Tuesday, April 28, 2009

" हे मेरे राम , आप सीता जी की तुलना

श्री कृष्ण गोविँद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवा
नरसिंह मेहता का आवास
आज हम भक्ति के विभिन्न स्रोतों की ओर बह चलें .............
सुनिए आशा जी के स्वर में यह गीत ,
" मेरे राम , आप सीता जी की तुलना
में कम ही हो ! "
....
चंदन से , पुष्प से पूजित, आप
हे राम ! आप सीता जी की तुलना में नहीं आ पाओगे --
स्वर : आशा जी का है - शब्द : गुजराती में हैं ।
सुनिए
http://www.youtube.com/watch?v=-JZmxt3X1h4

श्री राम और श्री कृष्ण अभिन्न हैँ ।
नरोत्तम दास जी ने श्री कृष्ण जी के
सुदामा जी के पैर धोते समय कितनी मार्मिक पंक्ति लिखी है,
पानी परात को हाथ छुयो नहीं ,
नैनं के जलसे पग धोये ’
ये ईश्वर और भक्त के बीच कैसा अलौकिक सम्बन्ध है ?
जहाँ ईश्वर , भक्त के पग धोते हैं ?
ऐसे प्रभू कौन ह्रदय में ना बिठाएगा ?
नरसिंह मेहता का जीवन - काल सन १४१४ से १४८१ के मध्य युगीन भारत में , भक्ति की वैतरणी बहा गया ।
गुजरती स्कुल में , ११ वीं तक शिक्षा लेने से , पाठ्य क्रम में ,

अकसर , नरसिंह की भक्तिरस से भरी भजनावली , पढ़ते रहे
........जिसमे ये भी एक थी , नरसिंह मेहता की लिखी हुई
' हे जलकमल छाँडी जाने बाळा ,
स्वामी अमारो जागशे
जागशे तने मारशे,
अमने बाळ हत्या लागशे "
हिन्दी में जिसका अर्थ होगा,
' हे बालक कमल से भरे जल से दूर चला जा ।
हमारा स्वामी कालिया नाग जाग गया
तब अवश्य तुम्हारे प्राण ले लेगा "
भारत मे हरिकथा अनँत समय् से जन मानस मे बसी हुई
सदीयोँ से रुप बदल कर प्रस्तुत होतीँ रहीँ हैँ ।

कालिया मर्दन सन` १९१९ में बनी फ़िल्म भी थी ।

धुन्डी राज गोविन्द फाल्के जी ने ही पटकथा भी लिखी थी और दिग्दर्शन भी किया था । आज भी कथा आप देख सकते हैं ।

http://www.youtube.com/watch?v=spMRufRLQ98&feature=related
और

http://tr.youtube.com/watch?v=60M5wjiQ5zU&feature=related
गुजरात के तलाजा ग्राम , जूनागढ़ सौराष्ट्र , गुजरात के वासी थे नरसिंह और वे रामप्रसाद जो बंगाल में थे उन्ही के समकालीन भी थे मेहता ।

गुजरती कविता के आदी कवि कहलाते हैं संत नरसिंह मेहता !

उनकी सुप्रसिद्ध कृतियों में ,
" वैष्णवजन तो तेने कहीये , जे पीड पराई जाणे रे "
महात्मा गांधी का सबसे प्रिय भजन था
जिसे पूरा जगत आज पहचानता है ।
अपनी पुत्री कुंवर बाई के विवाह पर कहते हैं , स्वयं श्री कृष्ण भगवान् ने सारा दायित्त्व सम्हाल कर , नरसिंह को चिंता मुक्त किया था ।
जिस पे स्व निराला जी की तरह नरसिंह जैसे पिता ने भी पुत्री के लिए शाश्वत कविता लिखी ,
" कुंवर बाई नू मामेरू " !
' शामळ्'शा नो विवाह ' , ' हुँडी ' , ' सुदामा चरित ' , ये सारी रचनाएं ,

प्रसंग को हमारी आंखों के सामने जीवित कर दे ऐसी हैं ।
सशक्त शैली में लिखे गए अमर साहित्य के विलक्षण पन्ने हैं !

नरसिहं मेहता को स्वयं शंकर भगवान् ने कृपा कर के ,
श्री कृष्ण व राधा जी की रास लीला के दर्शन करवाए थे ।
कहते हैं, मेहता , मशाल थामे , दूर से, इस भव्य रास लीला को निहार रहे थे और ऐसे खो गए , दीव्य आनंद सरिता में बह गए के जब , मशाल की अग्नि से हाथ , जलने लगा तभी , भान हुआ
और वे आनद महासागर से बाहर आए ।

मेहता नित्य स्नान के लिए दामोदर कुँड , भजन गाते हुए जाते थे ।
यही दामोदर कुँड, यमुना महारानी के जल की तरह पावन माना जाता है।

एक और कथा है के राजा माँडलिक के आवास की रानियाँ , अकसर मेहता के भजन से आकृष्ट होकर , मेहता के भजन - कीर्तन में सम्मिलित होतीं थीं। अब , राजा जी को आ गया क्रोध ! उन्होंने नरसिंह की भक्ति को परखने की चेष्टा करते हुए , राजसी मन्दिर में बिराजमान श्री कृष्ण जी की मूर्ति को सुंदर पुष्प माला पहनाते हुए, मेहता को आदेश किया ,

" मेहता जी, आपकी भक्ति सच्ची हो तब ,
श्री कृष्ण के गले में पहराया पुष्प हार ,
आप के गले की शोभा बढ़ा दे
तब हम आपकी भक्ति का लोहा मान जायेंगे ! "

ईश्वर इस बार भी भक्त की लाज बचाने ,
अपनी माया का प्रदर्शन करने से नही चुके

पूरा नागर समाज जिसके मेहता भी थे, चकित हो कर देखता रहा,
जब प्रभू के गले से फूलों की माला , आँखें बंद कर ,
सजल नयन से , भजन गाते हुए , नरसिंह के गले में दीखलाई दी !
ये , करिश्मा देखकर राजा माँडलिक ,
नरसिंह के पैरों पर गिर पड़े और उनके भक्त हो गए !
नरसिंह के भजन आप यहाँ भी सुन सकेँगेँ ....
shttp://www।raaga.com/channels/gujarati/moviedetail.asp?mid=GJ000037

Saturday, April 25, 2009

सागर नाहर भाई ' सा ने भेजा गीत : " नाच रे मयूरा " गीत ..लीजिये ...सुनिए ...

