डा. बेन्जामीन ने सर्व धर्म समभाव पर भाषण दिया
डा. सिध्धर्थ काक सम्माननीय अतिथि ने भारत वर्ष की साँस्कृतिक धरोहर व योगदान के बारे मेँ विस्तार से समझाया
बाल विहार के बच्चोँ ने श्लोक व देशभक्ति के गीत गाये
हमारे शहर का मँदिर ~ सँध्या आरती का समय
शनिवार की सँध्या हमारे शहर के मँदिर मेँ आयोजित हिन्दू अवेयरनेस डे के समारोह मेँ बिताकर आये तो लगा आप सभी को दीखलायेँ कि कौन महानुभाव आये थे और खास तौर पर बच्चोँ के प्रयास बहुत अच्छे लगे ~
अब शामेँ जल्दी आ जातीँ हैँ दिन सिकुडने लगे हैँ अब भी दोपहर को धूप होने पर बाहर घूमना अच्छा लगता है जब धूप भली लगती है पर सुबह और शाम आने तक ठँड पडने लगती है अब अक्तूबर माह भी बस, भागा ही जा रहा है ...
॥पता नहीँ जो समय बीत जाता है, वह कहाँ जाकर छिप जाता है ? काल के किस हिस्से मेँ बीता समय आसरा लेता होगा ? और नई सुबह, कहाँ से चल कर आतीँ हैँ ? मुझे पता है तो सिर्फ वर्तमान का
॥हाँ यहाँ जहाँ मैँ .... हूँ ........जहाँ साँसे ले रही हूँ, देख रही हूँ, सुन रही हूँ,........ टी।वी। तो कभी रेडियो तो कभी पँछीयोँ का चहचहाना या फव्वारे से निरँतर ऊपर उठकर धरा की ओर खर खर कर झरते पानी की आवाज़ सुनती हूँ,......
कई तरह के शोर मेरी दिनचर्या का हिस्सा हैँ, कभी किसी बच्चे की किलकारी तो किसी माँ का आवाज़ देना...... आहिस्ता से ! बसोँ का आना, फेडएक्स की ट्रक का आना जाना, असंख्य कारे आती जाती हैं मेरे कोम्प्लेक्स मेँ !
दुपहर को डाक बाँटने सरकारी नीली और लाल धारीयोँवाली सुफेद जीप कार मेँ आती " डेबी" जो डाक लाती है और "हाय मीसीज़ शाह " कहती मुस्कुराती है" ॥
और एक सज्जन हैँ बड़ी ऊम्र के हैं और बम्बई से पुत्र के घर पत्नी सहित आये हैँ और रोजाना सैर करने निकल पडते हैँ जब भी मिल जाते हैँ अचूक गुजराती मेँ पूछते हैँ, "केम छो? " ( "कैसी हैँ " ) और २ घँटा घूमते हैँ। उनकी पुत्रवधु के दूसरी सँतान नवम्बर माह तक आ जायेगी ..एक बार कह रहे थे, " हमेँ इस बार अमरीकी पडौसियोँ से बड अच्छे अनुभव हुए ..पहले हमारा इम्प्रेशन कुछ अलग ही था यहाँ के लोगोँ के बारे मेँ पर अब ४ माह से जितनोँ से भी मिलना हुआ, बडे भले और सच्चे लोग लगे हमेँ ! कई अपने वृध्ध माता पिता की देखभाल करते हैँ और कई अकेले रहते हैँ तब भी साहसी जीवन जीते हैँ और भलमनसाहत से पेश आते हैँ इत्यादी "
तो खैर ! बाहर की दुनिया मेँ दिन भर कुछ ना कुछ घटता रहता है ..पर सब कुछ शाँत रहता है ..ये अमरीकी जीवन का एक बहुत बडा सच है -
शाँति ! शोर शराबा , यातायात का हो तब भी नियँत्रित ! कोई होर्न नहीँ बजाता .ना ही कोई लाउड स्पीकर पर भजन या कव्वालीबजा कर अपने धार्मिक त्योहारोँ के समय, अपना हक्क मानकर दूसरोँ को परेशान करता है !
..क्लब होँ या डीस्को, सब मकान के भीतर पर वहाँ हमारा जाना नहीँ होता !
-हाइवे पर वाहनोँ का रेला ऐसा शोर करता है मानोँ जल प्रपात घोष करता हुआ बह रहा हो ! पर वह भी दूर की ध्वनि है ! कार, घर जब दरवाज़े व खिड़कियाँ बँद कर लो तब एकदम से शाँति पसर जाती है और तब दुपहर की धूप प्रखर होकर और भी स्वच्छ और भी साफ चमकने लगती है ..शाम होने से पहले, चाय के साथ ,आहिस्ता समय आगे सरक जाता है ..फिर आँख मिचौनी खेलता वक्त का लम्हा, हाथोँ से फिसल कर, छिपने को आतुर, फिर ओझल हो जाता है ...
