Sunday, May 31, 2009

३ गीत .......

आज आपके लिए मेरे प्रिय गीत प्रस्तुत कर रही हूँ -
तीनो गीत पूज्य पापा जी ने लिखे हैं।
आपमें से कईयों ने शायद सुने भी होंगें ।
आज ज्यादा बातें न करते हुए , ३ सुमधुर गीत प्रस्तुत हैं ।
आशा विश्वास हमारे : ( राधा जी का चित्र )
http://www.youtube.com/watch?v=TGuCPuVAOCE&feature=PlayList&p=0A7F311EEB55874B&index=19
पण्डित भीमसेन जोशी और लतादी :
http://www.youtube.com/watch?v=fBU3LbsNBwk&feature=PlayList&p=0A7F311EEB55874B&index=0&playnext=1
और अंत में , ये पुराना गीत , जिसे संगीत दिया था सचिनदा ने और गाया है सुरैया जी ने ...
और अंत में :
सुरैया जी का गीत

http://www.youtube.com/watch?v=1Lj4Mea8VxM

Tuesday, May 26, 2009

तेरी शहनाई बोले, सुनके दिल मेरा डोले ...

रंग में डूबी हुई एक ग़ज़ल है वो इस जर्रा ए ज़मीन पाक की , हीना है वो
भीगी भीगी रुत में ,
भीगे भीगे से ये अहसास
भीगे भीगे मौसम में ,
भीगे लम्हों की ये प्यास !

जादू सा छाया है ह र सू ,
कोहरे की चादर फ़ैली है ,
धुन्धलाये से नज़ारे ,
गुम सुम चाँद तारे हैं !

ऐसे में कैसी ये आहट ,
झांझरी रुन झुन करती
फिजाओं में तैर जाये
ये किसकी है आहट ?

तुम चलो ,तो चूल पड़े जहाँ
तुम रुको , तो थम जाये समां
दिल का धडकना फिर बेवजह ,
आप आये सनम जो अब यहां !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
तुम आओ सनम , फिजा में बजने लगी शहनाईयाँ
तारों की चिलमन को हटाकर चाँद भी झाँकने लगा अब ,
देखने को उतावला हुआ , तुम्हारा मुखडा , मेरे महबूब ,
पैरों में बजती , रूकती ये पाजेब , मेरी निगोड़ी ,
मेरे ही दिल को धड़काती रहती है , देकर

झूठे दिलासे , की आयेंगे पिया तुम्हारे ,
होश सम्हालो , रूक जाओ न , और सुन लो ,
रागिनी मधुर सी , बजती है जो फिजाओं में !
************************************************************************
(- लावण्या )
अब सुनिए ,
बिस्मिल्लाह खां साहब का बजाया अद्`भुत राग : मालकौंस ,

http://www.sawf.org/audio/malkauns/bismillah_malkauns.ram
अब ये ना कहियेगा , आप खान साहब से भी मिलीं थीं क्या ?
जी नहीं .... ऐसा मेरा सौभाग्य नहीं ! मगर, मुरीद हूँ मैं उनके हुनर की !
९१ साल की उमर में , ६०, ७० लोगों के परिवार को सम्हाले हुए , उस्ताद जी जब् चल बसे थे तब लगा मानो , शहनाई के साज़ से , रूह भी रुखसत कर गयी !
खान साहब, ५ बार नमाज़ अदा करते थे और कला की देवी सरस्वती को भी भजते थे ।
हिंदू मुस्लीम एकता के प्रतीक खान साहब को पद्मश्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण और फ़िर सर्वोच्च सम्मान "भारत रत्न " से नवाजा गया है । वे , बनारस के रहनेवाले थे ।
सो, सारा मधुर रस भी , घोल लिया था उत्तर प्रदेश की बोली का और कजरी , शादी ब्याह की ताने , उनकी शहनाई से जब् भी बजतीं तब , सुननेवाले , ठगे रह जाते !
"गूँज उठी शहनाई " फ़िल्म में , "शहनाई " भी , एक प्रमुख किरदार के रूप में थी !
संगीतकार थे वसंत देसाई और शहनाई बजाई थी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब ने
इस फ़िल्म के सभी गीत आप यहां सुनियेगा .....
और
मेरे , कई संस्मरण निजी हैं ।
परंतु , कई दुर्लभ बातें , मैं, अकसर मेरे , संकलन से लेती हूँ ।
जी हां , कई डायरियां हैं, कई पुराने पन्ने हैं !
(अभिषेक भाई , सुन रहे हैं ना आप ? :)
मानो जिंदगानी के बीते हुए लम्हे हैं
जिन्हें , सँजोकर रखने की कोशिश भर है ।
बहुत सारा , देस के संग छूट गया
........
भला हो , इस इन्टरनेट युग का !!
सर्च करने पे , कई , पुरानी बातों को वही , पुनः प्रस्तुत करने में मदद करता है ।
आप लोग , मेरा लिखा पढ़ते हैं, अपने अभिप्राय , सुझाव व विचार , प्रकट करते हैं
उसके लिए , बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ .....
सफर के साथी , आप सभी का शुक्रिया !

