Tuesday, November 30, 2010

अमरीका से पाती शीर्षक : झुकी हुई कमर


बर्फ की चादर से लिपटी धरती माता कुछ समय तक शांत होकर ,गहरी निद्रा में निमग्न हो अपने कई जीव जंतुओं को अपने गर्भ की उष्मा में छिपाए हुए ,
वसंत के आगमन की प्रतीक्षा करेंगीं .........
मुझे यहाँ के जलचर नभचर जीवों से एक सम्बन्ध सा हो गया है ।
मानो अपनापा स्थापित हो गया है ।

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मैं यहाँ अमरीका में अक्सर पैदल चलने जाया करती हूँ । हमारे आसपास कई सारे मकान हैं जिनके मध्य एक सुन्दर ताल है जहाँ दिन रात एक फव्वारा ख़ूब ऊँचे पानी की धारा को फेंकता रहता है और ताल में असंख्य बत्तख और गीज़ नामक पक्षी अपने परिवारों के संग तैरते रहते हैं । इस ताल के क़रीब पहुँचने के लिए एक छोटा रास्ता भी है जो एक गोलाकार दृश्य दीर्घानुमा प्राकार जिस को ‘गजीबो’ कहते हैं, वहाँ पर रूक जाता है ।

ये 'गजीबो', जो लकड़ी से बना हुआ है, गोलाकार छत्र से आवेष्टित है और उसके खुले प्रकोष्ट की जालीदार तख्तियों के बीच से नज़रें झुका कर देखने पर जल में तैर रहीं असंख्य काली, नारंगी लाल और रुपहली मछलियाँ भी दीखलाईं पडतीं हैं । मैं अक्सर घर पर बची रोटियाँ या डबल रोटी भी साथ ले जाकर इन मूक प्राणियों को नन्हें-नन्हें टुकड़े बनाकर चारे की तरह खाने के लिए देती हूँ । जब-जब मैं इन टुकड़ों को फेंकती हूँ तब बत्तख और मछलियों के समूह उस खाद्यान्न के नज़दीक आकर मंडराने लगते हैं ।

यह क्रम मेरे नाती बालक नोआ के क़रीब छः माह के होने से आरम्भ हुआ है और आज भी अबाध गति से हफ़्ते में २ या ३ दिन मैं अवश्य इसे दुहराती हूँ ।

इस कारण मुझे यहाँ के जलचर नभचर जीवों से एक सम्बन्ध सा हो गया है । मानो अपनापा स्थापित हो गया है । अमरीका हो या भारत या फिर विश्व का कोई भी भूखंड क्यों न हो मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो वर्ण, वर्ग व्यवस्था और विभाजन की रेखाओं में अपने आपको क़ैद कर इन दायरों को कड़े क़ानून से बाँध कर अपना जीवन उसी के भीतर जीता है और वहीं दम तोड़ता है । यह मनुष्य की सामाजिक व्यवस्था है । आज तक सामाजिक व्यवस्था कई बदलावों से पार हुई है परंतु जिस हम 'राम राज्य' कहें या सर्वोदय समझें, उस मुकाम पर समाज अब तक आ नहीं पाया । मनुष्य जीवन सामाजिक व्यवस्था के साथ संस्कृति और सभ्यता के दो पहियों के बीच रहता हुआ 21 वीं सदी के आरभ काल तक आन पहुँचा है । प्राकृतिक जगत मानवीय जगत के साथ सामंजस्य नहीं कर पाया जिसके उदाहरण में हम कह सकते हैं कि डायनोसोर जैसे प्राणी आज पृथ्वी पर अवशेष मात्र से रह गये हैं और अन्य वन्य प्राणी भी लुप्त प्राय होने की क़गार पर हैं ।

एक मनुष्य के अलावा हर जीव इस धरती के हर भाग में क़ानून,नियम जैसे विधि-विधान के साथ अपना जीवन नहीं जीता ये और ये भी कितनी अनोखी बात है कि मनुष्य की बुद्धि ने इन मूक प्राणियों को भी अपनी सुविधा व अपने स्वार्थ के अनुसार जीने पर बाध्य कर दिया है और अपने आपको सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ घोषित कर दिया है जब् कि सत्य यही है कि हम मनुष्यों ने स्वार्थ और अपने विकास और मनोरंजन को ही प्रधानता दी है ।