http://mahaphil।blogspot.com/
सा गर नाहर भाई सा' ख़ुद अपने लिए कहते हैं ........
" मैं हैदराबाद में रहता हूँ, हिन्दी के पुराने गाने सुनना और पढ़ना लिखना बहुत पसन्द है। मेरे चिट्ठे हैं ॥दस्तक॥ और गीतो की महफिल
और तकनीकी दस्तक
उनके प्रोफाइल से उनकी प्रिय संगीत व पुस्तकें हैं ....>
Favorite Music
हिन्दी फिल्मों के मधुर गीत
खासकर पुरानी फिल्मों के। शास्त्रीय संगीत
गज़लें सब कुछ... जो कर्णप्रिय हो।
Favorite Books :
सांझ हुई घर आये
निर्मला
कसप
नाच्यौ बहुत गोपाल
माँ (मेक्सिम गोर्की).. किन किन के नाम लिखूं और किनके छोड़ूं
दुविधा है।

अभी कुछ दिनों पहले , उन्होंने मुझे , " नाच रे मयूरा " गीत का लिंक भेजा था -- ये कहते हुए ,
" लावण्या दी,
सादर प्रणाम !
पापाजी का एक सुंदर गीत मिला है मुझे विश्वास है आपने नहीं सुना होगा।
प्रणाम* नाच रे मयूरा *
http://www.youtube.com/watch?v=10gMzRacC2Y

नाच रे मयूरा! ( राग : मियाँ की मल्हार )
खोल कर सहस्त्र नयन,
देख सघन गगन मगनदेख सरस स्वप्न,
जो किआज हुआ पूरा!
नाच रे मयूरा!
गूँजे दिशि-दिशि मृदंग, प्रतिपल नव राग-रंग,
रिमझिम के सरगम पर छिड़े तानपूरा!
नाच रे मयूरा!
सम पर सम, सा पर सा, उमड़-घुमड़ घन बरसा,
सागर का सजल गान क्यों रहे अधूरा?
नाच रे मयूरा!
- पं नरेंद्र शर्मा
ये गीत आकाशवाणी रेडियो कार्यक्रम का सबसे प्रथम प्रसारित किया गया गीत है जिसे स्वर दिया मन्ना डे जी ने और संगीत दिया था श्री अनिल बिस्वास जी ने।
जिसे पहले अपने ब्लॉग पर लगाया था सिर्फ़ शब्द थे आज स्वर भी शामिल हो गए .............बहुत आभार ....सागर भाई 'सा ...
http://www.lavanyashah.com/2008/08/blog-post_04.html
http://radionamaa.blogspot.com/2007/10/blog-post_25.html
http://radionama.blogspot.com/2008/02/blog-post.html
http://radionama.blogspot.com/2007/09/blog-post_8214.html

अब रि‍फत सरोश जी के शब्दोँ मेँ आगे की कथा सुनिये ..

"उनको एक अलग कमरा दे दिया गया था प्रसार गीत विभाग भारतीय सँगीत का एक अँग नहीँ, बल्कि हमारे हिन्दी सेक्शन का एक हिस्सा था और नरेन्द्र जी की वजह से सेक्शन चलाने मेँ हमेँ बडी आसानी थी - कहीँ गाडी नहीँ रुकती थी , चाहे आर्टिस्‍टों का मामला हो या टेपोँ और स्टुडियो का ! उन्होँने हिन्दी सेक्शन के अन्य कामोँ मेँ हस्तक्षेप करना उचित नहीँ समझा उन्हेँ प्रसार गीत से ही सरोकार था आधे दिन के लिये दफ्तर आते थे - या तो सुबह से लँच तक या लँच के बाद शाम तक ! अपने ताल्लुकात की वजह से उन्होँने फिल्मी दुनिया के मशहूर सँगीतकारोँ से प्रसार गीतोँ की धुनेँ बनवाईँ जैसे नौशाद , एस। डी बर्मन, सी। रामचन्द्र, राम गांगुली, अनिल बिस्वास, उस्ताद अली अकबर खाँ और कोई ऐसा फिल्मी गायक न था जिसने प्रसार गीत न गाये होँ - लता मँगेशकर, आशा भोँसले, गीता राय, सुमन कल्याणपुर, मुकेश, मन्ना डे, एच। डी। बातिश, जी। एम्। दुर्रानी, मुहम्मद रफी, तलत महमूद, सुधा मल्होत्रा - सब लोग हमारे बुलावे पर शौक से आते थे - यह नरेन्द्र जी के व्यक्तित्त्व का जादू था - एक सप्ताह मेँ एक दो गाने जरुर रिकार्ड हो जाते, जो तमाम केन्द्रोँ को भेजे जाते आज मैँ अनुभव करता हूँ कि, नरेन्द्र जी का एक यही कितना बडा एहसान है आकाशवाणी पर कि उन्होँने उच्चकोटि के असँख्य गीत प्रसार विभाग द्वारा इस सँस्था को दिये !...आकाशवाणी को बदनामी के दलदल से निकालने और प्रोग्रामोँ को लोकप्रिय बनाने मेँ नरेन्द्र जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है " प्रसार -गीत " तो उसकी एक मिसाल है परन्तु जो अद्वितीय कार्य उन्होँने किया वह था, " विविध भारती " की रुपरेखा की तैयारी तथा प्रस्तुति ! अपने मित्र तथा आकाशवाणी के महानिर्देशक श्री जे. सी. माथुर के साथ मिलकर नरेन्द्र जी ने आल इँडीया वेरायटी प्रोग्राम का खाका बनाया जिसका अति सुँदर नाम रखा " विविध भारती " आकाशवाणी का ऐसा इन्कलाबी कदम था जिसने न सिर्फ उस की खोई हुई साख वापस दिलाई, बल्कि आकाशवाणी के श्रोताओँ मेँ नई रुचि पैदा की और उसमेँ हलके -फुलके प्रोग्रामोँ द्वारा राष्ट्रीयता और देश प्रेम का एहसास जगाया और आगे चलकर यह कार्यक्रम आकाशवाणी के लिये " लक्ष्मी का अवतार " साबित हुआ - इस तमाम आकाशवाणी के इतिहास मेँ उनका नाम सुनहरे अक्षरोँ मेँ लिखा जायेगा -

" विविध भारती " प्रोग्राम पहली जुलाई को शुरु होने वाला था - फिर तारीख बदली आखिर पँडित नरेन्द्र शर्मा ने अपनी ज्योतिष विध्या की रोशनी मेँ तय किया कि यह प्रोग्राम ३ अक्तूबर १९५७ के शुभ दिन से शुरु होगा और प्रोग्राम का शुभारँभ हुआ तो " विविध भारती " का डँका हर तरफ बजने लगा -
लेखक: ज़नाब रीफत सरोश साहब ....

