इस चित्र में, दीपक, मैं, मेरी अम्मा स्व, सुशीला नरेंद्र शर्मा,
जीजाजी बकुल भाई, स्व. वासवी ( मेरी बड़ी बहन ) ,
जीजाजी बकुल भाई, स्व. वासवी ( मेरी बड़ी बहन ) ,
स्व. पं. नरेंद्र शर्मा, मुझसे छोटी सौ. बांधवी तथा सबसे छोटा भाई,
श्रीमान परितोष नरेंद्र शर्मा
मेरी अम्मा स्व. सुशीला नरेंद्र शर्मा
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पापा जी, दीदी तथा ग़ज़लों के अमर संगीत निर्देशक
स्व. श्री मदन मोहन जी के सुपुत्र, श्री संजीव भाई ,
हमारे घर, फिल्म " सत्यम शिवम् सुंदरम " की रजत जयन्ती ट्राफी के साथ
" धरित्री पुत्री तुम्हारी , हे , अमित आलोक ,
जन्मदा मेरी वही है , स्वर्ण -गर्भा कोख ! "
स्व. पं. नरेंद्र शर्मा,
सुप्रसिद्ध संगीत मार्तण्ड पूज्य श्री हृदयनाथ मंगेशकर जी
तथा उनकी और हम सबकी बड़ी दीदी स्वर साम्राज्ञी सुश्री लता मंगेशकर जी के साथ
( गीत सुनने के लिए कृपया , क्लिक करें )
गायिका : आशा भोसले
संगीत निर्देशक : गोविन्द नरेश
( गीत सुनने के लिए कृपया , क्लिक करें )
गायक : पण्डित भीमसेन जोशी
संगीत निर्देशक : श्रीनिवास खले
( गीत सुनने के लिए कृपया, क्लिक करें )
गायक : पण्डित भीमसेन जोशी
संगीत निर्देशक : श्रीनिवास खले
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गतांक से आगे :
श्री इन्द्रबहादुर सिंह जी का सम्पादकीय
जारी .... शेष - अशेष " का प्र्रथम संस्करण , १९९५ में, बंबई की संस्था " मौलिक प्रकाशन " से छप चुका है।
पण्डित नरेंद्र शर्मा " सम्पूर्ण रचनावली " शीघ्र प्रकाशित हो चुकी है
पण्डित नरेंद्र शर्मा " सम्पूर्ण रचनावली " शीघ्र प्रकाशित हो चुकी है
" पण्डित जी अजात शत्रु थे। क्रोध और बैर की मुद्रा में कभी भी नहीं देखे गए। आजीवन होंठों पर स्मित, हास् , चहरे पर सहज स्नेह, करुना और मैत्री का भाव , बांहों में अपनत्व का आलिंगन, ह्रदय में साधू भाव का तारल्य बरबस अपनी और खींच लेने के चुम्बकीय आकर्षण के हेतु थे।
प्रीति के इस घर में, बैर का एक भी द्वार न था।
" सबके पण्डित नरेंद्र शर्मा " का निधन , सभी को अंतस तक रुला गया।
जो जहां जैसा था, निधन का समाचार पाकर, काठ हो गया !
एक साथ सभी की अश्रु धारा फ़ुट पडी ऐसा कोइ क्षेत्र नहीं, जहां से अपनी श्रध्धा अर्पित करने वालों का तांता न लगा हो !
निधन की इतनी गहन व्यथा को आंसुओं ने आकंठ सिंचित किया और जब् चेतना जागी, तो इन अश्रु कानों को उस " ज्योति - कलश ' पर अर्पित कर दिया -" शेष - अशेष " उसी का अवदान है।
घर - परिवार, मित्र परिजन, साहित्य , समाज, धर्म, अध्यात्म, - ज्योतिष , फिल्म, टी. वी . , रडियो , प्रेस , गीत - संगीत ,
देश - विदेश, आदि क्षेत्रों से, हिन्दी, अंग्रेजी, में हमें इतने अधिक
पत्र, लेख, संस्मरण, श्रध्धांजलि आदि प्राप्त हुईं कि उनमें से हम व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण सभी भावोद्गारों को इस पुस्तक में सम्मिलित नहीं कर पा रहे हैं।
देश - विदेश, आदि क्षेत्रों से, हिन्दी, अंग्रेजी, में हमें इतने अधिक
पत्र, लेख, संस्मरण, श्रध्धांजलि आदि प्राप्त हुईं कि उनमें से हम व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण सभी भावोद्गारों को इस पुस्तक में सम्मिलित नहीं कर पा रहे हैं।
जिन स्नेहियों के लेखादि इसमें संकलित नहीं किये जा सके हैं, उनके हम, क्षमाप्रार्थी हैं तथापि उनकी भावनाएं, इन स्मृतियों में समाहित एवं संचारित हैं।
पुस्तक को खंडों में ( पुष्पों ) में विभाजित किया गया है --
प्रत्येक खंड में सामान प्रवृतिमूलक सामग्री को संयोजित करने का प्रयास किया गया है।
