सा गर नाहर भाई सा' ख़ुद अपने लिए कहते हैं ........
" मैं हैदराबाद में रहता हूँ, हिन्दी के पुराने गाने सुनना और पढ़ना लिखना बहुत पसन्द है। मेरे चिट्ठे हैं ॥दस्तक॥ और गीतो की महफिल
और तकनीकी दस्तक
उनके प्रोफाइल से उनकी प्रिय संगीत व पुस्तकें हैं ....>
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हिन्दी फिल्मों के मधुर गीत
खासकर पुरानी फिल्मों के। शास्त्रीय संगीत
गज़लें सब कुछ... जो कर्णप्रिय हो।
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सांझ हुई घर आये
निर्मला
कसप
नाच्यौ बहुत गोपाल
माँ (मेक्सिम गोर्की).. किन किन के नाम लिखूं और किनके छोड़ूं
दुविधा है।
अभी कुछ दिनों पहले , उन्होंने मुझे , " नाच रे मयूरा " गीत का लिंक भेजा था -- ये कहते हुए ,
" लावण्या दी,
सादर प्रणाम !
पापाजी का एक सुंदर गीत मिला है मुझे विश्वास है आपने नहीं सुना होगा।
प्रणाम* नाच रे मयूरा *
http://www.youtube.com/watch?v=10gMzRacC2Y
नाच रे मयूरा! ( राग : मियाँ की मल्हार )
खोल कर सहस्त्र नयन,
देख सघन गगन मगनदेख सरस स्वप्न,
जो किआज हुआ पूरा!
नाच रे मयूरा!
गूँजे दिशि-दिशि मृदंग, प्रतिपल नव राग-रंग,
रिमझिम के सरगम पर छिड़े तानपूरा!
नाच रे मयूरा!
सम पर सम, सा पर सा, उमड़-घुमड़ घन बरसा,
सागर का सजल गान क्यों रहे अधूरा?
नाच रे मयूरा!
- पं नरेंद्र शर्मा
ये गीत आकाशवाणी रेडियो कार्यक्रम का सबसे प्रथम प्रसारित किया गया गीत है जिसे स्वर दिया मन्ना डे जी ने और संगीत दिया था श्री अनिल बिस्वास जी ने। जिसे पहले अपने ब्लॉग पर लगाया था सिर्फ़ शब्द थे आज स्वर भी शामिल हो गए .............बहुत आभार ....सागर भाई 'सा ...
http://www.lavanyashah.com/2008/08/blog-post_04.html
http://radionamaa.blogspot.com/2007/10/blog-post_25.html
http://radionama.blogspot.com/2008/02/blog-post.html
http://radionama.blogspot.com/2007/09/blog-post_8214.html
अब रिफत सरोश जी के शब्दोँ मेँ आगे की कथा सुनिये ..
"उनको एक अलग कमरा दे दिया गया था प्रसार गीत विभाग भारतीय सँगीत का एक अँग नहीँ, बल्कि हमारे हिन्दी सेक्शन का एक हिस्सा था और नरेन्द्र जी की वजह से सेक्शन चलाने मेँ हमेँ बडी आसानी थी - कहीँ गाडी नहीँ रुकती थी , चाहे आर्टिस्टों का मामला हो या टेपोँ और स्टुडियो का ! उन्होँने हिन्दी सेक्शन के अन्य कामोँ मेँ हस्तक्षेप करना उचित नहीँ समझा उन्हेँ प्रसार गीत से ही सरोकार था आधे दिन के लिये दफ्तर आते थे - या तो सुबह से लँच तक या लँच के बाद शाम तक ! अपने ताल्लुकात की वजह से उन्होँने फिल्मी दुनिया के मशहूर सँगीतकारोँ से प्रसार गीतोँ की धुनेँ बनवाईँ जैसे नौशाद , एस। डी बर्मन, सी। रामचन्द्र, राम गांगुली, अनिल बिस्वास, उस्ताद अली अकबर खाँ और कोई ऐसा फिल्मी गायक न था जिसने प्रसार गीत न गाये होँ - लता मँगेशकर, आशा भोँसले, गीता