आशा है, आप के पग भी गीत सुनकर थिरकने लगे हैं ......
- लावण्या







Tuesday, April 21, 2009

बड़े मामा जी की यादें

मेरे ननिहाल के सदस्यों की तस्वीर

अब आपको बतला दूं कि, इस पुरानी तस्वीर में , मध्य में मेरे नाना जी श्रीमान गुलाबदास गोदीवाला जी हैं जिनकी गोद में , बड़े मामाजी की बिटिया , रचना है। नानाजी के एक तरफ़ बड़ी मामी जी , श्रीमती धन गौरी जी हैं और दूसरी तरफ़ , मेरी नानी जी , श्रीमती कपिला जी हैं जिनकी गोद में , मैं हूँ ! नानी जी की बगल में , मेरी अम्मा श्रीमती सुशीला नरेंद्र शर्मा हैं

अम्मा के ठीक पीछे , सबसे बड़े मामा जी श्री बालकृष्ण गोदीवाला खड़े हैं ! जिन्हें हम सभी , प्यार से " बाबर मामा " कहा करते थे। वे ब्रिटीश समय के बंबई में, एक , अग्नि शामक दस्ते में काम करते थे।

उन्होंने ये किस्सा बतलाया था जब बंबई बंदरगाह में खड़े एक बहुत बड़े जहाज पर , बम विस्फोट हुआ था।

मामाजी के अग्नि शामक दल को भी वहाँ भेजा गया था जब वहाँ उपरी डेक पर आग लगी हुई थी । मामा जी के साथ , एक अँगरेज़ गोरा अफसर भी खडा था । बाबर मामा ने , समयसूचकता से , उसे भी अरब समुद्र के गहरे जल में , धक्का मार कर गिराया और उसके पीछे पीछे, वे ख़ुद भी , पानी में कूद गए थे ! दोनों की जान बच गयी थी जब की कई दूसरों की हालत गंभीर हो गयी थी। कुछ घायल थे और कुछ जान गँवा बैठे थे।

बाबर मामा अकसर , खाखी , आधी पतलून ही पहना करते थे । ख़ास तौर से बंबई की महा भयंकर , मूसलाधार बरखा के दिनों में !

जून माह के मध्य से दशहरे तक , बंबई , बारीश की चपेट में , बस एक पानी का सैलाब सी नगरी , नज़र आती है । वे हमें रेलवे स्टेशन तक कई दफे छोड़ने आते और ठीक स्टेशन के सामने , बस कंडक्टर को जोरों से " सी ...श .." जैसी आवाज़ में कड़क होकर पुकारते और वो बस वहीं रोक देता था ! हम बहुत प्रसन्न होते और खूब हँसते भी और उतर कर , २ मिनटों में , स्टेशन तक पहुँच जाते ! शायद वे पुलिस अधिकारी से लगे हों उस बस कंडक्टर को !

बाबर मामा के बारे में , मेरी अम्मा बतलातीं थीं , के जन्म के समय, उनका वजन १३ पाउंड था ! और मेरी " बा " माने नानी जी , सिर्फ़ १४ वर्ष की थीं ! उन्हें जन्म देकर " बा" २ दिनों तक , बेसुध - सी रहीं थीं ! जन्म से ही इतने , हट्टे ~ कट्टे , बाबर मामा जी, हमेशा बेहद स्ट्रोंग बने रहे । उसका एक और वाक़या है, जब अम्मा के बेबी होनेवाला था और वे लोग अस्पताल पहुंचे । अम्मा चल नहीं पा रहीं थीं और मामा जी ने अम्मा को उसी अवस्था में, हलके से फूल की तरह उठा लिया था और तीन मंजिल चढ़ते हुए , डाक्टर के सामने ले गए थे। ऐसे ही कई किस्से हैं मेरे सबसे बड़े मामा जी , श्री बालकृष्ण जी वल्द " बाबर मामा जी " के बारे में !

वे बा और नाना जी के संग , ५५ साल से भी ज्यादा , एक ही घर में, बंबई के बांद्रा उप नगर के अपने "कपिल - वास्तु " घर में , आबाद रहे !

भरी उमर में , ८७ वर्ष के हुए जब उनका देहांत हुआ ।

उपरोक्त चित्र में, उनकी सबसे बड़ी पुत्री माधुरी उनके बगल में हैं । और माधुरी जी के बगल में, सबसे छोटे मामा जी, श्री राजेन्द्र गुलाब दास गोदीवाला हैं।

उन्हें हम लोग , राजू मामा कह कर बुलाते थे ....

उनकी कथा भी बहुत रोचक है ....

आप पढ़ना चाहेंगें क्या ? तब प्लीज़ देखिये ये लिंक ..........

मेरे राजू मामा जी , विनोबा भावे जी के साथ " भू दान यज्ञ " में भी हिस्सा ले चुके थे और गुजरात के कई ग्रामों में , रास्ते बनाने से लेकर, स्कुल , भी बनाया करते थे ।

उनका विवाह कुमारी शीला देशपांडे जी के साथ हुआ था । जिनकी बड़ी बहन, कुसुम ताई देशपांडे , आजीवन अविवाहीत रहीं और विनोबा जी के आश्रम का संचालन किया करतीं थीं ।

राजू मामा जी और शीला मामी का ब्याह कैसे हुआ उसकी कथा रोचक है, आप भी देखिये ,

mag http://www।abhivyakti-hindi।org/visheshank/navvarsh/vinoba।htm

आज इतना ही ............

आशा है, आप को इन से मिलना अच्छा लगा होगा ।

आपके विचार अवश्य लिखियेगा ...बहुत स्नेह सहित,

- लावण्या

Sunday, April 12, 2009

ये देस है या परदेस है !


