मैंने अमरीका भूखंड का एक छोर से दूसरे तक का लंबा प्रवास किया है । आज मेरा मन कर रहा है, कि चलिए, आज आपको ले चलती हूँ - उत्तर अमेरिका के पश्चिमी छोर पर ... जहाँ भारतीय शास्त्रीय संगीत और प्रशांत महासागर की सुमधुर जुगलबंदी से मेरा साक्षात्कार हुआ था । वहाँ का पहला प्रवास सन 1974 से 1976 तक रहा । आवास पश्चिमी किनारे पर बसे केलीफोर्निया प्रांत के लॉस एंजिलिस शहर में रहा और यह लॉस एँजिलिस शहर अमरीका के सबसे ज़्यादा घनी आबादीवाला प्रदेश है ।
लॉस एँजिलिस से उत्तर या दक्षिण दिशा में फ्रीवे नंबर 101 विश्व के सबसे रमणीय बृहत मार्ग से यात्रा करना अपने आप में एक अदभुत अनुभव है । आप जब अपनी कार में बैठकर यात्रा करते हैं तब पूरे समय ये मुख्य मार्ग विश्व के सबसे विशाल प्रशांत महासागर के नील वर्णीय जल में उठती उत्ताल फेनिल तरंगों के साथ हिलोरें लेते हुए समुन्दर के साथ सटे हुए रोकी नामक पहाड़ों की उठती गिरती नन्हीं-नन्हीं पहाडियों पर सर्पीली गति से आगे रेंगती, वृत्ताकार घूमती हुई साफ़ सड़क पर लगभग फिसलते हुए चलता है । और आप आगे बढ़ते रहते हैं ।
सच मानिए उस वक़्त आप अपने आपको एक नन्हे पंछी की तरह बादलों के पार मनहर गति से उड़ता हुआ सा अनुभव करते हैं । उस अवस्था में हम प्रकृति की मनोमुग्धकारी सुन्दरता के सामने अपने आपको एक लघु बिन्दु से अधिक नहीं जान पाते ! ऐसा मेरा अनुभव रहा है ।
सच, ये यात्रा अनुभव अति विशाल और क्षितिज के छोर तक फैले असीम प्रशांत महासागर को देखकर अपने अस्तित्त्व को अति लघु मान लेने के लिए विवश कर देता है ।
प्रशांत महासागर की विशाल लहरों के बीच में कहीं-कहीं विश्व की सबसे विशाल व्हेल मछली भी फूँफकार करती जल उड़ा कर ओझल हो जाती है तो कहीं सुफ़ेद सी गल नाम की पंछी हवा में तैरते हुए दूर उड़ कर जाते हुए दीख जाते हैं ।
समुन्दर अविरल उमड़ घुमड़ कर गर्जन-तर्जन करता अपनी स्वतन्त्र सत्ता का एलान करता है । हरियाली, पहाडी ढ़लान वाले रास्ते और नीलवर्ण महासागर तीनों के संग मनुष्य और आधुनिक राज्य मार्ग पर तेज़ रफ़्तार से सफ़र करतीं गाडियाँ एक अनोखा माहौल रच देती हैं । ऐसे ही एक पहाडी मोड़ पर प्रशांत महासागर पर खड़ा ये साईप्रस का पेड़ मुझे किसी तपस्यारत सन्यासी की याद दिला गया था । इस इलाक़े के समुद्र को 'अशांत सागर' या ' रेस्टलेस सी ' कहते हैं । देखिये ये चित्र जो मुझे बहुत प्रिय है -
हमने शहर लॉस एँजिलिस से सान फ्रान्सीसको शहर तक इसी फ्रीवे से ऐसी कई बार यात्राएँ कीं हैं । सन 1975 में और फिर बच्चों के संग सन 1985 में भी । 1995 में फिर लॉस एँजिलिस जाना हुआ था । अब तो यह मनोरम स्थान अपना-सा,चिरपरिचित और पहचाना सा लगता है ।
ऐसी ही एक यात्रा की बात है...जब हम सान फ्रान्सीसको से 10 मील की दूरी पर स्थित एक सुन्दर पर्वत के ढलान पर बसे छोटे और शांत शहर सान राफ़ेल की ओर मुड़े थे और वहाँ एक महान भारतीय संगीतकार का नाम देखकर हर्ष मिश्रित आश्चर्य हुआ था और मैं विचारों के सागर में डूबकी लगाते वक़्त सोच रही थी...
