इतिहास साक्षी है जब् सन १९५३ , २ जून का दिन , इंग्लैंड के लिए बहुत बड़े बदलाव को लेकर उपस्थित हुआ था चूंकि उसी ऐतिहासिक दिन , एलिजाबेथ को, इंग्लैंड की महारानी घोषित करइंग्लैंड की राज परम्परा और साम्राज्ञी एलिजाबेथ
दिया गया था --उसके पहले सन १९४७ में भारत आज़ाद गणतंत्र बनकर अपना स्वराज्य प्राप्त कर चुका था और महात्मा गांधी की नाथूराम गोडसे द्वारा , दारुण ह्त्या कर देने के पश्चात, स्वतन्त्र भारत में, पुन: स्थिति सामान्य होने लगी थी -अपनी बात कहूं तो, भारत से बाहर , पश्चिमी गोलार्ध की यात्रा के लिए, सबसे पहली बार मैंने , सन १९७४ में , स्वीटज़रलैंड की स्वीस एअर विमान सेवा से यात्रा करते हुए , यूरोपीय भूमि पर , झ्यूरीच शहर में , अपना पहला कदम रखा था
पारदर्शक शीशे के पार , बाहर , बर्फ से आच्छादित आल्प्स पर्वत श्रेणी देखकर, मन में अपार आनंद हुआ और बाहर से आती शीत और हड्डीयों तक छू ले ऐसी सर्द और तेज हवाओं के झोंकों ने एक क्षण के लिए , रेशमी साड़ी में ढंके तन को, इस भयानक शीत के आगे बेबस और असहज सा महसूस किया था और मन को ,दुविधा में डाल दिया था !ऐसी भयानक शीत लहरी से,मेरा सामना, मेरे युवा जीवन में , पहली बार ही हुआ था( बंबई में जन्मी और पली बड़ी हूँ ) के लिए, ऐसी बर्फ से भरी , जानलेवा शीत ,स्वप्न की तरह होती है जिसे हिन्दी फिल्मों में ही इससे पहले देखा था -ठण्ड से कांपते हुए हम , विमान की ओर ,उलटे पैरों भागे और भीतर अपनी सीट पर बैठने के बाद ही कुछ राहत महसूस की थीफिर प्लेन जीनीवा गयाजो ड़ोमेसटीक ( Domestic ) माने, एक राज्य के एक प्रांत से दुसरे तक के भीतरी उड़ान थी -फिर यात्रा का अगला पड़ाव आया ग्रेट ब्रिटन !वहां के , लन्दन शहर का हीथ्रो विमान मथक सामने था और यही ख्याल आया केअब हम महारानी एलिजाबेथ की नगरी में अपने कदम रख रहे हैं...........
लन्दन शहर हरा भरा है . ये एक अतिविशाल और समृध्ध नगरी है .जहां एतिहासिक , सांस्कृतिक व कला के साथ साथ ,कई तरह के उद्योग और व्यापार की कई बड़ी बड़ी इमारतें हैं .
एक सैलानी के लिए, लन्दन शहर का प्रथम दर्शन , काफी रोमांचकारी अनुभव दे जाता है और उस अनुभव पर आप , कई सारे आध्याय लिख सकते हैं
ब्रिटीश किंगडम , U.K. = इंग्लैंड , वेल्स और स्कोत्लैंड और उत्तर आयरलैंड
की मिलीजुली संयुक्त भूमि का हिस्सा है जिसे ११ वीं सदी के बाद ,
राज परिवार के द्वारा शासित किया जाता रहा है
अब साथ साथ पार्लियामेंट भी जनता के ऊपर है और प्रधानमंत्री भी हैं
पर राज परिवार का दबदबा और शानो शौकत आज भी वहां पर, कायम है --
वहीं से चली एक व्यापारी सत्ता , ईस्ट इंडीया कंपनी ने,
भारत में प्रवेश किया था और मुग़ल सल्तनत के बाद भारत भूमि पर,
अपना वर्चस्व स्थापित किया था
- भारत और ग्रेट ब्रिटन इतिहास के पन्नों पर इस प्रकार, एक साथ जुड़ गये थे
महारानी विक्टोरिया ने , अंग्रेजों द्वारा चलायी जा रही सरकार - ईस्ट इंडीया कंपनी से ,भारत की बागडोर अपने हाथों में लेकर , भारत की साम्राज्ञी बनने का ऐलान किया -तारीख थी १ जनवरी १८७७ट्रावन्कोर के महाराज ने महारानी के लिए,भव्य हाथीदांत से बना हुआ सिंहासन भेंट किया थाउसी पर महारानी विक्टोरिया विराजमान हुईं थींभारत की महारानी विक्टोरिया ने अपने सेवक अब्दुल करीम सेहिन्दुस्तानी सीखने का प्रयास भी किया था --प्रस्तुत हैं महारानी के संग्रह से प्राप्त कुछ दुर्लभ चित्रअब्दुल करीमग्रेट ब्रिटन की महारानी ऐलिज़ाबेथ का विवाह राज कुमार फीलीप्स के संग सन १९४७ में हुआ था तब महात्मा गांधी ने अपने हाथों से बुनी हुई खादी के तागों से गुंथी एक शोल , गांधी जी के आदेशानुसार बनवा कर ,
ज़नम स्थान: १७ ब्रुटोन स्ट्रीट, मे फेर, लँडन यु.क़े.( युनाइटेड किँगडम)
पिता:प्रिँस आल्बर्ट जो बाद मेँ जोर्ज ४ बनकर महारज पद पर आसीन हुए.
