एक अमरीकी , भारत प्रेमी लेख़क से मिलिए,
जिनका नाम है, श्री रोबेर्ट आर्नेट :
" India Unveiled " / भारत की छवि , बे नकाब सी "के लेख़क
" INDIA UNVEILED "
कुछ वर्ष पूर्व, जब् मेरी मुलाक़ात श्री रॉबर्ट आर्नेट से हुई तब मुझे , मेरे पति दीपक जी और रॉबर्ट आर्नेट जी को ,
मेरी सहेली श्रीमती शुभदा जोशी जी ने, उनके आवास पर सांध्य - भोजन के लिए निमंत्रित किया था ~
अब, आप को एक बड़े मार्के की बात से अवगत करवा दूं ,
अब, आप को एक बड़े मार्के की बात से अवगत करवा दूं ,
अमरीका में , अपने नाम को अकसर संक्षिप्त करने का एक ख़ास चलन है .
जिसके कारण , थोमसन नाम के इंसान को टॉम और चार्ल्स , को चार्ली या रॉबर्ट को बोब, तो रिचर्ड को रीक और वीलीयम को बील के संक्षिप्त नाम से , अकसर पुकारा और पहचाना जाता है -
ये बात , मैं, एक दीर्घ अंतराल के अमेरीकी निवास और उससे जन्मे अनुभव के बाद ही जान पायी हूँ जी हां, तो इसी बात से , कुछ याद आया क्या ?
अमरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति का पूरा नाम वीलीयम ही है पर वे " बील क्लिंटन " के नाम से ही सु - प्रसिध्ध हुए हैं और पूरा संसार उन्हें " बील " के संक्षिप्त नाम से ही आज पहचानता है। अत: रॉबर्ट आर्नेट जी ने अपना परिचय कराते हुए हमें ,अपना नाम , अमरीकी रस्म के मुताबिक़ "बोब " ही बतलाया !
बोब से मिलकर हमने ये जाना के वे एक सौम्य, शांत और मृदुभाषी व्यक्तित्त्व के धनी ' बोब ' , भारत देश के अनन्य पुजारी भी हैं और हमें ये भी पता लगा के, वे, भारत में, कई यात्राएं कर चुके हैं और आम भारतीयों से मिलजुल कर बेहद प्रसन्न होते हैं।
रॉबर्ट का जन्म संपन्न परिवार में हुआ था ये बात , मैं समझ पायी थी , हालांकि, उन्होंने अपने बीते जीवन के बारे में ज्यादा खुलकर , उस वक्त , बातें नहीं कीं थीं ~ उनके जीवन में ऐसी कौन सी घटना घटी होगी जिससे उनमे पश्चिम की जीवन शैली को छोड़ कर , भारत के प्रति अदम्य आकर्षण और अपनत्व का भाव पैदा हुआ ये मैं नहीं जानती थीरॉबर्ट के जीवन से सम्बंधित कुछ तथ्य, बाद में, जान पायी हूँ~
शिक्षा एवं कार्य क्षेत्र : एम्. ए., मास्टर्स की शिक्षा, इतिहास के विषय में, इन्डीयाना विश्व विद्यालय से प्राप्त की, जोर्जिया, तुलाने विश्व विद्यालय , लन्दन विश्व विद्यालय में शिक्षा लेने के बाद, २ वर्ष अमरीकी सेना में सेवारत रहते हुए टर्की राज्य में कार्य किया - मेरीलैंड विश्व विद्यालय में , पश्चिमी सभ्यता का इतिहास विषय का अद्यापन कार्य किया था. रॉबर्ट ने अपनी पुस्तक की भूमिका में एक ये प्रसंग भी लिखा है ~एक बार वे जब किसी कला प्रदर्शनी देखने गये थे और किसी मित्र की बातों ने उन्हें , भारयीय योग प्रणाली तथा इतिहास तथा भारतीय सभ्यता के प्रति सर्व प्रथम आकर्षित किया था ~ नतीजन, रॉबर्ट ने भारत यात्रा का निर्णय ले लिया था और प्रथम यात्रा में ही उन्हें , भारत भूमि ने आकर्षित कर लिया ~ दूसरी यात्रा तक वे इस कदर भारत के मोहपाश में बंध चुके थे के उन्हें भारत ही अपना असली घर महसूस होने लगा और फिर भारतीय रंग ने पूरी तरह उनके व्यक्तित्त्व को बसन्ती रंग में भिगो दिया !