ऐसा ही कुछ सोचते हुए मनुष्यता क्या है, पर विचार करते हुए जगत के अन्य प्राणियों से अपना सम्बन्ध जोड़े रखे दिनचर्या के मध्य पशु-पक्षी और मछलियों से साक्षात्कार करना मुझे सदा ईश्वरीय प्रभुता की याद दिलाता रहता है।

मेरे सैर करने के समय पर आस पास बसे कई पारिवारिक लोग भी मुझे सैर करते दिख जाते हैं । हर उम्र के लोग । अपनी गतिविधियों में संलग्न ।

ऐसे ही एक दिवस झुकी हुई कमर को दूर से देखते हुए मन ही मन ये सोचने लगी

" न जाने कौन है ? पता नहीं ये कौन हैं ? "

पहला विचार मन में आया कि लगता है यह एक स्त्री है ! नई नई माता हैं जो अपने शिशु को लेकर निकली है और बच्चों की सैर गाड़ी मतलब बाबा गाड़ी पर झुकी हुई बच्चे को बहला रही है हो सकता है कि शायद उसका बालक रो रहा हो तो उसे, बाबा गाड़ी को रोक कर माँ, बच्चे को चुप करा रही हो ! हाँ ऐसा ही होगा । फिर मेरे मन ने तर्क किया - तभी तो इस तरह झुकी हुई कमर दीखलाई दे रही है !

यह दृश्य अत्यंत साधारण-सा था विश्व के किसी भी शहर में, किसी भी भूभाग पर ऐसे अनगिनत दृश्य रोज़ ही सभी की नज़रें देखतीं हैं सो,मैंने बहुत ज़्यादा गंभीरता से इस दृश्य के बारे में नहीं सोचा और पैदल चलना भी जारी रखा !

अब आगे क्या हुआ, ये भी सुन लीजिये ! जैसे ही उस आकृति और मुझमें अंतर कम हुआ और मैं नज़दीक पहुँची तो मेरा अंदाज़ उस स्त्री के बारे में बिलकुल ही ग़लत निकला !

पास पहुँचते ही मैंने ये देखा कि, "अरे यह तो एक वृद्धा स्त्री है ! "

वैसे ही झुकी हुई कमर तो है पर हाथों में बाबा-गाड़ी नहीं थामी उन्होंने । परंतु अपने अपाहिज पति के लिए जो मशीन थी उसकी हेंडिल को थामे क़रीब-क़रीब अपने पैरों को घसीटते हुए दोनों वृद्ध पति-पत्नी धीमे-धीमे टहल रहे हैं !

यह दृश्य देख कर आश्चर्य में अवाक् रहने की अब मेरी बारी थी ! हमारी आँखें कोई भी दृश्य देख कर अभ्यस्त हो जाती हैं और हाँ हम अक्सर देखा-अनदेखा कर लेते हैं और आगे बढ़ जाते हैं पर आज मेरे मन की पूर्व धारणा के विपरीत दृश्य को देखकर सहसा जीवन और काल चक्र समय की रफ़्तार और मनुष्य जीवन के आरम्भ और उपसंहार पर ध्यान केन्द्रित हो गया । शायद राजकुमार गौतम को भी इसी तरह इतिहास के एक स्वर्णिम क्षण में भाव बोध हुआ होगा । समय की गतिशीलता और मनुष्य के लघु अस्तित्व का,कालचक्र के भीषण व प्रचंड आवेग के मध्य एक बिन्दु से भी नन्हें अपने अस्तित्त्व का, भान होते ही, 'गौतम' राजकुमार से तपस्वी बनने के महाभिनिष्क्रमण की ओर बढ़ते हुए एक दिन निर्वाण प्राप्ति तक आ पहुँचे थे ।

ऐसा ही होता है हमारा मनोमंथन ! जो व्यक्ति को समष्टि के साथ, व्यक्ति को राष्ट्र के साथ और आत्मा को ब्रह्माण्ड के साथ जोड़ता है । हरेक विचार का प्रस्थान आत्म केन्द्रित ऊर्जा का उद्भव स्थान है हमारी बुद्धि और चेतना ही वह अज्ञात तत्त्व है जो हमें असीम और अनंत के साथ जोडती हुई हमें जीव से व्यक्ति और व्यक्ति से विशिष्ट पद तक ले आती है ।