माता:एलिजाबेथ -बोज़ लियोन ( डचेस ओफ योर्क - बाद मेँ राजामाता बनीँ )इतिहास के शिक्षक: सी. एह. के मार्टेन - वे इटन कोलेज के प्रवक्ता थे
घर मेँ प्यार का नाम: "लिलीबट "
शिक्षा : उनके महल मेँ हीधार्मिक शिक्षा : आर्चबीशप ओफ केन्टरबरी से पायी
बडे ताऊ :राजा ऐडवर्ड अष्टम ने जब एक सामान्य अमरीकी नागरिक एक विधवा, वोलीस सिम्प्सन से प्रेम विवाह कर लिया तब एडवर्ड अष्टम को इंग्लैण्ड का राजपाट छोडना पडा था तब , ऐलिज़ाबेथ के पिता सत्तारुढ हुए --
१३ वर्ष की उम्र मेँ , द्वीतीय विश्व युध्ध के समय मेँ , बी.बी.सी. रेडियो कार्यक्रम" १ घँटा बच्चोँ का" मेँ अन्य बच्चोँ को अपने प्रसारित कार्यक्रम से एलिजाबेथ ने हीम्मत बँधाई थी बर्कशायर, वीँडज़र महल मेँ, युध्ध के दौरान निवास किया थाजहाँ भावि पति , राजमुमार फीलिप से उनकी मुलाकात हुईजो उसके बाद , नौसेना सेवा के लिये गए और राजकुमारी उन्हेँ पत्र लिखतीँ रहीँक्यूँकि उन्हेँ राजकुमार से, प्रेम हो गया था
१९४५ मेँ, नंबर २३०८७३ का सैनिक क्रमांक उन्हें मिला था --१९४७ मे पिता के साथ दक्षिण अफ्रीका, केप टाउन शहर की यात्रा कीऔर देश भक्ति जताते हुए रेडियो प्रसारण किया२० नवम्बर, १९४७ मेँ ड्यूक ओफ ऐडीनबोरो, जिनका पूरा नाम हैकुँवर फीलिप ( डेनमार्क व ग्रीस के ) , इस राजकुंवर से
भव्य विवाह समारोह में , नाता स्थापित हुआ
१९४८ मेँ प्रथम सँतान, पुत्र चार्ल्स का जन्म-
१९५० मेँ कुमारी ऐन का जन्म -
१९६० मेँ कुमार ऐन्ड्रु जन्मे -
१९६४ मेँ कुमार ऐडवर्ड चौथी और अँतिम सँतान का जन्म हुआ
१९५१ तक "माल्टा " मेँ भी रहीँ जहाँ फीलिप सेना मेँ कार्यरत थे -६ फरवरी,१९५२ वे आफ्रीका के केन्या शहर पहुँचेजहाँ के ट्रीटोप होटेल "ठीका" में वे , नैरोबी शहर से २ घंटे की दूरी पर थे -वहाँ उन्हेँ बतलाया गया कि उनके पिता की ( नीँद मेँ ) रात्रि को मृत्यु हो गई हैसो, जो राजकुमारी पेडोँ पर बसे होटल पर चढीँ थीँ वे रानी बनकर उतरीँ !!भव्य समारोह २ जून १९५२ को वेस्ट मीनीस्टर ऐबी मेँ सम्पन्न हुआजब वे धार्मिक रीति रिवाज से ब्रिटन की महारानी के पद पर आसीन हुईं
ns.विश्व का सबसे बड़ा हीरा " कुलियन " है जो ५३० केरेट वजन का है और महारानी एलिजाबेथ के स्केप्टर में लगा हुआ है और भारत से इंग्लैंड पहुंचा कोहीनूर हीरा विश्व का सबसे विशाल हीरा है जिसे एलिजाबेथ की माता ने अपने मुकुट में जड्वाकर पहना था ---- कोहीनूर की चमक दमक आज भी वैसी ही बकरार है , जैसी सदीयों पहले थी २०१०, २ जून , आ पहुँची है और इंग्लैंड के राज सिंहासन पर एलिजाबेथ , आज भी शान से विराजमान हैं परंतु आज उनका परिवार कई बदलावों से गुजर चुका है और ना सिर्फ इंग्लैंड में , बल्कि संसार भर में अब कई नयी प्रमुख व्यक्तियों के नाम मशहूर हो चुके हैं जैसे बील गेट्स ! संसार के सबसे धनिक !संसार चक्र , अपने नये दौर से गुजर रहा है ............आशा है आपको ये बातें पसंद आयीं होंगीं .......फिर मिलेंगें ........जयहिंद !!- लावण्या
27 comments:
बहुत बढ़िया रोचक विवरण दिया आपने.