आज जो रॉबर्ट का व्यक्तित्व सामने देखा वही , सच था जिसे , अमेरीकी अंदाज़ में कहें तो ' फेस वेल्यु ' माने ' जैसा पाया वैसा ही ' इस मैत्री भावना से, हमने भी , रॉबर्ट जी की मित्रता को और उनके व्यक्तित्त्व को अपना लिया
मेरी मान्यता है के जन्मजन्मान्तर में जब् हम चोला बदलकर, बसन्ती रंग का चोला धारण कर लेते हैं तब हम सच्चे भारतीयत बन पाते हैं और हमारी अंतरात्मा भी गा उठती है, " मेरा रंग दे बसन्ती चोला माँ ये रंग दे बसन्ती चोला " तो बोब का चोला भी , विशुध्ध बसन्ती , भारतीय रंग में रंग उठा था और भारत की ओर खिंचा चला आया था ~
उन्हीं के शब्दों में, सुनिए
उन्हीं के शब्दों में, सुनिए
" जब् मैं भारत पहुंचा तब मुझे एक भरपूर विश्रांति मिली , ऐसा लगा , मानों , मैं बहुत बरसों बाद अपने घर , लौट कर, आ पहुंचा हूँ ! "
वाकई रॉबर्ट आर्नेट का व्यक्तित्त्व मुझे एक अनमोल रत्न की तरह, एक चमत्कृत करनेवाली आभा लिए , भारतीय संस्कृति की ज्योति से दमकता हुआ सा , ही दीखलाई दिया !
उनसे प्रथम बार भेंट हो रही थी सो, मैं , उनके लिए , एक छोटा सा चांदी का सिक्का ,( बिलकुल चार आने के सिक्के जितना ) ले आयी थी जिस पर श्री ठाकुर रामकृष्ण परमहंस देव की पावन छवि बिराजमान थी जिसे मैंने , कुछ अरसे से संजो कर रखा था ~ मैं, ठाकुर रामकृष्ण देव को, अपने गुरु मानती हूँ और इस नवागंतुक , बाह्य रूप से परदेसी , परंतु मन से सर्वथा भारतीय , लेख़क को , यही भेंट करना चाहती थी. रॉबर्ट महोदय ने , मेरा अनुरोध स्वीकार करते हुए, इसे , सहर्ष स्वीकार किया और जो उन्होंने इसे, लेते वक्त कहा वह रहस्यपूर्ण था - उन्होंने कहा, ' मैं, जोर्जिया प्रांत ( जो दक्षिण में है ) से आ रहा था तब , सागर किनारे , कुछ पल रूका था और सागर की उत्ताल तरंगों का नीला रंग , मुझे अभिभूत कर रहा था और मैं , ( रॉबर्ट ) अनायास श्री रामकृष्ण परमहंस देव को याद कर रहा था चूंकि, " राम और कृष्ण " दोनों ही , हिन्दू धमानुसार, नील वर्ण हैं ..और आप श्री रामकृष्ण का मिलाजुला स्वरूप , भगवान् ठाकुर , मेरे लिए भेंट स्वरूप ले कर आयीं हैं ! लीजिये पहना दीजिये ..." और इतना कहकर वे एक भोले भाले शिशु की तरह , मेरे सामने , गर्दन झकाकर, बैठ गये ! सच ! ऐसा निश्छल स्वरूप , मैंने इससे पहले किसी वयस्क में पहले कभी नहीं देखा था! मैंने वह लोकेट उनके गले में पहना दिया और तब रॉबर्ट ने सहर्ष , आभार प्रकट किया।
हमारी बातचीत हुई तब मेरा अनुमान शीघ्र दृढ निश्चय में बदल गया और यही निष्कर्ष पर पहुँची के ऊपर से शांत सौम्य सर्वथा साधारण दीखाई देनेवाले अमरीकी "बोब ", वास्तव में असाधारण ज्ञानी हैं ! आगे पता चला ,
क्रिया - योग में भी उनकी काफी पहुँच है। रॉबर्ट आर्नेट ने एक बच्चों के लिए ,
सचित्र पुस्तक लिखी है - जिसके नाम का भावार्थ है,
" जिन खोजा तिन पाईया " Finders Keepers "
उनकी दूसरी पुस्तक है ," भारत की छवि , बेनकाब सी "
या अंग्रेज़ी में कहें तो, " India, Unveiled "
