Tuesday, September 23, 2008

सिकाडा क्या है ?

सिकाडा क्या है ? ~~ लैटिन शब्द " सिकाडा " से ही इस नाम की उत्पति हुई है !
प्राचीन रोम मेँ इनकी बहुत भारी संख्या थी -
जापान में इन्हे "सेमी " कहते हैं ! और फ्रांस में इन्हे "सिगले ' कहते हैं जबकि , स्पेन में उन्हें " सिगरा " कहते हैं !
उत्तर अमरीका में १०० प्रकार के सिकाडा पाये जाते हैं और विश्वभर में करीब २००० जितनी प्रजाति सिकाडा की देखी गयी है ।-
पोम्पोनीया इम्प्रोटोरीया सबसे विशाल आकार के सिकाडा हैं जो मलेशिया में पाये जाते हैं ! - ये प्रायः सभी भूखंड पर पाये जाते हैं सिवाय एक , अँटार्टीका के !!
टीबीकन वाल्कारी प्रजाति के सिकाडा सबसे ज्यादा शोर मचाते , १०८.० डेसीबल तक इनकी आवाज़ उठती है और उनकी बोली सबसे ज्यादा तीव्र होती है ऐसा फ्लोरीडा की जीव जँतु शाखा अध्ययन विभाग का कहना है ~~
ऑडियो Magicicada Audio
An MP3 sound file of the emergence in Princeton (1।5MB, MP3). Cicadas for your iPod!


अमरीका में मेगी टीबीकन सिकाडा प्रजाति वार्षिक और १३ या १७ वर्ष में , उत्पन्न होती हुई पाई जाती है - जिनकी संख्या लाखों की तादाद में होती है और पहले नवजात जन्मे सिकाडा सुफेद रंग के होते हैं , पेड़ से धरा पर गिरने के बाद वे पेड़ की जड़ से पोषण पाते हैं -
अगर जड़ मिल जाए तब सिकाडा १, २, या १३ , १७ साल तक दबे रहते हैं और सुशुप्त अवस्था में जीते हैं ! जागृत अवस्था में , दुबारा ग्रीश काल में बाहर आए सिकाडा को निम्फ कहते हैं ।
पहले नाज़ुक पर लिए उनकी देह शीघ्र ही कड़ी हो जाती है -
जिसके बाद पुनः एक बार , उनका जीवन चक्र , आरम्भ होता है ।
जिंदगी का नृत्य फ़िर शुरू हो जाता है !

ग्रीक कविता आनार्क्रोनीता में इस के लिए लिखा गया की,
" तुम हर मनुष्य को ग्रीष्म के दूत प्रतीत होते हो, अपनी मीठी तान से , जन जन को सम्मोहित करते हो , हमें तुम्हारी पहचान है , हर कवि और दिव्य देवता अपोलो भी तुम्हे चाहते हैं "

थ्युकायडीडीस जो खुद पुरातन ऐथेन्स गणराज्य का नागरिक था उसने प्लेटो से कई पीढियाँ पहले , सिकाडा के गुण गाते हुए कहा था कि,
" मेरे देशवासी सिकाडा की प्रतिकृति के आकार के स्वृणाभूषण बनवाकर अपने सुनहरे केशोँ मेँ सजा कर शोभा वृध्धि कर अपने आप को धन्य मानते थे ! "

सिकाडा , मनुष्य को काटते नही , ना डंख देते हैं इसलिएउन्हें अन्य
कीट पतंग या जंतु की तरह , तंग करनेवाले या बहुत परेशानी वाली बात ,
नही समझा जाता !

आइये, मिसिज सिकाडा से मिलें :) ~
~ ये अपने जीवन काल में ४०० से ६०० अंडे देती हैं !
और हाँ ये बेहद शर्मीली भी हैं ! आप सोचेंगें , ये भला , कैसे ?
तब , सुनिए , जनाब, ये हर १७ वर्ष में एक बार ही, अपना जीवन जीती हैं !
ख़ास तौर से इनकी प्रजाति जिसका नाम हैं
मेगी सिकाडा !!
ये वर्ग क्ष या X , या समयचक्र आधीन सिकाडा की श्रेणी में हैं
और कई हर १३, या १७ साल में जीवित होतीं हैं !
अब मिलते हैं सिकाडा महाशय से !
सिकाडा नर , उनके पेट पर ड्रम जैसा आकार होता है उसीसे जो ध्वनि उत्पन्न करते हैं उससे उन्हें पहचाना जाता है।
ये ३ प्रकार की बोली बोलते हैं
१ ) डर से चेतावनी देती आवाज़,
२ ) दूसरे नर सिकाडा बंधुओं को हेल्लो कहनेवाली आवाज़ और
३ ) सुंदर मादा या होनेवाली मिसिज सिकाडा जी को लोभाने की कोशिश में , मधुर पुकार !!

