नोआ के जैसा एक बालक, देखा गहरे नीले रँग की बडी सी तितली के नर्म पँखोँ को थामे, बतियाते हुए, देख रहा था और बचपन के ये निर्मल रूप ने मुझे भी अपने शैशव के दिनों की यादों में खीँच लिया ।
"बचपन के दिन भी क्या दिन थे , उडते फिरते, तितली बन "
सुजाता फिल्म का गीत ज़बाँ पे आ ही गया !
वहीँ पर मिली घुँघ्रराले, सुनहरे बालोँवाली ये कन्या उसने फिलीपाइन्स की एक बालिका को गोद लिया था और मुझे देखकर भारतीय जानकर मुस्कुराई और बातेँ करने लगी । मैँने माँ, बेटी की तस्वीर खीँचने की अनुमति माँगी और उसने सहर्ष स्वीकृती दे दी । उसने मुझे बतलाया कि वह भारतीय फिल्मेँ देखती है और नाम बोल ना पाई परँतु बतलाया , "उस फिल्म मेँ हीरोइन स्केटीँग करती है और बहुत बडा भारतीय परिवार खूब मस्ती मज़ा करता देखकर मैँ बहुत प्रसन हुई ।
मैंने , नाम सुझाया, "हम आपके हैँ कौन ? " और उसने झट हामी भरी :)
यहाँ कई ऐसे बच्चोँ को देखती हूँ और सोचती हूँ हे भगवान ! इन दत्तक लिये बच्चोँ का जीवन सुखी जीवन हो ऐसा ही करना ! पता नहीँ ऐसे शिशु, बडे होकर कैसा महसूस करते होँ ? अपने परिवेश से किस तरह नाता जोडते होँगेँ ? क्या उन्हेँ बेहतर जीवन मिला है ? या ये फूल से बच्चे अपनी जड से दूर, नई दुनिया मेँ उपेक्षित ही रहेँगेँ ? क्या इनके माता या पिता , उनके साथ, अच्छा व्यवहार करते होँगेँ ? कई प्रश्न उठते हैँ ! आखिर माँ का मन है ना !
इसीलिये बच्चोँ की सुरक्षा और खुशी ही मेरे लिये सर्वोपरि बन जाती है ।
मनुष्य मात्र मेँ अच्छाई है और उस पर विश्वास करना मेरी आदत है।
परँतु कई बार यही दुनिया एक भयानक रुप लिये सामने आती है
तब ये सहज विश्वास ,डगमगा जाता है ।
हमारे शहर की "तितली प्रदर्शनी ", " माउन्ट एडम्ज़ " नामक ऊँची पहाडी पर स्थित स्थान पर कोर्न्ज़ ओब्ज़र्वेटरी मेँ ही होती है ।
उसी के पास है ये स्थान : " क्रोह्नन कनज़र्वेटरी " --
links :
ये ख़ास अशोक भाई
तथा अरविन्द जी के लिए
साईब्लाग [sciblog] यहाँ दे रही हूँ ।
तथा श्री पंकज अवधिया जी के लिए भी ( जिनकी नई पोस्ट अभी देखी )
उन्हें अवश्य ये जानकारी पसंद आयेगी ।
( २ )
जहाँ जाने से पहले यह पुराना दुर्ग जैसा दरवाज़ा भी आता है
ये चित्र उसी का है ।
यहाँ रखी तितली के आकार की बेन्च परैठकर सभी अपनी तस्वीरेँ ले रहे थे आप को कैसी लगी ये बेन्च ?
आप चुपचाप कुछ पलोँ के लिये स्थिर होकर बैठ जायेँ तब आपके आस -पास उडती तितलियाँ निर्भयता से , आपके हाथोँ पर, बालोँ पर (और मेरे कैमरे पर भी ) आकर बैठ जातीँ थीँ !
यहाँ ये बाला एक तितली थामे मुस्कुरा रही है :)
भीतर , ९३ * से ज्यादा का तापमान था ।
बाहर हल्की बारिश से मौसम सुहाना हो रहा था और भीतर जाकर ,
हमें बहुत गरमी लगी !