" अरे ! मुग़ल वंश के शहनशाह अकबर के राज दरबारी गायक, मियाँ तानसेन के घराने से सम्बंधित , संगीत प्रणाली रामपुर राज्य के राज गायक मुहम्मद वजीर ख़ान साहब से चलकर जो बाबा अल्ल्लाउद्दीन ख़ान साहब के गुरु थे और उनके मशहूर बेटे तक चलकर आज अमेरिका के पश्चिम तट पर "संगीतम मनोरम" का उदघोष करती विराजमान है ...यह कैसी विस्मयकारी संयोग है !"
सामने रास्ते के ऊपर टँगी एक विशाल तख्ती पर नाम लिखा था -
" अली अकबर ख़ान कोलेज ऑफ़ म्युझिक " और नीचे राज गायक मुहम्मद वजीर ख़ान साहब का चित्र ।
सन 1955 में अली अकबर ख़ान साहब पहली बार अमरिकी धरा पर आये । सबसे पहली भारतीय संगीत की सीडी अमेरिका में, उन्होंने बनवाई थी । सन 1960 में टेलीविज़न पर प्रथम भारतीय शास्त्रीय संगीतकार के दर्शन अमरिकी जनता को अली अकबर ख़ान साहब ने अपने दीदार से ही करवाए थे जिसके बाद अनगिनत कलाकारों ने अमेरिका आकर अपनी कला का प्रदर्शन किया है । परन्तु खां साहब इन सभी में अग्रणी रहे हैं ।
सन 1953 में हिन्दी चित्रपट ‘आँधियाँ’ देवानंद के भाई चेतन आनंद के निर्देशन में नव केतन निर्माण संस्था की प्रथम फ़िल्म के लिए उस्ताद अली अकबर ख़ान साहब ने अपना संगीत दिया था जो फ़िल्म के लिए पहला संगीत था और इस फ़िल्म के गीत लेख़क मेरे स्वर्गीय पिता पण्डित नरेंद्र शर्मा जी ही थे । इसीफ़िल्म काएकगीत (स्वर साम्राज्ञीसुश्री लता मंगेशकरद्वारा गाया हुआ) सुनिए....
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(गीतकार आदरणीय पंडित नरेन्द्र शर्माजी को उनकी पुण्यतिथि (11 फरवरी पर सादर समर्पित ) आप कल्पना कीजिये अगर हिन्दी के सुप्रसिद्ध गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्माजी, जिनके अधिकांश गीत शुद्ध हिन्दी में लिखे गये हैं; अगर उर्दू में गीत लिखें तो....