राय, सुमन कल्याणपुर, मुकेश, मन्ना डे, एच। डी। बातिश, जी। एम्। दुर्रानी, मुहम्मद रफी, तलत महमूद, सुधा मल्होत्रा - सब लोग हमारे बुलावे पर शौक से आते थे - यह नरेन्द्र जी के व्यक्तित्त्व का जादू था - एक सप्ताह मेँ एक दो गाने जरुर रिकार्ड हो जाते, जो तमाम केन्द्रोँ को भेजे जाते आज मैँ अनुभव करता हूँ कि, नरेन्द्र जी का एक यही कितना बडा एहसान है आकाशवाणी पर कि उन्होँने उच्चकोटि के असँख्य गीत प्रसार विभाग द्वारा इस सँस्था को दिये !...आकाशवाणी को बदनामी के दलदल से निकालने और प्रोग्रामोँ को लोकप्रिय बनाने मेँ नरेन्द्र जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है " प्रसार -गीत " तो उसकी एक मिसाल है परन्तु जो अद्वितीय कार्य उन्होँने किया वह था, " विविध भारती " की रुपरेखा की तैयारी तथा प्रस्तुति ! अपने मित्र तथा आकाशवाणी के महानिर्देशक श्री जे. सी. माथुर के साथ मिलकर नरेन्द्र जी ने आल इँडीया वेरायटी प्रोग्राम का खाका बनाया जिसका अति सुँदर नाम रखा " विविध भारती " आकाशवाणी का ऐसा इन्कलाबी कदम था जिसने न सिर्फ उस की खोई हुई साख वापस दिलाई, बल्कि आकाशवाणी के श्रोताओँ मेँ नई रुचि पैदा की और उसमेँ हलके -फुलके प्रोग्रामोँ द्वारा राष्ट्रीयता और देश प्रेम का एहसास जगाया और आगे चलकर यह कार्यक्रम आकाशवाणी के लिये " लक्ष्मी का अवतार " साबित हुआ - इस तमाम आकाशवाणी के इतिहास मेँ उनका नाम सुनहरे अक्षरोँ मेँ लिखा जायेगा -
" विविध भारती " प्रोग्राम पहली जुलाई को शुरु होने वाला था - फिर तारीख बदली आखिर पँडित नरेन्द्र शर्मा ने अपनी ज्योतिष विध्या की रोशनी मेँ तय किया कि यह प्रोग्राम ३ अक्तूबर १९५७ के शुभ दिन से शुरु होगा और प्रोग्राम का शुभारँभ हुआ तो " विविध भारती " का डँका हर तरफ बजने लगा -
लेखक: ज़नाब रीफत सरोश साहब ....
आशा है, आप के पग भी गीत सुनकर थिरकने लगे हैं ......
- लावण्या
खोल कर सहस्त्र नयन,
देख सघन गगन मगनदेख सरस स्वप्न,
जो किआज हुआ पूरा!
नाच रे मयूरा!
गूँजे दिशि-दिशि मृदंग, प्रतिपल नव राग-रंग,
रिमझिम के सरगम पर छिड़े तानपूरा!
नाच रे मयूरा!
सम पर सम, सा पर सा, उमड़-घुमड़ घन बरसा,
सागर का सजल गान क्यों रहे अधूरा?
नाच रे मयूरा!
- पं नरेंद्र शर्मा
ये गीत आकाशवाणी रेडियो कार्यक्रम का सबसे प्रथम प्रसारित किया गया गीत है जिसे स्वर दिया मन्ना डे जी ने और संगीत दिया था श्री अनिल बिस्वास जी ने। जिसे पहले अपने ब्लॉग पर लगाया था सिर्फ़ शब्द थे आज स्वर भी शामिल हो गए .............बहुत आभार ....सागर भाई 'सा ...
http://www.lavanyashah.com/2008/08/blog-post_04.html
http://radionamaa.blogspot.com/2007/10/blog-post_25.html
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http://radionama.blogspot.com/2007/09/blog-post_8214.html
अब रिफत सरोश जी के शब्दोँ मेँ आगे की कथा सुनिये ..
