Friday, May 22, 2009

आशा और विश्वास से बुने स्वप्न और ये यादें


भगवती देवी सरस्वती से आशीर्वाद प्राप्त २ वरद सरस्वती पुत्र
स्थान : नई दिल्ली : सन` : १९८२

भारत की गौरवमयी राजधानी मेँ, आज कुछ ज्यादा ही चहल पहल है ! शहर मेँ, एशियाड खेलोँ का उत्सव हो रहा है । भारत के लिये ये उत्सव और खास तौर से राजधानी दिल्ली के लिये यह गौरवभरा प्रात: नई खुशियाँ लेकर आया है और ये प्रसँग आरम्भ होते हुए हम दूरदर्शन पर देख रहे हैं , के , खेल के मैदान की वर्तुलाकार परिधि के आस पास, एशिया के हरेक मुल्क से आये श्रोतागण, अपने अपने स्थान पर, आसन ग्रहण कर चुके हैँ ।

भारतीय तिरँगा नीले स्वच्छ आकाश मेँ फहराता , मुक्ति और स्वतँत्रता का सँदेश, दूर दूर तक फैलाता हुआ , फहरा रहा है और "अप्पू " नामक बाल कुँजर ( हाथी ) जो इस खेलोँ का ' शुभ - चिह्न या अँग्रेज़ी मेँ कहेँ तो "मेस्कोट ' है, वह भी दीखलाई पडता है के अचानक, असँख्य भारतीय ताल वाध्योँ के सँग बंधी , उल्लसित स्वर लहरी गूँज उठती है !

दर्शक, चकित होकर, इस सँगीत के जादू से बँध जाते हैँ । स्वर सँयोजन भारतीय सँगीत की शास्त्रीय परँपरा के वाहक पण्डित रवि शँकर जी ने सँयोजित किया है । कोरस मेँ स्वर उभरता है , शुध्ध सँस्कृतनिष्ठ शब्दोँ से पवित्र आह्`वान करते हुए मँत्र स्वरुप शब्द, अनेक कँठोँ से फूट पडते हैँ,

"स्वागतम्` शुभ स्वागतम्` आनँद मँगल मँगलम ,

नित प्रियम्` भारत भारतम "
ये शब्द रचनेवाले सँत ह्र्दय कवि पण्डित नरेद्र शर्मा ( मेरे पापा जी ) ही थे ।

उन्होंने ये गीत लिखा था और दिल्ली भिजवाया था उस समय मँद स्मित से सजी पापा जी की मुखमुद्रा का, आज भी, स्मरण हो आता है ।

उन्होंने ये भी कहा था, " सँस्क़ृत के शब्दोँ से सजा ये गीत, भारत के हरेक प्राँत के विभिन्न भाषा बोलनेवालोँ को एक सूत्र मेँ पिरो पायेगा -- इसका मुझे विश्वास है । दक्षिण की भाषाएँ और उत्तर की , पूर्व की होँ या पश्चिम की, भारत के हर प्राँत की भाषा , मेरी सँस्कृत भाषा को ' माता ' कहती है । हमारे भारतवर्ष की यह आदी भाषा है और हर प्राँतिय भाषा मेँ , कई सारे सँस्कृत निष्ठ शब्द हैँ जिन्हेँ हर प्राँत मेँ समझा जाता है और उनका प्रयोग भी किया जाता है " --
ये पापा के उस समय कहे शब्द , आज याद कर रही हूँ ।

आज नए नए तकनिकी आविष्कार हुए हैं । ' युट्युब ' का आविष्कार भी हुआ है ।

जो पापा जी के समय मेँ नहीँ हुआ था । उस समय , ना ही कम्प्युटर था !!

