आज १० फरवरी है . बाहर शीत का प्रकोप , भारी हिमपात जारी है और मेरा मन आज फिर बाहर सूखी टहनी पर अटके एक बर्ड फीडर से दाना चुन रहीं , असंख्य चिड़ियों के आस पास उड़ रहा है ..
सोच रही हूँ, " पंख होते तो उड़ जाती रे ..."
प्रश्न : कहाँ उड़ कर पहुँचती ?
उत्तर : अपने शैशव के दरवाज़े पर ...
जहां मेरा बचपन गुजरा था
और उसी घर में अम्मा और पापा जी के साथ
बचपन बीता कर , युवावस्था में कदम रखे थे ....
फिर , विवाह हुआ , पुत्री सौ. सिंदुर व चि. सोपान का आगमन हुआ
पापाजी और अम्मा के रहते , कभी कोइ चिंता जैसे भाव , आया ही नहीं और आये तब
उनसे मन की बातें कह लीं और जी हल्का कर लिया...
यही तो होते हैं माता , पिता -
एक घनी छत्रछाया की तरह
जिनके रहते ना तो घनघोर वर्षा आपको डरा पाती है
न ही चिलचिलाती धूप , आप तक पहुँचने में , समर्थ रहती है -
- कितने सुखी थे हम लोग ऐसे दुर्लभ माता और पिता को पाकर !
ये हम जानते तो थे ही पर इस बात का गहन अहसास उन्हें खो देने के बाद
अधिक तीव्रता से अनुभव किया
आज उनकी यादें, उनकी कही बातें, उन की दी हुई सीख ,
हर छोटी छोटी बात, बार बार याद आतीं हैं और मैं,
मन मसोस कर आंसू पीकर रह जाती हूँ .
कितनी कोशिश करतीं हूँ के अब ये आंसू न बहें .....
पर जब् भी उन्हें याद करतीं हूँ , नयन श्रध्धा से बंद हो जाते हैं और न जाने कैसे
ये आंसू बह निकलते हैं .
आज , मैं स्वयं उमर के एक लम्बे अंतराल को पार कर चुकी हूँ.
जीवन के खट्टे , मीठे अनुभवों को भुगत चुकी हूँ
अरे ! नानी बन कर ये भी जान गयी हूँ के ,
एक शिशु के अस्तित्त्व में, कई पुरखों के आशीर्वाद भी , खेलते हुए देख रही हूँ
फिर भी, पापा जी और अम्मा की याद आते ही, मैं एक अबोध बालिका क्यों बन जाती हूँ ?
बार बार, दृष्टि उन्हीं को ढूँढती है ..
कहाँ गये पापा ? कहाँ हैं अम्मा ?
अभी आवाज़ दे कर मुझे बुलायेगी अम्मा
' ला व् णी.. ' ...
उनकी आवाज़ आज भी सुनायी पड़ती है ...
जो, सदा के लिए मौन हो गयी है .
और पापा जी की सौम्य मुस्कान और उनका स्नेह भरा स्पर्श ,
आज भी माथे को सहलाता महसूस कर पाती हूँ ...
परंतु जानती हूँ, " आज के बिछुड़े, हम , न जाने कब मिलेंगें ? '
शायद इस जन्म में तो अब कभी नहीं !
मेरे श्रद्धा सुमन अर्पित हैं उस पिता के चरणों पर
...जिनके चैतन्य स्वरूप ने, मुझे ,
ईश्वर से साक्षात्कार करवाया .
उनकी असाधारण प्रतिभा का आंकलन
मैंने कभी नहीं किया...
नाही ऐसी विद्वता का कोइ झूठा दंभ ही भरने की कभी चेष्टा की ..
मैंने उन्हें पिता के रूप में पाया ,
वही मेरे इस नन्हे जीवन का शायद परम सैभाग्य रहा है .
- ईश्वर, मेरे पापा जैसे , पिता ,
हरेक पुत्री के भाग्य में दें ये मेरी प्रार्थना है .
शरीर , नश्वर है आत्मा नित्य है -
- ईश्वरीय गुणों से संपृक्त होकर ही हर आत्मा ,
उसी दिव्य परमात्मा में समाहित हो पाती है .
