http://kushkikalam.blogspot.com/2009/02/blog-post_25.html
आज कोफी का कप यहाँ ले आए हैं और आप को कोफी के पीछे छिपी , कोफी की दास्ताँ को उजागर कर दें ...
तो शुरू करें ?
चलिए , एक कप कोफी के साथ ही शुरू करते हैं ...
अजी , चाय भी ले लीजिये या शरबत , या सादा जल ही सही ....
कल्डी नामका चरवाहा , एक शाम , घर जाते समय , हैरान हो गया एक अजीब नज़ारा देखकर जब उसकी बकरी नाच रही थी !! :)
...अजीब हरकतें कर रही थी पहाडी रास्तों पर ...
और जब उसने बकरी को एक पौधे से लाल रंग के बेर जैसे दानो को खाते हुए देखा तब , कल्डी ने भी वे खाए और आहा !
उसे भी ताजगी मिली -- यही थे कोफी के दाने !! --
इथीओपिया की बात है ये --
जहाँ से सूफी संतों और पादरियों ने इस पेय को अपनाया ताकि वे निद्रा का त्याग कर सके और ईश्वर भक्ति में समय दे सके --
९ वी शताब्दी कोफी की खोज निर्धारित करने की तिथि बतलाती है कोफी के पेय को अरब व्यापारी अपने कारवाँ में साथ ले कर आगे बढे और अरब देशों से कोफी , यूरोप और मध्य एशिया और भारत तक फ़ैल गयी ।
यामीन में भी कोफी की पैदाइश होती है ।
मोक्का कोफी का नाम इसी यामिनी कोफी से पहचान में आया !
देखिये लिंक : —
Yemeni [1]coffee Mocha।
योरोप में इटली शहर में , कोफी पीने के रेस्तरां खुले --
नीचे की तस्वीर देखिये --
आज ऐसे कोफी रेस्तरां या कोफी हाउस , दुनिया भर में , मिल जायेंगे --
Colombian
Costa Rican
Hawaiian Kona
Ethiopian Sidamo
Guatemala हेहेतेनांगो
Jamaican Blue Mountain
Java
Kenyan
Panama
Sumatra
Indonesia।
Sulawesi तोराजा कलोस्सी
Tanzania पाबेर्री
Uganda- रोबुस्ता काफ़ी ,
ये सारे कोफी उत्पादक स्थल हैं । इस नक्शे में , दुनिया में जहाँ कोफी उगाई जाती है उसका हरे रंग से उल्लेख किया गया है --
भारत में कर्णाटक के पहाडी इलाकों में चिकमंगलूर में कोफी की पैदाइश होती है और मैसूर कोफी बड़े चाव से पी जाती है --
यमन कोफी को " अरेबिया फीलिक्स " कहते हैं ।
आज कोफी कल्चर , ग्लोबल कल्चर बन गया है
- विश्व को कोफी देनेवाले अरब देशों और आफ्रीकी देशों में भी अमरीकी व्यापारी कल्चर घुसपैठ कर रहा है !
मोका कोफी शब्द " अल मखा " शब्द से आया है
( शब्दोँ का सफर के अजित भाई के लिये :)
http://shabdavali.blogspot.com/2009/03/blog-post_04.html
कोफी के निद्रा विरोधक गुण को पहले तो ईस्लामी और ख्रिस्ती धर्म का समझकर दोनोँ ही धर्म के अनुयायीओँ ने कोफी का विरोध किया था परन्तु कोफी के चाहक वर्ग ने कोफी को अपना लिया और खूब प्रसार किया --
आज पस्चिम की देन हैँ स्टारबक्स,सीयाटल, बीग्बी कोफी, हडसन, एस्प्रेसो हाउस वगैरह --
काफी हाउस "पब" की तरह लोगोँ के मिलने की एक जगह हो गई है -
भारत में कोफी का आगमन किस तरह हुआ ? इसकी रोचक कथा है -
यामिनी सूफी संत बाबा बुदान , ‘बाबा ’(हज़रात शैक जमेर अल्लाह मज़राबी ) .यमन से अल -मखा से, पश्चिम घाट के परबत चिकमंगलूर , कर्णाटक प्रांत , भारत में , कोफी के दाने अपने साथ , लेकर आए थे और उन्हें रोप कर कोफी को भारत की जमीन में , उगा दिया था !