अब ये गीत अगर , नारी सिकाडा जी को भा गया तब वे , बड़ी अदा से , नजाकत से अपने पंख झपकातीँ हैं ठीक उसी वक्त जब, पुरूष सिकाडा जी का गीत समाप्त होता है !
और ये दोस्ती का संदेश मिलते ही, मिस्टर नर सिकाडा आ पहुँचते हैं !
और गीत सुहाग रात तक जारी रहता है ~~
ना ना आप मुस्कुराइए नहीं ! :)
बेचारे वर की दशा आगे क्या होती है वो भी सुन लीजिये ...
सुहाग रात का अंत, बेचारे मिस्टर सिकाडा जी की मौत से होती है ! :-((
अब बेचारी , मिसिज़ सिकाडा जी, पेड़ की पतली दुबली टहनी खोजकर , अपने नवजात शिशु, अंडे , वहीं पर , एक छिद्र बनाकर रख देतीं हैं !
पेड़ से रिस्ता द्रव्य , नवजात अंडे से शिशु बनते सिकाडा को पोषण देता है --
और वे भी चल देतीं हैं अपने बिछुडे प्राण प्रिय पतिदेव से मिलने स्वर्ग लोक में !
दोनों प्रेमी युगल मौत को गले लगाते हैं !
है ना असली लैला मजनू,शिरी फरहाद और रोमियो जूलियट वाली प्रेम कहानी !!
प्राचीन ग्रीस, चीन, मलेशिया, बर्मा, लैटिन अमरीका और कोंगों में लोग इन सिकाडा को खाते भी हैं ! :-(
चीन में सिकाडा से दवाई भी बनाई जाती है - क्लीक करें --
Ancient Greece, China, Malaysia, Burma, Latin America , Congo
सिकाडा से फलों की पैदावार बहुत अच्छी होती है - जमीन से उनका बाहर आना, जमीन के लिए बहुत लाभकारी है - और उनकी देह से बहुत ज्यादा मात्रा में , नायट्रोजन जमीन में पहुँच कर असीम गुणवत्ता वाला खाद , नैसर्गिक क्रिया से पहुंचाने का काम करता है ।

आशा है ये प्राकृतिक जीव से मिलकर आपको भी खुशी हुई होगी ~~
श्री अशोक पांडे जी आप को खेती बाडी से जुडी जानकारी रहती है , शायद भारत में भी आपने सिकाडा की प्रजाति को देखा हो !

मेरे शहर में , ४ जुलाई तक , सिकाडा लाखों की तादाद में दीखाई देते हैं और फ़िर , समर का इंतज़ार रहता है अगले साल फ़िर सिकाडा की आवाज़ , निरंतर आती रहती है और बता जाती है की लो जी , गर्मियां लौट आईं हैं !!
सिकाडा की आवाज़ से अच्छे फल प्राप्ति की आशा बांधती है और साथ ही , इस प्रकृति की गोद में हर जीव का एक निश्चित स्थान है , महिमा है,
उसका भान होता है -

मनुष्य अकेला नही है इस धरा पर !

हम कई तरह के जीव हैं, और हमारे धर्म ने हरेक जीवित प्राणी की अवस्था से ऊपर उठ कर , मनुष्य शरीर प्राप्ति को , देखा है और कहा है , " जब मनुष्य देह मिले, अपना जीवन, उत्सर्ग पर ले जाओ ...ये देह , मुश्किल से मिलती है , उसे , व्यर्थ में ही, जाया ना करो ....चौरासी लाख के फेरे के बाद ही मुक्ति है !

जानकारी , थोड़ी और भी यहाँ है सिकाडा के बारे में : ~~~

http://www.cicadamania.com/cicadas/2008/06/07/the-indian-hill-ladies-cicada-society/
.“Locusts”
Cicadas belong to the order Hemiptera, suborder Homoptera and family Cicadidae। Leafhoppers, spittle bugs and jumping plant lice are close relatives of the cicada। Hemiptera are different from other insects in that both the nymph and adult forms have a beak, which they use to suck fluids called xylem from plants. This is how they both eat and drink....