आरती करते हुए दम्पति .......यहां भी महावीर जयंती श्रध्धा व उत्साह से संपन्न हुई है ...जैन सेंटर के कार्यकारिणी समिति के सदस्य , हाथों में हाथ मिलाकर समूह गान गाते हुए और जिनके श्रम से ये पर्व सफल रहा ...
बच्चों ने भी उत्साह से प्रार्थना तथा गीत गाये ।
" महावीर तुम्हारे चरणों में, श्रध्धा के कुसुम चढाये हम ,
उनके आदर्शों को अपना , जीवन की ज्योत जगाये हम "
प्राणी प्राणी सह मैत्री हो, ईर्ष्या, मत्सर, अभिमान न हो ,
कहनी , करनी, इकसार बने, तुलसी तेरा पथ पायें हम "
सबसे पहले महावीर जन्मकथा पर एक चलचित्र बतलाया गया जिसमे प्रमुख स्वर हरीश भिमानी का था । ( animated ) माता त्रिशला देवी तथा नव जात वर्धमान राज कुमार को देखा तब सारे जैन समुदाय में हर्ष की लहर दौड़ने लगी और सभी भाव विभोर हो गए !
जैन सेण्टर में शनिवार और रविवार को दोनों दिन महावीर स्वामी की जयंती मनायी गयी और हम भी इसी के लिए तैयार होकर गए ...
ऐसे अवसर भारत भूमि से दूर रहकर मनाते हुए भारत की याद भी आती है और भारतीय समाज के उत्साह तथा श्रध्धा , भक्ति भाव को देख कर ये आशा भी मनमे बनी रहती है के हमारी परम्पराएं तथा संस्कृति का लोप नही होगा --
वर्तमान पीढी को परिश्रम करना होगा ताकि आगे आनेवाली नसल भी इनसे परिचित हो ...
कभी परिसर में आरती के समय , आसपास देखते हुए , हाथो को जोड़े हुए नर नारी देख हम ये भी भूल जाते हैं के ये देस है या परदेस है !
वही भक्ति भाव यहाँ भी , है ! जैसा भारत में देखा करती थी --
ऐसे अवसरों पर भारतीय परिधान पहनकर , मन प्रसन्न हो जाता है --
परिवेश अवश्य अलग है , पर उत्साह और उमंग भरा मन,
यहाँ रहते हुए भी , हर स्थिति में जीना सीख लेता है !
ऋषभ स्तुति : ( श्रमण सागर रचित )
ऋषभाय नम : पहले मानव ,
पहले नेता,पहले अर्ह इँद्रिय जेता,
पुरुषोत्तम स्वाँत - सुखाय नम:
ऋषभाय नम : ऋषभाय नम :
इसका स्तवन श्रमणी जी ने भाव पूर्ण स्वर में गाकर , वातावरण को पवित्र व मंगल किया । भगवान् आदीनाथ जी की प्रतिमा का भव्य शृँगार किया गया है ।
(जैसा चित्र में दर्शित है । )
जैन धर्म में देरावासी , स्थानकवासी तथा दीगम्बर व श्वेताम्बर मतावलंबी ,
विविधता में एकता बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं ।
धरम चाहे कोई भी हो, सदा से ही , कई अलग खेमे बन ही जाते हैं ।
चाहे वह इस्लाम हो या ईसाई धर्म हो या हिन्दू या बौध्ध !
यही हाल जैन धर्म माननेवालों का भी हुआ है ।
और जो नही मानते , वे , हरेक धर्म के इस क्लेश को देख कहते हैं,
" देखो, ये सही रास्ता ही नही "
....आस्तिक भी हैं और नास्तिक भी ॥
इंसान जितने , उतने ही अलग पंथ !
...अलग सम्प्रदाय, अलग रीति रिवाज ...
कब होगी एकता ? .......शायद ............कभी नही ..........
लाल फूलों की पत्तियों से सुंदर रंगोली श्वेत मार्बल पर बनायी गयी थी
और उस पे दीप जगमगा रहे थे ......जो बहुत सुंदर लगे ...
और इस रंगोली के सामने एक रजत से निर्मित संदूक है ये दान पेटी है ।
जहाँ श्रद्धालु भक्त , अपनी अपनी श्रध्धा के अनुरूप डॉलर - दान करते हैं। :-)
जैन धर्म में चावल से स्वस्तिक या अर्ध चन्द्र की आकृति बना कर भी
यहाँ श्रावक जन रखते हैं ।
मैंने , जैन धर्म के बारे में , मेरे विवाह के बाद ही , इतना भी , ज्ञान प्राप्त किया ।
मेरे पति दीपक जैन कुटुंब से हैं तथा उनकी कुल देवी अम्बा माँ हैं ।
जिनकी गोत्र पूजा , दशहरे के दिन की जाती थी और प्रसाद में खिचडी और गेहूं का कंसार , कुल देवी अम्बा मैया को ३ बार जल की धारावाही कर,
कुमकुम तथा अक्षत का टिका लगाने के बाद ,
घर के बड़े के बाद हरेक सदस्य , पैर छूकर , माताके समक्ष,
नत मस्तक होकर , किया करता था ।
जिस की सारी विधि , मेरी सास जी " तारा बा " करवातीं थीं ।
रसोई के बाद , चौका धुलवा लिया जाताथा और फ़िर अगले दिन तक ,
रसोई में, माँ के लिए दीपक जलता रहता था ।
हमने कभी प्रश्न नही किया , ना ही पूछने की कोशिश ही की के
" क्यूं , अम्बा माँ , जैन धर्म में भी शामिल हैं ? "
जब के , जैन देरासर में अकसर , मैंने ,
' चक्रेश्वरी देवी ' और " लक्ष्मी जी " की प्रतिमा को ही , देखा है --
सास जी ने ही परम पवित्र , नवकार मन्त्र भी सिखलाया था ।
जिसे याद करने में, कोई कठिनाई नही हुई और शीघ्र कंठस्थ हो गया था ।
आप भी शायद जानते होंगें " नवकार मंत्र " के बारे में ,
ये जैन धर्म का पवित्र मंत्र है।
आप भी सुनिए ....आवाज़ है श्री लता जी की ...
http://www.getalyric.com/listen/68ZuPGbZgAo/navkar_mantra
२,५०० वर्ष पूर्व जिस जैन धर्म ने भारत भूमि में अपनी जड़े विकसित की थीं , आज उस पावन धर्म - वृक्ष की शाखाएं , दूर सूदूर ओहायो प्रांत , उत्तर अमरीका गणराज्य के एक शहर में फल फूल रही है ...इतिहास के एस पन्ने को पढ़ना चाहें तब यहाँ क्लीक करीए ...
आज यहीं , आप से आज्ञा लेती हूँ ........आप की श्रध्धा जिस किसी धरम से प्रेरित हो या आप नास्तिक हों , खुश रहीये और ब्लोगींग करते रहीये ...और हाँ, आपके विचार और टिप्पणी भी बेहद महत्वपूर्ण है जिससे अवश्य अवगत कराएँ .....आभार !
- लावण्या

