कल रात को बहुत महीनो के बाद ये लिखा .......................
-- सुनिए ,
कोई
~~~~~~~~~~~~
" रश्क होने लगा है हमे , अश्कों की सौगातों के लिए
नाम महफिल में आया आपका , बस हमारे खो जाने के लिए
भीग जायेगी हीना , हथेली पे, रंग और निखरेगा , अभी ,
कहते हैं , मिटटी से मिल , उठती है घटा , बरसने के लिए "
क्यूँ न पुछा था मुझ से , उसने , रुकूं या मैं चलूँ ?
दिल लेके चल देते हैं वो , बस मिलके बिछुडने लिए !
कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोई , मेहमान बन , फ़िर दिल में ‘समाने के लिए’ "
- लावण्या ( नवम्बर ६ )
20 comments:
लावण्यम् जी ऊपर वाली फ़ोटो को छोड कर आप की कविता बहुत पंसद आई.
धन्यवाद
नाम महफिल में आया आपका , बस हमारे खो जाने के लिए. वाह.
सुन्दर कविता
रचना तो सुंदर है ही... आपकी 'Amma's Painting' बहुत पसंद आई.
कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोयी , मेहमान बन , फ़िर दिल में सामने के लिए ! "
लाजवाब ! बहुत खूबसूरती से लिखी गई रचना ! बहुत शुभकामनाएं !
कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोयी , मेहमान बन , फ़िर दिल में सामने के लिए ! "
--यही अपने आप में पूरी है, वाह!! बहुत उम्दा!!
मेहमान बन दिल में समाने के लिये - वाह!
अच्छा प्रयास रहा और ये अम्मा वाली पेंटिंग तो बेहद सुंदर दिख रही है।
क्यूँ न पुछा था मुझ से, उसने, रुकूं या मैं चलूँ?
दिल लेके चल देते हैं वो, बस मिलके बिछुडने लिए!
बहुत सुंदर पंक्तियाँ. 'Amma's Painting' भी भी पंसद आई.
कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोयी , मेहमान बन , फ़िर दिल में सामने के लिए ! "
acchhi lagin....magar line choti-badi hain...taartamya gadbadaa jaataa hai...thoda sa equal karen...aur bas nikhaar aa jayega sach....!!
बहुत ही सुंदर कविता लावण्या जी ,पेंटिंग भी बहुत खुबसूरत हैं
बहुत खूबसूरती से लिखी गई रचना...
“...लौट आया है कोयी , मेहमान बन , फ़िर दिल में सामने के लिए ! " वाह! क्या कहने!!
लावण्या जी,
शायद इस लाइन में गलती से ‘समाने के लिए’ के स्थान पर ‘सामने के लिए’ और ‘कोई’ के स्थान पर ‘कोयी’ टाइप हो गया है।
वैसे कविता है बहुत भावना प्रधान...। पढ़वाने के लिए शुक्रिया।
भीग जायेगी हीना , हथेली पे, रंग और निखरेगा , अभी ,
कहते हैं , मिटटी से मिल , उठती है घटा , बरसने के लिए "
bahut achchee lagi aap ki kavita
बहुत बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता है.
कितनी दूर चला था मेरा साया , मेरी रूह से बिछुड़ , अनजाने में ,
लौट आया है कोयी , मेहमान बन , फ़िर दिल में सामने के लिए ! "
waah didi .... sanvedanshilata man tak utari
अच्छी लगी कविता .. बहुत खुबसूरत रचना.
ab samjh aaya di..itni sundar kavitaa ..kyu...aapdono ko shaadi ki saalgirah bahut mubarak ho :)
भूल सुधार कर दिया है -
अब इसे और सुधारने का प्रयास भी किया जायेगा....
ठीक है ना ?
और आप सभी का आभार जिन्होँने इसे गडबडी के साथ भी पसँद किया ! :)
अम्मा का बनाया तैल चित्र मुझे भी बहुत पसँद है -
आप सभी के स्नेह के लिये आभार !
- लावण्या
Parul :) Thanx ~~~
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