ललित निबन्ध: दोपहर मेँ गाँव (पुरस्कृत)
बाल गीत:
- चलो चलें अब झील पर
- सब बोले दिन निकला
- एक बनेंगे नेक बनेंगे
- मिलकर दीप जलायें
नव साक्षरोपयोगी:
- यह बहुत पुरानी बात है
- छत्तीसगढ़ के सखा
लोक साहित्य:
लोक वीथी:
- छत्तीसगढ़ की लोक कथायें (10 भाग)
- हमारे लोकगीत
भाषा एवं मूल्यांकन :
- छत्तीसगढ़ी: दो करोड़ लोगों की भाषा
- बगर गया वसंत (बाल कवि श्री वसंत पर एकाग्र)
छत्तीसगढ़ी:
कलादास के कलाकारी (छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रथम व्यंग्य संग्रह)
शीघ्र प्रकाश्य:
- हिन्दी ललित निबन्ध
- हिन्दी कविता में घर
संपादन:
- विहंग (20 सदी की हिन्दी कविता में पक्षी)
- महत्व: डॉ. बलदेव (समीक्षक)
- महत्व: स्वराज प्रसाद त्रिवेदी (पत्रकार)
पत्रिका संपादन एवं सहयोग:
- बाल पत्रिका, बाल बोध (मासिक) के 12 अंकों का संपादन
- लघुपत्रिका प्रथम पंक्ति (मासिक) के 2 अंकों का संपादन
- लघुपत्रिका पहचान: यात्रा (त्रैमासिक) में संपादन सहयोग
- लघुपत्रिका छत्तीसगढ़: परिक्रमा (त्रैमासिक) में संपादन सहयोग
- अनुवाद पत्रिका सद्-भावना दर्पण (त्रैमासिक) में संपादन सहयोग
- लघुपत्रिका सृजन:गाथा (वार्षिक एवं अब त्रैमासिक) का संपादन
अंतरजाल पत्रिका:
- सृजन:सम्मान का सम्पादन
- कृषि आधारित पत्रिका काश्तकार को तकनीकी सहयोग
- सृजनगाथा (मासिक) का प्रकाशन व सम्पादन
वीडियो एलबम : घर:घर माँ हावय दुर्गा (छत्तीसगढ़ी)पुरस्कार एवं सम्मान:कादम्बिनी पुरस्कार (टाईम्स ऑफ़ इण्डिया), बिसाहू दास मंहत पुरस्कार, अस्मिता पुरस्कार, अंबेडकर फैलोशिप(दिल्ली), अंबिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण एवं अन्य तीन सम्मान विशेष:
ललित निबन्ध संग्रह 'दोपहर में गाँव' पर रविशंकर वि.वि. रायपुर से लघु शोध
देश में ललित निबन्ध पर केन्द्रित प्रथम अ. भा. संगोष्ठी का आयोजन
आकाशवाणी रायपुर से शैक्षिक कार्यक्रम का 2 वर्ष तक साप्ताहिक प्रसारण
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन, नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय लेखन कार्यशाला में
प्रतिभागी
राजीव गाँधी शिक्षा मिशन, मध्यप्रदेश में 2 वर्ष तक राज्य स्त्रोत पर्सन का
कार्य
देश की प्रमुख सांस्कृतिक संगठन, सृजन;सम्मान का संस्थापक महासचिव: 1995 से
चयन मंडल में संयोजन:
एक लाख से अधिक राशि वाले 30 प्रतिष्ठित एवं अखिल भारतीय साहित्यिक पुरस्कारों के चयन मंडल का संयोजक
शासकीय चाकरी:परियोजना निदेशक, संपूर्ण साक्षरता अभियान, जिला रायपुर
परियोजना निदेशक, राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन, जिला रायपुर
उप संचालक, शिक्षा, जिला रायगढ़
सचिव, छत्तीसगढ़ संस्कृत बोर्ड, छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर
सचिव, छ्त्तीसगढ़ी भाषा परिषद, छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर
विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी छ.ग. हिन्दी ग्रंथ अकादमी, रायपुर्
संपादक, अंजोर, (शिक्षा विभाग की त्रैमासिक पत्रिका)
हिन्दी चिट्ठाकारी के लिए जयप्रकाश मानस पुरस्कृत
सृजन-गाथा के चिट्ठाकार श्री जयप्रकाश मानस को उनकी हिन्दी चिट्ठाकारिता के लिए माता सुंदरी फ़ाउंडेशन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
विस्तृत समाचार यहाँ देखें.
श्री जयप्रकाश मानस जी को ढेरों बधाईयाँ व शुभकामनाएँ.