Wednesday, April 8, 2009

मेरी नानी जी ' बा' का घर और वो आम का पेड़

'बा ' श्रीमती कपिला गुलाबदास गोदीवाला ~~ महिला कोंगेस कमिटी में भाषण देते हुए
आज अनायास द्रष्टि आम के लहलहाते पुराने पेड पर पसर गई। कई सालोँ से उध्यान मेँ डेरा जमाये खडा है । उसकी कई शाखाए फैल कर मानोँ अब अपने अभ्यस्त और चिर परिचित व्यक्तित्व से पूरित हो, परिवार के सदस्य की तरह , बाग को छोडकर, बारामदे से होकर, गैलरी के जरीये अँदर आने लगीँ हैँ ।
उसकी मुस्कुराहट ग्रीष्म ताप से खिलकर नन्ही नही अमिया मेँ बदल जाती और जैसे जैसे सूर्य नारायण प्रदीप्त होते जाते, उस पे लगे आम भी बडे होते जाते और लाल - सुनहरी हो जाते !
कितने मधुर फल थे उसके !
पूरा वर्ष भर हम, कच्चे आमोँ को अचारोँ मेँ सँजो रखते !
खिचडी या पराठोँ के सँग उनका स्वाद चटखारे ले ले कर सँतुष्ट होते और हमारा आम का पेड किसी दुही गई गौ की भाँति हिलता डुलता रहता -
कमी यही थी कि वो बोल नहीँ पाता था ...

पर मैँ हैरत मेँ पड जाती ये देख कर के जब कभी मैँ बहुत उदास होती,
दुख से भरी रात जैसे तैसे काट कर, सुबह जब नज़रेँ फेरती,
लगता मानोँ आम की पत्तियाँ ज्यादा हरी हो गयीँ हैँ !

जब कभी मैँ प्रसन्न होती, कई बार, दिन मेँ आम के पेड के सामने जाकर हँसती तब दूसरे ही दिन मुझे उसकी सबसे उपरवाली टहनी
नईँ नईँ कोमल पत्तियोँ से , नये जीवन से प्रस्फुटीत सी जान पडतीँ !

क्या मूक होते हुए भी ये पेड मानव मन से उद्वेलित तरँगोँ को ग्रहण करने मेँ सक्षम थे ?
शायद अपनी डालियोँ के हाथ पसारे, हमेँ, अपनी बाहोँ मेँ भरने ,
झूमता भी होगा, हमारा आम का पेड पर हमीँ अनजान,
उसकी भाषा को समझते नहीँ थे ।
बचपन मेँ किसी चलचित्र की तरह आभासित , एक स्वप्न, धुँधला सा स्मृति के साथ, देखती हूँ ............
माँ का आँचल थामे , भीड भरी राह के बीच , माँ से सटकर खडे शिशु की तरह दीखता स्वप्न !
उस स्वप्न मेँ सारे पेड मुझे जीवन्त जान पडते थे ! वे बोलते थे -
उनके मुख हमेशा उनके तनोँ मेँ हुआ करते थे ।
उपर की डालियाँ और पत्ते उनके सर के केश से लगते ।
नीचे की ओर झुकी हुईँ , भरी डालियाँ हाथ बन जाते ।
जो मुझे नमस्ते भी करते और उपर नीचे हिलडुल कर
अपनी बात कहते समय हाव भावोँ को दोहराने की चेष्टा भी करते थे !

आज मेरे बडे हो जाने पर भी , किसी गहरी निद्रा के क्षणोँ मेँ इस स्वप्न को मैँ, जरुर देखती हूँ ! मानससाश्त्री ना जाने इसका क्या अर्थ करेँ ?

हमारे आम की कई बडी शाखाएँ जो बढकर घर के भीतर तक घुसने लगीँ थीँ ।
उन्हेँ एकबारगी, घर के किसी सदस्य की जिद्द पर काट डाला गया !
मुझे न जाने क्योँ काफी तकलीफ हुई थी ।
मानोँ मेरे प्रिय जन का हाथ ही काट डाला हो किसी ने !
फिर कई दिवस लगातार बीते, मैँने उस तरफ, झाँका भी नहीँ -
मानोँ अपराधिनी मैँ ही थी !

फिर एक दिवस, किसी कार्य की समाप्ति के बाद, थकी हुई,
मैँ , अलसा रही थी ।
सोफे पर बदन निढाल, पैर सामने की मेज पर फैलाये, सुस्ता रही थी कि अचानक नज़र फिर हमारे आम के पेड से जा टकरायीँ ।

देखती क्या हूँ, कि , उसी कटे हुए तने से सुँदर सी , लचीली डाली, नये बादामी, और कुछ हरे चिकने पात , व्यवस्थित अँतराल पर सजाये,
हवा मेँ भाभी की गुड्डो की तरह ही , हवा मेँ मचल रही है !

और मैँ खुश हो गई !!

यही तो साक्षात्कार था प्रभु के बनाये जीवन से !
कैसी अदम्य शक्ति दे रखी है हर सजीवन प्राणी को
अपने आप को सँजोने की, बढाने की, विकसित करने की !
मृत प्राय: शाखा से जीवन के स्त्रोत सी उस छोटी टहनी ने
मेरे पूरे अस्तित्त्व को प्रभु के जीवन प्रवाह से उसी क्षण जोड दिया -
शायद मेरा हाथ कट जाता तो मैँ, वहाँ नन्ही सी ऊँगली ना उगा पाती,
किँतु पेड जो एक जगह स्थित है उसने बिलकुल वही करिश्मा
कर दीखाया था ।

जीवन विकसित हो रहा था , नये नये आयामोँ से
भविष्य स्पष्ट हो रहा था अतीत के अँधेरोँ से !
( १५ जुन, १९८९ )

ये लघु कथा अँतराष्ट्रीय हिन्दी त्रैमासिक "विश्वा " मेँ छपी थी ये जिसे आज यहाँ आप सब के साथ बाँट रही हूँ ।

