In November 1969 VINOBA BHAVE returned to Paunar, Wardha, after his successful campaign for Bhoodan in Bihar and remained there till his death in November 1982.
At the Paunar Ashram, many eminent persons like Khan Abdul Ghaffar Khan (Frontier Gandhi), Gopal Swarup Pathak (Vice President of India), Jayaprakash Narayan, Acharya Tulsi, Dr. Sushila Nayar, Indira Gandhi and others met him and held conversations on diverse topics.
The book presents in English translation some of these conversations held between November 1969 and 1971. An important conversation of Smt. Indira Gandhi with Baba of January 1974 is also included.
It is hoped that these selected conversations covering a rich diversity of issues and personalities will be welcomed by all those interested in the historical and moral aspects of Indian life."
[ Edited by Kusum Deshpande. Translated by Vishwanath Tandon,
Radha Publications, 2002, xiv, 206 p, ISBN : 81-7487-279-5 ]
विनोबा के अनुयायी मेरे मामाजी ....
भारत की आज़ादी की लड़ाई के दौरान गांधीजी ने सामाजिक भेदभाव को दूर करने और तथाकथित नीची जातियों के उद्धार का महत्वपूर्ण कार्य किया। विनोबाजी ने गांधीजी के इसी मुद्दे को एक कदम आगे बढ़ाने का निश्चय किया। उनका कहना था कि अगर ब्राम्हण क्षत्रिय या वैश्य जातियाँ मंदिर में जा कर 'हरि दर्शन' करती हैं तब हरिजन को भी यही अधिकार जन्मसिद्ध होना जरूरी है।
अत: हरिजनों की एक छोटी टोली ले कर विनोबाजी ने मंदिर में प्रवेश करने का निश्चय किया।
प्रात: होते ही विनोबाजी के कई अनुयायी महिला व पुरूष कार्यकर्ता आंदोलनकारी मंदिर के आंगन में इकठ्ठा हुए। विनोबाजी कृशकाय थे। मुखपर तेज था। जैसे ही उनके कदम उठे कुछ धृष्ट तथा क्रुध्ध ब्राम्हणों ने हाथों में लाठियाँ उठा कर उनका सामना किया। अभी वे विनोबाजी की पीठ पर लाठी से प्रहार करने का दुस्साहस करते ही कि, एक नवयुवक ने लपक कर विनोबाजी को ढाल की तरह ढँक लिया।
विनोबाजी की पीठ पर पड़ने के बदले अब इस नौजवान की पीठ पर लाठियाँ बरस पड़ी। विनोबाजी का बाल भी बाँका न हुआ परन्तु इस साहसी नवयुवक की पीठ की हडि्डयाँ टूट गई। युवक बुरी तरह घायल हुआ।
लाठी लिये हाथ रूक गए। शर्मिंदगी से सहमे अंधविश्वासी ब्राह्मणगण अब पीछे हटने लगे। विनोबाजी ने हरिजन मंडली को ले कर हरि के मंदिर में प्रवेश किया। सदियों से चली आ रही ब्राम्हणों के धर्मपूजन की चुस्त प्रथा को इस तरह तोड़ा गया। शूद्र भी प्रभुदर्शन के अधिकारी हुए।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर दर्द से कराहते नवयुवक को विनोबाजी का कार्यभार संभालने वाली तेजस्वी ब्राह्मण महिला श्रीमती कुसुमताई देशपांडे ने देखा और स्वयंसेवकों को आदेश दिया कि उन्हें उपचार के लिये ले जाया जाय।
इस साहसी नवयुवक का नाम था राजेंद्र गुलाबदास गोदीवाला।
यह गुजराती युवक श्री विनोबाजी के संघर्ष का एक नन्हा सिपाही था। तीन महीने तक इनकी सेवा सुश्रुषा कुसुमताई के परिवार के सभी सदस्यों ने की। इस सेवा तथा उपचार के बीच सबसे छोटी बहन श्रीमती शीला देशपांडे तथा राजेंद्र एक दूसरे के संपर्क में आये और फिर परिचय परिणय में बदल गया।
श्री राजेन्द्र व श्रीमती शीला राजेन्द्र की यह 'प्रेम कथा' विनोबाजी के हरिजनों के हरिदर्शन करवाने की कथा का सुखद अंतिम अध्याय बना। आज मेरी मां के बड़े भाई मामाजी श्री राजेन्द्र जी तथा शीलु मामी की कथा आपके सामने प्रस्तुत करते हुए मेरे हृदय में अपार हर्ष व आनंद के साथ गौरव भी उमड़ रहा है। आशा है इस 'प्रेरक प्रसंग' से आप सभी को एक नवीन प्रेरणा मिले। 'हर व्यक्ति हिमालय बन जाए।
- लावण्या शाह