स्नेह ,
- लावण्या




Friday, May 22, 2009

आशा और विश्वास से बुने स्वप्न और ये यादें


भगवती देवी सरस्वती से आशीर्वाद प्राप्त २ वरद सरस्वती पुत्र
स्थान : नई दिल्ली : सन` : १९८२

भारत की गौरवमयी राजधानी मेँ, आज कुछ ज्यादा ही चहल पहल है ! शहर मेँ, एशियाड खेलोँ का उत्सव हो रहा है । भारत के लिये ये उत्सव और खास तौर से राजधानी दिल्ली के लिये यह गौरवभरा प्रात: नई खुशियाँ लेकर आया है और ये प्रसँग आरम्भ होते हुए हम दूरदर्शन पर देख रहे हैं , के , खेल के मैदान की वर्तुलाकार परिधि के आस पास, एशिया के हरेक मुल्क से आये श्रोतागण, अपने अपने स्थान पर, आसन ग्रहण कर चुके हैँ ।

भारतीय तिरँगा नीले स्वच्छ आकाश मेँ फहराता , मुक्ति और स्वतँत्रता का सँदेश, दूर दूर तक फैलाता हुआ , फहरा रहा है और "अप्पू " नामक बाल कुँजर ( हाथी ) जो इस खेलोँ का ' शुभ - चिह्न या अँग्रेज़ी मेँ कहेँ तो "मेस्कोट ' है, वह भी दीखलाई पडता है के अचानक, असँख्य भारतीय ताल वाध्योँ के सँग बंधी , उल्लसित स्वर लहरी गूँज उठती है !

दर्शक, चकित होकर, इस सँगीत के जादू से बँध जाते हैँ । स्वर सँयोजन भारतीय सँगीत की शास्त्रीय परँपरा के वाहक पण्डित रवि शँकर जी ने सँयोजित किया है । कोरस मेँ स्वर उभरता है , शुध्ध सँस्कृतनिष्ठ शब्दोँ से पवित्र आह्`वान करते हुए मँत्र स्वरुप शब्द, अनेक कँठोँ से फूट पडते हैँ,

"स्वागतम्` शुभ स्वागतम्` आनँद मँगल मँगलम ,

नित प्रियम्` भारत भारतम "
ये शब्द रचनेवाले सँत ह्र्दय कवि पण्डित नरेद्र शर्मा ( मेरे पापा जी ) ही थे ।

उन्होंने ये गीत लिखा था और दिल्ली भिजवाया था उस समय मँद स्मित से सजी पापा जी की मुखमुद्रा का, आज भी, स्मरण हो आता है ।

उन्होंने ये भी कहा था, " सँस्क़ृत के शब्दोँ से सजा ये गीत, भारत के हरेक प्राँत के विभिन्न भाषा बोलनेवालोँ को एक सूत्र मेँ पिरो पायेगा -- इसका मुझे विश्वास है । दक्षिण की भाषाएँ और उत्तर की , पूर्व की होँ या पश्चिम की, भारत के हर प्राँत की भाषा , मेरी सँस्कृत भाषा को ' माता ' कहती है । हमारे भारतवर्ष की यह आदी भाषा है और हर प्राँतिय भाषा मेँ , कई सारे सँस्कृत निष्ठ शब्द हैँ जिन्हेँ हर प्राँत मेँ समझा जाता है और उनका प्रयोग भी किया जाता है " --
ये पापा के उस समय कहे शब्द , आज याद कर रही हूँ ।

आज नए नए तकनिकी आविष्कार हुए हैं । ' युट्युब ' का आविष्कार भी हुआ है ।

जो पापा जी के समय मेँ नहीँ हुआ था । उस समय , ना ही कम्प्युटर था !!