भारतीय तितलियोँ के स्वागत मेँ, भारत से लाई बातिक व बाँधनी की साडियाँ और चुनरी, रास गरबा की ठेठ भारतीय पोशाकेँ और गणेश तथा श्रीकृष्ण की सुँदर मूर्तियाँ भी हर कोने मेँ करीने से सजाई गईँ थीँ ।
कुछ पोस्टर भी लगे थे और भारतीय वनस्पति तथा आबोहवा पर सूचना भी थीँ । ये चित्र राधा रानी और श्रीकृष्ण का भी था।
हर साल कई स्वयँसेवी सँस्थाएँ, ऐसे आयोजन की सफलता के लिये अपना योगदान देतीँ हैँ और क्रोह्न्ज़ कनज़र्वेटरी का अपना रीसर्च सँस्थान भी है ।
श्री राम और सीता माई की तस्वीर भी दीखी ! अँजनी पुत्र महाबली हनुमान जी प्रणाम करते हुए और भाई लक्ष्मन जी , अपने बडे भैया के पार्श्व मेँ खडे हुए थे !
पौराणिक काल से आगे बढते हुए, जिस युगपुरुष के निहत्थे पराक्रम से ,समूचा पस्चिमी समाज बेहद प्रभावित रहा उन महात्मा गाँधी के बारे मेँ जानकारी भी श्रध्धाभाव से रखी दीखी --- " मोहनदास के गांधी "
और अँत मेँ महात्मा गाँधी बापू की तस्वीर प्लास्टीक की फूल मालाओँ से सजी हुई ! वहां , मैंने और नोआ ने भी हाथ जोड़े और प्रणाम करा कर फ़िर भारत को ह्रदय में याद किया ! एक कविता , मेरी लिखी हुई याद आ गयी जो नीचे दे रही हूँ ! हम इंसानों की क्या हस्ती है ? कहीं भी रहें, जीवन , इन फूल, तितली और बचपन से लेकर , अंत तक की यात्रा ही है ना ? इसका बोध , फ़िर हुआ । मानव जीवन , सुंदर भी है पर , कठिन भी है ।
सह न पाये बिछोह वे,
सीता , भूमिगत हुईँ थीं
लक्ष्मण, अग्नि मेँ समाये,
खडे अकेले सरयू तट पर,
श्री राम ! अश्रु, छलछलाये,
" लीला करूँ समाप्त अब -
स्वधाम, "साकेत " हो वापसी "
सोचकर प्रभु ने चरण बढाये,
पीताम्बर, नील जल मेँ जा समाये !
नहीँ आसाँ, मनुज होना ,
नहीँ आसाँ, मनुज होना ,
है नहीँ आसाँ --
बीता युग, प्रभु फिर पधारे,
प्रभू श्री कृष्ण बन,
बीता युग, प्रभु फिर पधारे,
प्रभू श्री कृष्ण बन,
महारास रचाये,
देकर गीता ज्ञान ,
आप थे , प्रभू , हर्षाये
आप थे , प्रभू , हर्षाये
हरा भू का भार नटवर ने,
कुरुक्षेत्र का युध्ध भीषण,
रक्त पात का महासमर,
युध्धिष्ठिर को सौँप आये !
पारधी के बाणे से पीडित,
लीलाधर, भी कसमसाये,
श्रीकृष्ण, तब भी मुस्कुराये,
मनुज तन धर कर बँशीधर,
पारधी के बाणे से पीडित,
लीलाधर, भी कसमसाये,
श्रीकृष्ण, तब भी मुस्कुराये,
मनुज तन धर कर बँशीधर,
आप भी, कितना अकुलाये !
नहीँ आसाँ, मनुज होना ,
नहीँ आसाँ, मनुज होना ,
है नहीँ आसाँ --
- लावण्या
- लावण्या
19 comments:
लावण्यमदीदी
प्रणाम!
फूल-तितली-शिशु और ये जीवन, एक शीर्षक मे चार- चार पात्रो से आपने जो अपनी इस पोस्ट मे रन्ग भरे है, बडे ही आत्मयताओ भरे लगे। खासकर आपके यह अनुभव-"
"नोआ के जैसा एक बालक, देखा गहरे नीले रँग की बडी सी तितली के नर्म पँखोँ को थामे, बतियाते हुए, देख रहा था और बचपन के ये निर्मल रूप ने मुझे भी अपने शैशव के दिनों की यादों में खीँच लिया। "बचपन के दिन भी क्या दिन थे , उडते फिरते, तितली बन "
आपकी इस लिखाई को मैने स्वय अपने जीवन के करीब महसुस किया।
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"नहीँ आसाँ, मनुज होना ,
है नहीँ आसाँ --"
मनुष्य होना आसान नही है, मनुष्य जीवन को पाना भी दुर्लभ है।
और मनुष्य जीवन तकलिफो कि डगर है।
मुझे आपलिखित रचना खुब अच्छी लगी।
शुभमगल भावनाओ के साथ!!
महावीर बी सेमलानी "भारती'
बहुत सुन्दर चित्र, तितलियों और फूलों की मोहक छटा और फिर गहन कविता..अद्भुत पोस्ट बन गई है यह. आभार.
