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मेरी, आपकी, अन्य की बात
सूर्य ग्रहण , आया और चला गया । विश्व में , श्रद्धालु, भक्त जन की भीड़ , नदी , सरोवर , समुद्र तथा ईश्वर आराधना के पवित्र स्थलों पर देखी गयी ।
अभी तक, मनुष्य अपने आसपास हो रही विविध घटनाओं को पूरी तरह समझ नही पाया है ।
हाँ , विज्ञान ने , अवश्य , बहुत प्रगति कर ली है ।
तकनीकी आविष्कारों ने दूर संचार के नित नए आविष्कारों की मदद से , पृथ्वी के निवासी ,
बहुल मानव समुदाय के लिए , समाचार संप्रेषण के जरिए , हर नए सूरज के साथ
नवीन गतिविधियों का नज़ारा पेश करने का , काम , द्रुत गति से परोसना जारी रखा हुआ है ।
वेब पर , कई जगह , सूर्य - ग्रहण के रोमांचकारी चित्र देखे ।
सूर्य देव , हमारे सौर मंडल के प्रमुख शक्ति पुंज , अन्धकार और वलय से ग्रसित दिखे ।
राहू - केतु , शायद , अपना जघन्य कृत्य कर रहे थे !
पता नहीं इस का दूरगामी परिणाम क्या होगा ?
जो भी घटेगा , उसका इतिहास , ही साक्षी रहेगा ।
मनुष्य कर्म और मान्यताएं , समय और युग के साथ साथ बदलतीं हैं ।
हमारी पृथ्वी को गर्म होने से रोकने के लिए , ये भी सुझाव दिया गया है के , हर सड़क , हर घर की छतों को , सुफेद रंग से रंग दिया जाए तब प्रकाश कीरने , पुन: व्योम में , चलीं जाएँगीं और इतनी ऊर्जा का संरक्षण होगा की जिससे कई लाख शहरों को बिजली मिल पायेगी । क्या पता , भविष्य में , ये सुझाव कार्यान्वित भी किया जाए ! क्या पता -
बचपन में , याद है जब भी ग्रहण लगता और ख़त्म होता तब ना जाने कहाँ से, दान मांगने वालों के स्वर ,
गलियों में गूँज उठते ,
" दे दान .... छुट्टे ग्रहण ...."
अम्मा , पुराने वस्त्र, अन्न , फल , रुपया इत्यादी तैयार रखती और उन्हें दे देतीं थीं !
आज वो द्रश्य फ़िर , याद आ गया ।
पापा जी के घर पर , साधू, बाबा , पीर फ़कीर , जोगी , ब्राह्मण , पण्डित लोगों का तांता लगा रहता था ।
सभी को श्रध्धानुसार और जो भी बन पड़ता दिया जाता ।
कई साधू , ऐसे भी होते थे जो कुछ ख़ास चीज , भी माँगा करते थे ।
जैसे एक साधू बाबा ने पापा जी से , एक धोती , माँगी थी ॥
और मुझे याद है, पापा जी ने अपनी सात - आठ धोतियाँ उठाईं और उन्हें पुछा ,
" आपको कौन सी पसंद है ? वही ले लीजिये ! "
मानो साधू बाबा की भी अपनी चोइस हो !!
ऐसी कई बातें , आज भी , फुर्सत के पलों में , याद आ जातीं हैं ।
जीवन धारा , बहती जाती है ।
ये शक्ति और ऊर्जा का महासागर है , मंथर गति से , बहता अनेकानेक जीव को अपने ,
जलधारा में समेटे , अबाध गति से बहता रहेगा ।
आना - जाना , जीव - माया का खेल , यूँ ही चलता रहेगा ।
एक लक्षण जो उजागर है वह , सातत्य और जीव का होना है ।
जिसे हम , मनुष्य , हमारी " ज़िंदगी " कहते हैं और जब तलक साँसें चलतीं रहतीं हैं ,
ज़िंदगी के संग हमारा रिश्ता , बंधा रहता है ।
यही धर्म है, यही विज्ञान है और यही है सबसे बड़ा सच !
बाकी जो भी , है, सब डोर हैं इस के संग बंधी हुई ...............