१६७० की बात है और आज मैसूर कोफी भारत में ही नही भारत के बाहर भी सुप्रसिध्ध है
उन्ही के नाम से " बाबा बदन गिरी हिल्ज़ " और बाबा बदन गिरी कोफी भी प्रसिद्ध है --
केफ्फे इटालियन शब्द है जो , काहवा का बिगडा रूप है - टर्की शब्द बदल कर " खावे " बना
जो " काहवा - अल बुन " शब्द जो अरब शब्द है उसके करीब है --
जिसका अर्थ होता है " कोफी बीन का रस - " काहवा - अल बुन " --
यमन के मक्खा बंदरगाह से चली कोफी , आज मोका कोफी के नाम से मशहूर है !!
किव हाँ ने इस्तांबुल में १४७१ में सबसे पहला " कोफी हाउस " खोला था और बाद में यूरोप के इटली में कई काफी हाउस खुल गए वहाँ से फ्रांस में भी इसका प्रचलन हुआ जहाँ सार्त्र और सिमोन दे बेऔवोइर और असंख्य चित्रकार, कवि , दार्शनिक , मनोवैज्ञानिक १६५४ के बाद मिलने लगे और दुनिया को नए नए विचार देने लगे ---
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और डच ईस्ट इंडिया कंपनी , ने काफ़ी को १६ वी सदी में इंग्लैंड में दाखिल किया जहाँ से कोफी का साम्राज्य पूरे विश्व में , अन्ग्र्ज़ सता के साथ साथ फैला गया
काफ़ी हाउस मूलत अरब और तुर्क्स ही चालाया करते थे ।
काफ़ी : की बात है और मक्का व मदीना (सौदी अरेबिया ),से कैरो (ईजिप्ट ), दमस्कुस (सिरिया ), बगदाद (इराक ) इस्तांबुल (तुर्की ) सभी जगह कोफी का चलन है --
अमरीका ने " बोस्टन टी पार्टी " में अँगरेज़ सता का विरोध प्रदर्शन पूर्व से निर्यात की हुई महँगी चाय को बोस्टन शहर के पास समुद्र में फेंक कर , चाय का निषेध प्रर्दशित किया था और आज कहीं कहीं चाय घर दीख जाते हैं परन्तु अमेरीकी कोफी पीना ही ज्यादा पसंद करते हैं ! --
अब बताएं , आप को चाय पसंद है या कोफी ?
या और ही कोई पेय आपको ज्यादा प्रिय है ?
आशा है कोफी का रोमांचक सफर आपको पसंद आयेगा .......
- लावण्या
26 comments:
लावण्या जी, काफी के बारे में इतनी जानकारी के लिये धन्यवाद, सारा इतिहास पता चल गया।
कॉफी इथोपिया से शुरु हुई और बाकी कॉफी के विषय में सारी जानकारी बहुत रोचक रही-बहुत बहुत आभार इस ज्ञानवर्धक आलेख का.
कांफी क बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी है वैसे कांफी का इतिहास काफी पुराना है इसका उत्पादन कई देशो में किया जाता है . मध्यप्रदेश में कुछ इसे क्षेत्र है जहाँ कांफी उगाई जाती है . आभार
इस मामले में मैं पूरा अमरीकन हूँ, चाय नहीं पीता कॉफी कम से कम पाँच बार पी जाता हूँ।
कॉफी के बारे में सुंदर जानकारी दी है आपने।
काफी वृत्तांत काफी रोचक और जानकारी परक है ! मानवता का इतिहास ऐसे स्फूर्तिदायी पेयों से भरा पडा है -काफे चाय से लेकर सोमरस तक ! शुक्रिया !
लाजवाब काफ़ीयां पिलवा दी आज आपने शुरु से आखिर तक.
आपकी कलम से इस काफ़ी का स्वाद बहुत बढ गया. हम चाय पीते हैं पर अब कोशीश करता हूं कि काफ़ी बना कर पियुं. [बनाकर पीने से कुछ गलत मतलब ना निकाला जाये. ताई आऊट आफ़ मूड नही बल्कि आऊट आफ़ स्टेशन है.:)]
रामराम.
rochak jankari shukran
आप की ज़बानी कॉफ़ी का सफ़र ये बहुत पसन्द आया। वाह!