अस्तु, यही प्रार्थना है के हरेक आत्मा
अपने गंतव्य को प्राप्त हो .
निर्बाध यात्रा अनत ब्रह्माण्ड में व्याप्त परम तेज में समाहित हो.
कितना कुछ लिखने को मन करता है --
और फिर एक गहन गंभीर मौन में , मन लीन हो जाता है .........
सो, आज इतना ही ,
पापाजी , आपकी बिटिया , आपको सादर प्रणाम करती है और आपकी पुण्य तिथि पर
आपकी यादों को सीने से लगाए ,आपके दीये हुए जन्म को ,
अपना जीवन , आपके सिखाये हुए आदर्शों को सहेजे हुए ,
आगे की यात्रा ,
ईश्वर के प्रति दृढ आस्था के संग ,
काटने का प्रण करती है ..
आशीर्वाद दीजिएगा ..
मैं , हूँ पापा, आपकी मंझली बेटी लावण्या
- लावण्या
52 comments:
Param aadarneeya Pandit Shree Sharma ji ki punya tithi par aapne unke geeton ko dohraya.. bahut bahut aabhari hoon. us punyatama ko shraddhanjalee..
lekin ye song to youtube se remove kar diya gaya..
भावुक श्रंद्धांजलि मन को छू गई।
निश्चित ही महान विभूति थे आपके पापाजी।
उनकी पुण्य स्मृतियों को नमन्
MAHAKAVI PT.NARENDRA SHARMA KEE
II FEB.KO PUNYA TITHI PAR MERA
AUR MERE PARIWAR KAA SAADAR PRANAM.
PT.JEE KEE MAHAANTA KE BAARE MEIN
MAINE DELHI MEIN RAHTE HUE BAHUT
SUN RAKHAA HAI.UNKA VYAKTITV AUR
KRITITV DONO HEE MAHAAN THE.PITA
KEE TARAH AAP BHEE MAHAAN HAIN.AAPKEE SHRADDHANJLEE NE AANKHON MEIN AANSOO LAA DIYE HAI.
पिता जी को अश्रुपूरित श्रृद्धांजलि.
आपका आलेख, बचपन की यादें, अम्मा पापा को याद करना, वो पंख पा लेने की आतुरता-सब कुछ अपना सा लगा..बहुत भावुक कर गया.
पुनः उनके पुण्य स्मरण को शत शत नमन!!
श्रद्धांजलि पापाजी को
कविता दिल को भीतर तक छो गयी. आपकी तीस को समझना कठिन नहीं है. पंडित जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि!
पापाजी को श्रद्धांजलि !
इससे आगे क्या कहूं - नियति कितनी कठोर होती है...
इस घडी हम सब आपके साथ हैं।
सादर,
अमरेन्द्र
ज्योति कलश छलके जैसे कालजयी गीत के रचयिता पं नरेंद्र कुमार शर्मा जी को पुण्यतिथि पर शत शत नमन...
जय हिंद...
पिता जी को अश्रुपूरित श्रृद्धांजलि...उनकी पुण्य स्मृतियों को नमन्...!!!!
पंडित नरेन्द्र शर्माजी को विनम्र श्रंद्धाजलि। बहुत सुन्दर पोस्ट!
'ज्योति कलश छलके'
उनका पुण्य छलकता ही रहेगा।
नमन।
आप का हस्तलेख भी देखने को मिला। टाइप किए हुए अक्षर देखने की अभ्यस्त आँखों को अच्छा लगा।
वीडियो का लिंक यह सन्देश दे रहा है: This video has been removed due to terms of use violation.
श्रुंग को श्रृंग कीजिए। वैसे शुद्ध तो शृंग होगा - खटकेगा क्यों कि उचित टाइप सेट नहीं है।
निम्न संशोधन भी अपेक्षित हैं:
द्रष्टि - दृष्टि
युध्ध - युद्ध
चिडीयों - चिड़ियों
श्रध्धा - श्रद्धा
विद्वत्ता - विद्वता
परम्मात्मा - परमात्मा
सीखलाये - सिखलाये, अच्छा हो कि सिखाये कर दें
चुडियाँ - चूड़ियाँ
इन्हें सुझाते बड़ा अजीब लग रहा है लेकिन
'घर आँगन वन उपवन उपवन
करती ज्योति अमृत से सिञ्चन'
के रचयिता की स्मृति ऐसा सुझाने के लिए प्रेरित कर रही है।
मन ही है, जो वापस लौट सकता है।
श्रद्धेय पंडितजी को आत्मिक नमन!
