http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/2009/pravasi.htm
सुप्रसिध्ध लेखिका है श्री सुषम बेदी जी
सुषम जी का लिखा, विचारोत्तेजक निबंध अभिव्यक्ति पर आपने शायद देख भी हो
" अभिव्यक्ति " की संपादिका हैं पूर्णिमा बर्मन जी
- पूर्णिमा बर्मन जी का नाम कौन नहीं जानता ?
शिक्षा :
संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि, स्वातंत्र्योत्तर संस्कृत साहित्य पर शोध, पत्रकारिता और वेब डिज़ायनिंग में डिप्लोमा।
पीलीभीत (उत्तर प्रदेश, भारत) की सुंदर घाटियों में जन्मी पूर्णिमा वर्मन को प्रकृति प्रेम और कला के प्रति बचपन से अनुराग रहा। मिर्ज़ापुर और इलाहाबाद में निवास के दौरान इसमें साहित्य और संस्कृति का रंग आ मिला। पत्रकारिता जीवन का पहला लगाव था जो आजतक साथ है। खाली समय में जलरंगों, रंगमंच, संगीत और स्वाध्याय से दोस्ती, 1995 से यू ए ई में।
कार्यक्षेत्र :
पिछले पचीस सालों में लेखन, संपादन, फ्रीलांसर, अध्यापन, कलाकार, ग्राफ़िक डिज़ायनिंग और जाल प्रकाशन के अनेक रास्तों से गुज़रते हुए फिलहाल संयुक्त अरब इमारात के शारजाह नगर में साहित्यिक जाल पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' और 'अनुभूति' के संपादन और कला कर्म में व्यस्त। इसके अतिरिक्त वे हिंदी विकिपीडिया की प्रबंधक भी हैं।
दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य अकादमी तथा अक्षरम के संयुक्त अलंकरण "प्रवासी मीडिया सम्मान", जयजयवंती द्वारा जयजयवंती सम्मान तथा रायपुर में सृजन गाथा के "हिंदी गौरव सम्मान" से विभूषित।
प्रकाशित कृतियाँ :
कविता संग्रह : 'वक्त के साथ'
संपर्क : abhi_vyakti@hotmail.com
जन्म: 27 जून 1955 | |
हिंदी भाषा को सर्व प्रथम , विश्व जाल पर सदा के लिए , स्थापित करने के महत्त्वपूर्ण कार्य को पूर्णिमा जी |
- आवारा दिन / पूर्णिमा वर्मन
- एक दीप मेरा / पूर्णिमा वर्मन
- कोयलिया बोली / पूर्णिमा वर्मन
- खोया खोया मन / पूर्णिमा वर्मन
- चोंच में आकाश / पूर्णिमा वर्मन
- मगर बजती रही फिर भी कोई झनकार चुटकी में / पूर्णिमा वर्मन
- मनके / पूर्णिमा वर्मन
- माया में मन / पूर्णिमा वर्मन
- रामभरोसे / पूर्णिमा
- ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
- लावण्या
19 comments:
दीदी, रक्षाबंधन पर प्रणाम!
वह दिन भी आएगा जब हमारे प्रकाशक लेखकों को भाव दिया करेंगे। अभी पुस्तकों की खरीद भारत में बहुत कम है।
आप ने जो हादसे दिखाए हैं वे हमारे आस पास भी होते हैं। इस का कारण है पारिवारिक जीवन में जनतांत्रिक पद्धति का अभाव। हमें अधिकाधिक जनतांत्रिक पद्धति को परिवार में अपनाना चाहिए और बच्चों को भी अपने फैसलों में धीरे धीरे सम्मिलित करना चाहिए। उन की इच्छाओं का ध्यान रखना चाहिए और अपनी आर्थिक सामाजिक हैसियत का ज्ञान भी बच्चों को समय पर होता रहना चाहिए। इस के लिए माता-पिता का अधिक ध्यान होना चाहिए।
श्री दीनेश भाई जी , आपको भी राखी के मंगलमय पर्व पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं
आपने सही सुझाव दिए हैं , अकसर, अभिभावक और माता पिता , समझते तो सब हैं
परंतु जैसा जनतांत्रिक पद्धति को अपनाया जाना चाहीये, कर नहीं पाते - अनुशाशन और
प्यार का सम्मिश्रण और उनकी मात्रा , सही होना भी जरुरी हो जाता है -
परदेस में , परवरीश की कठिनाई और मुश्किल हो जाती है -
- जहां , भारत जैसा माहौल
नहीं होता -
- फिर भी, प्रयास तो आवश्यक हैं --
तभी भावी पीढी ,
स्वस्थ रहेगी
और पुस्तके एक ख़ास वर्ग आज भी खरीदता है पढता भी है ,
अन्यथा साहित्य और पुस्तक
भी बदलते समय को देख कर ही रचे जा रहे हैं
सादर, स - स्नेह,
- लावण्या
लावन्याज़ी
रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई |महदेवी जी के अनुसार यह स्नेहबंधन है |कितना सुख है इस सनेहबंधन शब्द मे |
आपने बहुत ही बढ़िया आलेख लिखा है अक कन्या के जीवन की सामाजिक रीति रिवाजो से पूर्ण परिवार को जोड़ने और और परिवार से जुड़ने की भाव पूर्ण यात्रा | परिवर्तन होते रहते है और साथ मे सफलता भी लाते है तो विसनगतियो को भी जन्म देते है |तथाकथित आधुनिकता की दौड़ मे हम न तो अपना पूरा छोड़ पाते है न ही बाहर का पूरा ले पाते है |फिर भी आज की पीढ़ी अपनी पूरी योग्यता से सफलतापूर्वक अपने लक्ष्यो को पा रही है |
धन्यवाद
लावण्या जी, सपरिवार आपको और आपके पाठकों को भी श्रावणी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं!