देखिये लिंक : प्रस्तावना में रॉबर्ट आर्नेट लिखते हैं ,
देखिये लिंक : भारत की छवि बे नकाब सी प्रस्तावना में रॉबर्ट आर्नेट लिखते हैं
" यह पुस्तक , मैं, आटोबायोग्राफी ऑफ़ अ योगी " लिखनेवाले परम योगी योगानंद जी की स्मृति को तथा सदीयों से भारत भूमि पर अवतरित होते उन संत महात्माओं को समर्पित करता हूँ , जिन्होंन्ने दुनयवी प्रलोभनों का परित्याग करते हुए, आत्मोसर्ग करते हुए, योग के, उद्धारक व महाज्ञान की ज्योति को सर्व धर्मानुलाम्बी मानव समुदाय के लिए उजागर किया जिसके फल स्वरूप , हर आत्मा, उस " एक " में, पुन: प्रस्थापित हो पायेगी " इस पुस्तक में अनेक रंगीन चित्र हैं देखिये ये लिंक :
" यह पुस्तक , मैं, आटोबायोग्राफी ऑफ़ अ योगी " लिखनेवाले परम योगी योगानंद जी की स्मृति को तथा सदीयों से भारत भूमि पर अवतरित होते उन संत महात्माओं को समर्पित करता हूँ , जिन्होंन्ने दुनयवी प्रलोभनों का परित्याग करते हुए, आत्मोसर्ग करते हुए, योग के, उद्धारक व महाज्ञान की ज्योति को सर्व धर्मानुलाम्बी मानव समुदाय के लिए उजागर किया जिसके फल स्वरूप , हर आत्मा, उस " एक " में, पुन: प्रस्थापित हो पायेगी " इस पुस्तक में अनेक रंगीन चित्र हैं देखिये ये लिंक :
आशा है , आपको श्रीमान रॉबर्ट आर्नेट से मिलना सुखद लगा होगा .भारत माता के कई ऐसे सपूत हैं जिनका जन्म भारत भूमि पर न हुआ तो क्या हुआ ? पर इन्होंने कर्म भूमि भारत को ही माना और आत्मोसर्ग का संबल , भी भारत भूमि से ही पाया और भारत भूमि की सुगंध को , इन सपूतों ने विश्व व्यापी बना दिया ...
जीवन में मौसम का आना और जाना सुनिश्चित है परंतु जीवन पथ पर हमारा कब, किससे मिलना होगा ये सर्वथा अनिश्चित है..आशा करती हूँ कि जीवन यात्रा के किसी खुशनुमा पड़ाव पर फिर दुबारा रॉबर्ट आर्नेट सरीखे , भारत माता के सच्चे सपूत से मुलाक़ात होगी .. तब तक शायद उनकी कोइ नयी पुस्तक भी तैयार हो जाए , क्या पता ....
हो निर्भय हे पथिक तेरा हर पग,
चलता चल तू , न हों डगमग पग
जय हिंद ! वन्दे मातरम ~
- लावण्या
- लावण्या
24 comments:
लावण्या दादी साहब.. ये लघु नामों का प्रचलन मैंने यहाँ यू.के. में भी देखा है और काफी कुछ वैसा ही है जैसा आपने बताया. श्री रॉबर्ट जी से मिलवाने का बहुत-बहुत शुक्रिया..
वास्तव में उनका भारत के प्रति प्रेम इसी बात से झलकता है कि वो हमारे प्रातःस्मर्णीय संत श्री रामकृष्ण परमहंस जी के बारे में भी जानते हैं.. सुन्दर पोस्ट के लिए आभार..
लावण्या जी,
राबर्ट अर्थात बोव जी के बारे में जानकर प्रसन्नता हुई. ऎसे लोगों के कारण वसुधैव कुटंबकम हुई.
आभार.
चन्देल
रॉबर्ट जी से परिचय कराने का आभार!
वाकई कुछ लोग कर्म से भारतीय मानस में रचे बसे हैं।
भारत और भारतीयता से प्रेम करने वाले रॉबर्ट जी से आपके माध्यम से मिलना अच्छा लगा ...आभार ...!!
सुन्दर जानकारी । पुस्तकें पढ़नी पड़ेंगी ।
रौबर्ट आर्नेट से परिचित कराने के लिए धन्यवाद!
