स्वामी जी श्री प्रज्ञानंद जी
`गुरु कृपा ईश कृपा सम '
कृपाकांक्षीनी
मम्मी जी और मैं : इनके दामाद हार्ट सर्जन हैं
गुरु ~ शिष्य परम्परा सचित्र
आंधियों में जलता दीप ,
एक , अकम्पित
लड़ता अंधियारे से ,
लड़ता अंधियारे से ,
नन्हा सा जीव अकेला
बोलो जलता रहता ,
बोलो जलता रहता ,
किसके सहारे ?
वही जीव ,
वही जीव ,
जीवित रहता
जिस बल से ,
आत्म - दीप , प्रकाशित ,
आत्म - दीप , प्रकाशित ,
जिस का वरदान
वही महा तेज पुंज ,
जो सब का प्राण !
सत्संग का सुफल
अंतर्मन के पवित्र मोती
कौन यूं , लुटाता है ?
जो खोकर हर आराम
सत कर्म सुफल श्रम पाता है
क्रिया योग एक प्राचीन योग प्रणाली है
क्रिया योग प्रणाली
महावातर बाबाजी की कृपा से
उनके शिष्य
श्री लाहिरी महासय को
सन` १८६१ में प्राप्त हुई थी
बहुचर्चित पुस्तक ' Autobiography of a Yogi.[1]
से आप में से कई
अवश्य परिचित होंगें ,
के प्रकाशन तथा पठन ने
क्रिया योग को
पश्चिम में सुप्रसिध्ध कर दिया
प्राणायाम द्वारा त्वरित गति से अवरुध्ध तथा सुशुप्त आत्मिक अनुभूतियों का विकास होना
इस क्रिया योग पध्धति का
अवदान है
जिससे शांति का आभास होता है
तथा आत्मिक विकास के साथ
ईश्वर उन्मुख प्रतिक्रियां भी
भगवद` गीता में श्री कृष्ण ने क्रिया योग का उल्लेख किया है
योगनान्दा जी ,
स्वामी श्री युक्तेस्वर गिरी जी के शिष्य थे
जो स्वयं श्री लाहिरी महासय के शिष्य थे
वही क्रिया योग प्रणाली को
अमरीका तक लाये थे और आगे
यूरोप में भी ये तेजी से प्रचलित हो गयी ,
आज २१ वीं सदी में कई केंद्र क्रिया योग संस्था के खुल गए हैं .[16]
अमरीकी , भारतीय तथा विश्व के कई तरह के लोग
श्रध्धा तथा भक्ति भाव सहित
स्वामी जी का आख्यान सुनते रहे
- पहले शायद मेडीटेशन का सत्र हो चुका था --
स्वामीजी की बातें सरल थीं -
मन पर संयम रखो
- अन्यथा मन, मनुष्य को कपि की तरह नचाता है -
स्वास्थ्य का ध्यान रखो
व्यायाम + प्राणायाम करो
मिताहार लो -
सात्विक भोजन खाया करो -
- वैर, ईर्ष्या का त्याग करो --
मन प्रफुल्लित रखो
- जीवन का नाम ही संघर्ष है -
नित नये संघर्ष के लिए ,
उससे लड़ने के लिए कटीबध्ध रहो -
- ऐसा लगा मानो वे माता हैं और शिशुओं के समुदाय को
माँ की ममता लिए
प्यार से, दुलार से, मधुर वाणी में
, समझा रहे हैं --
दसहरे के बीत जाने पर , ये मन को भला लगा --
आप सभी को विजया दशमी की शुभकामनाएं
तथा आगामी दीपावली के त्यौहार भरे दिनों के लिए भी
मेरी शुभेच्छा
-- लावण्या
21 comments:
क्रिया योग साधना पद्धति की आप अनुयायी है जानकर अच्छा लगा !
स्वामीजी के सहज उपाय अपनाने योग्य हैं ...
विजयदशमी से प्रारंभ त्योहारी मास की बहुत शुभकामनायें ..!!
बहुत अच्छा लगा क्रिया योग और इस पर आपका आलेख..जरा विस्तार से पद्यति बतायें.
बहुत सुंदर रहा इसके बारे मे जानकर, पर जैसी की समीरजी की जिज्ञासा है..हो सके तो कृपया थोडा विस्तार से बतायें.
रामराम.
योग साधना तो अमृ्तवान है ।स्वानी जी की बारे मे जानकार बहुत अच्छा लगा।उनके चरणों मे सादर नमन
सत्संग का सुफल
अंतर्मन के पवित्र मोती
कौन यूं , लुटाता है ?
