आज थॉमस फ्रीडमेन का आलेख पढ़ कर " मदर इंडिया " फ़िल्म की याद हो आई -- आप भी इसे देखें : ~~~
जी हाँ येही फ़िल्म याद आ रही है आज मुझे ...
और नर्गिस जी का रोल ॥
जहाँ वे अपने पति के जाने के बाद , ३ बेटों को जातां से, कड़ी मेहनत कर के बड़ा करतीं है ...
और जैसा की समाज में हमेशा होता है अच्छाई और बुराई हमेशा साथ दीखाई देती है, वहाँ जमींदारों के जुल्म किसान पर कहर बरपाते हैं। खेत में उगा अनाज, ब्याज देने में छीन लिया जाता है -
सुनील दत्त जी सबसे छोटे पुत्र को माँ , गोली मार देती है क्यूँकि वे डाकू बन जाते हैँ और निर्दोषोँ पर जुल्म ढाते हैँ !
ये फ़िल्म का क्लाइमेक्स है --
अगर बच्चे बुराई की पराकाष्टा पर पहुँच जाएँ , तब , एक माँ के सामने दूसरा विकल्प नहीं रहता --
और माँ , चंडिका का रूप भी धर लेती है -
ये मधर इँडिया फिल्म का सबलीमल मेसेज था !
आज अगर इस्लाम धर्म के अनुयायी , मासूम और निर्दोष के खून की होली खेलने लगे हैं तब क्या जो सही अर्थ में , खुदा की बंदगी करते हैं , उन्हें , अपने ही लोगों में से , जो सच्चे खुदा के अनुयायी हैं , उन्हें , जो मासूमोँ का खून बहाते हैँ उनका , विरोध नही करना चाहीये ?
बेजी के ब्लॉग पर , आतंकी इमरान की जर्नलिस्ट से हुई बातचीत पहली बार सुन कर इतना अवश्य पता चला के, आतंकी बनते हैं उन्हें , क्या क्या भारत के विरोध में सीखाया जाता है और कैसे कैसे , मुद्दे इन आतंकियों के जहाँ में , बारूद की तरह जल रहे हैं --
(१) एक मुद्दा है बाबरी मस्जिद का -
अब उन्हें ये भी पूछिए के बाबर हिन्दुस्तान आया था और मस्जिद बना ने के लिए , कई मंदिरों को तोड़ कर ही मन्दिर की जगह मस्जिदें बनाईं गईं --
क्यूं ना इन विवादीत जगहों पर , अस्पताल बनाए ?
जहाँ हर कॉम के इंसानों का एक सा इलाज हो ?
विवाद की जड़ों को ही मिटा दिया जाए ?
मुझे लगता है ये मेरा मासूम तर्क है
-- क्यूंकि अगर किसी को मज़हब का नाम लेकर सिर्फ़ नफरत ही फैलानी है और शांति और अमन चैन की बात को खून की होली में तब्दील करना है उन्हें बाबरी मस्जिद का मुद्ददा ख़तम होते ही और कोई , तकलीफ शुरू हो जायेगी ! है ना ?
( २ ) दूसरी बात ये आतंकी इमरान कहे जा रहा था के उनकी मतलब मुस्लिम कौम के लोगों के साथ हो भेदभाव और बुरा सलूक हो रहा है - उनके बच्चे भूखे हैं !
नौजवानोँ को रोजगार नहीँ मिल रहा इत्यादी --
ये अशाँति और क्रोध युवा पीढी मेँ आक्रोश की हद्द तक शायद हर कौम के नवयुवकोँ मेँ देखा जा सकता है जिसका ये तो मतलब नहीँ कि आप A.K. ४७ राईफलेँ लेकर के और बम लेकर के निर्दोष आम जनता के सभी को भून दो !
गुस्से की आग मेँ हर किसी को जला कर राख कर दो ! :-(((((
बदलाव लाने के लिये शिक्षित होना भी जरुरी है -
हुनर सीखना जरुरी
है कायदे का पालन करना जरुरी है
ना के मनमानी और खून खराबा करना और सिर्फ आपके धर्म ग्रँथ को ही श्रेष्ठ मानते हुए , गलत मतलब निकालना !