पंडित नरेंद्र शर्मा जैसे साहित्यकारों के लिये पुण्यतिथि जैसे शब्द बहुत छोटे होते हैं । ये वो लोग हैं जो मृत्यु को भी धता बता चुके हैं । मृत्यु ने केवल शरीर को ही मिटाया लेकिन उससे पहले तो ये मृत्यु को पराजित करने के लिये इतना कुछ लिख चुके थे कि मृत्यु हजार बार आये शरीर ले जाये तो भी वो शरीर के सिवा और कुछ ले जा नहीं पायेगी । वे शब्द जो पंडित जी की लेखनी का परस पाकर काव्य में ढले वे शब्द तो अमर हो चुके हैं । उनको कैसे समाप्त करेगी मृत्यु । पंडित जी जेसे साहित्यकार जिनका साहित्य इतना विस्तृत है कि उसको सहेजने के लिये एक जीवन कम पड़ जाये । उनकी मृत्यु कब होती है । वे तो अमर हो जाते हैं । शरीर की एक तय आयु होती है । किन्तु विचारों की कोई आयु नहीं होती । क्या कोई कह सकता है कि गौसवामी तुलसी दास मर चुके हैं , नहीं ऐसा हो ही नहीं सकता । क्योंकि विचारों के रूप में वे इतने बरस बीत जाने के बाद भी जीवित हैं । यही बात पंडित जी के बारे में भी कही जा सकती है । विचार तो उनके युगों युगों तक सुरक्षित रहेंगें ।विचारों में वे हमेशा जीवित रहेंगें । एक बार कहीं पढ़ा था कि व्यक्ति का जीवन उसके शरीर की मृत्यु के बाद प्रारंभ होता है । उसके शरीर की मृत्यु के बाद उसको किस प्रकार से स्मरण किया जाता है । उसके विचारों को व्यक्तिव को किस प्रकार याद रखा जाता है । इसी पर निर्भर होता है कि उसका जीवन कैसा है । पंडित जी उनकी कविताओं के माध्यम से उनके विचारों के माध्यम से अजर अमर हैं । हालांकि ये बात भी सच है कि वे सारे विचार जिस शरीर को माध्यम बना कर व्यक्त किये गये थे, उस शरीर की याद तो आती है । क्योंकि शरीर ही किसी का पिता, किसी की माता किसी का संबंधी होता है । विचार किसी के नातेदार नहीं होते । विचार तो अखिल विश्व के लिये होते हैं । विचार तो हर प्राणी के लिये होते हैं जो उनको स्वीकार करने के लिये खड़ा है ।पंडित जी के इस गीत के भाव भी तो यही कहते हैं ।
मैं केवल तुम्हारे लिये गा रही हूं
क्षितिज पार की नील झंकार बन कर
मैं सतरंग सरगम लिये आ रही हूं
मैं केवल तुम्हारे लिये गा रही हूं
लावण्या जी
आज के दिन एक पिता को, एक साहित्यकार को और भारत के सच्चे सपूत को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि। उनका प्रत्येक शब्द ब्रह्म बन चुका है और सम्पूर्ण वातावरण को सुरभित कर रहा है। यह पावन उर्जा आपके आसपास ही है और आपको व सम्पूर्ण भारत को प्रतिपल प्रोत्साहित करती है।
लता जी ने ये गीत पहली बार सार्क के स्था पना के अवसर पर गाया था । इसे लिखा था पंडित नरेंद्र शर्मा जी ने । ये गीत बाद में टी सीरीज के प्रेम भक्ति मुक्ति में शामिल किया गया था। दक्षेस की स्थापना के समय एक कार्यक्रम होता था दूरदर्शन पर जिसमें हर माह एक देश का कार्यक्रम होता था । ये गीत जब लता जी ने गाया था तो पाकिस्तामन के उनके लाखों प्रशंसकों को लगा था कि लता जी ने ये उनके लिये ही गाया है । पंडित नरेंद्र शर्मा जी द्वारा लिखे गये उस अमर गीत को पढ़ें ।
