बर्फ की चादर से लिपटी धरती माता कुछ समय तक शांत होकर ,गहरी निद्रा में निमग्न हो अपने कई जीव जंतुओं को अपने गर्भ की उष्मा में छिपाए हुए ,
मुझे यहाँ के जलचर नभचर जीवों से एक सम्बन्ध सा हो गया है ।
मैं यहाँ अमरीका में अक्सर पैदल चलने जाया करती हूँ । हमारे आसपास कई सारे मकान हैं जिनके मध्य एक सुन्दर ताल है जहाँ दिन रात एक फव्वारा ख़ूब ऊँचे पानी की धारा को फेंकता रहता है और ताल में असंख्य बत्तख और गीज़ नामक पक्षी अपने परिवारों के संग तैरते रहते हैं । इस ताल के क़रीब पहुँचने के लिए एक छोटा रास्ता भी है जो एक गोलाकार दृश्य दीर्घानुमा प्राकार जिस को ‘गजीबो’ कहते हैं, वहाँ पर रूक जाता है ।
ये 'गजीबो', जो लकड़ी से बना हुआ है, गोलाकार छत्र से आवेष्टित है और उसके खुले प्रकोष्ट की जालीदार तख्तियों के बीच से नज़रें झुका कर देखने पर जल में तैर रहीं असंख्य काली, नारंगी लाल और रुपहली मछलियाँ भी दीखलाईं पडतीं हैं । मैं अक्सर घर पर बची रोटियाँ या डबल रोटी भी साथ ले जाकर इन मूक प्राणियों को नन्हें-नन्हें टुकड़े बनाकर चारे की तरह खाने के लिए देती हूँ । जब-जब मैं इन टुकड़ों को फेंकती हूँ तब बत्तख और मछलियों के समूह उस खाद्यान्न के नज़दीक आकर मंडराने लगते हैं ।
यह क्रम मेरे नाती बालक नोआ के क़रीब छः माह के होने से आरम्भ हुआ है और आज भी अबाध गति से हफ़्ते में २ या ३ दिन मैं अवश्य इसे दुहराती हूँ ।
इस कारण मुझे यहाँ के जलचर नभचर जीवों से एक सम्बन्ध सा हो गया है । मानो अपनापा स्थापित हो गया है । अमरीका हो या भारत या फिर विश्व का कोई भी भूखंड क्यों न हो मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो वर्ण, वर्ग व्यवस्था और विभाजन की रेखाओं में अपने आपको क़ैद कर इन दायरों को कड़े क़ानून से बाँध कर अपना जीवन उसी के भीतर जीता है और वहीं दम तोड़ता है । यह मनुष्य की सामाजिक व्यवस्था है । आज तक सामाजिक व्यवस्था कई बदलावों से पार हुई है परंतु जिस हम 'राम राज्य' कहें या सर्वोदय समझें, उस मुकाम पर समाज अब तक आ नहीं पाया । मनुष्य जीवन सामाजिक व्यवस्था के साथ संस्कृति और सभ्यता के दो पहियों के बीच रहता हुआ 21 वीं सदी के आरभ काल तक आन पहुँचा है । प्राकृतिक जगत मानवीय जगत के साथ सामंजस्य नहीं कर पाया जिसके उदाहरण में हम कह सकते हैं कि डायनोसोर जैसे प्राणी आज पृथ्वी पर अवशेष मात्र से रह गये हैं और अन्य वन्य प्राणी भी लुप्त प्राय होने की क़गार पर हैं ।
एक मनुष्य के अलावा हर जीव इस धरती के हर भाग में क़ानून,नियम जैसे विधि-विधान के साथ अपना जीवन नहीं जीता ये और ये भी कितनी अनोखी बात है कि मनुष्य की बुद्धि ने इन मूक प्राणियों को भी अपनी सुविधा व अपने स्वार्थ के अनुसार जीने पर बाध्य कर दिया है और अपने आपको सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ घोषित कर दिया है जब् कि सत्य यही है कि हम मनुष्यों ने स्वार्थ और अपने विकास और मनोरंजन को ही प्रधानता दी है ।
ऐसा ही कुछ सोचते हुए मनुष्यता क्या है, पर विचार करते हुए जगत के अन्य प्राणियों से अपना सम्बन्ध जोड़े रखे दिनचर्या के मध्य पशु-पक्षी और मछलियों से साक्षात्कार करना मुझे सदा ईश्वरीय प्रभुता की याद दिलाता रहता है।
मेरे सैर करने के समय पर आस पास बसे कई पारिवारिक लोग भी मुझे सैर करते दिख जाते हैं । हर उम्र के लोग । अपनी गतिविधियों में संलग्न ।
ऐसे ही एक दिवस झुकी हुई कमर को दूर से देखते हुए मन ही मन ये सोचने लगी
" न जाने कौन है ? पता नहीं ये कौन हैं ? "
पहला विचार मन में आया कि लगता है यह एक स्त्री है ! नई नई माता हैं जो अपने शिशु को लेकर निकली है और बच्चों की सैर गाड़ी मतलब बाबा गाड़ी पर झुकी हुई बच्चे को बहला रही है हो सकता है कि शायद उसका बालक रो रहा हो तो उसे, बाबा गाड़ी को रोक कर माँ, बच्चे को चुप करा रही हो ! हाँ ऐसा ही होगा । फिर मेरे मन ने तर्क किया - तभी तो इस तरह झुकी हुई कमर दीखलाई दे रही है !