काफी के बारे में अच्छी जानकारी उपलब्ध करायी ... आभार।
काफी के बारे में बहुत बढ़िया जानकारी मिली...चाय और काफी लगता है अचानक खोज ली गयी जो आज बहुत लोकप्रिय है शुक्रिया बताने का
वाह! बहुत दिनो से कॉफी के बारे में जानना चाह रहा था आज अपने बता दिया.. मज़ा आ गया.. बहुत बहुत आभार आपका.
बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी और रोचक भी ..धन्यवाद.
खूबसूरत सफ़र काफ़ी के साथ............रोचत, तथ्य से भारी जानकारी
आपका लिखने का अंदाज़ साथ साथ फोटो ऐक सुनहरे सफ़र की तरह लगता है. कब शुरुआत और कब अंत होता है पता नही चलता
बहुत बढ़िया! एक अच्छा कप कॉफी मिल जाये तो दिन बन जाता है।
स्टिम्युलेटिंग पोस्ट!
आप तो सच में ज्ञान की खान हैं...कितनी आसानी से और सरलता से आपने काफी के बारे में वो सब कुछ बता दिया जिसका कमसे कम हमें तो पता नहीं था...शुक्रिया हमारे ज्ञान को भी बढ़ाने के लिए.
नीरज
बहुत उपयोगी जानकारी.मैंने साइंस रिपोर्टर में भी पढ़ी थी कॉफी की कहानी .दुबारा याद हो आई. बहुत बधाई आपको.
इसी बात पर एक कप काफी हमारे साथ हो जाये !
आप का धन्यवाद इस जानकारी के लिये, मेने यह काफ़ी पहले पढ था, क्योकि हमारे यहां भी गोरे काफ़ी बहुत पीते है, मेरे बच्चे भी सप्ताह मै एक बार काफ़ी पीते है, ओर हमारे यहां तो काफ़ी बहुत ही तरह कि मिलती है, ओर इसे बनाने के भी अलग अलग ढंग है, मुझे तो अपनी देशी चाय दुध वाली बहुत पसंद है, ओर काफ़ी बेमन से पीता हूं, वेसे चाय काफ़ी से बहुत ज्यादा तेज है.
आप का धन्यवाद
लावण्या जी, काफी से ज़्यादा स्वादिष्ट इस जानकारीपूर्ण लेख के लिए धन्यवाद!
लावण्या दी
चाह में कोई चाह नहीं , काफी ही बस काफी है |
अत्यंत रसप्रद जानकारी |
धन्यवाद |
हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए
लावण्या दी ( दी लिख रहा हूं, क्षमा करेंगे)
काफ़ी का इतना भक्त हूं कि दिन में दो तीन बार ज़रूरी और बाकी शौक से पीता हूं, चाय अब तक नहीं पी, क्योकि मां से बचपन में वादा किया था.आज मां नही है, मगर जब भी काफ़ी पीता हूं याद आ जाती है मां की.
आपके कॊफ़ी पर इतनी सारी अच्छी, रोचक जानकारी के लिये धन्यवाद, क्योंकि अब अलग मजा आयेगा जब शाम को दोबारा कॊफ़ी पियूंगा.
एक बात और,
यहां अलग अलग जगह की कॊफ़ी का स्वाद , अलग अलग व्यक्तियों द्वारा बनाई गयी कॊफ़ी का स्वाद, फ़िल्टर और इन्स्टॆंट कॊफ़ी का शुद्ध और चिकोरी मिली कॊफ़ी का फ़्लेवर सभी आत्मसात हो गये है.
यहां तक कि दुबाई में पी हुई कॊफ़ी और युरोप में हर जगह पी हुई कॊफ़ी का टेस्ट भी चुस्की लेने के
बाद समझ में आने लगा है. आप की पोस्ट नें फ़िर तलब जगा दी...
हम तो कॉफी लवर हैं....आज तक पीते आ रहे थे!थोडी बहुत जानकारी थी लेकिन आपने तो पूरी जानकारी दे दी! शुक्रिया ....
jaankaari ka shukriya
आप सभी का बहुत आभार तथा स्नेहपूर्ण टीप्पणियोँ मेरे श्रम को फूल सा हल्का कर देतीँ हैँ :)
So thanx a million ....
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