आज हम लोग इन के इतने अभ्यस्त हो गए हैं ये सोचते हुए, अजीब लगता है --

फिर भी, प्रमाण है , यही जब , उनकी बातेँ , आज, अक्षरश: सत्य सिध्ध हुई हैँ । जब मैँ देखती हूँ कि, भारत की प्राँतीय भाषाएँ तथा उनके बोलनेवाले भारतीय, जो आज विश्व के विभिन्न भूखँडोँ मेँ बस गये हैँ , उनके लिये भी ये गीत सँस्कृतनिष्ठ भाषा से अपने लिये एक विशिष्ट स्थान बना पाया है ।

यु,के, युनाइटेड कीँगडम हो या मोरीशयस, या बाली या फीजी के द्वीप होँ, उत्तर अमरीका हो या केनेडा, हर जगह आ कर बसे भारतीय, अपनी अपनी सँस्था के, मँगल उतसव के उद्`घाटन को आरँभ करते समय, " स्वागतम्` शुभ स्वागतम , आनँद मँगल मँगलम , नित प्रियम भारत भारतम्" गीत गाकर, अपनी जन्मदात्री, पुण्य गर्भा, भारत माता की स्मृति को, अपने प्रणाम भेजता है और मंगल कामना करता है पूरा समुदाय ।

पुण्यभूमि भारत की स्तुति करते हुए शब्द

वेदों की ऋचाओँ की तरह प्रभावशाली हैं :

स्वागतम शुभ स्बागतम

आनंद मंगल मंगलम

नित प्रियम भारत भारतम

नित्य निरंतरता नवता

मानवता संता ममता

सारथि साथ मनोरथ का

जो अनिवार नहीं थमता

संकल्प अविजित अभिमतम

आनंद मंगल मंगलम

नित प्रियम भारत भारतम

कुसुमित नई कामनाएँ
सुरभित नई साधनाएँ

मैत्री मति क्रीडाँगण में

प्रमुदित बन्धु भावनाएँ

शाश्वत सुविकसित इति शुभम

आनंद मंगल मंगलम

लिंक देखिये : अनुभूति वेब साईट पर --

http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/narendrasharma/swagatam.htm
कवि के परिचय में :
नरेंद्र शर्मा का जन्म १९१३ में खुर्जा के जहाँगीरपुर नामक स्थान पर हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षाशास्त्र और अंग्रेज़ी मे एम.ए. किया।
१९३४ में प्रयाग में अभ्युदय पत्रिका का संपादन किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में हिंदी अधिकारी रहे और फिर बॉम्बे टाकीज़ बम्बई में गीत लिखे। उन्होंने फिल्मों में गीत लिखे, आकाशवाणी से भी संबंधित रहे और स्वतंत्र लेखन भी किया।
उनके १७ कविता संग्रह एक कहानी संग्रह, एक जीवनी और अनेक रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।


पण्डित रवि शंकर जी का परिचय : बाबा अलाउद्दीन खान साहब के रवि शंकर जी, शागीर्द रहे थे। तथा बड़े भाई नृत्य सम्राट उदय शंकर जी के साथ नृत्य व संगीत जगत में , पैर रखे -

१९३९ में अलहाबाद शहर की संगीत जलसे में , सर्वप्रथम सितार बजाया और १९४४ से संगीत की दुनिया में अपना निश्चित स्थान बना लिया ।

कवि आनंद से पूरित , सु - अवसर पर , सभी देशों से आए खिलाड़ियों का , स्वागत करते हुए कहते हैं ,

" मेरे प्रिय स्वदेश में , आप सब का स्वागत है !"

नित्य निरंतरता नवता माँनवता समता ममता

सारथि साथ मनोरथ का ,

जो अनिवार नही थमता !

संकल्प अविजित अभिमतं ! "
आधुनिक युग में , नित्य प्रति , लगातार , नई बातें हो रहीं हैं ।
मानव ममता लिए सभी को ये अवसर , शुभकर हो और एक सामान रूप से हो ये , कवि की महत्त्वाकाँक्षा है ।
साथ कौन है ?

दृढ़ संकल्पों का वाहन चालक = सारथि ..... श्री कृष्ण रुपी ह्रदय है। जो , सदैव , गति शील है और विजयी होने का प्रण लिए , समूह में , यहाँ पर क्रीडांगन में, एकत्रित है ।


" कुसुमित नयी कामनाएं ,सुरभित नयी साधनाएं , मैत्री मति क्रीडांगन में , प्रमुदित बंधू भावनाएं , शास्वत सुविकसित अति शुभम ! "

इस खेल के मैदान में , मैत्री भावः से खेले गए खेलों में , = यानि ,बंधुत्व की भावनाएं , प्रेम , मैत्री और परस्पर आदर विकसित हो ये कवि की प्रार्थना है

नई इच्छाओं के सहारे , नई साधनाएं सम्पन्न होंगीं , ये आशा है !

