स्थान : नई दिल्ली : सन` : १९८२
भारत की गौरवमयी राजधानी मेँ, आज कुछ ज्यादा ही चहल पहल है ! शहर मेँ, एशियाड खेलोँ का उत्सव हो रहा है । भारत के लिये ये उत्सव और खास तौर से राजधानी दिल्ली के लिये यह गौरवभरा प्रात: नई खुशियाँ लेकर आया है और ये प्रसँग आरम्भ होते हुए हम दूरदर्शन पर देख रहे हैं , के , खेल के मैदान की वर्तुलाकार परिधि के आस पास, एशिया के हरेक मुल्क से आये श्रोतागण, अपने अपने स्थान पर, आसन ग्रहण कर चुके हैँ ।
भारतीय तिरँगा नीले स्वच्छ आकाश मेँ फहराता , मुक्ति और स्वतँत्रता का सँदेश, दूर दूर तक फैलाता हुआ , फहरा रहा है और "अप्पू " नामक बाल कुँजर ( हाथी ) जो इस खेलोँ का ' शुभ - चिह्न या अँग्रेज़ी मेँ कहेँ तो "मेस्कोट ' है, वह भी दीखलाई पडता है के अचानक, असँख्य भारतीय ताल वाध्योँ के सँग बंधी , उल्लसित स्वर लहरी गूँज उठती है !
दर्शक, चकित होकर, इस सँगीत के जादू से बँध जाते हैँ । स्वर सँयोजन भारतीय सँगीत की शास्त्रीय परँपरा के वाहक पण्डित रवि शँकर जी ने सँयोजित किया है । कोरस मेँ स्वर उभरता है , शुध्ध सँस्कृतनिष्ठ शब्दोँ से पवित्र आह्`वान करते हुए मँत्र स्वरुप शब्द, अनेक कँठोँ से फूट पडते हैँ,
"स्वागतम्` शुभ स्वागतम्` आनँद मँगल मँगलम ,
नित प्रियम्` भारत भारतम "
ये शब्द रचनेवाले सँत ह्र्दय कवि पण्डित नरेद्र शर्मा ( मेरे पापा जी ) ही थे ।
उन्होंने ये गीत लिखा था और दिल्ली भिजवाया था उस समय मँद स्मित से सजी पापा जी की मुखमुद्रा का, आज भी, स्मरण हो आता है ।
उन्होंने ये भी कहा था, " सँस्क़ृत के शब्दोँ से सजा ये गीत, भारत के हरेक प्राँत के विभिन्न भाषा बोलनेवालोँ को एक सूत्र मेँ पिरो पायेगा -- इसका मुझे विश्वास है । दक्षिण की भाषाएँ और उत्तर की , पूर्व की होँ या पश्चिम की, भारत के हर प्राँत की भाषा , मेरी सँस्कृत भाषा को ' माता ' कहती है । हमारे भारतवर्ष की यह आदी भाषा है और हर प्राँतिय भाषा मेँ , कई सारे सँस्कृत निष्ठ शब्द हैँ जिन्हेँ हर प्राँत मेँ समझा जाता है और उनका प्रयोग भी किया जाता है " --
ये पापा के उस समय कहे शब्द , आज याद कर रही हूँ ।
आज नए नए तकनिकी आविष्कार हुए हैं । ' युट्युब ' का आविष्कार भी हुआ है ।
जो पापा जी के समय मेँ नहीँ हुआ था । उस समय , ना ही कम्प्युटर था !!
आज हम लोग इन के इतने अभ्यस्त हो गए हैं ये सोचते हुए, अजीब लगता है --
फिर भी, प्रमाण है , यही जब , उनकी बातेँ , आज, अक्षरश: सत्य सिध्ध हुई हैँ । जब मैँ देखती हूँ कि, भारत की प्राँतीय भाषाएँ तथा उनके बोलनेवाले भारतीय, जो आज विश्व के विभिन्न भूखँडोँ मेँ बस गये हैँ , उनके लिये भी ये गीत सँस्कृतनिष्ठ भाषा से अपने लिये एक विशिष्ट स्थान बना पाया है ।
यु,के, युनाइटेड कीँगडम हो या मोरीशयस, या बाली या फीजी के द्वीप होँ, उत्तर अमरीका हो या केनेडा, हर जगह आ कर बसे भारतीय, अपनी अपनी सँस्था के, मँगल उतसव के उद्`घाटन को आरँभ करते समय, " स्वागतम्` शुभ स्वागतम , आनँद मँगल मँगलम , नित प्रियम भारत भारतम्" गीत गाकर, अपनी जन्मदात्री, पुण्य गर्भा, भारत माता की स्मृति को, अपने प्रणाम भेजता है और मंगल कामना करता है पूरा समुदाय ।
पुण्यभूमि भारत की स्तुति करते हुए शब्द
वेदों की ऋचाओँ की तरह प्रभावशाली हैं :
स्वागतम शुभ स्बागतम
आनंद मंगल मंगलम
नित प्रियम भारत भारतम
नित्य निरंतरता नवता
मानवता संता ममता
सारथि साथ मनोरथ का
जो अनिवार नहीं थमता
संकल्प अविजित अभिमतम
आनंद मंगल मंगलम
नित प्रियम भारत भारतम
कुसुमित नई कामनाएँ
सुरभित नई साधनाएँ
मैत्री मति क्रीडाँगण में
प्रमुदित बन्धु भावनाएँ
शाश्वत सुविकसित इति शुभम
आनंद मंगल मंगलम
लिंक देखिये : अनुभूति वेब साईट पर --
http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/narendrasharma/swagatam.htm
कवि के परिचय में :