आँधियाँ फ़िल्म के अलावा 'हाउस होल्डर ' जो आईवरी मर्चेंट फ़िल्म संस्था की प्रथम फ़िल्म थी, उसका संगीत भी अली अकबर ख़ान सा'ब ने दिया था । सत्यजीत रे की प्रसिद्ध फ़िल्म 'देवी ' का संगीत ख़ान साहब की देन है, जिसमें देवी के क़िरदार को जीया शर्मिला टैगौर ने । बांग्ला फ़िल्म जगत में शर्मीला जी का यह पहला क़दम था और उन्होंने असीम सफलता भी हासिल की थी । उसके बाद ' क्षुधित पाषाण ' फ़िल्म का संगीत भी अली अकबर ख़ा साहब ने दिया था । मशहूर इतालवी फ़िल्म निर्माता बर्नान्दो बर्तोलुच्ची ने 'लिटिल बुध्धा' फ़िल्म बुद्ध भगवान् पर बनायी तब उसके लिए भी उस्ताद अली अकबर ख़ान साहब ने संगीत दिया था ।
कोलकाता, स्विटज़रलैंड और केलिफ़ोर्निया जैसे विविध भौगोलिक स्थानों पर इन्होंने संगीत संस्थाएँ व शास्त्रीय संगीत की स्कूल खोली और दुनिया के कोने-कोने में भारतीय शास्त्रीय संगीत को फैलाया
ये उनकी अनेकविध उपलब्धियों में से सिर्फ़ कुछेक हैं -
भारत स्वतंत्रता समारोह न्यूयोर्क के संगीत जलसे में अपने जीजा सुप्रसिद्ध सितारवादक पंडित रविशंकर के साथ संगत करते हुए उस्ताद अली अकबर ख़ान साहब ने संगीत संध्या में भारतीय संगीत के झंडे गाद दिए और हर देसी और विदेशी को, अपनी सुरीले संगीत के बल से, मन्त्र मुग्ध कर दिया था ।
संगीत सीमा में कहीं बंध पाया है ? संगीत हर कौम, मज़हब या देश से परे ईश्वरीय आनंद की धारा है, जो हर इंसान में बसे ख़ुदा या ईश्वर से सीधा सम्बन्ध जोड़ने में सहायक सिद्ध होती है ।
उस्ताद अली अकबर ख़ा साहब के प्रयास से अमरीका में भारतीय संगीत संस्थान प्रतिष्ठित हो चुका है । कई अमरीकी विद्यार्थी दूसरे मुल्क़ों से आये संगीत शिक्षा के प्रति उत्सुक छात्रों ने यहाँ भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रणाली की विविध विधा व वाद्य यन्त्रों को सीखकर बजाने की विधिवत शिक्षा पायी है । आज यहाँ तबला वादन में स्वप्न चौधरी विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं । इस कारण यह संस्थान भारतीय शास्त्रीय संगीत की पताका को पश्चिम के मुक्त आकाश में फहरानेवाली एक विशिष्ट भूमिका में देखी जाती है । इसका पता है - www.aacm.org
फिर मुलाक़ात होगी...ऐसी ही किसी विशिष्ट शख़्शियत से मुलाक़ात और संगीत साहित्य और कला के विविध आयामी पहलूओं से आपसे बतियाने के लिए...
13 comments:
बहुत सुन्दर आलेख! लेख में वर्णित फ़िल्में नहीं देखी हैं मगर सम्बंधित कालजयी हस्तियों का प्रशंसक हूँ.
शानदार पोस्ट....हमेशा की तरह पढ़कर आनंद आया और नई जानकारी मिली.
बेहतरीन-नये ज्ञान को समाहित करनें वाली रोचक पोस्ट.
उस्ताद साहब हों या हाइवे 101,
जानकारी अच्छी लगी।
यहाँ बैठ कर अमेरिका की यात्रा का लुत्फ़ दिया आपने मैम.. आभार..
आपसे कुछ आवश्यक परामर्श करना था यदि संभव हो तो mashal.com@gmail.com पर अपना फोन नंबर दीजिये प्लीज..
सादर
बहुत ही रोचक वर्णन ।
आपके माध्यम से घूम लिया और अमेरिका में भारतीय संगीत के हस्ताक्षर भी देख लिये!
बहुत सुन्दर।
कितनी सारी बातें जानने को मिली इस पोस्ट से. हर बार की तरह अद्भुत पोस्ट.
बहुत ही सुन्दर पोस्ट एक - एक वर्णन मन को अन्दर तक छू गया |इन अतिहसिक वाक्यों से परिचय करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद |
Didi
V Nice post.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
yah post redionama par adhik uchit rahati.
nice post.
प्रशंसनीय ।
ममा...यह आलेख बहुत अच्छा लगा..... बहुत अच्छे से डिस्क्राइब किया है आपने....
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