फ़िर आगे क्या होगा ?

आनंद मंगल मंगलम , की वर्षा होगी ये भी कवि का विशवास है और जहाँ ऐसा मनोहारी वातावरण है वह भारत भूमि , नित प्रिय है और रहेगी !"

इति शुभम !

अकसर ' युट्युब ' पर कई गीत सर्च करके सुनती हूँ .....आज अचानक ये गीत इस जानकारी की साथ देखा और ये आलेख लिखने की प्रेरणा मिली ।

आशा और विश्वास से बुने स्वप्न और यादें , फ़िर उभर आयीं ।

आप भी पढिये ...........और साथ में दीये हुए लिंक से , गीत को सुनियेगा .....

गीत पर सर्च करते हुए ये जानकारी भी महत्वपूर्ण लगी

जिसे यहाँ दे रही हूँ ।

(१ )

"In the Northen Indian classical music this Raga is known as

" भिन्न षड्ज । "

It has another name 'कौशिक ध्वनि '।

In the बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी textbook by late पण्डित ओमकारनाथ ठाकुर this was the first Raga to be taught to the beginner

The राग " हेमंत " has similar आरोह but the अवरोह has all the ७ (शुद्ध ) notes।

" अथ स्वागतम ' seems to be

" जनसम्मोहिनी राग" which is similar to " कलावती ,"

with the नोट " रे " added in it.-

- अनिलकुमार , मुंबई।

( २ )
Report on the Third Annual Function Of UANA
Nearly 250 people gathered from several parts of USA & Canada on August 4, 2001 at the Keefe Tech High School in Framingham, MA to participate in the 3rd annual convention. ( Uttraanchal Association )

The cultural program was hosted by Mr. Prakash Badola & Mrs. Pushp Kumar of MA. It started with the Ganesh Vandana, by Garima Pant of MD. It was amazing to see a second grader little girl recite memorized Sanskrit Shlokas generating the spiritual setting in the auditorium. A group of adults sang " Swagatam, ShubhSwagatam " welcoming all attendees.

( ३ )
This nostalgic song was performed during inaugural session of Asiad (Asian Games) held in New Delhi in 1982।
Original score by Pandit Ravishankar।
We could not find the original anywhere।
That is the reason, there may be a deviation from the original। This was performed as a welcome song during India Association of Tallahassee's ( a city in Florida state of U.S.A. ) annual cultural program "Cultural Glimpses of India" on November 15, 2008, at Chiles High School, in Tallahassee।

Orchestration was by Srinivasa Bharadwaj Kishore and singers are (From left to right) Priya Ram, Bharati Tenneti, Radhika Nori, Karthik Srivatsa, Srinivasa Bharadwaj Kishore, Vani Cheruvu, Moushumi Das, Ajay Vashisht, Ajay Walia, Priya Ashok, Deepa Sekhar and Gayatri Melkote, residents of ,

टल्लाहास्सी , फ्लोरीडा से .....suniye ...गीत


mshttp://www.youtube.com/watch?v=tKYXId5X-uI

- sanklan : lavanya

Friday, May 15, 2009

फूल, तितली , शिशु और ये जीवन ...

