गोविँद गोकुल आयो ..
मन मेरा बन गया सखी री सुँदर वृँदावन .
कान्हा की नन्ही ऊँगली पर नाचे गोवर्धन "
राधा नाचे कृष्ण नाचे, नाचे गोपी जन !
मन मेरा बन गया सखी री सुँदर वृँदावन ।
श्याम सांवरे , राधा गोरी , जैसे बादल बिजली !
जोड़ी जुगल लिए गोपी दल , कुञ्ज गलिन से निकली ,
खड़े कदम्ब की छांह , बांह में बांह भरे मोहन !
राधा नाचे कृष्ण नाचे , नाचे गोपी जन !
वही द्वारिकाधीश सखी री , वही नन्द के नंदन !
एक हाथ में मुरली सोहे , दूजे चक्र सुदर्शन !
कान्हा की नन्ही ऊँगली पर नाचे गोवर्धन !
राधा नाचे कृष्ण नाचे , नाचे गोपी जन
जमुना जल में लहरें नाचें , लहरों पर शशि छाया !
मुरली पर अंगुलियाँ नाचें , उँगलियों पर माया !
नाचें गैय्याँ , छम छम छैँय्याँ , नाच रहा मधु - बन !
राधा नाचे कृष्ण नाचे , नाचे गोपी जन !
मन मेरा बन गया सखी री सुँदर वृँदावन .
गीत रचना : पँडित नरेन्द्र शर्मा
जब हम छोटे थे तब पता नहीँ था कि
मेरे पापा जो हमेँ इतना प्यार करते थे
वे एक असाधारण प्रतिभाशाली व्यक्ति हैँ
जिन्होँने अपने कीर्तिमान
अपने आप बनाए -
और वही पापा जी,
हमेँ अपनी नरम हथेलियोँ से , ताली बजाकर गीत सुनाते ....
और हमारे पापा ,उनकी ही कविता गाते हुए हमेँ नृत्य करता देखकर मुस्कुराते थे
"राधा नाचे कृष्ण नाचे,
नाचे गोपी जन !
मन मेरा बन गया सखी री सुँदर वृँदावन .
.कान्हा की नन्ही ऊँगली पर नाचे गोवर्धन "
ये गीत पापा जी जब गाया करते थे तब
शायद मेरी ऊम्र ४ या ५ बरस की रही होगी..............
ये लिंक देखियेगा ......radionama पर
http://radionama.blogspot.com/2007/09/blog-post_8214.html
29 comments:
लावण्या जी, गीत बहुत मनभावन है और चित्र भी बहुत अच्छे लगे. वह बच्ची तो आप ही हैं न, लावण्या जी?
जी हाँ
अनुराग भाई,
ये चित्र जब मैँ
३ साल की थी तब का है ! :-)
बहुत सुंदर गीत है. "बचपन के दिन भी क्या दिन थे..." यह गीत हमें अनायास याद आ रहा है. आभार.
श्री कृष्ण और बचपन के मिलाप से कविता में सौंदर्य वृद्धि होती है, बधाई।
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---ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
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बहुत सुंदर गीत है.....और हां लावण्या जी , आपके बचपन की फोटो भी बहुत ही प्यारी है।
मनोरम तस्वीरें और गीत तो...
जमुना जल में लहरें नाचें , लहरों पर शशि छाया !
मुरली पर अंगुलियाँ नाचें , उँगलियों पर माया !
बहुत ही सुंदर गीत!
चित्र इतने मनभावन हैं की बस देखती ही जा रही हूँ..
बचपन में लौट जाना कितना सुखद होता है.
अब भी इन गीतों पर झूम जाती होंगी न आप??
लौट आता होगा बचपन!सच !!!!!यादें हैं तो हम जब चाहे बिता समय जी लेते हैं..पा लेते हैं उन मधुर अनुभूतियों को वापस...
P.S.-[तीन साल की लावण्या और अब की लावन्या जी की आंखों में वही सरलता ,निश्चलता कितनी साफ़ दिखती है.]
bahut hi acchi geet hai...
कितना भावपूर्ण गीत है दी....! सच जब हम छोटे होते हैं तब हम नही जानते कि पापा हमें कितना प्यार करते हैं....!
आपके फोटू ने मोह लिया !
३ सल् की आप ....गजब है....सच में कई यादे हमें रिचार्ज करती रहती है.....
बहुत सुन्दर गीत, साथ मे मनोहारी चित्र और आपका बाल्यरुप सब कुछ अति लुभायमान.
बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
राधा नाचे कृष्ण नाचे , नाचे गोपी जन!
मन मेरा बन गया सखी री सुँदर वृँदावन!!
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ये पंक्तियां तो हरेराम हरेराम वाले मन्त्र की तरह बारम्बार दोहराने का मन हो रहा है।
पण्डितजी ने सब बहुत विलक्षण लिखा है!
लावण्या जी,बहुत सुंदर गीत लगा, ओर चित्र भी बहुत प्यारा लगा.
धन्यवाद
आपकी हर पोस्ट की तरह लाजवाब! इस पोस्ट में ख़ास यादगार:
- अत्यंत सुंदर गीत.
- आपकी तीन साल वाली तस्वीर.
बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट. अगर हो सके तो आगे की कुछ पोस्ट में ऐसी कुछ और स्कूल, कॉलेज की भी फोटो भी लगाइए.
रोम रोम रोमांचित हो गया......क्या कहूँ........
बचपन की बहुत मीठी यादें हैं यह ..बहुत सुंदर
मनमोहन ! मनभावन !!
मजा आ गया पढ़ कर, अभी अभी भोजन के साथ टीवी पर कृष्णा को देख कर आ रहे हैं नन्द बाबा को गुलेल सिखाने के बहाने उन से गोपियों की चार मटकी फुड़वा दी, बाकी खुद फोड़ दी। फिर जसोदा जी से नन्द जी को डाँट पड़वा दी और दोनों भाई मजा लेते रहे।
सुंदर तस्वीरें।
वाह..वाह...वा...बहुत मन भावन प्रस्तुति...चित्र और कविता...अद्वितीय...नमन आपको...
नीरज
Lavanya Di
Wonderful and pleasant!!!!!
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
लावाण्या जी मेरे तकनीकि बलाग पर एक बार अवश्य पधारें
बहुत बढ़िया हृदय अभिव्यक्ति
-----नयी प्रविष्टि
आपके ब्लॉग का अपना SMS चैनल बनायें
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आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
बहुत ख़ूब
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आप भारत का गौरव तिरंगा गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने ब्लॉग पर लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
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लावण्या दी, मधुर गीत और मनभावन चित्रों से सजे आपके आलेख को पढ़कर हमारा मन भी वृंदावन हो गया और मन-मयूर झूम उठा। आप जिन चित्रों को प्रस्तुत करती हैं वे सभी सुंदर ही होते हैं, लेकिन आपके बचपन का चित्र देखकर आनंद आ गया।
मैं अल्पना जी की बात से सहमत हूं. ये बताने की , या पुष्टि करने जैसी बात नही थी कि वह चित्र लावण्याजी का है या नही?
आज भी वही आंखें, वही पाकीज़गी, सादगी, और प्रेममयी भाव आसानी से पढे़ जा सकते है.
चित्र तो बेहतरीन हैं ही, कविता की गहराई और साहित्यिक वज्न मनमोहक है.
bahut sunder,mail pt.ji ka chahane wala hun so bahut achha laga
gobind par mere do bhazan dekhne ke liyewww. katha kavita@blospot.com dekhen
shyamskha shyam
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