अप्रेल ४ को इस वर्ष ये हलके गुलाबी रंग के फूल अमरीकी गणतंत्र के प्रमुख शहर , वोशीँगटन डी सी को अपनी छटा से आवृत कर देँगेँ और कई दूसरे शहरोँ से पर्यटक इन फूलोँ के खिले हुए पुष्प गुच्छोँ का नज़ारा देखने यात्रा कर, राजधानी तक आ पहुँचेँगेँ।
देखिये ये लिंक्स :
http://www.nationalcherryblossomfestival.org/cms/index.php?id=404
http://www.washingtonpost.com/wp-dyn/content/article/2009/03/20/AR2009032000883.html
चेरी के फूलों को "ब्लोसम" कहते हैं और जिन फूल के खिलने के बाद उस पेड़ पर फल नही लगते हों उन्हें " ब्लूम " कहते हैं ।
चेरी के फूलों को "ब्लोसम" कहते हैं और जिन फूल के खिलने के बाद उस पेड़ पर फल नही लगते हों उन्हें " ब्लूम " कहते हैं ।
चीन में चेरी ब्लोसम को स्त्री की सुन्दरता के समकक्ष देखा गया है और जापानी सभ्यता में चेरी ब्लोसम को जीवन में निहित ,
" अपूर्णता में सौन्दर्य " के समकक्ष रखा गया है -
कई चित्र चेरी ब्लोसम की सुन्दरता से सम्बंधित कलाकारों ने रचे हैं ।
ये इतिहास देखें :
जापान ने अमरीका को ३,०२० चेरी ब्लोसम के वृक्ष , मैत्री तथा सौहार्द्र की भावना से दिए थे । जिन्हें मेनहेट्टन , न्यू - योर्क प्राँत मेँ साकुरा पार्क उध्यान मेँ सबसे पहले रोपा गया था ।
फिर वे राजधानी मेँ भी स्थापित हो गये और अब यह अप्रैल माह मेँ राजधानी आनेवाले पर्यटकोँ के लिए एक प्रमुख आकर्षण बन गये हैँ ।
http://www.dcpages.com/Tourism/Cherry_Blossoms/
http://www.dcpages.com/Tourism/Cherry_Blossoms/
पतंग उडाने से लेकर, विविध साँस्कृतिक झांकी लिए परेड भी अब , चेरी ब्लोसम फेस्टिवल का हिस्सा बन चुके हैं ।
मेकोंन जार्जिया, में ३००,००० चेरी के पेड़ हैं ।
कई दूसरे प्रांत , जैसे न्यू जर्सी , ब्लूम फिल्ड, ब्रुक लेंन , न्यू यार्क में भी चेरी ब्लोसम फेस्टिवल मनाते हैं मगर राजधानी वोशीँगटन डी सी ( डी सी शब्द = डीस्ट्रीक ओफ कोलम्बिया के लिये प्रयुक्त होता है )
ही , चेरी ब्लोसम फेस्टिवल का प्रमुख आकर्षण बना हुआ है ।
कई सैलानी इन फूलों की सुन्दरता निहारने आयेंगें ।
राजधानी में आजकल , राष्ट्रपति मौजूद नहीं हैं ।
राष्ट्रपति बराक ओबामा अपनी पत्नी मिशेल ओबामा के साथ
लन्दन गए हुए हैं जहाँ पर २० देशों की मंत्रणा जारी है ।
आर्थिक बदहाली से सभी देश परेशान हैं और हरेक देश अपनी अपनी समृध्धि तथा अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने की जद्दोजहद में ,
व्यस्त हैं ।
हालत शीघ्र ही सुधरे , यही आशा है ।
...हालत सुधरेंगे तब ही सुधरेंगें मगर तब तक
...हालत सुधरेंगे तब ही सुधरेंगें मगर तब तक
हम इन सुंदर फूलों को ही निहार लें ...
कुदरत जिन फूलोँ मेँ बेतहाशा मुस्कुराती है वे देखिये ना, ऋतु अनुसार
अपने आप खिले हुए हैँ !
- जापान ने अमरीका पे द्वीतिय विश्व युध्ध के दौरान आक्रमण किया और अमरीका ने एटम बम फेँक कर नागासाकी और हिरोशिमा शहरोँ को ध्वस्त किया और जापान ने हार मान ली थी
अब आज ये स्थिति है कि , जापानी उध्योगपति , अमरीकी अर्थ व्यव्स्था का भरपूर लाभ ले रहे हैँ
निकास के जरीये दोनोँ देश, करीब आ गये हैँ
युध्ध : पृष्ठभूमि मेँ रह गया है -
और फूल सदा की तरह , आज भी खिल रहे हैँ
- लावण्या
23 comments:
और कृतघ्नता की यह पराकाष्ठा तो देखिये की अमेरिका ने जापान को बदले में क्या दिया ?
