नरसिंह मेहता का आवास
आज हम भक्ति के विभिन्न स्रोतों की ओर बह चलें .............
सुनिए आशा जी के स्वर में यह गीत ,
" मेरे राम , आप सीता जी की तुलना
में कम ही हो ! " ....
चंदन से , पुष्प से पूजित, आप
हे राम ! आप सीता जी की तुलना में नहीं आ पाओगे --
स्वर : आशा जी का है - शब्द : गुजराती में हैं ।
सुनिए
http://www.youtube.com/watch?v=-JZmxt3X1h4
श्री राम और श्री कृष्ण अभिन्न हैँ ।
नरोत्तम दास जी ने श्री कृष्ण जी के
सुदामा जी के पैर धोते समय कितनी मार्मिक पंक्ति लिखी है,
‘पानी परात को हाथ छुयो नहीं ,
नैनं के जलसे पग धोये ’
ये ईश्वर और भक्त के बीच कैसा अलौकिक सम्बन्ध है ?
जहाँ ईश्वर , भक्त के पग धोते हैं ?
ऐसे प्रभू कौन ह्रदय में ना बिठाएगा ?
नरसिंह मेहता का जीवन - काल सन १४१४ से १४८१ के मध्य युगीन भारत में , भक्ति की वैतरणी बहा गया ।
गुजरती स्कुल में , ११ वीं तक शिक्षा लेने से , पाठ्य क्रम में ,
अकसर , नरसिंह की भक्तिरस से भरी भजनावली , पढ़ते रहे
........जिसमे ये भी एक थी , नरसिंह मेहता की लिखी हुई
' हे जलकमल छाँडी जाने बाळा ,
स्वामी अमारो जागशे
जागशे तने मारशे,
अमने बाळ हत्या लागशे "
हिन्दी में जिसका अर्थ होगा,
' हे बालक कमल से भरे जल से दूर चला जा ।
हमारा स्वामी कालिया नाग जाग गया
तब अवश्य तुम्हारे प्राण ले लेगा "
भारत मे हरिकथा अनँत समय् से जन मानस मे बसी हुई
सदीयोँ से रुप बदल कर प्रस्तुत होतीँ रहीँ हैँ ।
कालिया मर्दन सन` १९१९ में बनी फ़िल्म भी थी ।
धुन्डी राज गोविन्द फाल्के जी ने ही पटकथा भी लिखी थी और दिग्दर्शन भी किया था । आज भी कथा आप देख सकते हैं ।
http://www.youtube.com/watch?v=spMRufRLQ98&feature=related
और
http://tr.youtube.com/watch?v=60M5wjiQ5zU&feature=related
गुजरात के तलाजा ग्राम , जूनागढ़ सौराष्ट्र , गुजरात के वासी थे नरसिंह और वे रामप्रसाद जो बंगाल में थे उन्ही के समकालीन भी थे मेहता ।
गुजरती कविता के आदी कवि कहलाते हैं संत नरसिंह मेहता !
उनकी सुप्रसिद्ध कृतियों में ," वैष्णवजन तो तेने कहीये , जे पीड पराई जाणे रे "
महात्मा गांधी का सबसे प्रिय भजन था
जिसे पूरा जगत आज पहचानता है ।
अपनी पुत्री कुंवर बाई के विवाह पर कहते हैं , स्वयं श्री कृष्ण भगवान् ने सारा दायित्त्व सम्हाल कर , नरसिंह को चिंता मुक्त किया था ।
जिस पे स्व निराला जी की तरह नरसिंह जैसे पिता ने भी पुत्री के लिए शाश्वत कविता लिखी ,
" कुंवर बाई नू मामेरू " !
' शामळ्'शा नो विवाह ' , ' हुँडी ' , ' सुदामा चरित ' , ये सारी रचनाएं ,
प्रसंग को हमारी आंखों के सामने जीवित कर दे ऐसी हैं ।
सशक्त शैली में लिखे गए अमर साहित्य के विलक्षण पन्ने हैं !
नरसिहं मेहता को स्वयं शंकर भगवान् ने कृपा कर के ,
श्री कृष्ण व राधा जी की रास लीला के दर्शन करवाए थे ।
कहते हैं, मेहता , मशाल थामे , दूर से, इस भव्य रास लीला को निहार रहे थे और ऐसे खो गए , दीव्य आनंद सरिता में बह गए के जब , मशाल की अग्नि से हाथ , जलने लगा तभी , भान हुआ
और वे आनद महासागर से बाहर आए ।
मेहता नित्य स्नान के लिए दामोदर कुँड , भजन गाते हुए जाते थे ।
यही दामोदर कुँड, यमुना महारानी के जल की तरह पावन माना जाता है।
एक और कथा है के राजा माँडलिक के आवास की रानियाँ , अकसर मेहता के भजन से आकृष्ट होकर , मेहता के भजन - कीर्तन में सम्मिलित होतीं थीं। अब , राजा जी को आ गया क्रोध ! उन्होंने नरसिंह की भक्ति को परखने की चेष्टा करते हुए , राजसी मन्दिर में बिराजमान श्री कृष्ण जी की मूर्ति को सुंदर पुष्प माला पहनाते हुए, मेहता को आदेश किया ,
" मेहता जी, आपकी भक्ति सच्ची हो तब ,
श्री कृष्ण के गले में पहराया पुष्प हार ,
आप के गले की शोभा बढ़ा दे
तब हम आपकी भक्ति का लोहा मान जायेंगे ! "
ईश्वर इस बार भी भक्त की लाज बचाने ,
अपनी माया का प्रदर्शन करने से नही चुके
पूरा नागर समाज जिसके मेहता भी थे, चकित हो कर देखता रहा,
जब प्रभू के गले से फूलों की माला , आँखें बंद कर ,
सजल नयन से , भजन गाते हुए , नरसिंह के गले में दीखलाई दी !
ये , करिश्मा देखकर राजा माँडलिक ,
नरसिंह के पैरों पर गिर पड़े और उनके भक्त हो गए !
नरसिंह के भजन आप यहाँ भी सुन सकेँगेँ ....
shttp://www।raaga.com/channels/gujarati/moviedetail.asp?mid=GJ000037