२ ) मुहब्बत और मजबूरी का दामन और चोली का साथ है . इसी बारे में -
"मजबूरी -ए -मुहब्बत अल्लाह तुझ से समझे ,
उनके सितम भी सह कर देनी पड़ी दुआएं ."
३ ) आगे वो कहते हैं की इश्क का ख्याल इबादत में भी पीछा नहीं छोड़ता -
"अब इस को कुफ्र कहूं या कहूं कमले इश्क ,
नमाज़ में भी तुम्हारा ख्याल होता है ."
४ ) मुहब्बत की हद्द कहाँ तक है , देखिये --
"जान लेने के लिए थोड़ी सी खातिर कर दी ,
रात मूंह चूम लिया शमा ने परवाने का ."
५ ) ग़ालिब का ये शेर तो आपके ज़ेहन से न जाने कितनी बार गुज़रा होगा -
"इश्क पर जोर नहीं , है ये आतिश ग़ालिब ;
के लगाए न लगे और बुझाये न बुझे ."
६ ) अर्श मल्स्यानी का यह शेर शायद पसंद आये -
"तवाजुन खूब ये इश्क -ओ -सजाए -इश्क में देख ,
तबियत एक बार आई मुसीबत बार बार आई ."
७ ) लेकिन आखिर ये `मुहब्बत ' है क्या बला ?
इकबाल साहिब का ये शेर काबिल -ए -तारीफ़ है -
"मुहब्बत क्या है ?
तासीर -ए -मुहब्बत किस को कहते हैं ?
तेरा मजबूर कर देना , मेरा मजबूर हो जाना ."
८ ) और `आदम ' साहिब भी ढून्ढ रहे हैं
"वो आते हैं तो दिल में कुछ कसक मालूम होती है ,
मैं डरता हूँ कहीं इसको मुहब्बत तो नहीं कहते !"
उनको तसल्लीबख्श जवाब नहीं मिला -
९ ) "अय दोस्त मेरे सीने की धड़कन को देखना ,
वो चीज़ तो नहीं है मुहब्बत कहें जिसे ."
१० ) कहते हैं की इश्क अँधा होता है
लेकिन ? -
"इश्क नाज़ुक है बेहद , अक्ल का बोझ , उठा नहीं सकता ."
११ ) एक ज़माना था के इश्क के मारों की जुबां पर
`दाग 'साहिब का ये शेर बेसाख्ता निकल जाता था -
"दिल के आईने में है तस्वीरे यार ,
जब् ज़रा गर्दन झुकाई देख ली तस्वीरे यार ! "
१२ ) मेरे नोजवान दोस्तों , ये याद रखना -
"मुहब्बत शौक़ से कीजे मगर एक बात कहती हूँ ,
हर एक खुश -रंग पत्थर , गौहर -ओ -नीलम नहीं होता ."
१३ ) और ये भी याद रखना जैसे के इकबाल साहिब ने ताकीद की है -
"खामोश अय दिल ! भरी महफ़िल में चिल्लाना नहीं अच्छा ,
अदब पहला करीना है मुहब्बत के क़रीनों में "
१४ ) आखिर में ,
फैज़ साहिब के इस शेर के साथ बात ख़त्म करती हूँ
जिसमें मानो सारी कायनात एक तरफ
और मुहब्बत ? :-))
"और क्या देखने को बाक़ी है ,