यह दृश्य अत्यंत साधारण-सा था विश्व के किसी भी शहर में, किसी भी भूभाग पर ऐसे अनगिनत दृश्य रोज़ ही सभी की नज़रें देखतीं हैं सो,मैंने बहुत ज़्यादा गंभीरता से इस दृश्य के बारे में नहीं सोचा और पैदल चलना भी जारी रखा !
अब आगे क्या हुआ, ये भी सुन लीजिये ! जैसे ही उस आकृति और मुझमें अंतर कम हुआ और मैं नज़दीक पहुँची तो मेरा अंदाज़ उस स्त्री के बारे में बिलकुल ही ग़लत निकला !
पास पहुँचते ही मैंने ये देखा कि, "अरे यह तो एक वृद्धा स्त्री है ! "
वैसे ही झुकी हुई कमर तो है पर हाथों में बाबा-गाड़ी नहीं थामी उन्होंने । परंतु अपने अपाहिज पति के लिए जो मशीन थी उसकी हेंडिल को थामे क़रीब-क़रीब अपने पैरों को घसीटते हुए दोनों वृद्ध पति-पत्नी धीमे-धीमे टहल रहे हैं !
यह दृश्य देख कर आश्चर्य में अवाक् रहने की अब मेरी बारी थी ! हमारी आँखें कोई भी दृश्य देख कर अभ्यस्त हो जाती हैं और हाँ हम अक्सर देखा-अनदेखा कर लेते हैं और आगे बढ़ जाते हैं पर आज मेरे मन की पूर्व धारणा के विपरीत दृश्य को देखकर सहसा जीवन और काल चक्र समय की रफ़्तार और मनुष्य जीवन के आरम्भ और उपसंहार पर ध्यान केन्द्रित हो गया । शायद राजकुमार गौतम को भी इसी तरह इतिहास के एक स्वर्णिम क्षण में भाव बोध हुआ होगा । समय की गतिशीलता और मनुष्य के लघु अस्तित्व का,कालचक्र के भीषण व प्रचंड आवेग के मध्य एक बिन्दु से भी नन्हें अपने अस्तित्त्व का, भान होते ही, 'गौतम' राजकुमार से तपस्वी बनने के महाभिनिष्क्रमण की ओर बढ़ते हुए एक दिन निर्वाण प्राप्ति तक आ पहुँचे थे ।
ऐसा ही होता है हमारा मनोमंथन ! जो व्यक्ति को समष्टि के साथ, व्यक्ति को राष्ट्र के साथ और आत्मा को ब्रह्माण्ड के साथ जोड़ता है । हरेक विचार का प्रस्थान आत्म केन्द्रित ऊर्जा का उद्भव स्थान है हमारी बुद्धि और चेतना ही वह अज्ञात तत्त्व है जो हमें असीम और अनंत के साथ जोडती हुई हमें जीव से व्यक्ति और व्यक्ति से विशिष्ट पद तक ले आती है ।
अत: आत्म-मंथन, आत्म शोध और आत्म शुद्धि के द्वार के सोपान हैं । अतः हम जहाँ कहीं भी रहें, यह प्रक्रिया जारी रखें । हमें, हमारी चेतना, जागृति और प्रकाश की ओर अग्रसर होने में,सहायक हो । यही मेरी मंगल कामना है आप सब के लिए ! जो समय के इस बिन्दु पर ठहर कर वर्ष 2010 के अंतिम माह दिसंबर के आते प्रेषित कर रही हूँ जबकि जीवन का क्या कहें, वह ऐसे ही चलता रहेगा । लोग आते हैं आते रहेंगें और कुछ विशिष्ट व्यक्ति, जिन्हें हम यादों में बसाए रखेंगें वे समय की अवधि समाप्त होते चले जायेंगें ...कारवाँ यूं ही चला है और चलता रहेगा । गंभीरता से भरी बातों से मन को बोझिल न बनाएं । शिशु मन की निश्छलता को ही निज-स्वभाव बना लें ।
यहाँ अमरीका में शीत की लहर के साथ हर शिशु उत्सुकता के साथ फ़ादर संता क्लोज़ की बाट जोह रहा है ! बच्चे प्रसन्न हैं कि वे उनसे उपहार पायेंगें ! माता पिता और परिवार के लोगों के साथ छुट्टियाँ बितायेंगें !
गिरजों में घंटनाद होगा और पादरी श्वेत परिधान में सजे, ईसा मसीह के सूली पर चढ़ कर मनुष्यों के पाप को हर कर शहीद हुए उस की कहानी को लोग दोहरायेंगें !
रात्रि के सघन होते अंधकार में हरेक घर पर बिजली के दीप दप दप करते हुए जगमगायेंगें और फिर बर्फ़ की चादर से लिपटी धरती माता कुछ समय तक शांत होकर गहरी निद्रा में निमग्न अपने कई जीव जंतुओं को अपने गर्भ की उष्मा में छिपाए हुए वसंत के आगमन की प्रतीक्षा करेंगीं । मौसम और समय ही तो हैं जो कभी किसी के लिए रुकते नहीं ! अब हम भी आपसे विदा लेते हैं । आगामी नव वर्ष 2011 आपके जीवन में ख़ुशियाँ लेकर आये ।