रसीले , मीठे आम खाइयेगा और 'वृक्षोँ के राजा आम ' को याद करीयेगा जिनकी यादेँ मेरे मन मेँ मेरे भारत की छवि साथ जुडी हुई हैँ ~~

ये कथा मेरी ननिहाल (जिसका नामकरण पूज्य पापा जी ने किया था )
उस की बगिया में लगे एक ऐसे ही आम के पेड़ से प्रेरित है ।

नानी जी , माने मेरी 'बा !
जिनका नाम था श्रीमती कपिला गुलाबदास गोदीवाला !
बा जी का घर, माने मेरा ननिहाल, वही घर है... जो बम्बई के एक प्रसिध्ध उपनगर - बान्द्रा मेँ, बान्द्रा टाकिज़ के ठीक सामने,
विवेकानन्द मार्ग पर स्थित , सन १९०० में बना पुराना सा एक घर है !
शायद आज भी ...........होगा ,
( सुना है अब बिक गया है ...बहुमँजिला आधुनिक मकान वहाँ बनेगा और एक नया स्मारक बन जायेगा ..! )

पहले ये घर , पुराने जमाने की मशहूर गायिका 'राजकुमारी ' का आवास था और वे उसे निजी कारणोँ की वजह से बेचना चाहतीँ थीँ ।
( राजकुमारी जी की एक पुरानी फ़िल्म "स्वामी " के गीत का लिंक दे रही हूँ --
गीत : क्रम २ " बिरहन जागे आधी रात " सुनियेगा )
http://www.indianmelody.com/old1940s2.htm
http://www.desimusic.com/songs/singer/7285/rajkumari.html
उसे खरीदने का समय आ पहुँचा था और इत्तफाक से उसी समय ,
मेरे नानाजी सेन्ट्रल रेल्वे की एक लम्बी अवधि तक की गई नौकरी से
रीटायर हो रहे थे ।
कई शहरोँ का तब तक वे , दौरा कर चुके थे ।
गँगानगर, रतलाम, और आग्रा के स्टेशन मास्टर भी रहे थे ।

फिर चीफ वेगन इन्स्पेक्टर की हैसियत से काम करते रहे थे और रेल्वे क्वार्टरोँ कई बरस रहे थे । ये सरकारी आवास , विशाल हुआ करते थे अकसर कई सारे नौकर - चाकर भी साथ मिला करते थे ।

अब नानाजी अपने निजी गृह मेँ स्थायी होना चाहते थे ।
उन्हेँ इस घर के बारे मेँ जब खबर मिली तो उन्होँने उसे खरीदने का मन बना लिया ।

मुझे अम्मा ने बतलाया था के , उस वक्त , पेन्शन का आधा हिस्सा उसी मेँ लगाया गया था और मेरे मझले मामाजी शम्भु गोदीवाला जी उसी समय लँदन से टेक्सटाइल इन्जीनीयर बनकर फिर भारत लौट आये थे । उन्होँने भी बाकी के पैसे बा - नानाजी को दीये और घर मेँ बडे मामाजी बालकृष्ण, उनकी धर्मपत्नी धन गौरी मामीजी तथा ३ पुत्रियाँ बडी माधुरी, दीपिका और रचना वहाँ साँताक्रुज के रेल्वे क्वार्टर से रहने जाने के लिये निकले । ( शम्भू मामा ओपेरा हाउस में आज भी रहते हैं )

तब तक अम्मा तथा पापा जी भी हमारे खार स्थित आवास से पहुँच चुके थे और पापाजी ने बा से कहा

" बा, आप ही के नाम पर इस घर का नाम " कपिल्वस्तु ' रखेँ ! "

पापाजी के ज्योतिष तथा पुराण व भारतीय ग्रँथोँ के ज्ञान से बा तथा पूरा गोदीवाला परिवार यूँ भी बेहद प्रभावित था और झट उस नाम को सर्व सम्मति से स्वीकार कर लिया गया !

- यही 'कपिलवस्तु ' मेरे शैशव की स्मृतियोँ का केन्द्र स्थान रहा है !

हमारी बा ४ थी कक्षा तक पढीँ थीँ किँतु इसी घर से बान्द्रा कोँग्रेस पार्टी महिला शाखा के प्रधान मँत्री पद पर कई बरसोँ तक महिलाओँ के उत्थान के लिये कपिला बा ने काम किया था । नानाजी तथा बा खुद खादी के कपडे सूत से , चरखे पे काँत कर बनवाते और वही पहनते थे ।

सिलाई कक्षा आरँभ करवाने से लेकर ' आनँद मेलोँ ' का सफल आयोजन भी बा किया करतीँ थीँ ।

जिसमेँ २०० से ज्यादा महिलाएँ हमारे ननिहाल 'कपिलवस्तु ' के बडी बगिया मेँ विविध प्रकार के खेल खेला करतीँ थीँ । गरबा भी होता था और सारी स्त्रियोँ को १० पूडियाँ और आलू की सूखी सब्जी लानेको कहा जाता था जो २ बडे हाँडोँ मेँ , आते ही एक साथ मिलाकर रखा जाता था और खेलकूद और गरबा हो जाने के बाद , सभी के घर का खाना एक साथ मिलकर इतना स्वादिष्ट हो जाता था कि आज भी मेरे मुँह मेँ उस भोजन की याद करते हुए, पानी आ रहा है ! :)

दसहरे के दिन सुबह से बहुत बडे पीत्तल के २०० किलो घेऊँ भरनेवाले पीपे को धुलवाकर उसमेँ शीतल स्वच्छ जल भरवाया जाता था ।

बडे मामाजी बालकृष्ण जी जिन्हेँ हम सभी 'बाबर मामा ' पुकारते थे :)
( क्यूँकि वो पेहलवान किस्म के थे :) उसमेँ बर्फ की बडी सी शिला भी डलवाते थे और दसहरे का मेला जो बम्बई के इस मुख्य मार्ग जो बम्बई शहर को गोरेगाँव से चर्चगेट तक शरीर की मुख्य धमनी की तरह ठीक बीच से गुजरकर जोडे रखता है वहाँ उत्तर प्रदेश से आये सारे लोग दसहरे के दिन 'रावण का मेला ' मनाने के लिये उमड पडते थे । उत्तर प्रदेश से आये लोग या तो साग सब्गी या दूध के व्यापारी हुआ करते थे और उन्हेँ अक्सर, "भैयाजी " कहा जाता था -

उन सभी को हम लोग, ऐसा शीतल जल पिलाते और झूठे गिलास साफ करते -
ये मेरी नानीजी 'बा' का सालाना प्रोग्राम था और वे मेरी अम्मा को कहतीँ :,
" देख सुशीला , ये सारे तेरे समधी लोग आये हुए हैँ " :)

( क्योँकि अम्मा ने उत्तर प्रदेश के पुत्र "नरेन्द्र शर्मा ' से ब्याह जो किया था !! )
कई सारी यादेँ हैँ फिर कभी सुनाऊँगी ..आज इतना ही ..