"उनको एक अलग कमरा दे दिया गया था प्रसार गीत विभाग भारतीय सँगीत का एक अँग नहीँ, बल्कि हमारे हिन्दी सेक्शन का एक हिस्सा था और नरेन्द्र जी की वजह से सेक्शन चलाने मेँ हमेँ बडी आसानी थी - कहीँ गाडी नहीँ रुकती थी , चाहे आर्टिस्टों का मामला हो या टेपोँ और स्टुडियो का ! उन्होँने हिन्दी सेक्शन के अन्य कामोँ मेँ हस्तक्षेप करना उचित नहीँ समझा उन्हेँ प्रसार गीत से ही सरोकार था आधे दिन के लिये दफ्तर आते थे - या तो सुबह से लँच तक या लँच के बाद शाम तक ! अपने ताल्लुकात की वजह से उन्होँने फिल्मी दुनिया के मशहूर सँगीतकारोँ से प्रसार गीतोँ की धुनेँ बनवाईँ जैसे नौशाद , एस। डी बर्मन, सी। रामचन्द्र, राम गांगुली, अनिल बिस्वास, उस्ताद अली अकबर खाँ और कोई ऐसा फिल्मी गायक न था जिसने प्रसार गीत न गाये होँ - लता मँगेशकर, आशा भोँसले, गीता राय, सुमन कल्याणपुर, मुकेश, मन्ना डे, एच। डी। बातिश, जी। एम्। दुर्रानी, मुहम्मद रफी, तलत महमूद, सुधा मल्होत्रा - सब लोग हमारे बुलावे पर शौक से आते थे - यह नरेन्द्र जी के व्यक्तित्त्व का जादू था - एक सप्ताह मेँ एक दो गाने जरुर रिकार्ड हो जाते, जो तमाम केन्द्रोँ को भेजे जाते आज मैँ अनुभव करता हूँ कि, नरेन्द्र जी का एक यही कितना बडा एहसान है आकाशवाणी पर कि उन्होँने उच्चकोटि के असँख्य गीत प्रसार विभाग द्वारा इस सँस्था को दिये !...आकाशवाणी को बदनामी के दलदल से निकालने और प्रोग्रामोँ को लोकप्रिय बनाने मेँ नरेन्द्र जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है " प्रसार -गीत " तो उसकी एक मिसाल है परन्तु जो अद्वितीय कार्य उन्होँने किया वह था, " विविध भारती " की रुपरेखा की तैयारी तथा प्रस्तुति ! अपने मित्र तथा आकाशवाणी के महानिर्देशक श्री जे. सी. माथुर के साथ मिलकर नरेन्द्र जी ने आल इँडीया वेरायटी प्रोग्राम का खाका बनाया जिसका अति सुँदर नाम रखा " विविध भारती " आकाशवाणी का ऐसा इन्कलाबी कदम था जिसने न सिर्फ उस की खोई हुई साख वापस दिलाई, बल्कि आकाशवाणी के श्रोताओँ मेँ नई रुचि पैदा की और उसमेँ हलके -फुलके प्रोग्रामोँ द्वारा राष्ट्रीयता और देश प्रेम का एहसास जगाया और आगे चलकर यह कार्यक्रम आकाशवाणी के लिये " लक्ष्मी का अवतार " साबित हुआ - इस तमाम आकाशवाणी के इतिहास मेँ उनका नाम सुनहरे अक्षरोँ मेँ लिखा जायेगा -
" विविध भारती " प्रोग्राम पहली जुलाई को शुरु होने वाला था - फिर तारीख बदली आखिर पँडित नरेन्द्र शर्मा ने अपनी ज्योतिष विध्या की रोशनी मेँ तय किया कि यह प्रोग्राम ३ अक्तूबर १९५७ के शुभ दिन से शुरु होगा और प्रोग्राम का शुभारँभ हुआ तो " विविध भारती " का डँका हर तरफ बजने लगा -
लेखक: ज़नाब रीफत सरोश साहब ....
आशा है, आप के पग भी गीत सुनकर थिरकने लगे हैं ......