विशाल व्योम के खुले , पट पर, उडती हुई , एक पतंग ...
जिसका साँसों के तार से बंधना और समय के किसी मोड़ पर टूट कर , विलीन हो जाना ..............
अपने रंग की चमक को , एक नन्हे बिन्दु में , समाकर , लोप हो जाना , यही जीवन है ।
जीत सदा से होती है, "ज़िंदगी " की !!
इसी लिए मैंने लिखा --
" हर बार, ज़िंदगी, जीत गई ! "
- लावण्या
The Statue of LIBERTY माने स्वतंत्रा की देवी !
जिस के सर पर बना मुकुट , आज फ़िर रोशनी से जगमगाने की व्यवस्था की जायेगी। उत्तर अमरीका के , पूर्वी शहर न्यू यार्क के अटलांटिक महासागर में , स्वतंत्रता की देवी की अति विशाल मूर्ति ,
स्वाधीनता का प्रतीक मानी जाती रही है ।
यूरोप से आनेवाले , पहले , प्रवासी - नागरिकों का स्वतंत्रता की देवी ने ही स्वागत किया था । हाँ, अश्वेत प्रजा को जबरन , उत्तर अमरीका के खेत - खलिहान और खदानों में काम करने के लिए, गुलामी के बंधन में कैद करके , लाया गया था उन्हें , स्वतंत्रता , उत्तर और दक्षिण के प्रान्तों में , हुई , सिविल वोर के बाद ही प्राप्त हुई । उसका श्रेय प्रेजिडेंट अब्राहम लिंकन को मिला ।
आख़िरकार , अश्वेतों के प्रतिनिधि , ओबामा , भी राष्ट्र - प्रमुख बने ।
आशा करें , अब , अश्वेतों के लिए भी ,
कई नए मार्ग , प्रशस्त होंगे । अमरीकी गरुड़ को अपनी स्वतंत्रता का प्रतीक मानते हैं और ४ जुलाई को , खेल के मैदान में , गरुड़ को मुक्त आकाश में , उड़ान के लिए , खोल दिया जाता है और दर्शक ये द्रश्य देख खुश होते हैं !
लावण्यम----अंतर्मनशीर्षक में विषय-वस्तु के बीज समाहित होते हैं.लावण्यम----अंतर्मन इसी बीज का पल्ल्वीकरण है.हृदयेन सत्यम (यजुर्वेद १८-८५) परमात्मा ने ह्रदय से सत्य को जन्म दिया है. यह वही अंतर्मन और वही हृदय हैजो सतहों को पलटता हुआ सत्य की तह तक ले जाता है.लावण्य मयी शैली में विषय-वस्तु का दर्पण
बन जाना और तथ्य को पाठक की हथेली पर देना, यह उनकी लेखन प्रवणता है. सामाजिक, भौगोलिक, सामयिक समस्याओं
के प्रति संवेदन शीलता और समीकरण के प्रति सजग और चिंतित भी है. हर विषय पर गहरी पकड़ है. सचित्र तथ्यों को प्रमाणित करना उनकी शोध वृति का परिचायक है. यात्रा वृतांत तो ऐसे सजीव लिखे है कि हम वहीं की सैर करने लगते हैं.आध्यात्मिक पक्ष, संवेदनात्मक पक्ष के सामायिक समीकरण के समय अंतर्मन से इनके वैचारिक परमाणु अपने पिता पंडित नरेन्द्र शर्मा से जा मिलते हैं,
जो स्वयं काव्य जगत के हस्ताक्षर है.पत्थर के कोहिनूर ने केवल अहंता, द्वेष और विकार दिए हैं, लावण्या के अंतर्मन ने हमें सत्विचारों का नूर दिया है.पारसमणि के आगे कोहिनूर क्या करेगा?- डा. मृदुल कीर्तिAll sublime Art is tinged with unspeakable grief.
All Grief is a reflection of a soul in the mirror of life'SONGS are those ANGEL's sound that Unite US with the Divine.'
About me:
Music and Arts have a tremendous pull for the soul and expressions in poetry and prose reflects from what i percieve around me through them.