ना कोई बारू , ना कोई बँदर, चेत मछँदर,
आप तरावो आप समँदर, चेत मछँदर
निरखे तु वो तो है निँदर, चेत मछँदर चेत !
धूनी धाखे है अँदर, चेत मछँदर
कामरूपिणी देखे दुनिया देखे रूप अपार
सुपना जग लागे अति प्यारा चेत मछँदर !
सूने शिखर के आगे आगे शिखर आपनो,
छोड छटकते काल कँदर , चेत मछँदर !
साँस अरु उसाँस चला कर देखो आगे,
अहालक आया जगँदर, चेत मछँदर !
देख दीखावा, सब है, धूर की ढेरी,
ढलता सूरज, ढलता चँदा, चेत मछँदर !
चढो चाखडी, पवन पाँवडी,जय गिरनारी,
क्या है मेरु, क्या है मँदर, चेत मछँदर !
गोरख आया ! आँगन आँगन अलख जगाया, गोरख आया!
जागो हे जननी के जाये, गोरख आया !
भीतर आके धूम मचाया, गोरख आया !
आदशबाद मृदँग बजाया, गोरख आया !
जटाजूट जागी झटकाया, गोरख आया !
नजर सधी अरु, बिखरी माया, गोरख आया !
नाभि कँवरकी खुली पाँखुरी, धीरे, धीरे,
भोर भई, भैरव सूर गाया, गोरख आया !
एक घरी मेँ रुकी साँस ते अटक्य चरखो,
करम धरमकी सिमटी काया, गोरख आया !
गगन घटामेँ एक कडाको, बिजुरी हुलसी,
घिर आयी गिरनारी छाया, गोरख आया !
लगी लै, लैलीन हुए, सब खो गई खलकत,
बिन माँगे मुक्ताफल पाया, गोरख आया !
"बिनु गुरु पन्थ न पाईए भूलै से जो भेँट,
जोगी सिध्ध होइ तब, जब गोरख से हौँ भेँट!"
(-- पद्मावत )
बाबा गोरखनाथ महायोगी हैँ- !
८४ सिध्धोँ मेँ जिनकी गणना है, उनका जन्म सँभवत, विक्रमकी पहली शती मेँ या कि, ९वीँ या ११ वीँ शताब्दि मेँ माना जाता है। दर्शन के क्षेत्र मेँ वेद व्यास, वेदान्त रहस्य के उद्घाटन मेँ, आचार्य शँकर, योग के क्षेत्र मेँ पतँजलि तो गोरखनाथ ने हठयोग व सत्यमय शिव स्वरूप का बोध सिध्ध किया ।
कहा जाता है कि, मत्स्येन्द्रनाथ ने एक बार अवध देश मेँ एक गरीब ब्राह्मणी को पुत्र - प्राप्ति का आशिष दिया और भभूति दी !
जिसे उस स्त्री ने, गोबर के ढेरे मेँ छिपा दीया !--
१२ वर्ष बाद उसे आमँत्रित करके, एक तेज -पूर्ण बालक को गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने जीवन दान दीया और बालक का " गोरख नाथ " नाम रखा और उसे अपना शिष्य बानाया !
- आगे चलकर कुण्डलिनी शक्ति को शिव मेँ स्थापित करके, मन, वायु या बिन्दु मेँ से किसी एक को भी वश करने पर सिध्धियाँ मिलने लगतीँ हैँ यह गोरखनाथ ने साबित किया।
उन्होंने हठयोग से, ज्ञान, कर्म व भक्ति, यज्ञ, जप व तप के समन्वय से भारतीय अध्यात्मजीवनको समृध्ध किया।--
गोरखनाथ से ही राँझा ने, झेलम नदी के किनारे , योग की दीक्षा ली थी ।
झेलम नदी की मँझधार मेँ हीर व राँझा डूब कर अद्रश्य हो गये थे !
मेवाड के बापा रावल को गोरखनाथ ने एक तलवार भेँट की थी जिसके बल से ही जीत कर, चितौड राज्य की स्थापना हुई थी !
गोरखनाथ जी की लिखी हुइ पुस्तकेँ हैँ , गोरक्ष गीता, गोरक्ष सहस्त्र नाम, गोरक्ष कल्प, गोरक्ष~ सँहिता, ज्ञानामृतयोग, नाडीशास्त्र, प्रदीपिका, श्रीनाथसूस्त्र,हठयोग, योगमार्तण्ड, प्राणसाँकली, १५ तिथि, दयाबोध इत्यादी ---
गोरख वाणी :
" पवन ही जोग, पवन ही भोग,पवन इ हरै, छतीसौ रोग,
या पवन कोई जाणे भव्, सो आपे करता, आपे दैव!