अत: आत्म-मंथन, आत्म शोध और आत्म शुद्धि के द्वार के सोपान हैं । अतः हम जहाँ कहीं भी रहें, यह प्रक्रिया जारी रखें । हमें, हमारी चेतना, जागृति और प्रकाश की ओर अग्रसर होने में,सहायक हो । यही मेरी मंगल कामना है आप सब के लिए ! जो समय के इस बिन्दु पर ठहर कर वर्ष 2010 के अंतिम माह दिसंबर के आते प्रेषित कर रही हूँ जबकि जीवन का क्या कहें, वह ऐसे ही चलता रहेगा । लोग आते हैं आते रहेंगें और कुछ विशिष्ट व्यक्ति, जिन्हें हम यादों में बसाए रखेंगें वे समय की अवधि समाप्त होते चले जायेंगें ...कारवाँ यूं ही चला है और चलता रहेगा । गंभीरता से भरी बातों से मन को बोझिल न बनाएं । शिशु मन की निश्छलता को ही निज-स्वभाव बना लें ।

यहाँ अमरीका में शीत की लहर के साथ हर शिशु उत्सुकता के साथ फ़ादर संता क्लोज़ की बाट जोह रहा है ! बच्चे प्रसन्न हैं कि वे उनसे उपहार पायेंगें ! माता पिता और परिवार के लोगों के साथ छुट्टियाँ बितायेंगें !

गिरजों में घंटनाद होगा और पादरी श्वेत परिधान में सजे, ईसा मसीह के सूली पर चढ़ कर मनुष्यों के पाप को हर कर शहीद हुए उस की कहानी को लोग दोहरायेंगें !

रात्रि के सघन होते अंधकार में हरेक घर पर बिजली के दीप दप दप करते हुए जगमगायेंगें और फिर बर्फ़ की चादर से लिपटी धरती माता कुछ समय तक शांत होकर गहरी निद्रा में निमग्न अपने कई जीव जंतुओं को अपने गर्भ की उष्मा में छिपाए हुए वसंत के आगमन की प्रतीक्षा करेंगीं । मौसम और समय ही तो हैं जो कभी किसी के लिए रुकते नहीं ! अब हम भी आपसे विदा लेते हैं । आगामी नव वर्ष 2011 आपके जीवन में ख़ुशियाँ लेकर आये ।

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Monday, November 1, 2010

" दीपावली की शुभकामनाएं "/ क्या वाकई समय बदल रहा है ?

