मेरी अनंत शुभकामनाएं व स्नेहभरा प्रोत्साहन इस नूतन शब्द यात्रा के नये स्वरूप के साथ है
स स्नेह,
- लावण्या शाह
यु. एस. ए. [ My E mail : Lavnis@gmail.com ]
वीणापाणी : आरोही ________________________________________________________________ |
हिन्दी ब्लागिंग यानी इंडिया ! [बकलमखुद-10]
बकलमखुद के इस तीसरे पड़ाव और दसवें सोपान में मिलते हैं लावण्या शाह से ।
लावण्या जी का ब्लाग लावण्यम् अंतर्मन विविधता से भरपूर है और एक प्रवासी भारतीय के स्वदेश से लगाव और संस्कृति प्रेम इसकी हर प्रस्तुति में झलकता है।
देखते हैं सिलसिले की अंतिम कड़ी।
अमरीका के समाज को इस दौरान काफी नज़दीक से देखने का,राजनीति, कानून,व्यवस्था को समझने का भरपूर अवसर मिला। मेरी सोच विस्तार पाने लगी । अपने आप से अलग होकर तटस्थता से हर पहलू को परखने की आदत हुई। इस तरह मैं अपने गुण-दोषों को भी देख पाई और जो कमिंयां नज़र आईं उन्हें प्रयत्न करके सुधारने की कोशिश भी की। जीवन किसी शांत मगर वेगवान नदी की तरह आगे बढ़ता रहा। बच्चे भी बडे हो गये और उनके ब्याह हुए। बिटिया ने अमरीकन पति ब्रायन का चुनाव किया। तब समझ पाई कि इन्सान अच्छे और बुरे हर देस मे हर कौम मे होते हैं किसी के माथे पे लिखा नही होता कि वह कैसा होगा !
बच्चों की शादियां और यूं बढ़ा कुनबा : अनुभव से ही हम असलियत जानते हैंऔर संसार तो परस्पर के प्रेम व आदर पर ही टिका रहता है। यह सब मैं इसलिए लिख रही हूं क्योंकि हमें अपने अमरीकी समधी भी ले लोग ही मिले। आमतौर पर भारतीय संस्कारों में पगा परिवार विदेशियों को संस्कारों के मामले में गठजोड़ बिठा पाने के नाकाबिल ही महसूस करता है इसीलिए हमारा अनुभव महत्वपूर्ण है। हमारे बेटे सोपान का ब्याह हुआ सौ.मोनिका देव के साथ और हिन्दू जाट परिवार से नाता जुडा। मेरे अनुभवों को समृद्ध करने नाति नोआ जी का भी जन्म हो गया जो आज मुझे नानी पुकारता है और उसकी भोली मुस्कान में मेरे अपने बच्चों का शैशव झलकता है। हाँ, इन सारी घटनाओँ के बीच, कविता लेखन, ब्लोग , काव्य पाठ, कवि सम्मेलन,ब्याह,व्रत त्योहार,रसोई,दुनिया की सैर,यह भी चलता रहा है।
कम्प्यूटर से दोस्ती और नेट पर घुमक्कड़ी : मेरा पुत्र सोपान ही पहले कम्प्यूटर सीखा था और कम्प्यूटर घर पर आया तब मैंने उसका विरोध भी किया था कि इसकी क्या जरुरत है। फिर एक दिन सोपान ने मुझे ईमेल करना सिखाया और कुछ महत्वपूर्ण बातें बताईं तब तो मेरे आश्चर्य ने हर्षातिरेक का स्थान ले लिया। हिन्दी की वेब साईट जैसेकाव्यालय पर कई उम्दा हिन्दी रचनाएँ पढीं । अभिव्यक्ति , अनुभूति तथा बोलोजी में मेरी कविताएं कहानियां भी छपने लगीँ तब आनंद और उत्साह द्विगुणित हो गया।ये ब्लोग क्या बला है भाई ! एक बार हिन्दी की पहली वेब साइटों पर भी सर्फ करते हुए पहुँची तो कुछ अलग अंदाज़ के जालस्थलों से साबका पड़ा। अचरज़ हुआ कि ये क्या है भई ? ये ब्लोग क्या बला है ? जानना शुरु किया । हमारा तकनीकी ज्ञान तो बिल्कुल ज़ीरो है यानी ००००१% ! तो समझ में तो आया नहीं कुछ कि ये क्या है परंतु याद है किसी ब्लोग पर यात्रा विवरण पढा था और जीतू चौधरी जी का ब्लोग देखा था। कहीं एकाध गाना भी सुना था ! अभिव्यक्ति पर कृत्यापत्रिका की संपादक रति सक्सेना का आलेख पढा - सावधान ! ब्लोगिये आ रहे हैं । उसी में पढ़ा कि मानोशी तथा प्रत्यक्षा भी ब्लोग-लेखन करती हैं। ऐसा पढा और मैं उनकी साहित्यिक प्रतिभा के संपर्क में आई। इस बीच भाई अनूप भार्गव और राकेश खंडेलवाल जी के ई-कविता ग्रुप से भी परिचय हो गया था।