जीवन दर्शन ..ओर एक शिशु के जरिये फिलोसफी .....ओर एक कविता ..
kaun hoga jo titli dekh khush na ho?
आपने बहुत रूचिकर पोस्ट लिखी है, बधाई
तितली...बचपन...ईश्वर ..एक ही पोस्ट में इतनी सारे सुन्दर चीज़ें एक साथ. ऊपर से मनमोहक चित्र!
kitni sundar tasweeren hain..waah!
bahut hi sundar post hai...
aap ki kavita bhi sach hi to bayan kar ahi hai..
नहीँ आसाँ, मनुज होना ,
है नहीँ आसाँ --
दीदी! बहुत अच्छा और जानकारी बढ़ाने वाला आलेख। काश! इस प्रदर्शनी में मैं भी होता।
बहुत ही मनमोहक चित्र और आपके खास अंदाज मे लिखी गई पोस्ट बहुत ही जीवंत बन पडी है. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
वाह कितना क्यूट सब कुछ !
बडी रोचक.
आपके मन में भी एक बाग है, रंग बिरंगी फूलों का , जो आपके मधुर मुस्कान की सुरभि बिखेर रही है, और हम जैसे अनुज बालकों क्प आल्हादित कर रही है.
आपकी कलम क्या है, एक तितली ही तो है, जो अपने रंगीन पंखों से इस पूरी बाग में मचल मचल कर उडती है. जिस किसी भी विषयपुष्प पर बैठती हैं, तो उसका पराग चूस कर हमें मधुरस से तृप्त कर देती है.
आप हैं तो दीदी, मगर मां से क्या कम है?
अद्भुत मनमोहक पोस्ट !
जीवन में बस यही खूबसूरती है...शिशु, तितली और फूलों का जीवन .... काश हम सब इसी खूबसूरती में खो जाएँ....
यहाँ कई ऐसे बच्चोँ को देखती हूँ और सोचती हूँ हे भगवान ! इन दत्तक लिये बच्चोँ का जीवन सुखी जीवन हो ऐसा ही करना ! पता नहीँ ऐसे शिशु, बडे होकर कैसा महसूस करते होँ ? अपने परिवेश से किस तरह नाता जोडते होँगेँ ? क्या उन्हेँ बेहतर जीवन मिला है ? या ये फूल से बच्चे अपनी जड से दूर, नई दुनिया मेँ उपेक्षित ही रहेँगेँ ? क्या इनके माता या पिता , उनके साथ, अच्छा व्यवहार करते होँगेँ ?
lavnyaji
apki post pdhakar dil dhdkne lgta hai ki jo pdh rh hu isse bhi achha aage kya hoga ?sach maine apko smpurn bhartiy nari ke rup me dekha hai .jo hmari phchan hai .badhai.
यहाँ कई ऐसे बच्चोँ को देखती हूँ और सोचती हूँ हे भगवान ! इन दत्तक लिये बच्चोँ का जीवन सुखी जीवन हो ऐसा ही करना ! पता नहीँ ऐसे शिशु, बडे होकर कैसा महसूस करते होँ ? अपने परिवेश से किस तरह नाता जोडते होँगेँ ? क्या उन्हेँ बेहतर जीवन मिला है ? या ये फूल से बच्चे अपनी जड से दूर, नई दुनिया मेँ उपेक्षित ही रहेँगेँ ? क्या इनके माता या पिता , उनके साथ, अच्छा व्यवहार करते होँगेँ ?
lavnyaji
apki post pdhakar dil dhdkne lgta hai ki jo pdh rh hu isse bhi achha aage kya hoga ?sach maine apko smpurn bhartiy nari ke rup me dekha hai .jo hmari phchan hai .badhai.
आपके इस पोस्ट को पढ़ते पढ़ते हम भी कुछ ख्वाबों में डूब से गए. हम सोच रहे थे की आपका मन कितना सुन्दर है. उतना ही निश्छल और सुन्दर प्रस्तुति. आहा ! बड़ा संतोष हुआ. आभार.
नोआ की फोटो देख अपना बचपन याद आ गया। और ये लड़कियां तो तितलियों सी लग रही हैं।
आपकी पोस्ट में तो बहुत कुछ है।
वाह .
ज़िन्दगी के रंग भरे हैं आपके लेखन में .
लगा कि ज़िन्दगी से मिल रहे हैं.
आप जब किसी जगह की जानकारी देती हैं तो लगता है हम आपके साथ साथ घूम रहे हैं...बहुत जीवंत चित्रण करती हैं आप...अद्भुत...
नीरज
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