दस ऋक , काल, शक्ति, व् सृष्टि भी है ।
सीता पति श्री राम का रहस्य मय मूल मन्त्र ” ऊं ह्रीम श्रीम क्लीम एम् राम है । रामचंद्र एवं रामभद्र श्री राम के उपाधि नाम हैं । ‘ श्री रामं शरणम मम ‘
श्रीराम भरताग्रज हैं । वे सीता पति हैं । सीता वल्लभ हैं । उनका तारक महा मन्त्र ” ऊं नमो भगवते श्री रामाय नम: ” है । जन जन के ह्दय में स्थित पवित्र भाव श्री राम है जो , अदभुत है ।
” ॐ नमो भगवते श्री नारायणाय “
” ऊं नमो भगवते वासुदेवाय “
ये सारे मन्त्र , अथर्व वेद में श्री राम रहस्य के अंतर्गत लिखे हुए हैं ।
– लावण्या दीपक शाह
लावण्यम----अंतर्मनशीर्षक में विषय-वस्तु के बीज समाहित होते हैं.लावण्यम----अंतर्मन इसी बीज का पल्ल्वीकरण है.हृदयेन सत्यम (यजुर्वेद १८-८५) परमात्मा ने ह्रदय से सत्य को जन्म दिया है. यह वही अंतर्मन और वही हृदय हैजो सतहों को पलटता हुआ सत्य की तह तक ले जाता है.लावण्य मयी शैली में विषय-वस्तु का दर्पण
बन जाना और तथ्य को पाठक की हथेली पर देना, यह उनकी लेखन प्रवणता है. सामाजिक, भौगोलिक, सामयिक समस्याओं
के प्रति संवेदन शीलता और समीकरण के प्रति सजग और चिंतित भी है. हर विषय पर गहरी पकड़ है. सचित्र तथ्यों को प्रमाणित करना उनकी शोध वृति का परिचायक है. यात्रा वृतांत तो ऐसे सजीव लिखे है कि हम वहीं की सैर करने लगते हैं.आध्यात्मिक पक्ष, संवेदनात्मक पक्ष के सामायिक समीकरण के समय अंतर्मन से इनके वैचारिक परमाणु अपने पिता पंडित नरेन्द्र शर्मा से जा मिलते हैं,
जो स्वयं काव्य जगत के हस्ताक्षर है.पत्थर के कोहिनूर ने केवल अहंता, द्वेष और विकार दिए हैं, लावण्या के अंतर्मन ने हमें सत्विचारों का नूर दिया है.पारसमणि के आगे कोहिनूर क्या करेगा?- डा. मृदुल कीर्तिAll sublime Art is tinged with unspeakable grief.
All Grief is a reflection of a soul in the mirror of life'SONGS are those ANGEL's sound that Unite US with the Divine.'
About me:
Music and Arts have a tremendous pull for the soul and expressions in poetry and prose reflects from what i percieve around me through them.