अपना भी ब्लाग बना एक अफ़साना एक रात घर का काम निपटा कर यूँ ही कुछ पढते हुए ब्लोग की तरफ ध्यान आकर्षित हुआ और पढकर खुद ब खुद अंग्रेज़ी में मैने अपना ब्लोग अन्तर्मन आरँभ कर दिया ।
समीरलाल जी ने (उडनतश्तरी फेम) कहा ,
" लावण्यादी,
आपका ब्लोग पसंद आया परंतु हिन्दी में लिखिये ना ? "
मैने कहा, 'अभी सीख रही हूँ। सीखते ही, कोशिश करती हूं । तभी होली के अवसर पर हिन्दी ब्लाग अन्तर्मन पर एक व्यंग पढ़ा- होली पर मेरा चिट्ठा भी चोरी !! उनका इशारा हमारे ब्लाग के नाम अंतर्मन को लेकर था। अब हम इतनी ज्यादा सर्फिंग तो नहीं कर पाए थे कि अपने ब्लाग के लिए ऐसा कोई नाम सोचते जो किसी और ने नहीं लिया हुआ था। बहरहाल उनकी बात तो सही थी। मैंने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा आप का नाम पहले है सो, मैं ही बदलाव करती हूँ । इस तरह मेरा ब्लोग लावण्यम् - अंतर्मन् रख कर एक नया अध्याय शुरु किया।
हिन्दी की ब्लाग दुनिया ही भारत है ~~
समीर भाई ने ब्लोगवाणी, नारद, तथा चिट्ठाजगत में नाम लगवाने में मेरी सहायता की जिसके लिये उनकी बहुत बहुत आभारी हूँ। हाँ, अनिताकुमारजी की तरह कभी चेट किया नही ! समयाभाव ही शायद कारण हो ! संपर्कसूत्रों में ईमेल ही ज्यादा इस्तेमाल किया है और उसी ओर त्वरित गति से संवादों का आदान-प्रदान होता रहता है । मेरी गतिविधियां साथी ब्लागरों के उत्साहवर्धन से धीरे-धीरे बढ़ती रहीं हैं। इनदिनों मैं चोखेर बाली व रेडियोनामा पर भी लिखती हूं। साँस्कृतिक, सामाजिक परिवेश से जुडी बातों के बारे में लिखना और पढना दोनों बातों को पसंद करती हूं और उसी से जुडी बातें साझा भी करती हूँ। यात्रा विवरण भी प्रिय हैं और भारतीय ग्रामीण परिवेश के बारे में अक्सर खोज कर पढ़ती हूं। चूँकि ग्राम्य जीवन जिया ही नही कभी ! और यहाँ अमरीका में भारत की याद आती है । घर की याद आती है सो ब्लोग विश्व एक तरीके से भारत का पर्याय सा बन चुका है। यानी आप कह सकते हैं कि यहां सुदूर अमरीका में मेरे लिए इंडिया का दूसरा नाम है हिन्दी ब्लागिंग!
है न मज़ेदार ! पर मेरे लिए सचमुच यह बहुत सुखद है।
शुक्रिया हिन्दी ब्लागजगत का ...मिलते रहेंगे... आधुनिक उपकरणोँ की सहायता से गृहकार्य में आसानी रहती है। पति दीपक जी व अन्य सभी का सहकार-स्नेह भी बल देता रहा है। बस्स, ऐसी ही साधारण सी है मेरे जीवन की यात्रा । हिन्दी ब्लोग जगत के साथियों से परिचय तथा उनके विचार जानकर पढकर। बहुत कुछ नया सीखा और देखा है। अत: आप सभी को भी स्नेह धन्यवाद कहना चाहती हूँ ...अगर आपके मन में कोई प्रश्न हो तब अवश्य पूछें। सही सही उत्तर देने का वादा करते , अब आज्ञा बहुत स्नेह के साथ...[समाप्त ]
Next Chapter ..............