आज हम लोग इन के इतने अभ्यस्त हो गए हैं ये सोचते हुए, अजीब लगता है --

फिर भी, प्रमाण है , यही जब , उनकी बातेँ , आज, अक्षरश: सत्य सिध्ध हुई हैँ । जब मैँ देखती हूँ कि, भारत की प्राँतीय भाषाएँ तथा उनके बोलनेवाले भारतीय, जो आज विश्व के विभिन्न भूखँडोँ मेँ बस गये हैँ , उनके लिये भी ये गीत सँस्कृतनिष्ठ भाषा से अपने लिये एक विशिष्ट स्थान बना पाया है ।

यु,के, युनाइटेड कीँगडम हो या मोरीशयस, या बाली या फीजी के द्वीप होँ, उत्तर अमरीका हो या केनेडा, हर जगह आ कर बसे भारतीय, अपनी अपनी सँस्था के, मँगल उतसव के उद्`घाटन को आरँभ करते समय, " स्वागतम्` शुभ स्वागतम , आनँद मँगल मँगलम , नित प्रियम भारत भारतम्" गीत गाकर, अपनी जन्मदात्री, पुण्य गर्भा, भारत माता की स्मृति को, अपने प्रणाम भेजता है और मंगल कामना करता है पूरा समुदाय ।

पुण्यभूमि भारत की स्तुति करते हुए शब्द

वेदों की ऋचाओँ की तरह प्रभावशाली हैं :

स्वागतम शुभ स्बागतम

आनंद मंगल मंगलम

नित प्रियम भारत भारतम

नित्य निरंतरता नवता

मानवता संता ममता

सारथि साथ मनोरथ का

जो अनिवार नहीं थमता

संकल्प अविजित अभिमतम

आनंद मंगल मंगलम

नित प्रियम भारत भारतम

कुसुमित नई कामनाएँ
सुरभित नई साधनाएँ

मैत्री मति क्रीडाँगण में

प्रमुदित बन्धु भावनाएँ

शाश्वत सुविकसित इति शुभम

आनंद मंगल मंगलम

लिंक देखिये : अनुभूति वेब साईट पर --

http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/narendrasharma/swagatam.htm
कवि के परिचय में :
नरेंद्र शर्मा का जन्म १९१३ में खुर्जा के जहाँगीरपुर नामक स्थान पर हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षाशास्त्र और अंग्रेज़ी मे एम.ए. किया।
१९३४ में प्रयाग में अभ्युदय पत्रिका का संपादन किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में हिंदी अधिकारी रहे और फिर बॉम्बे टाकीज़ बम्बई में गीत लिखे। उन्होंने फिल्मों में गीत लिखे, आकाशवाणी से भी संबंधित रहे और स्वतंत्र लेखन भी किया।
उनके १७ कविता संग्रह एक कहानी संग्रह, एक जीवनी और अनेक रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।


पण्डित रवि शंकर जी का परिचय : बाबा अलाउद्दीन खान साहब के रवि शंकर जी, शागीर्द रहे थे। तथा बड़े भाई नृत्य सम्राट उदय शंकर जी के साथ नृत्य व संगीत जगत में , पैर रखे -

१९३९ में अलहाबाद शहर की संगीत जलसे में , सर्वप्रथम सितार बजाया और १९४४ से संगीत की दुनिया में अपना निश्चित स्थान बना लिया ।

कवि आनंद से पूरित , सु - अवसर पर , सभी देशों से आए खिलाड़ियों का , स्वागत करते हुए कहते हैं ,

" मेरे प्रिय स्वदेश में , आप सब का स्वागत है !"

नित्य निरंतरता नवता माँनवता समता ममता

सारथि साथ मनोरथ का ,

जो अनिवार नही थमता !

संकल्प अविजित अभिमतं ! "
आधुनिक युग में , नित्य प्रति , लगातार , नई बातें हो रहीं हैं ।
मानव ममता लिए सभी को ये अवसर , शुभकर हो और एक सामान रूप से हो ये , कवि की महत्त्वाकाँक्षा है ।
साथ कौन है ?

दृढ़ संकल्पों का वाहन चालक = सारथि ..... श्री कृष्ण रुपी ह्रदय है। जो , सदैव , गति शील है और विजयी होने का प्रण लिए , समूह में , यहाँ पर क्रीडांगन में, एकत्रित है ।


" कुसुमित नयी कामनाएं ,सुरभित नयी साधनाएं , मैत्री मति क्रीडांगन में , प्रमुदित बंधू भावनाएं , शास्वत सुविकसित अति शुभम ! "

इस खेल के मैदान में , मैत्री भावः से खेले गए खेलों में , = यानि ,बंधुत्व की भावनाएं , प्रेम , मैत्री और परस्पर आदर विकसित हो ये कवि की प्रार्थना है

नई इच्छाओं के सहारे , नई साधनाएं सम्पन्न होंगीं , ये आशा है !