मैं केवल तुम्हारे लिये गा रही हूं
क्षितिज पार की नील झंकार बन कर
मैं सतरंग सरगम लिये आ रही हूं
मैं केवल तुम्हारे लिये गा रही हूं
सुनो मीत मेरे के मैं गीत ज्वाला
तुम्हारे लिये हूं मैं स्वर का उजाला
मैं लौ बन के जल जल जिये जा रही हूं
मैं केवल तुम्हारे लिये गा रही हूं
मैं ऊषा के मन की मधुर साध पहली
मैं संध्या के नैनों में सुधि हूं सुनहली
सुगम कर अगम को मैं दोहरा रही हूं
मैं केवल तुम्हारे लिये गा रही हूं
मैं स्वर ताल लय की हूं लवलीन सरिता
मैं अनचीन्हे् अन्जाने कवि की हूं कविता
जो तुम हो वो मैं हूं ये बतला रही हूं
मैं केवल तुम्हारे लिये गा रही हूं
मैं केवल तुम्हांरे लिये गा रही हूं
क्षितिज पार की नील झंकार बन कर
मैं सतरंग सरगम लिये आ रही हूं
मैं केवल तुम्हारे लिये गा रही हूं
पिता की स्मृतियाँ हर इंसान को बच्चा बने रहने पर मजबूर करती हैं ...और बच्चों की मासूमियत , निश्छलता पर कौन अविश्वास कर सकता है ...
पिताजी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ....!!
पँडित नरेन्द्र शर्मा जी को श्रद्धांजलि -वे युगांत तक याद रहेगें .
आपके संस्मरण हृदयस्पर्शी हैं .....
काबिल पिता की काबिल पुत्री को भी शुभकामनाएं !
अपने पापाजी को आपने बडी भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी है .. सारा प्यार और शिक्षा उमड पडा है इस आलेख में .. मेरी भी हार्दिक श्रद्धांजलि !!
श्रद्धेय पण्डित नरेन्द्र शर्माजी को अश्रुपूरित श्रृद्धांजलि
बहुत भावुक संस्मरण
विविध भारती के पित्-पुरूष पंडित नरेंद्र शर्मा को शत शत नमन ।
हम तो यहां उन्हें रोज़ाना ही याद करते हैं ।
पंडित जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि.
मेरा भी शत शत नमन।
आपका आलेख आपके पापाजी को बहुत hi भावपूर्ण श्रद्धांजलि है.
श्रद्धेय पिता जी को मेरी भी विनम्र श्रंद्धाजलि.
परम पूज्य पिताश्री के पुण्य तिथि पर उन्हें हम नमन करते हुए पुष्पांजलि अर्पित करते है. आपकी स्मृतियों के झरोखे से बड़ी ठंडक की अनुभूति हो रही है. आभार.
श्रद्धेय पण्डित नरेन्द्र शर्माजी को अश्रुपूरित श्रृद्धांजलि..
आपके संस्मरण हृदयस्पर्शी हैं .....
निश्चित ही महान विभूति थे आपके पापाजी...
उनकी पुण्य स्मृतियों को नमन्..!!
श्रद्धेय पंडित नरेंद्र शर्मा को शत शत नमन ....
भावुक श्रंद्धांजलि मन को भिगा गयी .....
जैसे जैसे आपका Likha पढ़ रहा हूँ ...... बरबस आँखे नम हो रही हैं ....
स्व. पंडित नरेन्द्र शर्माजी को हमारी भी श्रद्धांजलि ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.
पंडित जी कहीं गए नहीं, यहीं कहीं है हमारे बीच। कभी अपने गीतों से तो कभी अपने विचारों से हम सबके लिए आशा दीप जलाए हुए...। सादर नमन।
पंडितजी को अश्रुपूरित श्रृद्धांजलि.
आपका अतीत को याद करना ऐसा ही लगा जैसे हर इंसान की अपनी यही अनुभुति है. बिल्कुल निजी अहसास जैसा. बहुत ही भावुक कर देने वाला.
पंडितजी के पुण्य स्मरण को शत शत नमन!!