जो खोकर हर आराम
सत कर्म सुफल श्रम पाता है
बहुत सुन्दर अभिअव्यक्ति है बधाई
अनोखी जानकारी प्राप्त हुई । वैसे मेरी इच्छा है कि वहां पर दीवाली किस प्रकार से मनाई जाती है उस पर भी आप लिखें । कुछ संस्मरण आदि ।
बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद
महा अवतार बाबाजी से श्री लाहिरी महाशय और श्री श्री परमहंस योगनान्दजी की परम्परा में यह ज्ञान आम व्यक्ति तक पहुँच रहा है.वैसे क्रिया योग के बारे में केवल दीक्षित व्यक्ति ही जानकारी रख सकता है.आदरणीय प्रज्ञा नंदजी के बारे में जानकर अच्छा लगा.बाहरी जगत की भागम भाग और तनाव के बीच अपने भीतर झाँकने का सन्देश देने वाले इन महान लोगों को नमन.
स्वामी जी के बारे में जानकर अच्छा लगा।
( Treasurer-S. T. )
Autobiography of a Yogi तो कमाल की पुस्तक है. पुस्तक की लोकप्रियता भी इसका प्रमाण है. इस गुरु शिष्य परंपरा और भी कई बातें उस पुस्तक से ही ज्ञात हुई. God Talks to Arjuna भी परमहंस योगानंद की बहुचर्चित पुस्तक है.
योगानन्द जी की इस पुस्तक की तो तीन प्रतियां हैं मेरे पास और कई बार पढ़ा है। पहली बार खईदने के लिये बहुत पैदल चला था!
स्वामी योगानन्द जी की इस पुस्तक को पढने का सौभाग्य तो हमें भी मिला है....इन्ही संत कृ्पा से ही योग क्रिया सम्पूर्ण विश्व में विस्तार पा सकी है!!!!
दिलचस्प है .उनकी किताबे पढ़नी पढेगी ...आप में एक खास किस्म की भारतीयता है....जो हर रोज अपनी खास लौ से जल रही है ओर अपना प्रकाश चारो ओर फैला रहा है.....
' ऐसा लगा मानो वे माता हैं और शिशुओं के समुदाय को माँ की ममता लिए प्यार से, दुलार से, मधुर वाणी में , समझा रहे हैं'
यह शब्द ही बखान कर रहे हैं स्वामी जी के तेज और प्रभाव के बारे में.
आभार.
जिस महत कल्याणकारी भाव से आपने यह पोस्ट प्रेषित की है,मैं उसे नमन करती हूँ....
सत्य कहा, सात्विक आहार विहार से सात्विक संस्कार जागृत होते हैं और सुसंस्कृत ह्रदय आध्यात्म का योग पा परमानन्द की प्राप्ति करना है....
हमारे हिन्दू संस्कृति का तो आधार ही रहा है योग द्वारा भोग को ध्वस्त करना और धर्म ध्वज को उन्नत करना...
मेरी इन सब में रूचि कम है फिर भी अच्छा लगा क्रिया योग और इस पर आपका आलेख.
जब भी कभी तामसिकता का बाहुल्य हो जाता है मन में तो यही पुस्तक पढ कर फ़िर मन निर्मल कर लिया करता हूं.
सात्विकता के लिये ,मानवता को यही पुस्तक पढ कर उस आदि महा शक्ति से स्वयम का योग करना और अपना मूल धर्म निभाना (TO BE DIVINE ) ही अंतिम लक्ष्य होना चाहिये.
आप से आपकी प्रतिक्रियाओं के माध्यम से पूर्व परिचय है( साभार--एक आलसी का चिठ्ठा)
आप को पढ कर बहुत ही अच्छा लगा.....
आशा है कि आप का साहित्यिक सानिध्य मिलता रहेगा....
didi , sabse pahle to main kaan pakad kar aapse maafi maangta hoon ki main itni deri se aapke blog par aaya hoon .. bahut dino baad .. mujhe maaf kare..
main ye kitaab padhia hai aur hamare ghar ke paas inka office bhi hai ..
kitaab padhne ke baad main " babaji ' ke prem me padh gaya . bahut khojne ki koshish ki par kuch jaan nahi paaya . logo ne kaha ki wo himalaya me ab bhi hai ..
yogiyo se milna bhi kismat ki baat hoti hai ..
aaplya naveen photo khoopach chaan aahe..
dushhara aaani diwaali chi subheccha..
tikde rangoli kartaat kaay didi?
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
सर्वप्रथम मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिये,
आज मैं पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ.....इसे मेरा दुर्भाग्य कहिये या मूढ़मति....
पढ़ कर मन खुश हो गया ...और डाक्टर अनुराग जी से सहमत हूँ...
आपमें एक 'ख़ास किस्म की भारतीयता है'...
और यह भारतीयता बहुत अपनी लगी.....
सादर ..
आज मै पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ मुझे क्रिया योग के विषय में जानना और समझना है
क्या आप मेरे प्रश्नों के उतर देकर मरी जिज्ञासा को शांत करेंगे
Post a Comment