यहाँ नाना जी ( दीपक ) झूले को धक्का दे रहे हैं ॥
हमारे अपने शिशु भी इसी तरह खेला करते थे , वो याद आ रहा है ...और साथ साथ , ये पुराना गीत भी,
" झूले में पवन के आयी बहार, प्यार, छलके, हो प्यार छलके .........."
http://www.youtube.com/watch?v=AS0h73s0XyI&feature=related
हमारे कोम्प्लेक्स में आजकल ऐसे सुफेद फूल खिले हुए हैं। कई पेडों पे अभी तक नई कोंपले नहीं आई ! पर ये पेड़ , पतों से नहीं , फूलों से भरा , बहुत शानदार दीख रहा है।
रास्ते के साथ साथ पैदल चलने वालों की सुविधा के लिए एक नन्हा रास्ता भी दीखाई दे रहा है - उसी के पास ये सुफेद फूलों से आच्छादित छोटे बडे कई साएज़ के पेड भी लगे हुए हैँ और पथिक मार्ग को विभाजित करती हुई साथ घास भी लगी हुई है । ये यहाँ आम बात है। लगभग शहर के बीच बनी सडकोँ के सभी रास्ते , इसी प्रकार से बनाये जाते हैँ ।
सुँदर श्वेत पुष्प गुच्छोँ से भरा हुआ सुदर्शन वृक्ष
http://www.youtube.com/watch?v=e8ipeOospCs
http://www.youtube.com/watch?v=e8ipeOospCs
बाग के मध्य मेँ तालाब है जहाँ गीस और बत्तकेँ बहुत बडी सँख्या मेँ तैरते हैँ और लोग उन्हेँ दाना या ब्रेड खिलाते हैँ तो वे तुरँत वहाँ आ पहुँचते हैँ
झूला खेले नँदलाला बिरज मेँ झूला खेलैँ नँदलाल !
झूला खेले नँदलाला बिरज मेँ झूला खेलैँ नँदलाल !
बचपन ऐसा ही हो - और हम इस निस्छलता को हमारे दिलोँ मेँ सँजोये रहेँ - भले ही हम जहाँ कहीँ भी रहेँ और जीवन यात्रा के पथ पर चलते हुए किसी भी मकाम पर आ कर रुके हुए होँ ..........आपको कुदरत के इन करिश्मोँ को कुछ सुमधुर गीतोँ के साथ याद दिलाते हुए खुशी हो रही है ..फिर मिलेँगेँ तब तक, जै राम जी की !
From : नोःआ & नाना & Nani
22 comments:
बहुत खूबसूरत. नो:आ के संग बिताये क्षणों को ही तो अब संजोना है. विडियो बड़े सुन्दर थे. आभार.
दिल को भा गए चित्र और बच्चे के साथ बिताए गए पल तो हमेशा अनमोल होते हैं। इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।
दृश्य और विडियो दोनों अति सुंदर .
यह चितेरा खुद चित्र बनाता है, जग को खुश देख कर खुद खुश होता है।
झूला देवें नन्द जसोदा झूलें नन्दलाल!
इस से बड़ी प्रसन्नता नन्द-यशोदा के लिए क्या हो सकती है?
अच्छा लगा !
हमेशा के सदृष्य अति सुंदर चित्र, विडियो और रचना.बहुत शुभकामनाएं.
आपने स्लाईड का अर्थ पूछा है? हमारे यहां हरयाणा मे तो हम इनको फ़िसलपट्टी बोलते हैं और यहां मालवा के गांवों मे मैने इसे बच्चों द्वारा घिसलपट्टी बोलते भी सुना है.:)
रामराम.
बहुत ही सुंदर चित्र ओर विडियो, साथ मै बच्चो संग झुले का चित्र, बहुत अच्छा लगा, यह पेड शायद सेब के होगे, हमारे यहां कल से मओसम थोडा खुला है, आज दिन का तापमान करीब १८ + था, आप का धन्यवाद
आभार ताऊ जी - फिसलपट्टी बोलते हैँ स्लाईड को ? :-) मुझे पता नहीँ था ..मालवा का शब्द भी नया लगा बम्बई मेँ शायद 'लसरपट्टी' कहते थे ऐसा याद आ रहा है - कई रोजमर्रा के बोलचाल के सीधे सादे शब्दोँ को हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओँ मेँ बोलना, सुनना मुझे हमेशा अच्छा लगता है - हर प्राँत की अपनी विविधता है ना ..So, thank you so very much ..आपने मेरे प्रश्न का उत्तर जो दिया :)
चित्रकार तो मायाकार ही है जिसके अनगिनत चित्र मानसपटल पर सदा के लिए अंकित हो जाते है.नन्हे मुन्ने राजकुमार को खूब सारा प्यार और आशीर्वाद
मीनक्षी जी आपके आशीर्वाद सर आँखोँ पर ..आभार !
दिनेश भाई जी,
राज भाई,
अरविँद भाई,
डा. मनोज जी,
सुभ्रमणियम जी
तथा शोभा जी आप सभी के
स्नेहाशिष का
बहुत बहुत आभार
- लावण्या
बहुत सुन्दर चित्र हैं ....
छुटके को ढेरो स्नेह ओर प्यार....कितनी उम्र है जनाब की.....
इस चित्रकार का सबसे बड़ा करिश्मा ये बाल गोपाल ही हैं। कभी हमारी झोली में दोहते-दोहती के रूप में तो कभी पोते-पोती के रूप में डाल देता है और हम अपने घुटनों के दर्द को भूलकर इनके साथ झूले में झूलने लगते हैं। वृक्ष तो हमेशा ही फलते-फूलते हैं लेकिन जब ये नन्हें हमारे पास होते हैं तब इनकी खुशबू से सारा चमन ही महक उठता है। अभी मेरी झोली में भी एक नन्हीं दोहती आयी हुई है, उसके आनन्द में आपका आनन्द देख रही हूँ।
वाह फूलो ने तो महक और बढा दी ..
बहुत ही सुन्दर सफ़ेद फूल हैं...और ये झूले पर बैठा नन्हा मुन्ना सब से प्यारा है!वाह आप की यह पोस्ट बेहद मनभावन है.
सुन्दर चित्र बहुत अच्छे लगे. मनभावन
हर झूले की हर पींग के साथ क्या वहां भी बौराता है बसंत या फिर आपकी आँखें खोज लाती है चित्रकार को.
मन मोहक चित्रों से सजा आपका ब्लॉग..........
पता नहीं तारीफ किसकी करें पोस्ट की या चित्रों में फूलों की!
स्लाइड को स्लाइड ही रहने दो कोई नाम ना दो :)
बहरहाल बड़े खूबसूरत चित्र प्रस्तुत किए आपने !
जी हम तो स्लाईड को तिसल-पट्टी कह कर बुलाते थे और आज तक कोई नया शब्द नहीं मिला उसके लिए... तो आप भी वही इस्तेमाल कर सकती हैं | बचपन का भोलापन हमेशा याद रहेगा.. वैसे मेरी एक कविता भी है जो आप यहाँ से पढ़ सकती हैं.. हाँ उस बचपन की याद में ही है.. बताईयेगा ज़रूर कि कैसा लगा..
आभार..
आप सभी की टीप्पणियोँ के लिये , बहुत बहुत आभार --
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