हमारे नोआ बेटे मस्ती मेँ घूमते हुए आ पहुँचे हैँ हमारे शहर मेँ हर बसँत के आगमन के साथ आयोजित किये जानेवाले तितलियोँ के इस खास शो को देखने ! इस बार , तितलियाँ , भारत से आयात की गयीँ थीँ । इसीलिये , ज्यादह उत्सुकता थी कि देखेँ जा कर कि कैसी सजावट होगी ? किन रँगोँ की तितलियाँ होँगीँ ? वगैरह ...
नोआ के जैसा एक बालक, देखा गहरे नीले रँग की बडी सी तितली के नर्म पँखोँ को थामे, बतियाते हुए, देख रहा था और बचपन के ये निर्मल रूप ने मुझे भी अपने शैशव के दिनों की यादों में खीँच लिया ।
"बचपन के दिन भी क्या दिन थे , उडते फिरते, तितली बन "
सुजाता फिल्म का गीत ज़बाँ पे आ ही गया !
वहीँ पर मिली घुँघ्रराले, सुनहरे बालोँवाली ये कन्या उसने फिलीपाइन्स की एक बालिका को गोद लिया था और मुझे देखकर भारतीय जानकर मुस्कुराई और बातेँ करने लगी । मैँने माँ, बेटी की तस्वीर खीँचने की अनुमति माँगी और उसने सहर्ष स्वीकृती दे दी । उसने मुझे बतलाया कि वह भारतीय फिल्मेँ देखती है और नाम बोल ना पाई परँतु बतलाया , "उस फिल्म मेँ हीरोइन स्केटीँग करती है और बहुत बडा भारतीय परिवार खूब मस्ती मज़ा करता देखकर मैँ बहुत प्रसन हुई ।
मैंने , नाम सुझाया, "हम आपके हैँ कौन ? " और उसने झट हामी भरी :)
यहाँ कई ऐसे बच्चोँ को देखती हूँ और सोचती हूँ हे भगवान ! इन दत्तक लिये बच्चोँ का जीवन सुखी जीवन हो ऐसा ही करना ! पता नहीँ ऐसे शिशु, बडे होकर कैसा महसूस करते होँ ? अपने परिवेश से किस तरह नाता जोडते होँगेँ ? क्या उन्हेँ बेहतर जीवन मिला है ? या ये फूल से बच्चे अपनी जड से दूर, नई दुनिया मेँ उपेक्षित ही रहेँगेँ ? क्या इनके माता या पिता , उनके साथ, अच्छा व्यवहार करते होँगेँ ? कई प्रश्न उठते हैँ ! आखिर माँ का मन है ना !
इसीलिये बच्चोँ की सुरक्षा और खुशी ही मेरे लिये सर्वोपरि बन जाती है ।
मनुष्य मात्र मेँ अच्छाई है और उस पर विश्वास करना मेरी आदत है।
परँतु कई बार यही दुनिया एक भयानक रुप लिये सामने आती है
तब ये सहज विश्वास ,डगमगा जाता है ।
हमारे शहर की "तितली प्रदर्शनी ", " माउन्ट एडम्ज़ " नामक ऊँची पहाडी पर स्थित स्थान पर कोर्न्ज़ ओब्ज़र्वेटरी मेँ ही होती है ।
उसी के पास है ये स्थान : " क्रोह्नन कनज़र्वेटरी " --
links :
ये ख़ास अशोक भाई
तथा अरविन्द जी के लिए
साईब्लाग [sciblog] यहाँ दे रही हूँ
तथा श्री पंकज अवधिया जी के लिए भी ( जिनकी नई पोस्ट अभी देखी )
उन्हें अवश्य ये जानकारी पसंद आयेगी ।
( १ )
( २ )
जहाँ जाने से पहले यह पुराना दुर्ग जैसा दरवाज़ा भी आता है
ये चित्र उसी का है ।
वहाँ सभी पर तितली का नशा छाया हुआ था ।
यहाँ रखी तितली के आकार की बेन्च परैठकर सभी अपनी तस्वीरेँ ले रहे थे आप को कैसी लगी ये बेन्च ?
आप चुपचाप कुछ पलोँ के लिये स्थिर होकर बैठ जायेँ तब आपके आस -पास उडती तितलियाँ निर्भयता से , आपके हाथोँ पर, बालोँ पर (और मेरे कैमरे पर भी ) आकर बैठ जातीँ थीँ !
यहाँ ये बाला एक तितली थामे मुस्कुरा रही है :)
भीतर , ९३ * से ज्यादा का तापमान था ।
बाहर हल्की बारिश से मौसम सुहाना हो रहा था और भीतर जाकर ,
हमें बहुत गरमी लगी !
भारतीय तितलियोँ के स्वागत मेँ, भारत से लाई बातिक व बाँधनी की साडियाँ और चुनरी, रास गरबा की ठेठ भारतीय पोशाकेँ और गणेश तथा श्रीकृष्ण की सुँदर मूर्तियाँ भी हर कोने मेँ करीने से सजाई गईँ थीँ ।
कुछ पोस्टर भी लगे थे और भारतीय वनस्पति तथा आबोहवा पर सूचना भी थीँ । ये चित्र राधा रानी और श्रीकृष्ण का भी था।
हर साल कई स्वयँसेवी सँस्थाएँ, ऐसे आयोजन की सफलता के लिये अपना योगदान देतीँ हैँ और क्रोह्न्ज़ कनज़र्वेटरी का अपना रीसर्च सँस्थान भी है ।
श्री राम और सीता माई की तस्वीर भी दीखी ! अँजनी पुत्र महाबली हनुमान जी प्रणाम करते हुए और भाई लक्ष्मन जी , अपने बडे भैया के पार्श्व मेँ खडे हुए थे !
पौराणिक काल से आगे बढते हुए, जिस युगपुरुष के निहत्थे पराक्रम से ,समूचा पस्चिमी समाज बेहद प्रभावित रहा उन महात्मा गाँधी के बारे मेँ जानकारी भी श्रध्धाभाव से रखी दीखी --- " मोहनदास के गांधी "
और अँत मेँ महात्मा गाँधी बापू की तस्वीर प्लास्टीक की फूल मालाओँ से सजी हुई ! वहां , मैंने और नोआ ने भी हाथ जोड़े और प्रणाम करा कर फ़िर भारत को ह्रदय में याद किया ! एक कविता , मेरी लिखी हुई याद आ गयी जो नीचे दे रही हूँ ! हम इंसानों की क्या हस्ती है ? कहीं भी रहें, जीवन , इन फूल, तितली और बचपन से लेकर , अंत तक की यात्रा ही है ना ? इसका बोध , फ़िर हुआ । मानव जीवन , सुंदर भी है पर , कठिन भी है ।