फ़िर आगे क्या होगा ?

आनंद मंगल मंगलम , की वर्षा होगी ये भी कवि का विशवास है और जहाँ ऐसा मनोहारी वातावरण है वह भारत भूमि , नित प्रिय है और रहेगी !"

इति शुभम !

अकसर ' युट्युब ' पर कई गीत सर्च करके सुनती हूँ .....आज अचानक ये गीत इस जानकारी की साथ देखा और ये आलेख लिखने की प्रेरणा मिली ।

आशा और विश्वास से बुने स्वप्न और यादें , फ़िर उभर आयीं ।

आप भी पढिये ...........और साथ में दीये हुए लिंक से , गीत को सुनियेगा .....

गीत पर सर्च करते हुए ये जानकारी भी महत्वपूर्ण लगी

जिसे यहाँ दे रही हूँ ।

(१ )

"In the Northen Indian classical music this Raga is known as

" भिन्न षड्ज । "

It has another name 'कौशिक ध्वनि '।

In the बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी textbook by late पण्डित ओमकारनाथ ठाकुर this was the first Raga to be taught to the beginner

The राग " हेमंत " has similar आरोह but the अवरोह has all the ७ (शुद्ध ) notes।

" अथ स्वागतम ' seems to be

" जनसम्मोहिनी राग" which is similar to " कलावती ,"

with the नोट " रे " added in it.-

- अनिलकुमार , मुंबई।

( २ )
Report on the Third Annual Function Of UANA
Nearly 250 people gathered from several parts of USA & Canada on August 4, 2001 at the Keefe Tech High School in Framingham, MA to participate in the 3rd annual convention. ( Uttraanchal Association )

The cultural program was hosted by Mr. Prakash Badola & Mrs. Pushp Kumar of MA. It started with the Ganesh Vandana, by Garima Pant of MD. It was amazing to see a second grader little girl recite memorized Sanskrit Shlokas generating the spiritual setting in the auditorium. A group of adults sang " Swagatam, ShubhSwagatam " welcoming all attendees.

( ३ )
This nostalgic song was performed during inaugural session of Asiad (Asian Games) held in New Delhi in 1982।
Original score by Pandit Ravishankar।
We could not find the original anywhere।
That is the reason, there may be a deviation from the original। This was performed as a welcome song during India Association of Tallahassee's ( a city in Florida state of U.S.A. ) annual cultural program "Cultural Glimpses of India" on November 15, 2008, at Chiles High School, in Tallahassee।

Orchestration was by Srinivasa Bharadwaj Kishore and singers are (From left to right) Priya Ram, Bharati Tenneti, Radhika Nori, Karthik Srivatsa, Srinivasa Bharadwaj Kishore, Vani Cheruvu, Moushumi Das, Ajay Vashisht, Ajay Walia, Priya Ashok, Deepa Sekhar and Gayatri Melkote, residents of ,

टल्लाहास्सी , फ्लोरीडा से .....suniye ...गीत


mshttp://www.youtube.com/watch?v=tKYXId5X-uI

- sanklan : lavanya

21 comments:

अजित वडनेरकर said...

वाह...कई चीज़े समेटी आपने इस पोस्ट में। संस्मरण हमेशा से अच्छे लगते हैं...आपके पास तो उनका खजाना है।

Vinay said...

उत्तम अति उत्तम

---
तख़लीक़-ए-नज़र

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप की पोस्ट हमेशा बहुत सी जानकारियाँ लिए होती है। हम उन से समृद्ध होते हैं। हमेशा इसी लिए उन की प्रतीक्षा भी रहती है।

Udan Tashtari said...

पापा जी के समय के कुछ विडियो इत्यादि का संकलन हो तो उसे तो आप यूट्यूब पर डाल ही सकती है..सबसे साझा हो जायेगा.

बहुत अच्छे संस्मरण रहे.

Smart Indian said...

