चाँद उग आया पूनम का !
शरद ऋतु के स्वच्छ गगन पर,
चाँद उग आया पूनम का !
सरस युगल सारस - सारसी का,
तैर रहा, झिलमिल जल पर !
खेत खलिहानोँ मेँ पकी फसल-
मुस्कान रँगे मुख, कृषक - वधू के
व्रत त्योहार - रास युमना तट
रुन झुन , रुन झुन, झाँझर के स्वर!
पखावज, मँजीरे धुन,कीर्तन के सँग!
घर - घर मेँ ज्योत, प्रखर कर लो !
शरद शारदा - वीणापाणि माँ सरस्वती भजो !
हरो तिमिर आवरण माँ, कृपा कर दो !
बिखरा दो, उज्जवल प्रकाश अवनी पर माँ !
शारदीय पूर्ण चन्द्र ज्योत्सना फैला दो माँ !
स्वागत, मँगल आगमन शरद - चँद्रिका माँ !
कृपा सिँधु, कमलिनी, सुमधुर स्मित बिखरा दो माँ !
जग तारिणी, सिँह आसनी ममता का कर, धर दो माँ !
जन - जन - के दु:ख हर, शीतल कर दो माँ!
कात्यायनी नमोस्तुते ! हे अम्बिके, दयामयी नमोस्तुते!
शरद ऋतु के स्वच्छ गगन पर,
चाँद उग आया पूनम का !
सरस युगल सारस - सारसी का,
तैर रहा, झिलमिल जल पर !
खेत खलिहानोँ मेँ पकी फसल-
मुस्कान रँगे मुख, कृषक - वधू के
व्रत त्योहार - रास युमना तट
रुन झुन , रुन झुन, झाँझर के स्वर!
धरती डोली, हौले हौले, बहे पवन
मुस्काता, बन, शशि, चँचल, हिरने पर !
फैलाती चाँदी सी- शरदिया चाँदनी
मँदिरोँ मेँ बज रहे - शँख ढफपखावज, मँजीरे धुन,कीर्तन के सँग!
खनन्` - खनन्` मँजीर बज रहे
धमक -धमक रास की रार मची
-चरर्` चरर्` तैली का बैल चला
-सरर्` सरर्` चुनरी लिपटी रमणी पर -
शक्ति आह्वान करो! माँ भवानी सुमरो !
अम्बिका, वरदायिनी, कल्याणी, कालिका, पूजो!घर - घर मेँ ज्योत, प्रखर कर लो !
शरद शारदा - वीणापाणि माँ सरस्वती भजो !
हरो तिमिर आवरण माँ, कृपा कर दो !
बिखरा दो, उज्जवल प्रकाश अवनी पर माँ !
शारदीय पूर्ण चन्द्र ज्योत्सना फैला दो माँ !
स्वागत, मँगल आगमन शरद - चँद्रिका माँ !
कृपा सिँधु, कमलिनी, सुमधुर स्मित बिखरा दो माँ !
जग तारिणी, सिँह आसनी ममता का कर, धर दो माँ !
जन - जन - के दु:ख हर, शीतल कर दो माँ!
कात्यायनी नमोस्तुते ! हे अम्बिके, दयामयी नमोस्तुते!
25 comments:
बहुत ही सुंदर लाज़बाब शब्दातीत फ़िर भी बेहतरीन शब्द रचना
बेहतरीन शब्द रचना
क्या बात है. बहुत ही सुंदर रचना.
मौसम का रंग कैसे खिलता है इस कविता से कोई सीखे।
अच्छी लगी यहा आपकी यह शारदीय अभिव्यक्ति!
शरद सुहावन ,मधु मन भावन
कविता भाव सुगन्धित पावन
चाँद और धरती सब मिल देखें
माँ की स्तुति है मनभावन
आप का यह पुनम का चांद बहुत अच्छा लगा
धन्यवाद
शरद ऋतु के सुहावने मौसम में यह सुंदर कविता और देवी मां का पावन स्मरण...यह सब भी मनभावन ही है।
बहुत सुंदर लगी यह रचना
28° तापक्रम में जमने से बचा लिया आपकी इस ऊर्जावान कविता ने, धन्यवाद!
चाँद उग आया पूनम का !
शरद ऋतु के स्वच्छ गगन पर,
चाँद उग आया पूनम का !
बहुत खूबसूरत रचना और शुकुनदायक एहसास लगा यहाँ पर ! शुभकामनाएं !
वाह! आनन्द, परमानन्द!
सच में मन भावन कविता !
bahut sunder kavita
regards
अच्छा लिखा है।
मनभावन अभिव्यक्ती!
'शरद सुहावन' का इतना सजीव चित्रण और देवी माँ का स्मरण ...., आनंद आया।
लावण्या दीदी
सुंदर काव्य के लिए खूब खूब अभिनन्दन |
साथ ही साथ २२ नवम्बर के आप के जन्म दिन पर भी आप को सेंकडो शुभ कामनायें |
परम कृपालु परमात्मा को प्रार्थना करते हैं कि आप सदा खुश और तंदुरस्त रहें और इसी तरह हम सब को सुंदर लेख द्वारा ग्यान वर्धन कराती रहें | पापाजी की तरह ही आप की कीर्ति और यश बढ़ते रहे |
धन्यवाद |
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए
धरती डोली, हौले हौले, बहे पवन
मुस्काता, बन, शशि, चँचल, हिरने पर !
फैलाती चाँदी सी- शरदिया चाँदनी
मँदिरोँ मेँ बज रहे - शँख ढफ.
शरद सुहान पर गोस्वामी जी की भी लाइने हैं-
जनि शरद ऋतु खंजन आए .शहरों की तो मैं नही बता सकता लेकिन गाँव में इसका अलग आनंद है
लावण्या जी,
आप के जन्म दिन के शुभ अवसर पर अनेकों शुभ कामनाएं. मेरी मिठाई आप पर उधार रही!
bahut sundar
प्रणाम स्वीकार करे... आनंदम आनंदम
बहुत ही सुंदर कविता और माँ की आराधना
hosla afjai ka shukriya lavnya ji...
aapki yah maa ke photo ke sath kavita bahut achi hai...
sunder... manmohak...
बहुत ही सुंदर कविता....
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