- लावण्या

















Monday, April 6, 2009

" पैसा फेँको, तमाशा देखो "

आप इस चित्र को देख कर सोच रहे हैं ना कि ये महिला कौन हैं ?
चलिए , नाम बता दूँ इनका - ( चूंकि ये पहेली वाली पोस्ट नही है :)
.............. ये हैं " समता सागर " और अब ये नीचे के चित्र में जो कन्या है ,
उनका नाम है " रुबिना डायलियक " देख लिया ना इन्हें ?
अब चलिए आगे बढ़ते हैं ..........
ये ऊपर की तस्वीर में , ' रुबीना ' है !
आजकल ये "बुध्धू बक्से ' के जरिए , यहां हमारे ड्राइंग रूम मे,
रोजाना आ पहुंचतीं हैं !!
नहीं ...नहीं ... ये कोई , आश्चर्य की बात नहीं है ...
" जी टी वी " के एक सीरियल में ये नायिका के पात्र में हैं !
जिसे मैं देखती हूँ और दुनिया भर में जहाँ ये " जी टीवी " प्रसारित होता होगा , सभी जगहों पे ये दोनों ही पहुँचते होंगें !
कथा का नाम है, " छोटी बहू " ( सिंदूर बिन सुहागिन :)
अब मुझे ये शो क्यूं पसंद है , बताऊँ ?
तब कारण है इसकी कथा , श्री कृष्ण की आराधना में अपना सर्वस्व भूल जानेवाली इस कन्या " राधिका " की कथा पे आधारित है
जिसे , वृन्दावन, मथुरा तथा दिल्ली के लोकेशन पर ,
वहाँ के मन्दिर, नदी , तालाब , पहाडी , घर, बाजार इत्यादी पे फिल्माया गया है ( अब शूटिंग कहीं भी हो दिखाते यही हैं ना :-)
और हमने कहाँ मथुरा वृन्दावन के दर्शन किए हैं जो हम सच और झूठ का भेद ,
जान पाते !!
बस ... यही सारा मेरे मन को भा गया है --
कृष्ण भक्ति में डूबे हुए बृजवासी , भले लगते हैं !
राधिका की भक्ति निर्मल लगती है
और कथानक उत्सुकता बनाए रखता है !
........आगे की श्री हरे मुरारी ही जाने !!
देखिये , इस सुंदर बाला की भोली मुस्कान , 'राधिका ' के रूप में ..
जी हाँ, ये नीचे के चित्र में , 'समता सागर जी ' ही हैं !
माँ देवकी के रोल में !
माथे पे सिंदूर की बड़ी बिंदिया दमक रही है,
पूरी मांग भी लाल कुमकुम से भरी हुई ,
सूती साडी बांधे , गरिमामयी मिसेज़ शास्त्री ,
डेनिम के जेच्केट और स्कर्ट से निकल कर,
इमेज बदले हुए , वाकई , मध्य भारत की
( सौ रीता तथा श्री ज्ञान भाई साहब पांडे के शब्दों में कहूं तब ,
अच्छी खासी " यूपोरियन " दिख रहीं हैं !
सच में हम लोग टीवी मीडिया तथा तकनिकी संसाधनों के जरिए
एक " ग्लोबल ग्राम " में रहने लगे हैं !
राजनीति हो या फिल्म , समाचार प्रसार इतना शीघ्र होता है कि , आज ओबामा टर्की पहुंचे नही के , विश्व भर में , ये न्यूज़ ' ब्रेकिंग न्यूज़ ' बनके फ़ैल जाती है !
अच्छा , बुरा सभी है -
फिल्म : आम जनता को प्रभावित करती है और साथ साथ आम जीवन से अक्स भी चुनती है, अपने रंग भर के , नए चित्र पेश करती है ...समाज की हर नस को पकडे रहती है फिल्में क्यूंकि , जनता जनार्दन , तभी अपना खून पसीने से , श्रम से कमाया धन , अँटी ढीली करके खर्च करती है ..." पैसा फेंको, तमाशा देखो " ....
अब ये नीचे भारतीय फिल्मी कलाकार हैं, करीना , सैफ , सुनहरे बाल लगाए और पश्चिम की पोशाक में सजे हुए हैं
और ये नीचे के चित्र में " श्री " सीरीयल में श्री की भाभी बनी हैं ! ( नाम पता नही :) मगर ये सारा समय, श्री की चिंता में , यहाँ से वहाँ, दौड़ भाग करतीं दीखाई देतीं हैं ! :)
हैं बड़ी प्यारी , भोली - भाली सी ...शायद आपने भी इन्हे देखा हो !
सीरीयल में एक " गुमनाम प्रेतात्मा " भी है , जिसने बेचारी "श्री ' का नव विवाहीत जीवन दूभर किया हुआ है । !
अब आगे की कथा आप , "जी टीवी ' पे देखियेगा :) हम नही ना बतायेंगें ...
मुझे कभी खुशी होती है, कभी गम !
हाँ , बिल्कुल हिन्दी फिल्मों की तरह ही !
जब देखती हूँ 'ग्लोबल ग्राम ' में अब इन्फ्लुएंस देश - विदेश की , कड़ी सीमा का अतिक्रमण करते हुए जन जन के मन को नए रंग देकर , नयी अनुभूतियाँ देने लगा है ! जिसका उदाहरण है ये अन्तिम चित्र : ये गोरी कन्याएं , ' बोलीवुड' से प्रभावित नृत्य करतीं हैं और उनकी मंडळी का नाम रखा है, " सिल्क रोड डांस " !
जो सिल्क रोड भारत से सिल्क & स्पाइसेज़ ले जाने के लिए इस्तेमाल किया गया था और परदेस से कारवाँ चल कर भारत आए थे आज , उसी भारत से इन्फ्लुएंस या ' भारतीयता के पहलू अपना असर ' दूर दराज की प्रजा तथा जन मानस तक पहुचा रहे हैं । और ये असर , उलट कर , भारतीय जनता को भी दूर देशों से वहाँ के असर या इन्फ्लुएंस देने लगी है --
ये सारा चुपके से हो रहा है ..जिसे ' बाजारीकरण ' भी कहते हैं !
" ग्लोबलाइजेशन !! " ये भी कहते हैं !!
अब आप पे निर्भर है , आप बहार की सभ्यता / संस्कृति से क्या अपनाना चाहते हैं और अपना क्या देना चाहते हैं !
वैश्विक संचार माद्यम त्वरित गति से , विश्व को पास लाने में सक्रीय है
.......हमारा हिन्दी ब्लॉग जगत भी इस मुहीम का हिस्सा है .....
जहाँ हम नित नए , विविध , अनदेखे, अनजाने स्थल तथा विषय से ,
अवगत होते हैं ...
" हम चाहें या न चाहें , हमराही बना लेतीं हैं हमको जीवन की राहें "
फ़िल्म : फ़िर भी
शब्द : स्व पण्डित नरेन्द्र शर्मा
आशा है, आप २१ वी सदी की संचार क्रान्ति से जुड़ कर , इसका लाभ उठा रहे हैं ॥
आप के क्या विचार हैं ? ये बदलाव जारी रहेगा ? भारत बदलेगा ? या विश्व बदलेगा ? ...कहीयेगा ...
- लावण्या