" दीपावली की शुभकामनाएं "
" सृजनगाथा " छतीसगढ़ से प्रकाशित होनेवाली , उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर होती पत्रिका के स्थायी स्तम्भ " अमरीका से पाती ~ " शेष - विशेष के लिए,
हर माह , पहली तारीख को मेरे आलेख भेजती रही हूँ ...
नवम्बर माह , मेरे लिए , कुछ ख़ास है - नवम्बर ९ दीपक जी व मेरे विवाह की तारीख है
वे मितभाषी , मृदुभाषी और सज्जन पुरुष हैं जीवन साहचर्य और अब बढ़ती उमर में तबियत युवावस्था जैसी न रहना इन सब के साथ उनके साथ व्यतीत किया जीवन ,
हमारी संतान सौ. सिंदुर व चि. सोपान और अब नाती चि. नोआ मेरे समस्त जीवन की जमा पूंजी है ये कहूं तो कोइ अतिशयोक्ति न होगी -
नवम्बर की २२ तारीख को , मैं अपने जीवन के ६० दशक पूर्ण कर रही हूँ ! ये भी एक पड़ाव है - स्त्रियों की षष्ठिपूर्ति नहीं मनाते :) ...पर नवम्बर १९ को हमारे हिन्दू मंदिर में , पूजा करने का मन है पण्डित कैलाश शर्मा जी यह पुण्य कार्य करवाएंगें ....बस !
मेरे परम प्रिय व आराध्य श्री कृष्ण , मेरी परम सुन्दरी राधेरानी के संग , ह्रदय में बिराजें और आप सब पर उनकी कृपा बरसती रहे ....
धन तेरस , दीपावली, भारतीय नूतन वर्ष, भैया - दूज सारे त्यौहार शुभ व मंगल मय हों --
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क्या वाकई समय बदल रहा है ?
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नवम्बर २०१० के मुहाने पर खड़े होकर सिंहावलोकन करें
तब यह निश्चय अवश्य होता है कि
" हां वास्तव में समय के साथ बहुत कुछ बदल चुका है और आगे भी बदलता रहेगा ! "
कई नई ईजाद सामने देख कर ये भी स्पष्ट हो जाता है कि,
" हां, पुराने और नये के सम्मिश्रण से मिलजुल कर ही वर्तमान का स्वरूप , हमे समय के साथ नवीन आकार लिए दीखलाई देता है "
तकनीकी विकास के क्षेत्र में, बदलाव ज्यादा स्पष्ट और त्वरित गति से हुआ है . आधुनिक युग का आविष्कार
" कंप्यूटर " विश्व को " ग्लोबल ग्राम " में परिवर्तित कर चुका है और संचार व सूचना व्यवस्था की त्वरित गति और विकास , हमे आश्चर्य में डाल देती है -
विश्व के एक छोर से दुसरे तक फ़ैली तकनीकी क्रान्ति ने ,
मानों एक विद्युत से निर्मित , प्रबल , ऊर्जा क्षेत्र में , हर मुल्क के जन जीवन को आंदोलित कर के आलोड़ित कर दिया है
जेट वायुयान में इस्तेमाल होते ईंधन की तरह है ये ऊर्जा ! जो आज के जन जीवन को, नित नये ईजाद होते हुए तकनीकी आविष्कारों से , निस्पंदित ऊर्जा वलय में तरंगित कर रही है .. ये सारे आधुनिक आविष्कार हमे , आगे ले जा रहे हैं , बदल रहे हैं समाज को , परिवेश को, मनुष्य को भी और ये अनुभव, हरेक बदलाव को अपने साथ लिए , हमारी मन: : स्थिति को और स्वयं समय को भी बदल रहा है
Google Maps for Mobile 41
आज से १० वर्ष पूर्व, " गुगल " नाम शायद गिने चुने लोगों को ही पता था परंतु आज यही नाम , आम आदमी की और ख़ास कर, तकनीकी सक्षम व्यक्ति की जीवन चर्या का एक अहम् हिस्सा हो चुका है -
गुगल की सहायता से, हम नक़्शे देखते हैं, कई बातों की खोज करते हैं इतना ही नहीं , किसी भी व्यक्ति या किसी ख़ास स्थान या अमुक प्रसंग की जानकारी भी हासिल कर सकते हैं गुगल के औजारों की सहायता से, हम और आप, विश्व की विभिन्न भाषा और लिपियों में लिखते, पढ़ते हैं, चित्र देखकर उस विषय का स्वरूप या आकृति के बारे में ज्यादह जानकारियाँ जान पाते हैं हम और आप, गुगल के उपकरणों के जरिए, डोक्युमेंट बनाना , इत्यादी आफिस की कार्यवाही करते हैं , तारीख, केलैंडर ,देख सकते हैं - विश्वजाल पर उपलब्ध अनेकविध सामग्री से भी जुड़ सकते हैं और पृथ्वी के किसी भी हिस्से पर चल रही गतिविधि का आँखों देखा नज़ारा तत्क्षण घटित होते हुए भी देख सकते हैं