हां, हमने ब्रायन को सहर्ष स्वीकार किया...[बकलमखुद-11]
http://shabdavali.blogspot.com/2008/03/11.html
और अब गर्मी का मौसम यहां अपने पूरे जोर पर है ... दक्षिण के प्रान्तों में पारा १०२ * तक पहुँच रहा है और हमारे शहर में भी ९०* तक का तापमान दर्ज हो रहा है .. एक गीत " गर्मी के दिनों पर "आपसे विदा लेते हुए प्रस्तुत है
स -- स्नेह,
- लावण्या
आहा...लो, आई गर्मी
गर्मी के दिन दुई चार हो भैया,
आते हैँ, फिर जाते हैँ,
यूँ ही,
गर्मी के दिन दुई चार !
करेँ खुदाया खैर हो भैया,
गर्मी के दिन दुई चार ..
आता जाडा,खूब ठिठुरता,
कँपकँपी बदन मेँ,
ओढ, रजाई गुजरता
काँपे, हम दिन रैन
हैँ ये मौसम के खेल..
हो भैया, फिर, आते हैँ,
गर्मी के दिन, दुई चार !
बरखा रानी, झमझम आतीँ,
नदियाँ,पोखर,छलका जातीँ
काले मेघा, बरस बरस कर
कर देते, मालामाल
यूँ बीतता सावन भादो
कहाँ गये बताओ भैया,
गर्मी के दिन,दुई चार?
काले जामुन, आम रसीले,
बेर,अचार,छाछ,शरबत,
चलता पँखा घर्र घर्र कर,
सब गर्मी से बदहाल,
छुट्टी मेँ बच्चे करेँ धमाल
यूँ बीते हैँ रे,भैया,
गरमी के दिन दुई चार!
रम्मी,कैरम,ताश के पत्ते,
रानी राजा, सत्ती, अट्ठे,
जीजा, जीजी,'हा हा'हँसते,
कूलरवाले कमरे मेँ,
फैमेली फन का इँतजाम
बीते चैनभरे दिन यूँ,
गरमी के दिन दुई चार !
सीझन ब्याह का,आये दुल्हेराजा
बैन्ड बाजे गाजे,शहनाई
आरती करे दुलहिन की मम्मी,
तरबतर नाचेँ, सँग बाराती,
आइस्क्रीम खायेँ ,दादी, नानी,
उत्सव से जगमग- लकदक,
गरमी के दिन, दुई चार !
हो भैया,
आते हैँ, फिर जाते हैँ,
यूँ ही,
गर्मी के दिन, दुई -चार !
करेँ खुदाया खैर हो भैया,
गर्मी के दिन दुई चार
- लावण्या
6 comments:
अजितजी का ब्लॉग अपने गिने-चुने पसंदीदा ब्लोग्स में से है. वैसे ब्लोग्स में से हैं जिनके पोस्ट कभी बिना पढ़े 'मार्क एज रेड' नहीं किये जाते. पुस्तक आने की खबर तो थी... लेकिन कब आ रही है?
नियमित पढ़ता हूँ ब्लॉग और बहुत सीखने को मिलता है।
Jaankaaree bahut achchhee lagee
hai.Haardik badhaaee.
अजित जी की तारीफ़ में शब्द कम ही पड़ेंगे. इस आधुनिक पाणिनि के प्रशंसकों की लम्बी कतार में हम भी खड़े हैं. धन्यवाद!
आशा है कि पुस्तक भी उतनी लोकप्रिय होगी जितना कि उनका चिट्ठा है।
लावण्यादी,
आप जैसे लोगों का शब्दों का सफर के साथ होना ही बड़ी बात है और इसी वजह से यह अब तक निरन्तर है। बहुत आभार। आपने ही सबसे पहले इसकी रचना प्रक्रिया के बारे में पूछा था। इन दिनों व्यस्ततावश इसकी आवृत्ति में कुछ कमी आई है, मगर यह सामान्य बात है।
सफर के सभी साथियों का बहुत आभारी हूं।
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