यद्यपि यह पुस्तक, पं. नरेंद्र शर्मा के प्रति श्रध्धांजलि एवं स्मृति - ग्रन्थ के रूप में प्रकाशित की जा रही है, तथापि, इन सभी उद`गारों में , पण्डित नरेंद्र शर्मा के जीवन , कार्य, उन पर पड़नेवाले प्रभाव ,
उनके चिंतन, दर्शन, काव्य, उनके बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व , गुण - दोष , उनके प्रदेय आदि से समन्धित विषयों पर प्रचुर सामग्री भी सहज सुलभ है। कई ऐसे विशिष्ट तथ्य हैं जो इससे पहले उजागर नहीं हुए थे।
नरेंद्र शर्मा को साहित्य समाज, राजनीति, धर्म, और संस्कृति, राष्ट्र और राष्ट्रीयता के परिप्रेक्षेप्य में जानने - समझाने कि द्रष्टि से भी इस पुस्तक की प्रासंगिकता एवं उपादेयता है।
यह् ग्रन्थ केवल अश्रु कोष लेकर नहीं उससे बहुत अधिक ज्ञान - कोष लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत है।
यह् एक तप: पुत, ऋषि - कल्प कविर्मनीषी के अभिषेक जल - बिन्दुओं का कोष है।
अत: इस पुस्तक का नरेंद्र - साहित्य के सन्दर्भ में एक अन्योन्याश्रित स्थायी महत्त्व है।
नरेंद्र से समन्धित विविध आयामों , प्रवृत्तियों , समय - समय पर घटित होनेवाले प्रभाव - परिवर्तनों और अथ से इति तक उनकी जीवन - यात्रा में आनेवाले मोडों - पडावों का पूरा कथा - विस्तार है। इसमें केवल " कद्र मर्दुम बाद मुर्दम " का पिष्ट - पेषण अथवा पितृ - तर्पण परंपरा निर्वाह नहीं है।
पण्डित जी के निधन के पश्चात् उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला शर्मा शून्य हो चलीं थीं !
जिस सहचर को ,
" बाँध रेशमी डोरीयों में तुम्हें सब दिन
रखूँगी पास,
निशदिन पास, अपने पास "
का संकल्प किया था,
रेशमी डोरियों के बंधन चटकाकर वह,
" आज तक तुम फूल , तितली , गीति थी -
वह छोडता हूँ
प्रीती कविकृत प्रेयसी की प्रीती --
वह छोड़ता हूँ "
गाता हुआ, चलता बना और असहाय एकाकी बच गयी प्रेयसी के अधर मंद स्वरों में, फडफडाते रह गए --
" आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगें ......
आज के बिछुडे न जाने कब मिलेंगें ..........
और अत: त: वह प्रेयसी १२ जून १९९१ को विछोह की सभी सीमाएं पार कर
स्वयं प्रिय के पास चली गयीं ,
जहाँ, वह फिर गा रही होगी,
" बाँध रेशमी डोरीयों में तुम्हें सब दिन
रखूँगी पास,
निशदिन पास, अपने पास "
प्रिय की स्मृति में में प्रकाशित यह " शेष - अशेष " उसी प्रेयसी सुशीला को समर्पित है~
उन सभी स्नेहियों के आभारी है --
आप सभी के भावों का आकार है यह स्मृति - ग्रन्थ !
आपकी श्रध्दा और प्रियता का स्मारक है यह स्मृति - ग्रन्थ !
आपके प्रत्येक उद`गार इस ग्रन्थ के सर्ग हैं जिस अपनेपन की तरलता में सिक्त - सिंचित करके आपने अपने शब्द लिखे हैं, उनके अक्षर - अक्षर मोती के सामान मूल्यवान एवं आभायुक्त हैं।
" शेष - अशेष " स्मृति - ग्रन्थ परिवार की एक अविछिन्न कड़ी हैं आप !
इस ग्रन्थ का पन्ना पन्ना आपका कृतज्ञ है।
अन्तराष्ट्रीय स्तर के चित्रकार श्री साबाजी पोलाजी ने
मुख - पृष्ठ पर , " शेष - अशेष " के प्रतीक - भाव को उकेरकर
हमारे संश्लिष्ट अव्यक्त को भाषा प्रदान की है।
उनके प्रति आभार व्यक्त करना स्वयं के प्रति आभारी हो जाना होगा, अस्तु --" मौलिक प्रकाशन " के साथ ही हम मुद्रक प्रिन्तोग्रफी और विशेषरूप से, उसके मालिक गिरीश शाह के ह्रदय से आभारी हैं।
जिनके अप्रत्याशिश सहज सहयोग के फलस्वरूप ही यह ग्रन्थ और अधिक विलंब से प्रकाश में आने के कुयोग से बच सका
अंतत : " तेरा तुझको सौंपता , क्या लागे है मेरा "
-- इन्द्रबहादुर सिंह
प्राचार्य
बी. एल. रुइया ( बहु उद्देशीय ) हाई स्कूल
महंत रोड, विले पार्ले ( पूर्व )
बंबई - ४०००५७
गुरुवार , १३ अप्रेल , १९९५
संकलन व प्रस्तुति --
- लावण्या
- लावण्या
18 comments:
इन चित्रों के लिये बहुत बहुत शुक्रिया.