" ग्यान सरीखा गिरु ना मिलिया, चित्त सरीखा चेला,
मन सरीखा मेलु ना मिलिया, ताथै, गोरख फिरै, अकेला !"
कायागढ भीतर नव लख खाई, दसवेँ द्वार अवधू ताली लाई !
कायागढ भीतर देव देहुरा कासी, सहज सुभाइ मिले अवनासी !
बदन्त गोरखनाथ सुणौ, नर लोइ, कायागढ जीतेगा बिरला नर कोई ! "
-- सँकलन कर्ता : लावण्या
34 comments:
गोरखनाथ के बारे में जानकारी में बढ़ोतरी हुई।
लावण्यम् बहुत बहुत धन्यवाद,इस अच्छी जान कारी देने के लिये, अभी तो मेने ऊपर वाला भजन ही पढा हे कल पुरी पोस्ट पढुगां
गोरखनाथ के बारे में थोडी छित-पुट जानकारी थी... पर इतनी नहीं. धन्यवाद आपका. भर्त्रीहरी और गोपीचंद इन्हीं की परम्परा के प्रसिद्द योगी हुए, ऐसा सुना था.
गुरु गोरखनाथ के बारे में बहुत अच्छी जानकारी. संयोग की बात है कि कुछ दिन से ही मग्गा बाबा के ब्लॉग पर भी उनके बारे में प्रवचन चल रहा है.
इन साधको ,ज्ञान पिपासुओं कार्य और जीवन आज भी रहस्य के घेरे में है -आपने रहस्य के कुहांसे को अपने अध्ययन -ज्ञान रश्मियों से थोडा हटाने का प्रयास किया -आभार !
नाथ सप्रदाय के अनन्य गुरू गोरखनाथ के बारे में आपका ये लेख एक अमानत है। गोरखवाणी मालवी में भी गाई जाती है.गोरखनाथजी के महान शिष्य थे उज्जैन के राजा भर्तहरी जिन्होंने नीति और श्रृगांर शतक ख्यात हैं. एक मालवी पद देखिये जिसमें आत्मा को हेली यानी सखी माना गया है वह कह रही है हमारा जीवन तितली के पीले पंखों जैसा है , शाम होते होते उड़ जाना है,परदेस में बसे पीयु (परमात्मा) से मिलना जो है , आओ तुम्हें उस भावनगरी की सैर करवा दूँ...
हेली म्हारी पीळा पतंगिया या पान
उड़ जावे भैया रैन की घड़ी
म्हारा पीयु परदेसी लोग
बताऊ थने भाव नगरी हो जी
(देखिये ये जी मराठी में भी आता है और गुजराती में भी , यही लोकगीतों की सह्रदयता है कि वे हर बोली हर भाषा को अपने में समाहित कर लेते हैं)
और आख़िर में ग़ज़ल की तरह गोरख का तख़ल्लुस भी इस पद के अंतिम पद में है...
हेली म्हारी बाणी या गोरख बोल्या
या निरगुण ग्यान से जड़ी
हो म्हारा पीयु परदेसी लोग
बताऊं थने भावनगरी..
गोरख कहते हैं ये बोली ग्यान (मैं ग्य ठीक से टाइप नहीं कर पा रहा ग्यानीजन माफ़ करें)से जड़ी हुई है.
मोटाबेन (हमारी लावण्याबहन बड़ी है तो गुजराती परम्परा के अनुसार उन्हें मोटाबेन यानी बड़ी बहन संबोधित करता हूँ)यदि कमेंट में गाकर प्रतिसाद देने (यानी ऑडियो) की सुविधा होती तो ख़ाकसार गाकर ही ये मालवी पद सुनाता आप सब को,क्योंकि धुन के बिना मज़ा नहीं बनता.
गुरू गोरखनाथ से ही नौनाथ परम्परा बनी जिसमें कालांतर में भर्तहरी,मछेंद्रनाथ आदि नौ संतों के नाम आते हैं.
हरि ओम.
सँजय भाई,
आज तो मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गोरख नाथ जी की कृपा हुई है !
आपने अदभुत माळवी भाषा मेँ
गोरख बाणी सुनवाई -
हो सके तो पोडकास्ट करीयेगा
- जब भी हो सँभव !