नहीँ आसाँ मनुज होना
है नहीँ आसाँ
बने जब श्री राम, मर्यादा पुरुष
सह न पाये बिछोह वे,
सीता , भूमिगत हुईँ थीं
लक्ष्मण, अग्नि मेँ समाये,
खडे अकेले सरयू तट पर,
श्री राम ! अश्रु, छलछलाये,
" लीला करूँ समाप्त अब -
स्वधाम, "साकेत " हो वापसी "
सोचकर प्रभु ने चरण बढाये,
पीताम्बर, नील जल मेँ जा समाये !
नहीँ आसाँ, मनुज होना ,
है नहीँ आसाँ --
बीता युग, प्रभु फिर पधारे,
प्रभू श्री कृष्ण बन,
महारास रचाये,
देकर गीता ज्ञान ,
आप थे , प्रभू , हर्षाये
हरा भू का भार नटवर ने,
कुरुक्षेत्र का युध्ध भीषण,
रक्त पात का महासमर,
युध्धिष्ठिर को सौँप आये !
पारधी के बाणे से पीडित,
लीलाधर, भी कसमसाये,
श्रीकृष्ण, तब भी मुस्कुराये,
मनुज तन धर कर बँशीधर,
आप भी, कितना अकुलाये !
नहीँ आसाँ, मनुज होना ,
है नहीँ आसाँ --
- लावण्या

Monday, May 11, 2009

फ्लोरीडा की सैर (जारी )...

फ्लोरीडा की ऊंची ऊंची अट्टालिकाएं ...नीले गगन को चूमती हुईं ...
स्वागत कर रही हैं !
रास्ते के आस पास OAK / (ओक) के घने पेड़ , सुदर्शन दीख रहे हैं ...
सदीयों से खड़े हुए से ..
और ये मन्दिर की दीवारों पर उकेरी प्रस्तर प्रतिमाएं , नई हैं , प्राचीन हिंदू धर्म की नींव , नए सिरे से , जमाने की कोशिश में , लगी हुई , मूक दर्शक बनी , पुरातन को नवीन के संग समन्वय का दर्शन शास्त्र समझाने में , निमग्न !
भगवान् सत्यनारायण का दर्शनीय मन्दिर विशाल पैमाने पर निर्मित किया गया है। उसका अंदाजा आप लगा सकते हैं, यहाँ सीढीयों पे खड़े दीपक जी से ...
मन्दिर तिरुपति देवस्थानम जैसा ही बनवाया गया है ।
अभी मरम्मत भी जारी है
एक कारीगर जो भारत से आया था, वह मग्न है, मन्दिर के अहाते में , सीमेंट से , तुलसी क्यारे जैसी आकृति को आकार देने में , लगा हुआ है ........ और हमें फोटो लेते हुए देखकर मुस्कुरा दिया था ।
मन्दिर में वैसे तस्वीरें खींचने की मनाही है परन्तु ये महालक्ष्मी देवी की सुंदर प्रतिमा की तस्वीर खींच लेने के बाद ही हमारा ध्यान उस सूचना पर गया और मुख्य प्रतिमा जो सबसे विशाल है, भगवान् स्वामी नारायण देव की उनकी तस्वीर हम आपको नही बता पायेंगे !
अब देखिये माता महालक्ष्मी देवी जी को और नमन कीजिये ,
वे आपकी मनोकामना पूर्ण करेंगीं .........
मन्दिर का बाहरी भाग भी सुंदर प्राचीन कलाकृतियों से सजाया गया गया है
और यहाँ आप श्री कृष्ण और पार्थ , अर्जुन को रथ के साथ देख रहे हैं ।
(चित्रोँ पर क्लीक करने से , वे ज्यादा साफा दीखेंगे ) ......
ऐयर - पोर्ट की द्रश्य दीर्घा से असँख्य विमान, उडान के लिये तैयार करने की तथा उन्हेँ मार्ग दर्शन सहीत उडने तक की सारी प्रक्रिया देखते हुए, प्रतीक्षा के घँटे , चाय पीते हुए, आसानी से बीत जाते हैँ ।
बाहर खडे विमान मेँ, हम नहीँ, कई दूसरे यात्री उडान लेकर
ना जाने कहाँ चले गये .............और हम गुनगुनाते रह गये,
" ये ज़िँदगी के मेले, ये ज़िँदगी के मेले, दुनिया मेँ कम न होँगेँ ..."
ये भी अजीब नज़ारा देखा ..
फ्लोरीडा मेँ अक्सर यहाँ के कई रहनेवालोँ के पास कार तो होती ही है,
साथ -साथ, ऐसी नाव भी होतीँ हैँ और लोगोँ को शौख है समुद्र मेँ स्वच्छँद घूमने का ......ऐसी आधुनिक नाव खरीद कर , सैर करने का भी ........
ठीक मँदिर के सामने एक घर के आँगन मेँ ये स्पीड बोट खडी थी
जिसे देख यही विचार आया कि, ये अमेरीकी जीवन की झलक स्पष्ट कर रहा द्रश्य वाकई अद्`भुत है !
- एक तरफ हिन्दू मँदिर है , और दूसरी तरफ आधुनिक स्पीड बोट !