31 comments:

Ghost Buster said...

Absolutely unheard of before. Thanks for info.

उन्मुक्त said...

पहली बार पता चला।

mehek said...

bahut achhi jankari rahi sikda ke upar,sahi pehli baar suna enke bare mein.

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया जानकारी, आभार!

Manish Kumar said...

hindi mein ise kya kahte hain?

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर जानकारी दी आपने ! बहुत धन्यवाद !

सतीश पंचम said...

पोम्पोनीया इम्प्रोटोरीया...टीबीकन वाल्कारी ...आनार्क्रोनीता.....उफ्फ....नाम हैं या आफत....बोलते समय जबान वक्राकार होने से इन्कार कर देती है :)
अच्छी जानकारी भरी पोस्ट।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मनीष भाई,
इसे सिकाडा ही कहते हैँ - अगर इसका पारम्पारिक भारतीय नाम भी है तो उसे मैँ नहीँ जानती
शायद कोई, जीव शास्त्री ही जानता हो ! या जो कोई खेती बाडी या फल उत्पादन से सँबँधित ज्ञान रखता हो उसे मालूम होगा !
- मैँ भी जानना चाहूँगी - सिकाडा का आना और जाना देख चुकी हूँ तो लगा आप सभी के साथ ये जानकारी शेर की जाये और ये पोस्ट तैयार है !:)
- लावण्या

Abhishek Ojha said...

सिकाडा महाराज से मिलकर अच्छा लगा... पर इनका अंत बड़े अजीब तरीके से होता है... वैसे ऐसा कई कीडों में होता है.

लोग तो कुछ भी खाते हैं :( तो इन्हें कैसे बख्स देते.

राज भाटिय़ा said...

लावण्यम् जी धन्यवाद इस जानकारी के लिये अपने बेटे से पुछुगा वह लेटाईन पढता हे

Arvind Mishra said...

पहले तो आपको कोटिशः आभार इतनी रोचक जानकारी देने के लिए -जब साहित्यकार पूरी जिम्मेदारी से विज्ञान -प्रकृति के बारे में लिखता है तो ऐसी ही सुंदर कालजयी रचना जन्मती है -मैं इसे लोकप्रिय विज्ञान की श्रेणी में मानता हूँ -पर अपने विज्ञान के ज्ञान पर शर्मसार भी हूँ मैं कीट विज्ञानी तो नहीं हूँ मगर प्राणी विज्ञान में स्नातकोत्तर हूँ -मगर आपके पोस्ट को पढ़कर दुविधा में पड़ गया हूँ कि आख़िर हमारे यहाँ सिकाडा को क्या कहते हैं ? मैंने भी कभी इस पर कुछ नहीं लिखा !
क्या यह रेवां है ? जो लगभग बरसात और जाडे के पहले काफी शोर मचाता है .कामिल बुल्के ने इसका नाम रईयाँ लिखा है -हो न हो यह रेवां ही है -झींगुर से अलग !
मगर जो फोटो आपने लगाई है उससे तो रेवां थोडा भिन्न दीखता है -मगर मेरी खोज जारी है !

पारुल "पुखराज" said...

acchhi post lagi DI ,

admin said...

सिकाडा के बारे में जानकारी देने का शुक्रिया।

कुश said...

बहुत बढ़िया जानकारी रही ये तो.. बहुत आभार आपका

Gyan Dutt Pandey said...

अरे, यह तो जीव/कीट है! मैं तो नाम से सिंघाड़ा (water chestnut) जैसी कोई चीज की अटकल लगा रहा था!
अच्छी जानकारी।

Ashok Pandey said...

