Saturday, November 8, 2008

कोई


कल रात को बहुत महीनो के बाद ये लिखा .......................
-- सुनिए ,
कोई
~~~~~~~~~~~~
" रश्क होने लगा है हमे , अश्कों की सौगातों के लिए
नाम महफिल में आया आपका , बस हमारे खो जाने के लिए
भीग जायेगी हीना , हथेली पे, रंग और निखरेगा , अभी ,
कहते हैं , मिटटी से मिल , उठती है घटा , बरसने के लिए "
क्यूँ न पुछा था मुझ से , उसने , रुकूं या मैं चलूँ ?
दिल लेके चल देते हैं वो , बस मिलके बिछुडने लिए !
कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोई , मेहमान बन , फ़िर दिल में ‘समाने के लिए’ "
- लावण्या ( नवम्बर ६ )

20 comments:

राज भाटिय़ा said...

लावण्यम् जी ऊपर वाली फ़ोटो को छोड कर आप की कविता बहुत पंसद आई.
धन्यवाद

सुनील मंथन शर्मा said...

नाम महफिल में आया आपका , बस हमारे खो जाने के लिए. वाह.

Vivek Gupta said...

सुन्दर कविता

Abhishek Ojha said...

रचना तो सुंदर है ही... आपकी 'Amma's Painting' बहुत पसंद आई.

ताऊ रामपुरिया said...

कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोयी , मेहमान बन , फ़िर दिल में सामने के लिए ! "

लाजवाब ! बहुत खूबसूरती से लिखी गई रचना ! बहुत शुभकामनाएं !

Udan Tashtari said...

कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोयी , मेहमान बन , फ़िर दिल में सामने के लिए ! "


--यही अपने आप में पूरी है, वाह!! बहुत उम्दा!!

Gyan Dutt Pandey said...

मेहमान बन दिल में समाने के लिये - वाह!

Manish Kumar said...

अच्छा प्रयास रहा और ये अम्मा वाली पेंटिंग तो बेहद सुंदर दिख रही है।

Smart Indian said...

क्यूँ न पुछा था मुझ से, उसने, रुकूं या मैं चलूँ?
दिल लेके चल देते हैं वो, बस मिलके बिछुडने लिए!


बहुत सुंदर पंक्तियाँ. 'Amma's Painting' भी भी पंसद आई.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोयी , मेहमान बन , फ़िर दिल में सामने के लिए ! "
acchhi lagin....magar line choti-badi hain...taartamya gadbadaa jaataa hai...thoda sa equal karen...aur bas nikhaar aa jayega sach....!!

RADHIKA said...

बहुत ही सुंदर कविता लावण्या जी ,पेंटिंग भी बहुत खुबसूरत हैं

महेंद्र मिश्र.... said...

बहुत खूबसूरती से लिखी गई रचना...

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

“...लौट आया है कोयी , मेहमान बन , फ़िर दिल में सामने के लिए ! " वाह! क्या कहने!!

लावण्या जी,
शायद इस लाइन में गलती से ‘समाने के लिए’ के स्थान पर ‘सामने के लिए’ और ‘कोई’ के स्थान पर ‘कोयी’ टाइप हो गया है।

वैसे कविता है बहुत भावना प्रधान...। पढ़वाने के लिए शुक्रिया।

Alpana Verma said...

भीग जायेगी हीना , हथेली पे, रंग और निखरेगा , अभी ,
कहते हैं , मिटटी से मिल , उठती है घटा , बरसने के लिए "

bahut achchee lagi aap ki kavita

रंजना said...

बहुत बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता है.

कंचन सिंह चौहान said...

कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोयी , मेहमान बन , फ़िर दिल में सामने के लिए ! "

waah didi .... sanvedanshilata man tak utari

पुनीत ओमर said...

अच्छी लगी कविता .. बहुत खुबसूरत रचना.

पारुल "पुखराज" said...

ab samjh aaya di..itni sundar kavitaa ..kyu...aapdono ko shaadi ki saalgirah bahut mubarak ho :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भूल सुधार कर दिया है -
अब इसे और सुधारने का प्रयास भी किया जायेगा....
ठीक है ना ?
और आप सभी का आभार जिन्होँने इसे गडबडी के साथ भी पसँद किया ! :)
अम्मा का बनाया तैल चित्र मुझे भी बहुत पसँद है -
आप सभी के स्नेह के लिये आभार !
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Parul :) Thanx ~~~