चाहे जो भी हो आपने बहुत रोचक और जानने योग्य जानकारी दी है ,आपको धन्यवाद .
बहुत ही रोचक जानकारी. संभवतः चेर्री ब्लोस्सोम भारतीय जलवायु में जीवित न रहें.
चेरी ब्लोसम की कहानी वाकई बडी रोचक है।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
आपने सच कहा...अप्रेल माह में इन फूलों की छटा की किसी को भी मोह लेती है...अवसाद के इस दौर में खिलते मुस्कुराते फूलों की छटा दिखा कर बहुत राहत महसूस करवाई है आपने...शुक्रिया.
नीरज
हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर पोस्ट और लाजवाब प्रस्तुति. शुभकामनाएं.
रामराम.
सुंदर प्रस्तुति। हमारी जानकारी बढ़ी और चित्र भी काफी अच्छे लगे।
दिलचस्प...
चेरी ब्लोसम के बारे मे जानकारी काफ़ी रोचक और नई लगी ।
चेरी ब्लोसम तो नही पर आजकल यहाँ पर भी काफ़ी फूल खिल रहे है ।
बहुत ही रोचक जानकारी...
हम रोज चेरी ब्लोसम नाम की बूट पालिश का उपयोग करते हैं. पर इतिहास आज जाना।
aaj kal Dr. Dharmaveer bharati ki jo kitaab padh rahi hun, us me aksar ye cherry ki daal ka zikra aa jata hai, soch rahi thi kalpana kaise karun is daal ki..aj chitra lagne ka shukriya
aur han aap chitra bahut achchhe lagaati hai.n aaj kal yeshu aur Krishna vala chitra mera waal paper tha aaj ye pahala wala chitra ho jayega
pranaam
चाहे जितना भी आर्थिक मंदी का भीषण नृत्य हो जाये, फ़ूलों की मेहक और मुस्कुराहटों पर कोई मंदी नही आयेगी.
धन्यवाद
अरविन्द मिश्रा जी के कथन से सहमत हूँ....
shukriya is jaankari ke liye.
इतने सुन्दर फूल! और इससे पहले हम चेरी ब्लॉसम को शू-पॉलिश से ही आइडेण्टीफाई करते थे!
आपकी पोस्ट से ज्ञानवर्धन हुआ।
लावण्यम् जी हमारे यहां भी अब चारो ओर खुब सुरत फ़ुल ओर फ़ुलो के पेड ही पेड दिखेगे, आप ने बहुत अच्छी जानकारी दी, शायद कुछ लोगो को पता ना हो कि हमारी तरह से ही इन पेड पोधो मै भी पुलिंग ओर स्त्रिलिंग होते है, खुशवु, फ़ल, ओर नशा सिर्फ़ स्त्रिलिंग वाले पेड पोधो मै ही होता है.
आप का बहुत बहुत धन्यवाद
सकूरा को स्प्रिंग किगु भी कहते है..जापान में प्रकृति और इस पेड़ की खूबसूरती से प्रेरित होकर हाइकु की रचना होती है... हिन्दी मे इसे पदम भी कहा जाता है सो हमने हाइकु लिखते समय इसे 'त्रिपदम' नाम दे दिया.
http://meenakshi-meenu.blogspot.com/2007/12/blog-post_12.html
Lavanya Di
Very interesting information.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
निकास के जरीये दोनोँ देश, करीब आ गये हैँ
युध्ध : पृष्ठभूमि मेँ रह गया है -
और फूल सदा की तरह , आज भी खिल रहे हैँ
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कितनी अच्छी बात लिखी है आप ने अंत में..युद्ध पृष्ठभूमि में रह गया.
यही होना चाहिये..गए वक़्त को भूल आगे के लिए दोस्ती के मजबूत आधार बनाए चाहिये..ताकि अगली पीढी इन फूलों की तरह खिलती रहे.
रोचक जानकारी. ये फूल सदा खिलते रहें.
आप सभी की टीप्पणियोँ का और मेरे जाल घर तक आने के लिये
बहुत बहुत आभार !
स स्नेह,
- लावण्या
लावण्यम्` ~अन्तर्मन्`ji,
बहुत ही सुंदर पोस्ट और लाजवाब प्रस्तुति. शुभकामनाएं.
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