बहुत ही सुंदर और जानकारीपूर्ण आलेख लिखा है आपने। निश्‍चय ही हमें इन जीवों के बारे में कुछ जानकारी रखनी चाहिए।

टिड्डे यानी लोकस्‍ट तो बहुत तरह के हम देखेते रहते है। कई टिड्डे झुंड के झुंड फसलों पर टूट कर उनकी पत्तियों को चाट जाते हैं। लेकिन इनके जीवन के बारे में हमें बहुत जानकारी नहीं है। सिकाडा नाम हमने भी नहीं सुना है, लेकिन जैसा कि अरविन्‍द मिश्रा जी बता रहे हैं फादर कामिल बुल्‍के के हिन्‍दी-अंगरेजी कोश में यह शब्‍द आया है। उसमें इसका हिन्‍दी अर्थ रइयां और चिश्‍िचर दिया हुआ है। हमारे इलाके में लोगों के लिए रइयां और चिश्‍िचर शब्‍द भी अजनबी ही हैं। संभव है ये शब्‍द झारखंड में प्रचलित हों, क्‍योंकि फादर कामिल बुल्‍के संत जेवियर कॉलेज, रांची के हिन्‍दी विभागाध्‍यक्ष रहे थे। वैसे जब उनके शब्‍दकोश में यह शब्‍द आया है तो इसका मतलब है कि भारत में सिकाडा का अस्तित्‍व जरूर है, क्‍योंकि अपने शब्‍दकोश की प्रस्‍तावना में वे लिखते हैं कि जो जीव-जन्‍तु और पेड़-पौधे भारत में नहीं पाए जाते उन्‍हें उनके कोश में स्‍थान नहीं दिया गया है।

हम जानना चाहते हैं कि लोकस्‍ट और सिकाडा में क्‍या अंतर है?

डॉ .अनुराग said...

biology की किताब याद दिला दी आपने आज .......

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Thank you Mr Ghosht Buster ji :)...& I bet, you found it interesting ! same as moi ...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

उन्मुक्त जी
आपकी टीप्पणी का बहुत बहुत आभार !
स स्नेह, सादर,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Thank you my dear Mahek ...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

समीर भाई
आपकी टीप्पणी का बहुत बहुत आभार !
स स्नेह, सादर,

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ताऊ जी :)
आपकी टीप्पणी का बहुत बहुत आभार !
स स्नेह, सादर,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सतीश पँचम जी :)
जी हाँ अब दक्षिण भारतीय नामोँ से ये ग्रीक व लैटीन नाम कम थोडे ना हैँ !
आपकी टीप्पणी का बहुत बहुत आभार !
स स्नेह, सादर,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अभिषेक भाई,
हाँ जी, जो बख्शा गया उसी की गनीमत है :)
कई सारे जीव जँतु का ऐसा ही हश्र होता है, है ना ?
आपकी टीप्पणी का बहुत बहुत आभार !
स स्नेह, सादर,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

जी राज भाई साहब, आपके बेटे से पूछ कर अवश्य बतलाइयेगा
आपकी टीप्पणी का बहुत बहुत आभार !
स स्नेह, सादर,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अरविँद भाई साहब,
फादर कामिल बुल्के का अशोक भाई जी ने भी जिक्र किया है~
मैँने उनकी पुस्तक कभी देखी नहीँ परँतु, सिकाडा देखा और उत्सुकता हुई, और जो मिला वह हाज़िर है !
आप भी शोध करने के उपराँत अवश्य लिखियेगा ..
आपकी टीप्पणी का बहुत बहुत आभार !
स स्नेह, सादर,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Thank you so much Sweet Parul for your comment & presence during
"the Cicada Puran :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ज़ाकीर भाई साहब,
आपकी टीप्पणी का बहुत बहुत आभार !
स स्नेह, सादर,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

कुश भाई
आपको पसँद आया, खुशी हुई
आपकी टीप्पणी का बहुत बहुत आभार !
स स्नेह, सादर,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अशोक भाई साहब,
रुईयाँ या चिशचिर अगर यही सिकाडा है तब उनके चित्र मेँ साम्य होना चाहीये
अगर ये अलग तरह का कीट है तब सिमला या कश्मीर जहाँ सेब, नासपाती जैसे फल ज्यादा उगते हैँ और नैसर्गिक
उत्पादन हो वहाँ शायद सिकाडा होँ तब फलोँ की गुणवता मेँ सुधार सँभव है - इस पर शोध होनी चाहीये
खेती बाडी, फल उतापदन से सँलग्न, विभाग के लिये ये जानकारियाँ जरुरी हो जायेँ शायद और आलेख
आपको पसँद आया, खुशी हुई ~` मेहनत सफल हुई !
आपकी टीप्पणी का बहुत बहुत आभार !
स स्नेह, सादर,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अनुराग भाई
डाक्टर साहब को उनका एक विषय याद कराकर खुशी हुई :)
आपकी टीप्पणी का बहुत बहुत आभार !
स स्नेह, सादर,
- लावण्या