बहुत पुराने दिन याद आ गए यह पोस्ट पढ़कर. पंडित रविशंकर और पंडित नरेंद्र शर्मा, दो महारथी एक साथ हों तभी ऐसी रचना संभव है.

श्यामल सुमन said...

संस्मरण को संजोने का सराहनीय प्रयास।वाह।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

दिलीप कवठेकर said...

aap in khazano ko hamesha lutate rahiye. Ham yoo hi aanandit hote rahe....

शेफाली पाण्डे said...

आप बहुत सौभाग्यशाली हैं....आपको pita के रूप में ऐसे vyakti मिले

डॉ .अनुराग said...

अजित जी ठीक कहते है .यादो का एक अनमोल खजाना है आपके पास...बांटो तो भी ख़त्म नहीं होगा.......भले ही तब यू ट्यूब ओर कम्पूटर न हो....न ही मोबाइल .पर फिर भी रिश्ते ज्यदा मजबूत थे तब.....

मीनाक्षी said...

यह पोस्ट हमारे लिए अनमोल है... कस्तूरी हमारे आसपास ही थी और हम पता नही कहाँ कहाँ इस इस विषय पर जानकारी हासिल करने के लिए भटक रहे थे...आपको बारम्बार नतमस्तक प्रणाम... :)

पंकज सुबीर said...

दीदी साहब आपका संस्‍मरण लिखने का अपना ही निराला अंदाज है जो अनूठा है । इस गीत को कैसे भूल सकता हूं बचपन की पहली बार टीवी देखने की यादें जुड़ी हैं इसके साथ ।

ताऊ रामपुरिया said...

निहायत ही खूबसूरत तरीके से आप ये संस्मरण लिखती हैं, आपके साथ साथ हम भी बह चलते हैं समय की धार में.

बहुत सूंदर...शुभकामनाएं.

रामराम.

Harshad Jangla said...

Lavanya Di
Enjoyed,learned a lot and liked immensely....your blog always leaves sweet memories.
Papaji ko Pranam.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

Abhishek Ojha said...

आपकी अनमोल यादें और दो दिग्गजों से मुलाकात ने इस पोस्ट को बहुत सुन्दर बना दिया है,

Alpana Verma said...

बहुत ही सुन्दर पोस्ट है ..पंडित नरेंद्र जी और पंडित रविशंकर जी के बारे में बहुत ही अच्छा लेख प्रस्तुत किया है.
--लिंक भी देखे./सुने.
समीर जी का विचार अच्छा है..कुछ ऑडियो या विडियो अगर पंडित नरेंद्र जी की ,आप यू ट्यूब पर पोस्ट करें तो बहुतों के साथ साझा होंगी.
पंडित रविशंकर जी की उनकी पत्नी के साथ तस्वीर भी आप के व्यक्तिगत संग्रह में से एक लगती है.

www.dakbabu.blogspot.com said...

बहुत खूबसूरत संस्मरण !!
_____________________________
आपने डाक टिकट तो खूब देखे होंगे...पर "सोने के डाक टिकट" भी देखिये. डाकिया बाबू के ब्लॉग पर आयें तो सही !!

P.N. Subramanian said...

आपने ढेर सारी जानकारी दे दी है. उच्च कोटि का संस्मरण बन गया है.आपके पापा जी को नमन. अल्ला रखा के साथ पंडित रविशंकर जी के वादन को तो हम देखते सुनते ही रहते हैं. अआपके सभी लिंक्स को भी हमने देखा/सुना. वास्तव में स्वागत गीत बहुत ही कर्ण प्रिय है.

नीरज गोस्वामी said...

दोनों युग पुरुषों को मेरा सादर नमन...
नीरज

Arvind Mishra said...

बहुत आनंददायक है पंडित नरेंद्र शर्मा जी विरचित गीत की यह सांगीतिक प्रस्तुति देखना /सुनना ! बहुत आभार !

अन्नपूर्णा said...

पंडितजी का शताब्दी वर्ष 2013

अन्नपूर्णा said...

यह स्वागत श्लोक विविध भारती से हर बुधवार को शाम 4 बजे पिटारा के अंतर्गत प्रसारित होने वाले आज के मेहमान कार्यक्रम के लिए सुनवाया जाता है