भारत धरा तो है ही ऐसी।
उनका भारतीयों का क्या करें, जो भारत में रहते हुए भी मन से भारतीय नहीं हो पाये हैं।
लावण्या जी जब भी कोई जर्मन मुझ से पूछता है कि मैने भारत घुमने जाना है तो मेरा हमेशा यही कहना होता है कि अगर तुम १०, १५ दिनो के लिये टुर के संग जा रहे हो तो तुम्हे मेरा भारत गंदा लगे गा, ओर अगर आजादी के साथ यानि बिना टुर के जा रहे हो ओर कुछ ज्यादा समय के लिये जा रहे हो तो तुम हमेशा भारत के हो जाओगे.... बस आज तक जितने भी जानपहचान वाले गये सच मै वही के हो गये, यही बात आप के लेख मै भी झलकती है रांबर्ट के बारे पढ कर बहुत अच्छा लगा, ओर भारत के नकशे वाला चित्र मन भावन लगा धन्यवाद
राबर्ट आर्नेट की पुस्तक से मैं परिचित हूँ। आपने इस साक्षात्कार के द्वारा बहुत अच्छा काम किया है। धन्यवाद। इस लेख पर मैं पहले भी टिप्पणी डाल चुका हूँ; कोई और पोर्टल होगा।
दीदी, भारत की भूमी से अलग भी ऋषि बसते हैं ये आपने सिद्ध कर दिया.
शुक्रिया बॉब से मिलवाने का.कमाल के व्यक्ति लगते हैं. पुस्तक ढूंढता हूँ.
धन्यवाद राबर्ट जी से परिचय कराने का।
Lavanya Di
As usual, very info and intresting post. I also enjoyed the bigger fonts.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
राबर्ट जी से परिचय का बहुत आभार.
रामराम.
vahaan rah kar aap isi tarah kaa kaam karti rahi hai. aaj ek aur achchha kaam kar diya. राबर्ट/बोव जी ka parichay paa kar khushi hui. bharat se jude logo se milanaa achchha lagataa hai. aapki sarthak lekhani ko naman.
लावण्याजी
इतने प्रभावशाली व्यक्तित्व श्री अनेर्ट्जी से मिलवाने का बहुत बहुत धन्यवाद |
ठाकुर श्री रामकृष्ण परमहंस का जिक्र पढ़ते ही दिल की धड़कन बढ़ गई क्योकि ठाकुर मेरे गुरु भी है तो आप तो मेरी गुरु बहन हो गई |
जय ठाकुर .जय माँ
आपके सकारात्मक आलेखों को पढ़कर बहुत उर्जा मिलती है |
प्रणाम
सुन्दर पोस्ट.
लावण्या दीदीजी, जल्दबाजी में पहले दिन नहीं पढ़ पाया था. आज यह पोस्ट पढ़ कर आनंद की अनुभूति हुई.
रोबर्ट आर्नेट जी से मिलकर बहुत अच्छा लगा... हमारे शहर अररिया में भी एक ऐसे ही शख्स आये थे, अमर साहित्यकार रेणु जी के गाँव देखने और हिंदी सीखने.
रॉबर्ट जी निश्चित ही एक विशाल हृदयी व्यक्ति हैं. आपकी प्रस्तुति भी बहुत आत्मीय लगी. सबको एक सूत्र में जोडती हुई. धन्यवाद!
श्रीमान बोब का भारत प्रेम भारतवासियों के लिए खुशी की बात है.राम कृष्ण परमहंस जैसे संतों ने जहां विदेशों में भी भारत की छवि बनाई है,वहीं आज के कुछ नकली साधु देश के भीतर ही संतों की छवि खराब कर रहे हैं.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत अच्छा लगा जान कर........
जब कोई गंगा को मैली कहता है तो मैं कहता हूँ...
तनकर देखो तो मैली है
झुककर देखो तो दर्पण।
यही हाल अपने देश का भी है...टूर पर घूमने मात्र से इसे नहीं जाना जा सकता...इसे जानने के लिए तो डूबना पड़ता है।
..रोबोर्ट आर्नेट ने डूब कर देखा है भारत को। पुनः खींच कर ले आई आपकी यह पोस्ट।
बहुत अच्छा लगता है ऐसे लोगो से मिलना.....जहाँ भी कही देश के बारे में अच्छी बात होती है पता नहीं क्यों भला सा लगता है
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