- लावण्या
18 comments:
आप नें जब यूं पुरानी यादों को छेडा तो हम सभी संगीतप्रेमीयों को पापाजी के अमुल्य योगदान की कल्पना हो सकी कि, विविध भारती उनकी मानस कन्या थी, और हमारी ये पीढी तो विविध भारती से ही गीत सुन सुन कर परिष्कृत हुई. जो भी सुनने और गाने का शऊर आया वह विविध भारती की वजह से.
हम शततः ऋणि हैं स्व. नरेंद्र शर्मा जी के, और आपके भी कि आपने उनका परिचय करवाया(गोविंद दियो मिलाय)
यूंहि नोस्टाल्जिया बढता रहे, आप लिखती रहें, हम सभी पर संस्कार दृष्टि पडती रहे, स्वर लहरीयां फ़िज़ा में मेहक की तरह फ़ैलती रहे, पैर थिरकें, मन थिरके, नाचे मयूर जैसा उन्मत्त हो.
और क्या चाहिये दीदी?
बहुत बढिया लावण्या जी, सागर भाई को भी धन्यवाद!
Lavanya Di
Madhur geet, madhur sangeet and madhur shabda .
Our ears became like a garden.
Thanx.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
आज सुबह सुबह आप के और सागर भाई के सौजन्य से यह ऐतिहासिक गीत सुनने को मिला। प्रसाद पा लिया।
गीत तो नहीं सुन सका मगर विविध भारती के जनक से मुलाकात खूब रही !
mun kush ho gaya di..sagar ji ka bhi shukriyaa..
कभी ऐसे गीत भी होते थे और ऐसे लोग भी ! दिलीप जी की बात सही है... नोस्टालजिक करती पोस्ट !
लावण्या दी,
क्षमा चाहता हूं, (over confidence) में कह लीजिये मैने इतना भी ध्यान नहीं रखा आपसे यह कह दिया कि पापाजी की यह रचना आपने नहीं सुनी होगी।
पापाजी की इतनी महत्वपूर्ण रचना आपने ना सुनी हो भला कैसे संभव है?
आपने मुझे इस पोस्ट में इतना सम्मान दिया, मेरा प्रोफाइल तक पोस्ट किया, मैं आपको कैसे धन्यवाद दूं, कैसे आभार व्यक्त करूं? उचित शब्द ही नहीं है।
सिर्फ धन्यवाद कहना तो अशिष्टता होगी फिर भी यह अशिष्टता कर रहा हूँ।
धन्यवाद
पग थिरकने की बाद पर याद आया, जब यह गीत पहली बार सुना, मन मयूर तो तब ही नाचने लगा था।
बहुत बढिया. सागर भाई को भी बहुत धन्यवाद. बहुत ही सुंदर गीत.
रामराम.
गीत के लिए आभार।
सच में , बहु आयामी प्रतिभा के धनी थे पं. नरेन्द्र शर्माजी।
इस पोस्ट के लिये धन्यवाद।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति .
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आ कर।
शुभकामनाएं…
लावण्या जी ,
आप्के ब्लोग पर पहली बार आया और घन्टो उसी मे बन्धा रह गया . बात शुरु हुयी आकश्वानी के जनक से और मयूरा गीत से फ़िर नागर जी के नरेन्द्र जी के सन्स्मर्नोन तक . मुग्ध होके पढ्ता रहा .शब्द और चित्र मिल कर जो कह गये वो अप्रतिम अनुभव था .सच बतऊन दीदी कि मुझे नहीन पता था कि आप पन्डित नरेन्द्र शर्मा जी की पुत्री है .बहुत खुशी हुयी .बच्पन मे एक बर सौभग्य मिल था पन्डित जी की कविता पाठ सुन्ने का . उस्मे नेपाली जी भी थे . रदिओ पर तो कयी बर सुना था .
आपको मेरे प्रनाम !
nice..
Sagar ji aur aap ko bhi dhnywaad,
itna madhur geet Manna dey ki awaaz mein sunNe ko mila..anil ji ne sangeet bhi bahut sundar diya hai.
vivdh bharati ke arambh ki kahani bhi padhi.
poori post hi man mohne wali hai.
filmon mein sundar shudh hindi geet likhne wale ek matr kavi shayad[?] Respected Pandit ji hi rahey hongey us samay?
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