- भगवद गीता हिन्दूओँ के लिये पवित्र ग्रँथ है
- वह आपको सत्कर्म की प्रेरणा देता है -
अगर हिन्दू युवा ऐसी तबाही पाकिस्तान या कोई ईस्लाम पालन करने वाले प्रदेश मेँ घुसकर ऐसी खूनखराबी और तबाही करेँ तब मैँ उसका भी ऐसे ही कडे शब्दोँ मेँ विरोध करुँगी -
क्या पूरा पाकिस्तान और हरेक ईस्लाम धर्म का अनुयायी ऐसे आतँकी हमले को सही मानता है ? -
- ईस्लाम पाक है - खुदा का करम है -
तब जो स्मगलीँग करते हैँ, व्याभिचारी हैँ शराब, वेश्यावृति करते हैँ -
ऐसे लोग कैसे सच्चे ईस्लाम के रहनुमा कहलाते हैँ ?
बुरा काम खुदा की नज़रोँ मेँ बुरा ही रहेगा -
चाहे जो भी इन्सान उसे करेगा -
खुदा के कहर से डरो --
मासूम ज़िँदगी से खेल बँद करो -
आज के इसी "मुँबई" शहर मेँ सलमान खान, आमीर खान और शाहरुख खान करोडोँ के मालिक हैँ !
- शबाना आज़मी, प्रेम आज़मी जग विख्यात हैँ और आराम से रहते हैँ जावेद अख्तर साहब के गाने हिन्दुस्तान का हरेक बच्चा गाता है !
उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ साहब की शहनाई को हरेक भारतवासी कृष्ण कनैया की मुरली की तरह दीव्य मानता है !
उन्हेँ सभी भारतवासी प्यार करते हैँ -
आतँकीयोँ को इनकी " सक्सेस स्टोरी " क्यूँ नहीँ दीखाई देती ?
वे भी भारत के सफल नागरिक हैँ - जो अपने बलबूते पर सफल हुए हैँ -
अब्दुल कलाम जैसे वैज्ञानिक राष्ट्रपति बने हैँ भारत मेँ !
-- उनकी सफलता का श्रेय किसे देँ ?
कश्मीर का एक और हिस्सा अगर इन आतँकीयोँ को मिल जायेगा तब क्या वे सँतुष्ट हो जायेँगेँ ? जी नहीँ !!!
जिन्हेँ अपना राज ही चलाना है और अपनी मरजी चलानी है उन्हेँ किसी करवट चैन नहीँ आता -
अमनो चैन उन्हेँ नहीँ चाहीये -
सिर्फ लडना झघडना और खून खराबा और तबाही करना ही उन्हेँ पसँद है -
धर्म की आड लेकर या और कोई ऊसूल को आगे कर फ़िर जंग !!
- इन्सान इन्सान के साथ शाँति से रहना सीखे तभी एक सभ्य और सुसँकृत समाज की नीँव पडती है
- अन्यथा मानव का इतिहास , प्रगति नहीँ अधोगति की ओर अग्रसर होता है जहाँ हम उसे जाने नहीँ देँग़ेँ --
ध स्पिरीट ओफ मुम्बई अन्ड इन्डिया वील बी स्ट्रोँगर !!!
18 comments:
Lavanya Di
Very serious, thoght provoking and burning subject. Wonderful pewsentation.
Harshad Jangla
Atlanta, USA
मदर इंडिया के बहाने कई गंभीर सवाल उठाए हैं लावण्यादी...
बहुत अच्छी पोस्ट ....
बहुत शुक्रिया लावण्या जी. बिल्कुल सही सवाल उठाये हैं आपने. अपनी एयरलाइन में खुले आम शराब बांटने वाले, निर्दोषों के हत्यारे, तस्कर, चोर, डाकू, व्यभिचारी लोग बहुत दिनों तक अपने कुकर्मों को इस्लाम की आड़ में छिपा नहीं पायेंगे. जो आपने आज कहा है वह एक न एक दिन सारी दुनिया (मुस्लिम और गैर-मुस्लिम सभी) को साफ़-साफ़ दिख जायेगा की इन मौकापरस्त वहशियों का कोई मज़हब, कोई धर्म नहीं है!