कैसा आश्चर्य है ये , है ना ? इस को समझते हुए, इन नवीन आविष्कारों को देख हम अवश्य कहेंगें " हां समय बदल गया है ! "
ऐप्पल कंपनी के चीफ एकजीक्युटीव ऑफीसर या सी ई ओ " स्टीव जोब्स " आजकल बीमार रहते हैं परंतु ऐप्पल कंपनी के आविष्कार लैप टॉप और आई पोड आम इंसान के घर घर में स्थान और भूमिका बना चुका है -
इस प्रकार के तकनीकी क्षेत्रों में , आज, सफलता के नये आयाम स्थापित हो रहे हैं और संचार माध्यमों द्वारा जनता के उपयोग के लिए ,नये पर्याय उपस्थित किये जा रहे हैं
१० वर्ष पहले " यूं - ट्यूब " या ट्वीटर " जैसे उपकरण भी किसी के उर्वर दीमाग में , सुप्तावस्था में लीन एक बिन्दु मात्र थे पर आज उन्हीं से आंदोलित स्वर लहरी विश्व के हर प्रदेश में , अबाध रूप से प्रवाहित है -
वैचारिक बिन्दु का जन जीवन के साथ ऐसा निरूपण २१ वीं सदी की त्वरित जीवन शैली का पर्याय बन पाया है ये भी हमारे बदले हुए समाज और समय का अनूठा और विस्मयकारी सत्य है !
भारत देश की बात करें तो वहां ३३ % से ज्यादा आबादी , १९ वर्ष से कम आयु हो ऐसी जनसंख्या वाली है
अमरीका में सन १९६० में जन्मे लोग जिन्हें " बेबी बूमर प्रजा " कहते हैं वृध्धावस्था की और झुक गयी है - बेबी बूमर से उपजी संतान आज वयस्क पीढी का रूप लेकर आज का कामकाजी नागरिकत्व सम्हाले हुए आधुनिक कार्य क्षेत्र में रममाण है -
अमरीका विश्व का सबसे समृध्ध व शक्तिशाली देश , चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्था तथा सफल दौड़ से चुनौती ले कर कुछ शिथिल, कुछ कमजोर होता हुआ दीखाई दे रहा है और अमरीकी शासन भी इस बदलाव से अचंभित है !
मुक्त बाजारवाद तथा आधुनिक ढंग की सामंतवादी सोच को , प्रजातंत्र का लबादा उढ़ाकर, अमरीकी शासन , विश्व का प्रभुत्व अपने हाथों में थामे रखने के प्रयासों में इन बदलते मापदंडों से जूझने में , फिर भी ,
संघर्षरत है
ईराक, ईरान, अरब राष्ट्र समूह, अफ्रीकी सोमालिया से लेकर यामीन और अफघानिस्तान, पाकिस्तान जैसे प्रांत , अमरीकी वर्चस्व को पड्कार देते हुए कई छोटे बड़े पैमानों पर , इसी सत्ता के आरम्भ किये वर्चस्ववादी संघर्ष व खेल में , युध्ध रत हैं -
एशियाई मुल्कों में जापान सबसे समृध्ध , आधुनिक जीवन प्रणाली वाला तथा औद्योगिक और व्यापार वाणिज्य से लैस देश भी पहले की अपेक्षा कमजोर हुआ है -
चीन की सरकार , अब्जों डालरों के सामान का उत्पादन कर विदेशी मुद्रा कमाकर आज इस स्थिति में है कि चीनी राष्ट्र आज , अमरीका को संकट से उभरने के लिए , विदेशी मुद्रा उधार दे रहा है !
ये किसने सोचा था कि, एक दिन ऐसा भी होगा कि , अमरीकी अर्थ व्यवस्था को सुद्रढ़ रखने के लिए उसे , चीन से पैसा उधार लेना पडेगा ? पर आज ये हुआ है -
- सच, समय बदल गया है न !
कोरिया, ताईवान, मलेशिया, इन्डोनेशीया, हांगकांग , सिंगापुर जैसे एशिया के भूभाग भी चीन की अति विशाल फैक्ट्री का अनुकरण ही करते हुए उत्पादन , व्यापार विनिमय की प्रक्रिया में व्यस्त हैं !
भारत सरकार की अपेक्षा चीनी सरकार , अपने नागरिकों पर सख्ती बरत्तती है और बहुत कड़े कायदे और कानून लागू कर, प्रजा का दमन व शोषण भी करती है और यही कम्यूनिस्ट सरकार ,
एक सफल व्यापारी का भेस पहन कर बदल चुकी है -
सस्ते उत्पादों का , विशाल पाए पर निर्माण कर , अमरीकी प्रजा के नित्य उपयोग की चीज वस्तुओं का निर्माण कर चीन , करोड़ों डालरों का मुनाफ़ा , बटोर चुकी है और अब चीन देश, विश्व का सिरमौर बनने के प्रयास में संलग्न है --