दीदी, आपसे गुज़ारीश कि अपने पसंद का कोई ऐसा गीत बतायें जिसे मैं गाकर आपको भेज सकूं.मुझे प्रसन्नता होगी.
दिलीप भाई ,
आपने कहा है तब मुकेश जी का गाया हुआ गीत फिल्म " भाभी की चूड़ियाँ " से ,
" दर भी था थीं दीवारें भी ,
तुम से ही घर , घर कहलाया ,
माँ , तुमसे घर , घर कहलाया "
यही गीत गा कर आपके जाल घर पे लगा दीजिये
या
मैं अपने ब्लॉग पर लगाऊँगी :)
स्नेह सहित,
- लावण्या
Pahli bar apke blog par aai, par achha laga...khubsurat chitra, sundar baten...lajwab raha sab kuchh.
प्रस्तुत चित्रों एवं शॆष अवशेष के अंश के लिए आभार.अच्छा लगा पढ़कर.
" शेष - अशेष " स्मृति - ग्रन्थ के प्रकाशन पर बधाई और संस्मरण अंशों के लिए आभार !
आज ये छोटा भाई केवल एक प्रश्न पूछने आया है । आप अपनी संस्मरणों की पुस्तक कब लिख रही हैं । आप बहुत ही रोचक तरीके से संस्मरण लिखती हैं । इस प्रकार के संस्मरण डोंगरी कवियित्री आदरणीया पदमा सचदेव के भी होते हैं । वे भी खूब डूब के लिखती हैं । आप भी अपनी एक पुस्तक लिखें । प्लीज प्लीज प्लीज
ये अंश पसंद आया. आभार.
कल आशाजी का जन्म दिन था. मैं तो उस पर भी कुछ एक्स्पेक्ट कर रहा था. :)
बहुत सुंदर चित्र ओर लेख वा गीत भी अति सुंदर लगे, धन्यवाद
पण्डित नरेंद्र शर्मा व श्रीमती सुशीला शर्मा की संतान हो आप... ये जान कर बहुत खुशी हुई..
अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
Lawanya jiaaapki smrutiyan to amrit ke bindu hain jiske sinchan se hum jaise samanya bhee labhanwit hote hain. shesh ashesh padhne kee ichcha hai dekhiye kab ho pata hai.
फिर यादो के समंदर में गोते ....ऐसा करते है दोनों एक किताब लिखते है.....क्या कहती है ....
बहुत सुंदर प्रस्तुति। गीत और चित्रों ने इसे शानदार बना दिया है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अरे वाह ...
सच अनुराग भाई ?
हां क्यों नहीं !
चलिए समय के अन्तराल में ,
दो अलग शहरों में ,
हमारी जिन्दगी गुज़री है पर ,
जिया भरपूर है जिन्दगी को --
और पंकज भाई ,
आप ने कहा है तो अब सच में ,
मेरे संस्मरणों पर काम करना शुरू कर ही दूंगी !
काफी सामग्री ,
मेरे ब्लॉग पर बिखरी पडी है
उसे समेटना है और
सुव्यवस्थित करते हुए ,
जो ,
खाली जगहें हैं
उन्हें भर देना है --
आप सभी के स्नेह के लिए बहुत आभारी हूँ
RASHMI JI
wELCOME TO MY WORLD --
aatee rahiyrega ,
Thank you Asha ji
&
समीर भाई , अरविन्द भाई साहब, अभिषेक भाई ,
( आशा जी पर एक आलेख बहुत पहले लिखा था आपके अनुरोध पर फिर प्रकाशित करती हूँ :)
राज भाई साहब, प्रसन्न भाई और जाकीर भाई , आपकी टीप्पणीयो के लिए बहुत बहुत आभार
सविनय,
- लावण्या
SABHEE CHITRON AUR VIVRAN NE MUN KO
MOH LIYAA HAI LEKIN MUN PHIR BHEE
NAHIN BHARAA HAI.
लेख और फोटो दोनों ही बहुत अच्छे लगे.
bahut sundar..........smiritiyon ka pura madhuvan.........
यादों का अन्मोल खजाना बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है धन्यवाद्
बाँध रेशमी डोरीयों में तुम्हें सब दिन
रखूँगी पास,
निशदिन पास, अपने पास "
'शेष अशेष ' से ये पंक्तियाँ सच में बहुत ही अद्भुत लगीं.
श्रद्धेय पण्डित नरेंद्र शर्मा जी की ''सम्पूर्ण रचनावली " शीघ्र प्रकाशित हो ऐसी शुभकामनायें हैं.
-सभी चित्र अच्छे लगे मैं आप को ही पहले ढूंढ रही थी की कहाँ हैं..वैसे आप ने नीचे लिखा ही हुआ है.
आभार इस सुन्दर पोस्ट के लिए.
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