20 comments:
लगता है आप सिनसिनाटी से हैं | क्योंकि मैं पहिले सिनसिनाटी से था अब Orlando में हूँ |
आभार इन चित्रों और जानकारी का!!
सही कहा विवेक भाई और समीर भाई आपकी उडन तश्तरी आकर फुर्र से उड भी गई :)
लावण्या जी,
आप तो गद्य लिखती हैं तो उसमें भी पद्य की खुशबू आती है. अमेरिकी जीवन की शान्ति के बारे में बिल्कुल सही कहा आपने.
bahut hi sundar or garimamay shabdon ke saath mili jankari, ha rshabd me kavita kee khusbu hai
बेहद मन को शुकून और शान्ति मिलती है यहाँ ! आपका ब्लॉग बड़े इत्मीनान से पढ़ता हूँ !
शुभकामनाएं !
कर आपके लिखे को पढ़ कर वहां के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है ...अच्छा लगा यह पढ़
फोटो और लेख दोनों बहुत सुंदर ।
हमें आपके ब्लॉग पर आकर भी कुछ ऐसा ही अनुभव होता है ।
aati jaati dhuup ki parchhayiyan...havaa ki siharan..sab hai aaj aap ki post me ....anayaas sardiyon ki mehek aaney lagi...
हाय मीसीज़ शाह
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बड़ा अच्छा सम्बोधन है!
तभी तो कहते है ना की अपने घर जैसा सुख कही नही.....ऐसा चैन मिलता है..की फाइव स्टार होटल से भी जल्दी उब होने लगती है.
एक ओर बात यही भारतीय वहां जाकर किस मुस्तैदी से कानून का पालन करते है....अच्छा तरीका यही है की अपनी श्रधा से किसी दूसरे के आराम में खलल नही पड़ना चाहिए
सुंदर फोटो पर उससे भी अच्छा और सुंदर वर्णन . बहुत ही सुंदर लिखा हैं आपने
अच्छा लगा आपका ये समय बीताना पढ़कर. बड़ा अच्छा समय बीत रहा है आपका !दिवाली की अग्रिम शुभकामना हमसे भी स्वाकार करें .
MAndir ka chitra Bahut pyara hai Di Aur aap saath me shobha badh rahi hai.
लावण्यम् जी, बहुत अच्छा लगा, सारे चित्र देख कर ओर आप का लेख पढ कर, बहुत ही सुन्दर चित्र है
धन्यवाद
अनुराग भाई, अमरीकी कानून व्यव्स्था और नागरिकोँ का सीवीक सेन्स और सबसे खास बात धार्मिक जीवन का आम जीवन से एक हद तक का अलगाव - यही राज है यहाँ के आम जीवन मेँ शाँति और व्यव्स्था का अनुभव पग पग पर होते रहने मेँ - चर्च जाने वाले भी रविवार सुबह अपने पसँदीदा चर्च मेँ जाते हैँ - दूसरे धर्म के अनुयायी जैसे यहूदी कौम सीनेगोग मेँ जाते हैँ - आम जीवन मेँ सब काम करते हैँ - जब मौज करनी हो तब पार्क मेँ जाते हैँ सँगीत कन्सर्ट मेँ शामिल होते हैँ या स्पोर्ट अरीना मेँ जाते हैँ - रोजीँदा जीवन मेँ हर बस्ती मेँ " घर " -- मानोँ हर व्यक्ति का अपना किला होता है जहाँ पुलिस भी बिना जाँच पेपर (फोर ओथोरोटी ओफ इन्वेस्टीगेशन) के दाखिल नहीँ हो पाती !
काश, भारत मेँ भी कुछ ऐसा हो !
मेरे ख्याल मेँ जो भारत मेँ आम जीवन मेँ शिस्तता से सलीके से रहते हैँ और कानून और व्यव्स्था को जिम्मेदारी से निभाते हैँ वे यहाँ या किसी भी मुल्क मेँ अच्छे नागरिक बनकर रहते हैँ - और जिन्हेँ कानून तोडना है उनको वही सुहाता है !
अमरीकी समाज आज का सब से विकसित समाज है। और भारत अभी बहुत पीछे। आप जिस शांति की बात कर रही हैं वैसी शांति की यहाँ कल्पना भी नहीं करते लोग।
बहुत सुंदर....जो चीज जिदंगी को छूती वो दिल को भी छूती है।
शाँति ! शोर शराबा , यातायात का हो तब भी नियँत्रित ! कोई होर्न नहीँ बजाता .ना ही कोई लाउड स्पीकर पर भजन या कव्वालीबजा कर अपने धार्मिक त्योहारोँ के समय, अपना हक्क मानकर दूसरोँ को परेशान करता है !
पश्चिमी देशों की यह बात मुझे बहुत अच्छी लगती है.
बहुत बढ़िया सचित्र जानकारी के लिए आभार. दीपावली की आपको हार्दिक शुभकामना .
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