पहले रशियन फेडरेशन से अमरीका सदा चौंकन्ना रहता था और रूस के अंतरीक्ष प्रयोगों से होड़ भी करता था परंतु आज यही सोवियत शासन , एक दन्त और नख विहीन शेर की भांति , दुर्बल दीखलाई पड़ रहा है .
रशिया भी बहुत बदला - हुआ सा है !
अकसर, प्राकृतिक प्रकोप और विपदाएं , जैसे , सूनामी या भूकंप और युध्ध व जन स्थानान्तरण भी आधुनिक विश्व को बदलते हैं
शस्य श्यामला, हरी - भरी , उर्वरा धरती, अगले क्षण , रौद्र रूप लिए , प्रकृति की विनाश लीला से, क्षण मात्र में , बदल जाती है और सुख - शांति, अमनो चैन, छिन्न - भिन्न होकर , बदलाव का सृजन करते हैं -
किसी एक सिरफिरे राष्ट्र प्रमुख के हाथों में सौंपी गयी सत्ता की बागडोर, टूट कर , अराजकता और धांधली का वातावरण सर्जित कर सकती है और फिर उसी राष्ट्र की तबाही हो जाती है -
हम यह नृशंसता का बर्बर खेल , अफघानिस्तान में आज भी देख रहे हैं -
तालीबानी अत्याचारों की सूची बड़ी लम्बी है और उनसे यातना पाए लोगों की कहानियां अति करुण हैं -
ये वो देश है जहां उन्हीं के मुल्क की स्त्रियों पर अत्याचार करने की तो अब पराकाष्टा हो चुकी है
बर्बरता और क्रूरता ने , इंसान को हैवान और खूंखार दरिन्दा बनाकर हमारी आँखों के सामने पाशविक आचरण करते हुए , स्पष्ट किया है स्त्रियों के हर अधिकारों को छीन कर उन्हें सरे आम बेईज्जत किया जाता है और तो और इस युध्ध से आक्रंत प्रदेश में , मासूम बच्चों पर भी अत्याचार हुए हैं और ये प्रताडनाओं को समूचा विश्व बेबस होकर बस देखता रहा है !
कितने दुःख की बात है ऐसे बदलाव और , कितने कष्टप्रद हैं ये द्रश्य !
इतिहास की धरोहर से बामियान की बौध्ध प्रतिमाओं का बम के धमाके से विघ्वंस कर धुल धूसरित करना भी संस्कृति और सभ्यता के शव को ताबूत में रखकर कील ठोंकने जैसा अमानवीय , जघन्य कृत्य है !
बौध्ध लामाओं के प्राचीन मठों को तोडना, उनकी धार्मिक पुस्तकों को जला देना , तिब्बत की जनता को शरणार्थी बनने पर विवश करना ये सब भी मानवता की शव यात्रा के द्रश्य ही तो हैं !
कम्यूनिस्ट अफसर विनाश लीला करते रहे और विश्व विक्षप्त हो
बस , देखता रहा फिर एक सन्नाटा -
यहां भी बदलाव हुआ और मासूमों को भुगतना पडा !
कोइ कुछ न कर पाया वाकई समय बदला है क्या ?
प्राचीन युग में भी तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालयों का ऐसी ही हिंसक विधि से , विनाश किया गया था
हम देख रहे हैं, आज भी वही हिंसा वही बर्बरता और वही पशुता समक्ष है हां बदला है तो महज , सम्प्रेषण ! सूचना संचार माध्यम अवश्य बदले हैं जिनके माध्यम से , आज , हम यह नृशंसता का तांडव , अब हमारे टेलीविजन के परदे पर देख सकते हैं और आहें भर सकते हैं !
हे मनुष्य ! तुम कब सभ्य बनोगे ?
तुम, कब पहचानोगे उस राह को कि जिस पर चल कर तुम्हें तुम्हारे ही विश्व का, तुम्हारी इस पृथ्वी का और स्वयं अपना कल्याण करना है ?
हे मनुष्य , तुम, चलना आरम्भ तो करो ....
२१ वी सदी के आरम्भ में जब् समय तेजी से भाग रहा है , बदलाव तेजी से घट रहे हैं तब सही और सच्ची डगर पहचान तो लो !
देखो, संस्कृति का सूर्य , उसी शुभ्र, स्वच्छ और सरल मार्ग पर , पथ को आलोकित किये , तुम्हारे स्वागत में, युगों से प्रतीक्षारत है -
अब तो इस आलोक को पहचानो .........
चल पड़ो, उस दिव्यता के पथ पर, जहां से मनुज के उत्थान के मार्ग का शुभारम्भ होने ही वाला है
सुनो इस प्रतिध्वनि को , जो युगों की परते हटाकर आमुख , तुम से कुछ कह रहीं हैं ....
" सर्वे भवन्तु सुखिन : सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कस्क्चित दुखाभाग्भावेत !
ॐ शांति !!!
- लावण्या