नरेंद्र शर्मा का जन्म १९१३ में खुर्जा के जहाँगीरपुर नामक स्थान पर हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षाशास्त्र और अंग्रेज़ी मे एम.ए. किया।
१९३४ में प्रयाग में अभ्युदय पत्रिका का संपादन किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में हिंदी अधिकारी रहे और फिर बॉम्बे टाकीज़ बम्बई में गीत लिखे। उन्होंने फिल्मों में गीत लिखे, आकाशवाणी से भी संबंधित रहे और स्वतंत्र लेखन भी किया।
उनके १७ कविता संग्रह एक कहानी संग्रह, एक जीवनी और अनेक रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
पण्डित रवि शंकर जी का परिचय : बाबा अलाउद्दीन खान साहब के रवि शंकर जी, शागीर्द रहे थे। तथा बड़े भाई नृत्य सम्राट उदय शंकर जी के साथ नृत्य व संगीत जगत में , पैर रखे -
१९३९ में अलहाबाद शहर की संगीत जलसे में , सर्वप्रथम सितार बजाया और १९४४ से संगीत की दुनिया में अपना निश्चित स्थान बना लिया ।
कवि आनंद से पूरित , सु - अवसर पर , सभी देशों से आए खिलाड़ियों का , स्वागत करते हुए कहते हैं ,
" मेरे प्रिय स्वदेश में , आप सब का स्वागत है !"
नित्य निरंतरता नवता माँनवता समता ममता
सारथि साथ मनोरथ का ,
जो अनिवार नही थमता !
संकल्प अविजित अभिमतं ! "
आधुनिक युग में , नित्य प्रति , लगातार , नई बातें हो रहीं हैं । मानव ममता लिए सभी को ये अवसर , शुभकर हो और एक सामान रूप से हो ये , कवि की महत्त्वाकाँक्षा है ।
साथ कौन है ?
दृढ़ संकल्पों का वाहन चालक = सारथि ..... श्री कृष्ण रुपी ह्रदय है। जो , सदैव , गति शील है और विजयी होने का प्रण लिए , समूह में , यहाँ पर क्रीडांगन में, एकत्रित है ।
" कुसुमित नयी कामनाएं ,सुरभित नयी साधनाएं , मैत्री मति क्रीडांगन में , प्रमुदित बंधू भावनाएं , शास्वत सुविकसित अति शुभम ! "
इस खेल के मैदान में , मैत्री भावः से खेले गए खेलों में , = यानि ,बंधुत्व की भावनाएं , प्रेम , मैत्री और परस्पर आदर विकसित हो ये कवि की प्रार्थना है
नई इच्छाओं के सहारे , नई साधनाएं सम्पन्न होंगीं , ये आशा है !
फ़िर आगे क्या होगा ?
आनंद मंगल मंगलम , की वर्षा होगी ये भी कवि का विशवास है और जहाँ ऐसा मनोहारी वातावरण है वह भारत भूमि , नित प्रिय है और रहेगी !"
इति शुभम !
अकसर ' युट्युब ' पर कई गीत सर्च करके सुनती हूँ .....आज अचानक ये गीत इस जानकारी की साथ देखा और ये आलेख लिखने की प्रेरणा मिली ।
आशा और विश्वास से बुने स्वप्न और यादें , फ़िर उभर आयीं ।
आप भी पढिये ...........और साथ में दीये हुए लिंक से , गीत को सुनियेगा .....
गीत पर सर्च करते हुए ये जानकारी भी महत्वपूर्ण लगी
जिसे यहाँ दे रही हूँ ।
(१ )
"In the Northen Indian classical music this Raga is known as
" भिन्न षड्ज । "
It has another name 'कौशिक ध्वनि '।
In the बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी textbook by late पण्डित ओमकारनाथ ठाकुर this was the first Raga to be taught to the beginner
The राग " हेमंत " has similar आरोह but the अवरोह has all the ७ (शुद्ध ) notes।
" अथ स्वागतम ' seems to be
" जनसम्मोहिनी राग" which is similar to " कलावती ,"
with the नोट " रे " added in it.-
- अनिलकुमार , मुंबई।
( २ )
Report on the Third Annual Function Of UANA
Nearly 250 people gathered from several parts of USA & Canada on August 4, 2001 at the Keefe Tech High School in Framingham, MA to participate in the 3rd annual convention. ( Uttraanchal Association )
The cultural program was hosted by Mr. Prakash Badola & Mrs. Pushp Kumar of MA. It started with the Ganesh Vandana, by Garima Pant of MD. It was amazing to see a second grader little girl recite memorized Sanskrit Shlokas generating the spiritual setting in the auditorium. A group of adults sang " Swagatam, ShubhSwagatam " welcoming all attendees.
( ३ )