आप ने बचपन याद दिला दिया। झांसी की रानी पहली फिल्म थी जो मैं ने देखी थी। उस फिल्म को देखने के लिए कस्बे के तंबू सिनेमाघर गावों से बैलगाडियों का रैला चला आ रहा है। कोई नहीं छोड़ना चाहता था उस वीरांगना को पर्दे पर सजीव देखते हुए।
जब स्त्रियाँ रणभूमि में उतर आती हैं तो सारा समाज आंदोलित हो उठता है।
बिल्कुल सटीक और सामयीक सवाल आपने खडे किए हैं ! आपका आलेख हमेशा की तरह सुंदर चित्रों से सजा हुआ इन सवालों को दिमाग में मंथन करने के लिए विवश करता है !
रामराम !
बहुत दिन पहले टीवी शो पे शबाना आज़मी से उन्ही के मज़हब की क़ाबिल हस्तियों को कहते सुना था-मै नाचने गाने वालियों से बात नही करता--तो क्या कीजियेगा आप इनका ? ये ज़िद्दी हैं -इनके लिये न कला के कोई मायने हैं न कलाकार के !!
१. फ्रीडमान के लिंक के लिये घन्यवाद।
२. पाकिस्तान सरकार का हाथ नहीं प्रतीत होता, पर इस रोग स्टेट का बहुत भरोसा नहीं।
बचपन याद दिला दिया,अच्छी पोस्ट.लिंक के लिये घन्यवाद...
शुक्रिया इस लिए की आपने खुलकर कुछ बातें कही जो हम कहने से हिचकते है ..कुछ बातें ओर है जो मैंने उस वक़्त महसूस की जब मै कल इंग्लिश का चैनल times now देख रहा था जिसमे पाकिस्तान के पूर्व संचार मंत्री तमाम सबूतों को झुठलाते रहे ओर उससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये लगी की लन्दन के एक नामी पत्रकार यहाँ अल्पसंख्यको पर हुए जुल्मो की कहानी सुनाने लगे ...इससे ये जाहिर होता है की कई जगहों पर बैठे लोग समझदार हो ये जरूरी नही ....पहली बात तो ये है की ये लडाई सिर्फ़ आतंकवाद के ख़िलाफ़ है जिसका किसी मजहब से कोई लेना देना नही है इसका सबूत NSG के कमांडो है जिसमे से कई मुस्लिम है ,इस देश की पहली ऐ टी एस के foundar मेंबर में से एक mr khaan भी मुस्लिम है ....उन्होंने दो दिन पहले के times ऑफ़ इंडिया में एक आर्टिकल भी लिखा है ....तीसरी बात मुंबई के इस वक़्त के कमिश्नर भी मुस्लिम है.....इस घटना में मारे गए लोगो में से ३९ लोग मुस्लिम है ....कल ही आमिर खान ने बेबाकी से कहा है की मुझे या मेरे परिवार को अगर बंधक बना लिया जाता है तो आप कार्यवाही करियेगा समझौता नही .तो मुझे उन सो कॉल्ड बुद्धिजीवी जिनमे एम् जे अकबर भी है ओर कई बड़े लेखक भी ...जो आमिर खान को महज़ नाचना गाने वाला कहा कर खारिज कर देते है.वे इस इंसान के सामने कम से कम इस वक़्त तो मुझे बौने नजर आए .......यदि वाकई हर सताया जाने वाला बन्दूक उठा लेता तो शायद भारत के दलित ,पिछडे ,आदिवासी ....सबसे पहले उठाते ओर देश कब का टुकड़े टुकड़े हो गया होता .....इसलिए ये तर्क समझ से परे है ......इस दुनिया का कोई धर्म या मजहब मजबूरो को मारने की इजाज़त नही देता ये तो अशिक्षित लोगो को बरगलाने का इंसानी काम है....वैसे भी इस दुनिया में जब ऐडम ओर हव्वा आए थे तब कौन सा धर्म था ?जब तक इंसानी सभ्यता में कोई भी बच्चा भूखा सोयेगा ..भर्ष्टाचार रहेगा ...कमजोरों पर अत्याचार रहेगा .... आप कितनी ही टोपिया पहन ले ,कितनी ही मालाये पहन ले ,कितनी ही दाढ़ी उगा ले .कितने ही तिलक लगा ले ....सब बकवास है.....