रक्षाबंधन की शुभकामनाऐं.
बड़ा कुछ समेटा एक पोस्ट में.
आभार!!
रक्षाबंधन की प्रणाम स्वीकारें और इस पावन पर्व पर आपका आशीष पाकर मन बहुत प्रफ़्फ़ुल्लित हुआ.
बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
वर्तमान में मेरे हाथ में अंजना संधीर की संगम है। प्रवासिनी के बोल अभी समाप्त ही की है। पिछले वर्ष उनसे अहमदाबाद में मुलाकात हो गयी थी, तभी उनसे भेंट स्वरूप ये पुस्तके प्राप्त हुई थी। इन पुस्तकों के माध्यम से मैंने अमेरिका का यथार्थ जाना। मैंने भी अपनी पुस्तक - सोने का पिंजर....अमेरिका और मैं में इसी प्रकार के भाव लिखे थे। उन्हें पढ़कर लगा कि जो मैंने अनुभूत किया वह सत्य था। आपने पूर्णिमाजी के बारे में भी जानकारी दी, उन्हें भी हम ब्लाग के माध्यम से ही जान रहे हैं। आशा है यह क्रम जारी रहेगा। रक्षा बंधन पर हमारी भी बधाई स्वीकार करें। हम सब प्रेम के इसी बंधन में बंधे रहे।
रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई.
दीदी, मेरा भी प्रणाम स्वीकार करें, रक्षाबंधन के इस पावन और पुनीत अवसर पर.
हम सभी ब्लोग परिवार का हिसा हैं और प्रेम की यही अदृष्य डोर ही तो मेरे , आपके और हम सब के बीच बंध सी गयी है, जो राखी के पवित्र रिश्ते को रेखंकित करती है.
कार के बोनट पर चित्र बढिया है!!
Raksha Bandhan ki shubh kamnaen didi
जिन्दगी के तनाव और बच्चों का विद्रोही स्वभाव यहां भारत में भी बढ़ गया है। असल में जहां वर्तमान युग में चेतना का विस्फोट हुआ है, वहीं अपेक्षाओं का विस्तार भी हुआ है। आदमी के समेटे नहीं रुक रहा यह विस्तार। कई बार यह अवसाद और विद्रोह का रूप धर लेता है!
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ....
अति प्रसन्नता हुई !!!
आपको भी राखी के बहुत बधाई
धन्यवाद !!
Lavanya Di
Bahut bahut badhaiyan on Raksha Bandhan.
Aapse Rakhi ke rupme amulya khazana mil raha hai!
Rgds.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
Apne to bahut kuchh likh diya..aram se padhungi.
Happy Rakhi.
पाखी की दुनिया में देखें-मेरी बोटिंग-ट्रिप !!
रक्षाबंधन पर हार्दिक स्नेह !
Yah post to poori patrika ban gayee. Aapki baat se poori tarah sahmat.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सही कहा आपने.
{ Treasurer-T & S }
शीर्षक पढ़ के पोस्ट पढने आया ओर फिर कहाँ कहाँ से गुजर गया ....किस्से पढ़के लगा जैसे जीवन कही भी हो .अपनी मजबूरिया .अलग अलग रूपों में लिए बैठा है ....वक़्त को हर आदमी अपने बस में करना चाहता है ...जल्दी ही.....पर आदमी की यही कैफियत उसे ले डूबी है .
पूर्णिमा जी के बारे में पढ़कर प्रसन्नता हुई...विदेश में लोग हिंदी से जुड़ कर बहुत अच्छा काम कर रहे है
didi
pranaam
aaj bahut der se aapke blog par hoon , bahut dino ke baad blogworld me lauta hoon ..
aapke blog par poornima ji ke baare me padna bahut hi man ko sukh dene wala raha ...
poornima ji bahut achi writer hai , aur unke website me meri kavita bhi prakashit hui hai .
didi , rakhi ki shubkaamnaye..
abhar
vijay
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