बेहतरीन वृतांत, उम्दा जानकारी, शानदार चित्र और इतिहास से रुबरु कराया आपने. आनन्द आ गया. बहुत ही बेहतरीन आलेख.
आदरणीया दादी शा, एक बेहद उम्दा, खोजपरक लेख के लिए आभार.. बड़े ही दुर्लभ चित्र एवं जानकारी नज़र में लाये आपने. एक गुस्ताखी माफ़ हो कि यू.के. में उत्तरी आयरलैंड राज्य और जोड़ लेवें..
लावण्याजी, क्या बात है बहुत ही जानकारीपरक पोस्ट है। महारानी एलिजाबेथ का इतिहास बताकर और साथ में अपनी पहली यात्रा का संस्मरण अच्छा लगा।
आईये जाने .... प्रतिभाएं ही ईश्वर हैं !
आचार्य जी
बहुत सी नई जानकारियाँ मिलीं।
ज्ञानवर्धक आलेख!
बहुत दिनों बाद एक जबरदस्त यात्रा संस्मरण विवरण के साथ दर्शन दिया आपने -शुक्रिया !
शोधार्थियों के लिये बहुत ही जानकारी से भरा आलेख है ये । आपके पास इतनी जानकारियां आती कहां से हैं दीदी साहब । काहिनूर को देख कर अच्छा लगा और दुख भी हुआ कि हम ने क्या क्या खो दिया है ।
संस्मरण अच्छा लगा। लन्दन परिष्कृत अभिरुचि वालों का पसन्दीदा नगर है। लता मंगेशकर को भी बहुत पसन्द है।
वर्तनी की ढेरों अशुद्धियाँ खटकती हैं।
मैं यह अनुमान लगा रहा हूँ कि हाथी दाँत के सिंहासन के लिए कितने हाथी वधित हुए होंगे!
@ विश्व का सबसे बड़ा हीरा " कुलियन "
कोहीनूर हीरा विश्व का सबसे विशाल हीरा
विशाल और बड़ा में क्या अंतर ! कुछ गड़बड़ है। कोहिनूर को कुछ लोग स्यमंतक मणि भी मानते हैं। रत्न शास्त्र की दृष्टि से इसमें दोष भी हैं। इसे अशुभ माना जाता है - वैधव्य को लाने वाला।
कुछ जानकारियाँ मेरे लिए नयी हैं। आभार।
bahut sundar prastuti...
bas zara sa confusion laga
girijesh ji ki baat meri bhi..
aapka aabhaar..
दुर्लभ चित्र एवं अच्छी जानकारी लावण्या जी. धन्यवाद!
हमें कितना ही क्यूं न चुभे हम अपने इतिहास को झुटला नही सकते । लावण्याजी आप की जानकारी सदैव ही विस्तृत और सही होती है । दिखने में तो कोहिनूर ही बडा दिख रहा है । हम भी हमारे लंदन ट्रिप दौरान इसे देख आये ।
हमें इतिहास से सबक लेते हुए अपने बच्चों को भविष्य के लिये तैयार करना चाहिये । हमारी मीडिया को देशभक्ती को प्रेरक कार्यक्रमों को पेश करना चाहिये ताकि नई पीढी में देशभक्ति की भावना जगे और तीव्र हो ।
साम्राज्ञी की दस अमेरिकन राष्ट्रपतियों के साथ चित्र देख कर मैं आश्चर्य में रह गया । ईमेल कीजिये, मैं वह मेल आपको भी भेजता हूँ ।
लावण्यादी...आपके अनुभवों के साथ साथ विदेशी इतिहास की जानकारी भी रोचक लगी.. आभार
शानदार वर्णन...आपके साथ अतीत में झांक कर आनंद आ गया ...इस दुर्लभ जानकारी को हम तक पहुँचाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार...