मानोँ प्राचीन सदी, नई सदी के सामने, आँखेँ मिलाये खडी है !

" ईस्ट एंड वेस्ट , लूकिंग ऐट इच अधर , ट्राय़ीँग धेर बेस्ट ! "
आमने सामने ...
" हम भी हैं,............. तुम भी हो ....
दोनों हैं, आमने सामने ॥
देख लो क्या असर करा दिया राम के नाम ने !! :-) "
और बस कार में बैठे , कुछ मील के फासले पर, जाते ही , लो आ गया ये समुद्र तट !
सुफेद , नर्म रेत के कालीन से स्वागत करता हुआ !

जहाँ , वोली बोल, तैराकी, बोटिंग, फीशींग, पैरा सैलिँग, स्कूबा डावीँग, स्वीमीँग जैसे , अनगिनत आधुनिक खेल व मनोरंजन के साधन मौजूद हैं जिनका यहाँ आए लोग भरपूर आनंद ले रहे हैं !
ये नज़ारा भी , नज़रों को भा गया !
दीपक जी के साथ हमारे मित्र नाकेश व देवकी -
नाकेश, पेशे से, सायक्राइट्रीस्ट हैँ और देवकी रेडीयोलोज़ीस्ट हैँ
"कहीँ दूर जब दिन ढल जाये,
साँझ की दुलहन,
बदन चुराये,
चुपके से आये ..."
ये गीत बार बार गुनगुनाने को मन करता रहा जब ऐसी सुँदर सजीली साँध्य सुँदरी के दर्शन हुए ..प्रकृति तेरी सदा ही विजय है !
चलिए ..........फ़िर हाज़िर हो जाऊंगी ...
अभी इतना ही ॥

आप सभी की स्नेहभरी कमेंट्स के लिए बहुत बहुत आभार ...
आते रहियेगा और संवाद जारी रखियेगा ....

- लावण्या











Saturday, May 9, 2009

फ्लोरीडा की सैर पर चलेंगे ?