रामराम
श्रद्धेय पूज्य पंडित शर्मा जी की पुण्यतिथि पर मेरी श्रद्धांजलि अर्पित है.
श्रद्धांजलि !
हर बार की तरह आकर्षक तरीके से प्रस्तुत किया अपने. इन यादों में गोटा लगाया हमने भी आपके साथ. 'तुमसे ही घर-घर कहलाया' पहली बार आपके ही दिए लिंक पर सुना था.
बहुत सुन्दर पोस्ट. इससे बड़ी श्रद्धांजलि और क्या होगी? मन को छू लेने वाली पोस्ट.
स्नेही दी,
चाचा जी की पुण्यतिथि पर मैंने एक तुच्छ काव्य प्रयास किया है, उनके जैसी सशक्त भाषा का मुझे ज्ञान नहीं किन्तु उनकी भावनाओं को रेखांकित करने की चेष्ठा है :
"धवल बादल की ओट से
स्पंदनशून्य, मूक दृष्टा
की भाँती तक रहा
सुशीला संग देख रहा अपल
विरहित मृग सी
स्वयं की उत्पत्ति को
माँ की गोद पली
लावण्या
भूल गयी मेरी सीख
अश्रु नहीं तेरा श्रृंगार
कैसे बतलाऊँ
किस प्रकार समझाऊं
पुनः कैसे उसे ज्ञान कराऊँ
तरुनाई उत्सर्गों ने
संग्राम दे दिए थे,
अंगों के अंशों को
नाम दे दिए थे
मिथ्या है संगम तन का
पुत्र पुत्री पिता माता
मात्र संबंधों की वर्ण माला
मुझमें तुम हो
तुम में मैं
हम में सब
सब में हम
हृदय का स्नेह-स्राव रहे
अमर शाश्वत ज्ञान रहे
शरीर नहीं
आत्मा का भान रहे"
देह धारण करने से छोड़ने तक, आत्मा निरंतर प्रेरित करती है कुछ करने को। देह ने क्या किया यह तय करता है कि जो किया वह कब तक रहता है।
स्वर्गीय नरेन्द्र शर्मा जी की देह ने जो किया वह कितनी ही आत्माओं को आधार देता रहेगा।
महाकवि की पुण्यतिथि पर सादर प्रणाम।
श्रद्धेय पण्डित नरेन्द्र शर्माजी को अश्रुपूरित श्रृद्धांजलि
बहुत भावुक संस्मरण
पंडित नरेंद्र शर्मा जी कालजयी साहित्यकार .. 'थे' शब्द कहने में मुझे संकोच हो रहा है. उनका साहित्य अमर है, उनकी कवितायेँ और अन्य रचनाएं आज भी लता जी और कितने ही महान संगीतकारों के स्वरों में एक नया स्वर देती रहीं. , कवि-सम्मेलनों में, चल-चित्रों, रेडियो, टी.वी. के महाभारत जैसे अद्वितीय सीरियलों में हर घर में, ज़मीन पर और ख़ला में उनकी वाणी आज भी गूँज रही है. उनके चित्रों में आज भी सशरीर साकार दिखाई देते हैं, केवल भीतर की आँखे खोलकर देखने की बात है. फिर भी परंपरावादिता के अनुसार पंडित जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित है.
लावण्या, (आज तुम्हारे नाम के साथ 'जी' नहीं लगाऊंगा क्योंकि अपने बच्चों, छोटी बहनों, भतीजियों आदि के नामों से 'जी' जोड़ने से न जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है जैसे 'अपनापन' सा छीन लिया गया हो), यही कहूँगा कि आज इस पुण्यतिथि पर मेरी श्रद्धांजलि के साथ यही आशीर्वाद है कि तुम पंडित जी के पदचिन्हों को संभालते हुए साहित्य जगत में देदीप्यमान होकर अपनी और स्व. पंडित जी की साहित्यिक-कृतियों द्वारा इसी प्रकार साहित्य-सेवारत रहो.
लावण्या दी आज पंडित जी की यादों को आपके माध्यम से पढ़ कर जी भर आया...क्या कहूँ कोई शब्द ही नहीं मिल रहे...उस महान विभूति को मेरा सादर नमन...वो जहाँ भी हों उनका आशीर्वाद सदा हमारे साथ रहेगा...