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Sunday, April 5, 2009

ये कौन चित्रकार है ?

मैंने बंबई में इससे पहले , इस तरह के वृक्ष देखे नहीं हैं ...और कल शाम , नोःआ को झूला झुलाने ले गए। वहाँ एक वेस्ट बंगाल का युवा दम्पति भी आया हुआ था , बड़ा पुत्र जो शायद ११ साल का था, पापा के साथ , टेनिस खेल रहा था और ३, ४ साल का अंकित झुला और स्लाईड ( इसे हिन्दी मेँ क्या कहेँगेँ ? :) पर मस्ती से खेल रहा था ।
यहाँ नाना जी ( दीपक ) झूले को धक्का दे रहे हैं ॥
हमारे अपने शिशु भी इसी तरह खेला करते थे , वो याद आ रहा है ...और साथ साथ , ये पुराना गीत भी,
" झूले में पवन के आयी बहार, प्यार, छलके, हो प्यार छलके .........."

http://www.youtube.com/watch?v=AS0h73s0XyI&feature=related
हमारे कोम्प्लेक्स में आजकल ऐसे सुफेद फूल खिले हुए हैं। कई पेडों पे अभी तक नई कोंपले नहीं आई ! पर ये पेड़ , पतों से नहीं , फूलों से भरा , बहुत शानदार दीख रहा है।
रास्ते के साथ साथ पैदल चलने वालों की सुविधा के लिए एक नन्हा रास्ता भी दीखाई दे रहा है - उसी के पास ये सुफेद फूलों से आच्छादित छोटे बडे कई साएज़ के पेड भी लगे हुए हैँ और पथिक मार्ग को विभाजित करती हुई साथ घास भी लगी हुई है । ये यहाँ आम बात है। लगभग शहर के बीच बनी सडकोँ के सभी रास्ते , इसी प्रकार से बनाये जाते हैँ ।
सुँदर श्वेत पुष्प गुच्छोँ से भरा हुआ सुदर्शन वृक्ष
http://www.youtube.com/watch?v=e8ipeOospCs
बाग के मध्य मेँ तालाब है जहाँ गीस और बत्तकेँ बहुत बडी सँख्या मेँ तैरते हैँ और लोग उन्हेँ दाना या ब्रेड खिलाते हैँ तो वे तुरँत वहाँ आ पहुँचते हैँ
झूला खेले नँदलाला बिरज मेँ झूला खेलैँ नँदलाल !
बचपन ऐसा ही हो - और हम इस निस्छलता को हमारे दिलोँ मेँ सँजोये रहेँ - भले ही हम जहाँ कहीँ भी रहेँ और जीवन यात्रा के पथ पर चलते हुए किसी भी मकाम पर आ कर रुके हुए होँ ..........आपको कुदरत के इन करिश्मोँ को कुछ सुमधुर गीतोँ के साथ याद दिलाते हुए खुशी हो रही है ..फिर मिलेँगेँ तब तक, जै राम जी की !

Bye Bye
From : नोःआ & नाना & Nani






Thursday, April 2, 2009

कोई कोयल गाये रे

" पिंजरे के पंछी रे....... तेरा दरद न जाने कोई ....तेरा दरद , ना जाने कोई ..."
क्या आप पिंजरे में बंद पंछी को देखना पसंद करते हैं ? या उन्मुक्त , गगन में उड़ते हुए पंछी आपको पसंद हैं ? सुंदर पंछी , कितने ही रंगबिरंगी , मन को लुभाते हैं ..सोचती हूँ , ना जाने ईश्वर ने इन्हें कब और कैसे सजाया होगा ? कुदरत का करिश्मा ही लगते हैं , लाल, पीले, हरे, नारंगी, गुलाबी, जामुनी और मोरपिच्छ रँग के विविध पक्षी --
इनकी विविधता सुंदर फूलों की तरह ही , मन को मंत्रमुग्ध कर देती हैं ।
मुझे इनको आकाश में स्वच्छंद उड़ते हुए देखना ही पसंद हैं । अब इसी को देखिये ना, काली कोयलिया , मीठी तान से , कैसा जादू बिखेरती हैं !!

कोयल की कूक सुनिए .......
संस्कृत सुभाषित में बहुत कम शब्दों से बडी गहरी तथा अर्थपूर्ण बातेँ समझाई जाती हैं ......जैसे यहाँ कहते हैं ,
कौआ भी काला है और कोयल भी ! इन का भेद कब पता चलता है ?
अब आगे समझाते हैं ,
जब वसंत आता है तभी ये भेद उजागर होता है , चूंकि ,
कोयल कूकने लगती है ...
और फर्क साफ़ हो जाता हैं .............
" काक: : कृष्ण पिक: कृष्ण , को भेद पिक काक्यो
वसंत समये प्राप्ते, काक काक; पिक : पिक : ॥
बसंत आगमन पर ,
मेरी हस्त लिखित कविता " कोई कोयल गाये रे " यहाँ पर , प्रस्तुत कर रही हूँ ! पढने के लिए कृपया क्लिक करें : ~~~


Posted by Picasa- लावण्या