सबसे बड़ी बात तो ये है दीदी कि आतंकवादियों की बात को हम मुस्लिमों की बात समझते हैं,। मोदी की बात को हम हिंदुओं की बात समझते हैं...! और कहीं न कहीं आम व्यक्ति भी बिना सोचे विचारे इस भेंडचाल में लगा हुआ है। आप आतंकवादी की बात छोड़ दीजिये दीदी...! मैं जब उस आतंकवादी की बात सुन रही थी तो मुझे तुरंत अपने बीच के एक ब्लॉगर का वक्तव्य याद आ रहा था। लोगो में काफी प्रिय उस ब्लॉगर की बातें आतंकवादी से शतप्रतिशत मेल खा रही थीं। उसका भी कहने यही था कि जब उन्होने हमारी मस्जिद गिरा दी तब क्यों नही आवाज़ उठी?? गोधरा में क्या हुआ ये किसी को क्यों नही दिखता?? ये पढ़ा लिखा और भावुक वर्ग है। इमरान बाबरी जो प्रेस से बात कर रजा था, उसकी नॉलेज में कोई कमी नही थी?? लेकिन सोचने का तरीका ही गलत हो गया है। मैं खुद उस दिन अपने परिवार के साथ लंबी बहस में शामिल थी, क्योंकि वहाँ प्रहार हिंदू बन कर किये जा रहे थे। सब को लगता है कि हम सांप्रदायिक नही है, लेकिन हमने बहुत सह लिया। मुझे लगता है कि इस जातीयता की भावना से ८० प्रतिशत लोग अपने को मुक्त नही कर पाते। जब तक हम दूसरे के दृष्टिकोण से सोचना शुरू नही करते तब तक साम्यता की भावना आना नामुमकिन है।
बहुत अच्छा आर्टिकल है, बहुत-बहुत धन्यवाद इस लिंक के लिए. आपकी बातों से सहमत हूँ ! भगवान् सबको सदबुद्धि दें.
दीदी , अंतर्मन को उलट दिया है, कितनी गहराई से आपने महसूस किया है मुंबई की त्रासदी को, लगा यही दर्द हम सभी मे भरा है, अच्छे से व्यक्त कर दिया है आपने, बल्कि डाक्टर अनुराग और कंचानसिंह चोव्हान को भी प्रेरित कर इस विषय पर
गंभीर और सटीक टिप्पणियो से हमे लाभान्वित किया है,धन्यवाद. एम.हाशमी
लावण्या जी,आप ने बहुत सही लिखा है, ओर इस देश का हर वासी( किसी भी धरम का हो) जानता है की जब तक देश है तब तक उस की हस्ती है, लेकिन यह आतंकवादियो का कोई भी धर्म नही, अब इन के बारे पुरी खोजबीन होनी चाहिये कि इन के पीछे कोन है.... क्योकि यह हमला एक विदेशी हमला नही लगता, जरुर कोई घर का ही आदमी है, ओर वो कमीना कोन है यह पता लगाना भी बहुत जरुरी है,
मदर इन्डिया कई बार देखी, ओर मेरे पास इस फ़िल्म के लिये तारीफ़ के शव्द नही है, सब के सब इस के आगे फ़िके है... एक बेहतरीन फ़िल्म बेहतरीन कला कार, सब कुछ सुपर .
धन्यवाद
विचारोत्तेजक पोस्ट। आभार।
''इन्सान इन्सान के साथ शाँति से रहना सीखे तभी एक सभ्य और सुसँकृत समाज की नीँव पडती है - अन्यथा मानव का इतिहास , प्रगति नहीँ अधोगति की ओर अग्रसर होता है''
बिल्कुल सही बात कही है आपने लावण्या दी। प्रेरणादायी आलेख।
बहुत बहुत सही सातीक सुंदर कही आपने लावण्या दी ! आपको नमन !
काश ये आततायी इनके रहनुमा या इनके अभिभावक ये सब सोच समझ पाते........
दमदार लेख!.. आपकी और मेरी सोच में कही फ़र्क नही नज़र आया..
aapki baat bilkul sahi hai ,
ham sab ko deshbhakti par dobara sochna honga.
umeed hai ,ki aapki ye koshish rang layengi
badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
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