नीरज
आदरणीय पंडित जी के लिए क्या लिखा जाय दीदी. बस उनकी स्मृतियों को प्रणाम और उनकी चिर उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है !ऊपर से ले के नीचे तक, एक-एक लिंक, एक-एक लेखन की ईमेज को बड़ा कर कई-कई बार पढ़ गयी हूँ. पहले ही मन इतना भावुक हो गया था वह गीत "मैं केवल तुम्हारे लिए गा रही हूँ " सुन के जो पंकज भईया ने मेल पे भेजा था.
फ़िर पंडित जी की कवितायें पढ़ीं. यूं-ट्यूब पे जा के "तुमसे घर घर " और "ज्योति कलश छलके" दोनों कई कई बार सुने.
'ज्योति कलश छलके' मेरी बहुत ही प्रिय गीतों में से है... अब 'मैं केवल तुम्हारे लिए गा रही हूँ' ... भी मैंने फेवरेट फोल्डर में डाल लिया है.
और जैसे ये सब मन के लिए बहुत न था कि आपका लिखा पढ़ के हृदय एकदम द्रवित हो गया!
सीधे दिल से निकले हुए शब्द पढ़ के कुछ देर तक निशब्द: सी बैठी रही ...
क्या कहूँ ...
"पल्लव दल सुकुमार" कितनी सुन्दर कविता है, कुछ बहुत ही प्यारे शब्दों का प्रयोग जैसे " चुरमुर , ललछौंही " वाह!
दीदी, यहाँ पढ़ते हुए थोड़ा रुक गयी तो देखा कि इमेज में ठीक लिखा है. टाइपिंग में "स्नेह से रहे प्राण मन सींच " में ... 'रहे' छूट गया है , डाल दीजिएगा कृपया.
"प्यासा निर्झर" की भूमिका में जो पढ़ा उस को पढ़ कर चकित रह गई, काव्य क्या है, कवि का धर्म क्या है, ये बात इतने सुन्दर ढंग से शायद ही पहले कहीं पढ़ी हो!
ये पोस्ट मैंने अपने फेवरेट फोल्डर में डाल ली है.
दुःख की बात है कि ये किताब मैंने नहीं पढ़ी. इस बार भारत आउंगी तो इसे ढूँढ कर ज़रूर ले आउंगी.
और क्या लिखूँ ... गीत, कविता के मंदिर की दासी हूँ ... सो इस प्रसाद को पा के आज कितना अभिभूत हुई हूँ मेरे लिए कहना मुश्किल है.
नत मस्तक हूँ. सादर प्रणाम करती हूँ...
दीदी, आशीष दीजिये ...
नमन!
शार्दुला
ऐसी महान आत्मा को प्रणाम..
दीदी साहब आदरणीय पंडित जी के बारे में कुछ भी कहने में सामर्थ्य नहीं हूँ ... वो अमर हैं अपने शब्दों और रचनावो के साथ और सभी उस्ताद गायकों के आवाज़ में ... बस उनको सलाम करूँगा ...
और भावभीनी श्रधांजलि
अर्श
पन्डित नरेन्द्र शर्मा जी को श्रद्धांजलि -
स्मृति गीत:
हर दिन पिता याद आते हैं...
संजीव 'सलिल'
*
जान रहे हम अब न मिलेंगे.
यादों में आ, गले लगेंगे.
आँख खुलेगी तो उदास हो-
हम अपने ही हाथ मलेंगे.
पर मिथ्या सपने भाते हैं.
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
लाड, डांट, झिडकी, समझाइश.
कर न सकूँ इनकी पैमाइश.
ले पहचान गैर-अपनों को-
कर न दर्द की कभी नुमाइश.
अब न गोद में बिठलाते हैं.
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
अक्षर-शब्द सिखाये तुमने.
नित घर-घाट दिखाए तुमने.
जब-जब मन कोशिश कर हारा-
फल साफल्य चखाए तुमने.
पग थमते, कर जुड़ जाते हैं
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
divyanarmada.blogspot.com
श्रद्धेय पण्डित नरेन्द्र शर्माजी को अश्रुपूरित श्रृद्धांजली.
