भारत माता
विधा दायिनी सुमति , श्वेत्वस्त्राव्रुता देवी सरस्वती
आज आपके लिए कुछ कवितायेँ लेकर उपस्थित हूँ ....................
माँ , अल्मोड़े में आए थे
जब राजर्षि विवेकानंदं,
तब मग में मखमल बिछवाया,
दीपावलि की विपुल अमंद,
बिना पाँवड़े पथ में क्या वे
जननि! नहीं चल सकते हैं?
दीपावली क्यों की? क्या वे माँ!
मंद दृष्टि कुछ रखते हैं?"
"कृष्ण! स्वामी जी तो दुर्गम
मग में चलते हैं निर्भय,
दिव्य दृष्टि हैं, कितने ही पथ
पार कर चुके कंटकमय,
वह मखमल तो भक्तिभाव थे
फैले जनता के मन के,
स्वामी जी तो प्रभावान हैं
वे प्रदीप थे पूजन के।"
कविश्रेष्ठ श्री सुमित्रा नंदन पन्त की काव्य रचना
[ जो हम बच्चों को ,पू. पापा जी ने कंठस्थ करवाई थी और हम अकसर इसे
अतिथियों के समक्ष गा कर सुनाया करते थे ]
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ये कविता " काव्य पुस्तक " प्यासा - निर्झर " से : कृपया चित्र पर क्लीक करीए :
शीर्षक है " पुरा नव पान "
" माता और शिशु : कविता : शिशु हैं भारतीय नागरिक और माता भारत माँ हैं
अब एक कविता मेरी
" स्वर्ण कलश "
स्वर्ण ~ कलश निकल आया री !
सखी, स्वर्ण ~ कलश नभ पर छाया री !
नर्तन करते , द्रुम - तृण अविरल,
नभ नील सुरभी रस आह्लादित`
सँवेदन मन मेँ, है रवि नभ मेँ,
उज्ज्वल प्रकाश लहराया री !
सखी, स्वर्ण ~ कलश उग आया री !
यन्त्रवत जीवन जन धन मन,
युगान्तर सीमित निकट चित्तभ्रम कलि का सम्मोहन,वशीकरण बन,
मन से मन तक लहराया री !
सखी, स्वर्ण कलश चढ आया री !
नर पुन्गव सब है लौट चले,
युग प्रभात की होड लगी,
युग सन्ध्या आगे दौड पडी,
वामन ह्र्दय, किन्पुरुष कलेवर,
थाम अज्ञ है खडे हुए !
सखी, स्वर्ण कलश अरुणाया री !
युग अन्त प्रतीति प्रकट हुई,
महाकाली मर्दन को उमड पडी,
युग सन्ध्या है निगल रही,
काल अमावस रात की-
कलिका के घून्घर मे जा छिप,
स्वर्ण~ कलश, कुम्हलाया री!
सखी, स्वर्ण कलश ढल जाता री!
24 comments:
बहुत सुन्दर मनभावन प्रस्तुति ...आभार. ......
श्रद्धेय पंडित जी की कविताओं को पढ़कर धन्य हुआ। उन की इन कविताओं से शिल्प और शब्द संयोजन के बारे में बहुत कुछ सीखा जा सकता है। आप की कविता भी निराली है।
बेहद खूबसूरत रचना ।
बहुत बढिया .. गजब होती हैं आपकी पोस्ट !!
सभी कवितायें अच्छी लगीं. कवि-त्रयी को प्रणाम! भारत-माता का चित्र भी अच्छा लगा.
आनन्द आ गया. पिता जी हस्त लिखित..बहुत आभार!!
Sameer bhai,
Ye kavita, mere aksharon mei hain -- na ke Pujya Papa ji ke .....
Aap subhee ka aabhaar....kavita pasand karne ke liye.
sa sneh,
Lavanya
शिशु भारतीय नागरिक और माता भारत माँ ...बहुत खूब ...