ये तस्वीर दूसरे विश्व युध्ध के समाप्त होने के बाद, बहुत प्रसिध्ध हुआ था।
देखिये , ये लिंक
http://www.famouspictures.org/mag/index.php?title=Browse_Images
उसीका प्रतिरूप , इस विशाल मूर्ति में बनवाया गया और टेम्पा शहर जो फ्लोरीडा प्रांत में है वहाँ के समुद्र किनारे के पास , मरीना जैक नामक जगह पर , आज सैलानियों का , एक मुख्य आकर्षण बना हुआ है । नीचे के चित्र में, उपरी हिस्सा देखिये -
स्काई हारबर ब्रिज पर से गुजरता हुआ एक मोटर बाईक चालक मस्ती मे इस नज़ारे का आनँद लिये चला जा रहा है । हम लोग टेम्पा से सारासोटा शहर की तरफ़ , यहीं से गुजरे । कई लोग , वहाँ खड़े होकर , मछली पकड़ रहे थे ...
देखिये ये लिंक : सन शाइन स्काय वे ब्रिज --
http://en.wikipedia.org/wiki/Sunshine_Skyway_Bridge
सारासोटा शहर का इतिहास पुराना है । फ्लोरीडा प्रांत , अमरीकी भूखंड का दक्षिणी हिस्सा है । पिस्टल के हत्थे जैसी इसकी भूमि , १ तरफ़ पूर्व में, अटलांटिक महासागर के किनारे से जुडी हुई , सागर किनारे बसे कई , आलीशान, शहरों को आबाद किए हुए है और पश्चिमी सीमा , गल्फ ऑफ़ मेक्सिको और समुद्री जल के भूमि के भीतर आने से बने कुदरती जल द्वीप से घिरे हुए होने से , फ्लोरीडा के दोनों ही किनारों पर रहनेवालों को , समुद्री बीच , हर शहर के साथ मिले हैं और यहाँ आनेवाले सैलानी और यहाँ रहनेवाले , सभी , समुद्र और इन बीच पर , घूमने का , समुद्र से जुड़े , हर तरह के , विविध , मनोरंजन तथा खेल का आनंद लेते हैं ।
टालाहासी शहेर्, फ्लोरीडा की राजधानी है और अन्य शहर्, भी सुप्रसिध्ध हैं । जैसे मायामी , ओरलेन्डो
जहाँ डीज़्नी वर्ल्ड और युनीवर्सल स्ट्युडीयो हैँ और ये भी इन्ही की वजह से बहुत प्रसिध्ध हैँ ।
वहाँ भी हम , कुछ वर्ष पहले , घूमने गए थे ।
इस बार हम लोग हमारे मित्र के घर रुके । उनके शहर का नाम है
" क्लीयर वाटर फ्लोरीडा ' और ये बहुत सुंदर जगह है।
लिंक देखिये .........
आगे, हम लोग , मेरी सहेली के शहर , ब्रेडन्टन फ्लोरीडा की तरफ़ चले ..........
ब्रेडन्टन शहर मानाटी काउन्टी फ्लोरीडा मेँ है ।
http://en.wikipedia.org/wiki/Bradenton,_Florida
ब्रेडन्टन फ्लोरीडा के एक टुरीस्ट स्पोट का नाम है -
ऐडमिरल सर्कल !
वहाँ पर विश्व की सबसे प्रसिध्ध, डीज़ाइनर किस्म की दुकानोँ का जमघट है जैसे टीफनी, शोपार्ड, ग्राफ, अरमानी इत्यादी
और ' कीलवानी आइस्क्रीम' भी सब की चहेती दुकान है --
चलिए , अब आइस्क्रीम' हो जाए ! :)
हमारे मित्र का पुत्र , श्याम , बहुत लायक बच्चा है और पढने में एकदम तेज !
उसे मिलकर बहुत खुशी हुई !
http://www.cityofbradenton.com/
ब्रेडन्टन फ्लोरीडा के बीच पर सुफेद बालू और नीला गगन ,
गहरे फीरोजी जलराशि से , घिरा हुआ है और हर तरफ़ ,
खुशनुमा वातावरण का सर्जन करता है और
यहाँ समुद्र के जल तक आनेवाले हर सैलानी का दिल
ये कुदरती नज़ारा , जीत लेता है ।
इतने साफ़ , बीच, सचमुच , अमरीकी दूसरे शहरों में भी मैंने नहीं देखे ।
ऐसे कई विशाल भवन , किनारे पर शोभा बढाते हुए खड़े हैं ।
होटल हैं और ओफीस भी हैं । ( क्लीक कर के देखें )
रास्ते की जानकारी सुगमता से मिल जाती है जब इतने विशाल बोर्ड हर चौराहे पर लगे हुए होते हैं । पहली बार आनेवालों को भी आसानी से ,
कहाँ जाना है इस का पता लग जाता है ।
एक और द्रश्य : सन शाइन स्काय वे ब्रिज का रास्ता ऊपर की और उठकर फ़िर नीचे को जाता हुआ समुद्री जल के ठीक मध्य में , बनाया गया है और यात्रा को रोमांचक बनाता है । रस्ते पर गुजरनेवाले हरेक यात्री को , रुक कर, १ डालर की राशि , जमा करवानी भी अनिवार्य है । जिससे इस रास्ते की मरम्मत तथा दूसरे खर्च के लिए आसानी हो जाती है - इसे " टोल " याने ' रोड टेक्स' कह्ते हैँ ।

आज इतना ही ........अगली बार दूसरे चित्र भी अवश्य यहाँ प्रस्तुत करूंगी ...