* जयप्रकाश,मानस जी , सफल व सशक्त सम्पादक हैंमहिष को निहारते हुए
आज पुरानी राहों से कोई मुझे आवाज न दे ।
एक...
तुम रत्न-दीप की रूप-शिखा
तुम दुबली-पतली दीपक की लौ-सी सुन्दर
मैं अंधकार
मैं दुर्निवार
मैं तुम्हें समेटे हूँ सौ-सौ बाहों में, मेरी ज्योति प्रखर
आपुलक गात में मलय-वात
मैं चिर-मिलनातु जन्मजात
तुम लज्जाधीर शरीर-प्राण
थर्-थर् कम्पित ज्यों स्वर्ण-पात
कँपती छायावत्, रात, काँपते तम प्रकाश अलिंगन भर
आँखे से ओझल ज्योति-पात्र
तुम गलित स्वर्ण की क्षीण धार
स्वर्गिक विभूति उतरीं भू पर
साकार हुई छवि निराकार
तुम स्वर्गंगा, मैं गंगाधर, उतरो, प्रियतर, सिर आँखों पर
नलकी में झलका अंगारक
बूँदों में गुरू-उसना तारक
शीतल शशि ज्वाला की लपटों से
वसन, दमकती द्युति चम्पक
तुम रत्न-दीप की रूप-शिखा, तन स्वर्ण प्रभा कुसुमित अम्बर
…………………
दो...
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे
आज से दो प्रेमयोगी अब वियोगी ही रहेगें
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।
आयगा मधुमास फिर भी, आयगी श्यामल घटा घिर
आँख बर कर देख लो अब, मैं न आऊँगा कभी फिर
प्राण तन से बिछुड कर कैसे मिलेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।
अब न रोना, व्यर्थ होगा हर घडी आँसू बहाना
आज से अपने वियोगी हृदय को हँसना सिखाना
अब आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे
न हँसने के लिए हम तुम मिलेंगे ।
आज से हम तुम गिनेंगे एक ही नभ के सितारे
दूर होंगे पर सदा को ज्यों नदी के दो किनारे
सिन्धु-तट पर भी न जो दो मिल सकेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।
तट नही के, भग्न उर के दो विभागों के सदृश हैं
चीर जिनको विश्व की गति बह रही है, वे विवश हैं
एक अथ-इति पर न पथ में मिल सकेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।
यदि मुझे उस पार के भी मिलन का विश्वास होता
सत्य कहता हूँ न में असहाय या निरूपाय होता
जानता हूँ अब न हम तुम मिल सकेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।
आज तक किसका हुआ सच स्वप्न, जिसने स्वप्न देखा
कल्पना के मृदृल कर से मिटी किसकी भाग्य रेखा
अब कहां संभव कि हम फिर मिल सकेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।
आह, अंतिम रात वह, बैठी रही तुम पास मेरे
शीश कन्धे पर धरे, घन-कुन्तली से गाते घेरे
क्षीण स्वर में कहा था, अब कब मिलेंगे
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।
कब मिलेंगे ?पूछता जब विस्व से मैं विरह-कातर
कब मिलेंग ?गूँजते प्रतिध्वनि-निनादित व्योम-सागर
कब मिलेंगे प्रश्न उत्तर कब मिलेंगे ?
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगे ।
…………………
तीन...
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
शुन्य है तेरे लिए मधुमास के नभ की डगर
हिम तले जो खो गयी थीं, शीत के डर सो गयी थी
फिर जगी होगी नये अनुराग को लेकर लहर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
बहुत दिन लोहित रहा नभ, बहुत दिन थी अवनि हतप्रभ
शुभ्र-पंखों की छटा भी देख लें अब नारि-नर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
पक्ष अँधियारा जगत का, जब मनुज अघ में निरत था
हो चुका निःशेष, फैला फिर गगन में शुक्ल पर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
विविधता के सत विमर्षों में उत्पछता रहा वर्षों
पर थका यह विश्व नव निष्कर्ष में जाये निखर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
इन्द्र-धनु नभ-बीच खिल कर, शुभ्र हो सत-रंग मिलकर
गगन में छा जाय विद्युज्ज्योति के उद्दाम शर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
शान्ति की सितपंख भाषा, बन जगत की नयी आशा
उड निराशा के गगन में, हंसमाला, तू निडर
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर
1 comments:
आपके ब्लोग पर मेरे पापाजी की यह अमर कविताएँ पढ कर मन हर्शोल्ल्लास मे डूब गया !
आप को सन्मान मिला उसके लिये बधाई !
निरन्तर उन्नत पथ पर पग बढ्तेँ जायेँ !
स - स्नेहाषिश
श्री जयप्रकाश मानस जी को ढेरों बधाईयाँ व शुभकामनाएँ.