आपने यह जो भी संजोया है, मन के खिड़की में से झांक झांक कर हमे उनकी पुण्य स्मृतियों को फ़िर से मेहसूस करा रहा है.
धन्यवाद दीदी. आप भाग्यशाली हैं, जो आप उनकी पुत्री हैं, और हम भी ... आपके छोटे भाई जो है!!
asrupurit shradhanjali,...man dravita kar gaya ye sansmaran...
shat shat naman un paavan aatma ko
लावण्या जी
आपके ब्लॉग पर आकर अपनी प्यास बुझाए बिना वापस लौट जाना नामुमकिन है. आपके ह्रदय के तट पर कल कल बहती सरस्वती माँ की संगीत और साहित्य कि धारा बहती रहती है.
सोच रही हूँ, " पंख होते तो उड़ जाती रे ..."
प्रश्न : कहाँ उड़ कर पहुँचती ?
उत्तर : अपने शैशव के दरवाज़े पर ...
सभी संस्मरण मानव मन पर एक छवि उकेरते हैं. उत्तम श्रधांजलि है जिसमें न भूलने के असार बरकरार रहे.
आपकी कलम कि रवानी हमें ऐसे न भूलने वाले पलों के और पास ला देते हैं.. शत शत नमन, बधाई और शुबकामनाएं.
Naman Naman naman!!!
भाई दीपक " मशाल जी "
अजित भाई,
आ. प्राण भाई सा'ब,
समीर भाई,
आ. वर्मा जी,
अनुराग भाई,
अमरेन्द्र भाई ,
खुशदीप भाई
रजनीश जी,
अनूप भाई सा'ब ,
भाई गिरिजेश जी ,
दीनेश भाई जी,
अनुज पंकज जी ,
श्रीमती डा. अजित गुप्ता जी,
वाणी जी,
अरविन्द भाई साहब,
संगीता पुरी जी,
" सन्नी " भाई ,
युनूस भाई ,
लवली जी,
उन्मुक्त जी ,
अल्पना जी,
सुब्रह्मनयम जी ,
" अदा " जी ,
भाई श्री दीगम्बर नासवा जी,
पियूष भाई,
भाई श्री पंकज शुक्ल जी,
आ. ताऊ जी,
श्री सुलभ सतरंगी जी,
अभिषेक भाई ,
शिव भाई ,
देवेन्द्र ( बिम्बू ) ,
भाई श्री तिलक राज कपूर जी ,
शिखा जी ,
परम आ. पितातुल्य अग्रज महावीर जी ,
[ आपका आशिष मेरा संबल रहेगा ]
नीरज भाई,
शार्दूला जी ,
डा. श्री मनोज मिश्र जी ,
" अर्श " भाई ,
हरि शर्मा जी ,
आचार्य श्री संजीव वर्मा "सलिल" जी ,
छोटे भाई श्री दिलीप कवठेकर जी ,
रश्मि रविजा जी,
आ. देवी बहन जी ................
आप सभी का
बारम्बार ,
ह्रदय से आभार !
विनीत,
- लावण्या
यह पोस्ट तो साहित्य की अमूल्य निधि है।
श्रद्धेय पंडित नरेंद्र शर्मा जी को शत शत नमन !
आप का लेख मन को छु गया, ओर आंखे भीगो गया, आप के पापाजी को श्रद्धांजलि !ओर नमन!!
आपके इस लेख और देवेन्द्रजी की सुन्दर टिप्प्णी को पढ़ने के बाद लिखने के लिए शब्द ही नहीं बचे।
आदरणीय पापाजी को सादर नमन।
पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की हस्तलिपि निरख धन्य हो गये हम, लावण्या जी!
हमारी श्रद्धांजलि।
Aap ka comment atul-a song a day blog par padha. Jyoti kalash yeh geet mai bhi sunte hue hi badi hui hoon. Ye kalpana ki sooraj jyoti kalash hai aur pratahkaal mein chalakta hai isliye vo alag rang dikhayye deta hai, mujhe badi acchi pyaari lagi...Aap Ke Pitaji mahan they. unka naam amar hai. Unko bhaavpurna shraddhanjali. Evam aapko sahruday namaskaar.
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