कवितायेँ मन को भा गयी ....बहुत आभार ...!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति। आभार।
भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा देती पोस्ट!
पिता जी के प्रति आपकी श्रद्धा को नमन!
mom..... कविता के साथ ....बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट..... दिल को छू गई.....
कितनी अच्छी कवितायें हैं, और क्या कहूं इस पोस्ट पर !
MARMSPARSHEE KAITAAYON KE LIYE
BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.
बहुत सुन्दर प्रस्तुती है सभी कवितायें बहुत अच्छी लगी और चित्र तो खूबसूरत हैं ही धन्यवाद ।
दीदी साहब प्रणाम
आने में कुछ देर लगी क्योंकि कल से नेट कुछ समस्या कर रहा था । पूज्य पंडित जी की हस्तलिपि में लिखे हुए वे अनमोल पन्ने तो धरोहर बना कर रख लिये हैं । ये दुर्लभ पन्ने तो ऐसे हैं मानो कोई उपहार मिल गया हो । पंडित जी की कविताओं पर टिपपणी करने की न तो सामर्थ्य है और न साहस । आपकी कविता का अंतिम छंद 21 दिसंबर 2012 की आशंकाओं पर प्रतीत हो रहा है । लेकिन मुझे तो पहला छंद ही बहुत पसंद आ रहा है प्रतीको का कितना सुंदर प्रयोग किया गया है । दीदी साहब मेरा निवेदन है कि पंडित जी की कविता कम से कम एक हर पोस्ट में लगाया करें क्योंकि वो धरोहर हम तक पहुचे ये आप ही कर सकती हैं । वैसे तो मेरा विचार है कि पंडित जी का समग्र रचना संसार पुस्तकाकार रूप में आठ या दस खंड मे सामने आना ही चाहिये । समग्र प्रकाशन की जो परंपरा है उसमें अभी तक मैंने दुष्यंत रचनावली का अध्ययन किया है जो मेरे ही गुरू आदरणीय डॉ विजय बहादुर सिंह ने संपादित की थी । समग्र रचनावपली से शोधकर्ताओं को भी बहुत लाभ होता है । वैसे ये भी सच है कि पंडित जी की रचनाओं को एक स्थान पर एकत्र करना बहुत दुश्कर कार्य है ।
1. आपके पास तो मोतियों का जखीरा है!
2. मातृशक्ति को भारत में अभूतपूर्व दर्जा प्राप्त हो - चाहे वे भारत माता हों, गौ माता हों, मातृशक्ति माहेश्वरी/महाकाली/महालक्ष्मी/महासरस्वती हों!
आपकी पोस्ट से मातृशक्ति स्मरण हो आयीं!
आदरणीय पंडित जी हस्त लिपि में कवितायेँ देख मन अन्दर तक शीतल हो गया...अद्भुत....आपकी कविता भी विलक्षण है शब्दों का चयन इतना मन भावन है की मन अश अश कर उठा है....क्या कहूँ गदगद हूँ...
नीरज
बार-बार पढ़ने लायक पोस्ट । आभार । हाल ही में रोमाँ रोला द्वारा रचित स्वामी विवेकानन्द की जीवनी पढ़ी जिसका अनुवाद अज्ञेय और रघुवीर सहाय ने किया है ।
प्रणाम .
पंत जी की ,पंडित जी की और आपकी सभी रचनायें बेहद अच्छी लगीं ।
पूज्य पंडित जी की कविता और आपकी सुंदर लिखावट...आहहा!
लेकिन एक शिकायत है दी, एक बार में इतने सारे खजाने एक साथ न लुटायें। हम उलझ कर रह जाते हैं।
आदरणीय पंडित जी की कवितायेँ पढ़ कर आनंद आ गया, आपने उनकी कवितायेँ प्रस्तुत कर वाकई एक उपकार किया है !
सादर !
Is prastuti ko kayi baar padhna hoga...jitnee sundar hai,utnihee gahan hai!
वाह! बहुत सुन्दर.
wah....aaj to anand aa gaya...
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