नीरज
@गिरिजेश भाई आज की तारीख में कलिनन ही विश्व का सबसे बड़ा हीरा है.. मैंने भी कोहिनूर और कलिनन दोनों प्रत्यक्ष देखे हैं.. दोनों की चमक में फर्क है और आकर में भी. कोहिनूर के साथ ये कहानी भी जुड़ी है कि ये पुरुषों के लिए अशुभ है तभी ये विक्टोरिया को तोहफे में दिया गया था(पंजाब के एक महाराजा दिलीप सिंह ने अपनी सत्ता बचाने के लिए) और तब से यह उसी के पास है.. वैसे आपको कोहिनूर के खूनी इतिहास जो कि महाभारत से शुरू होकर कुछ साल पहले तक चला.. वो पता ही होगा. ये जानकर अच्छा लगा कि सिंहासन के बारे में आपके मन में भी वही विचार आया जो मेरे में आया था. कभी कोहिनूर की खुद के द्वारा निकाली गई तस्वीर भी दिखाऊंगाआपको.
Lavanya ji
kya kahoon, kya likhoon is vistaar ko dekhkar, padkar, hairaan hoon, samudra sa gahara sagar manav man mein bahta rahta hai aur hum vahin ke vahin sahra ki pyaas liye bhatak rahe hain. Aapke blog par ane par sahil ke aasar nazar aate hain ..sahitya ke sabhi sadgun yahan aas paas mandraate dikhayi dete hain. bahut bahut daad ke saath
शिखा जी,
समीर भाई,
चि. दीपक बेटे ,
अजित जी,
आचार्य जी,
दिनेश भाई जी,
आ. शास्त्री जी,
अरविन्द भाई सा'ब,
स्वर कोकीला ' अदा ' जी,
अनुराग भाई,
आशा जी,
प्रवीण भाई,
मीनाक्षी जी ,
नीरज भाई,
व देवी जी -
आप सभी का यहां आकर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रियाएं रखने का
बहुत बहुत आभार
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नमस्ते गिरिजेश भाई ,
आप ने ध्यान से मेरी प्रविष्टी पढी ...शुक्रिया ! आपकी बात सही है - वर्तनी के कई अशुध्धियाँ रह गईं हैं --
आज कुछ को ठीक कर पायी हूँ ....
आप ने पूछा था न, कोहीनूर -
और कुलीयन हीरे के लिए ...
ये लिंक भेज रही हूँ --
परम गुणी अनुज पंकज जी
मैं अकसर मेरी प्रविष्टी के लिए बहुत कुछ रीसर्च करती हूँ ....उसी में से ये भी एक कड़ी रीफर की थी
http://famousdiamonds.tripod.com/koh-i-noordiamond.html
और
http://famousdiamonds.tripod.com/cullinandiamonds.html
स स्नेह,
- लावण्या
उम्दा पोस्ट.
संस्मरणात्मक और शिक्षाप्रद रूप से यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी.... कई सारी नई जानकारियाँ भी मिलीं......
आपके संस्मरण अच्छा लगा। "ट्रावन्कोर के महाराज" के बारे में जान पाया तो "कोहिनूर" के दर्शन कर अभिलाषा पूर्ण करने अवसर प्रदान किया! विशेष "महात्मा गांधी" ने अपने हाथों से बुनी हुई खादी के तागों से गुंथी एक "शोल" महारानी कों भेट क़ी, शायद हम राष्ट्र भक्तो के लिए अब वो शोल "कोहिनूर" से कम नही प्रतीत होती होगी ? विशेष आपके अथक एवं सटीक जानकारियों से लाभावत हुए -आभार!
विशेष दीदी ,सन १९७४ में ,झ्यूरीच शहर में , आपका पहला कदम पड़ा .....वहा क़ी बर्फ शीत हवाओं ने आपको सताया ..... आपके साथ अतीत में मै भी घूम आया !
वैसे दीदी, भारत के कई प्रान्तों क़ी महारानिया, महारानी एलिजाबेथ से ओजस्वी थी, महारानी एलिजाबेथ से कही अधिक धन-दोलत,शानो= शोकत वाली थी. पर पटल से ओजल है! महाराजा रणजीत सिह द्वारा भेट कोहिनूर से प्रतीत होता है के भारतीय राजा महाराज के खजानों में कोहिनूर से भी कही ज्यादा कीमती हीरे जह्वारात रहे होगे! महारानी एलिजाबेथ ने हमेशा ही गिफ्ट लिए है, कीमती गिफ्ट देने का कोई इतिहास मोजूद नही है !
दीदी! हमारे लिए तो आप ही महारानी एलिजाबेथ है, हिंदी ब्लॉग जगत का कोहिनूर भी ...
देर आये दुरुस्त आये की ही तरह आपकी हर पोस्ट " कोहिनूर " होती है ...!!
Lavanya ji,
Jaanakaripurn aalekh.
Aabhar.
Chandel
Lavanya Di
Nice article with great historical info.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
behatarin information keep it up
itni gyanvardhk jankari apka bahut bhut dhnywad .
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