नाथ सँप्रदाय भारत की
अमूल्य निधि है
ब्रह्माण्ड मेँ जितना सब है,
उसे हम, कहाँ समझते या जानते हैँ ?
गुरु कृपा बिना ज्ञान सँभव नहीँ !
बहुत आभार आपका
इस जानकारी और ज्ञानपूर्ण टीप्पणी का -
आपकी मोटी बेन खुश हुई :)
......................
स स्नेह,
-लावण्या
दिनेश भाई जी,
राज भाई साहब,
अभिषेक भाई,
अनुराग जी,
अरविँद भाई साहब,
आपने गुरु गोरखनाथ के बारे मेँ
पढा और सराहा
गुरु कृपा करेँ यही कामना है ~~
स स्नेह,
-लावण्या
नाथ पंथ में महान योगी हुए हैं ! और गोरख नाथ जी जितने हठ योग और सिद्धियों में पारंगत सिद्ध थे ! उतने ही उनकी वाणी ने मानवता को जीने का एक सहज तरीका बताया ! नीचे उनकी दो लाइने उनकी वाणी से देखिये !
"गोरख कहैं सुणहुरे अवधू , जग में ऐसे रहणा !
आँखें देखिबा कानें सुणिबा मुख थैं कछु ना कहणा !!
जो मानव ये सीख मानले तो जिन्दगी बहुत सुन्दर बन जाती है ! गोरखनाथ जी के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ जी थे , जो मछिंदर, या मछेन्द्र नाथ के नाम से भी पुकारे जाते है !
इस योगी पुरूष को याद करवाने के लिए आपका धन्यवाद !
बाबा गोरखनाथ के बारे मे इतनी विस्तृत जानकारी नही थी। थोड़ा बहुत ही जानते थे पर आज आपका लिखा पढ़कर बहुत कुछ जान गए। और गोरख वाणी बहुत अच्छी लगी।
अच्छी जानकारी दी आपने...इतना कुछ हमें पता नहीं था!
जानकारी ले लिए आभार......
नथ सम्प्रदाय के महायोगी से परिचय आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के लेखन में हुआ था। अब यह पोस्ट और ये टिप्पणियां - आनन्द आ गया।
ऐसी पोस्टों से ब्लॉग पर समय गुजारना सार्थक लगता है।
बाबा गोरखनाथ के विषय में इतने अमूल्य जानकारियां देने के लिए बहुत बहुत आभार.बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर.कृपया इस प्रकार की श्रृंखलाएं भविष्य में भी देते रहने का अनुग्रह करेंगी.
sasneh saabhaar.....
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हरि ॐ तत्सत
with warm regards,
- Lavanya
इतनी अच्छी जानकारी, ध्यान से पढ़ा..अलग ही अनुभव दिया आपने...इसे सरसरी तो पढ़ा ही नही जासकता था...बेहद शुक्रिया
बढिया आलेख। रहस्यवादी नाथपंथियों के बारे में हजारीप्रसाद द्विवेदी ने काफी शोध किया था जो हजारीप्रसाद ग्रंथावली में भी उपलब्ध है और फुटकर भी।
आगे भी ऐसी ही सामग्री का इंतजार रहेगा. ..
उपयोगी व ज्ञान वर्धक पोस्ट.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
लावण्याजी
काफी रसवर्धक जानकारी |
धन्यवाद
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए
आप सभीका धन्यवाद जो अपने व्यस्त समय मेँ से कुछ समय लिकाल कर यहाँ आये और मेरी बातोँ को सुना और आपके विचारोँ से हमेँ अवगत करवाया ..आते रहीयेगा ....
" एक दीप सौ दीप जलाये,
मिट जाये अँधियारा "
- लावण्या
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Well done !
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-- Lavanya
लावण्या जी !आपने मेरे ब्लॉग पर आकर मेरी रचना पढ़ी ,कृतज्ञ हूँ ! पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की विदुषी पुत्री की
टिप्पणी मेरे लिए सौभाग्य की बात है !गोरखनाथ जी का तंत्र के क्षेत्र में योगदान भारतीय मनीषा की अद्वितीय
धरोहर है , उनके बारे में आपके आलेख से बहुत नई जानकारियां मिलीं ! " साधो ऐसा करम न कीजै, जासों अमिय महारस छीजै "गोरख के इस महारस की एक बूँद भी छीजने से बच जाय तो जीवन सार्थक हो जाय!
ललित भाई,
बहुत सार्थक पँक्तियाँ लिखी आपने बाबा गोरखनाथ को पुनः प्रणाम !
- लावण्या
dear lavanyaji
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Mujhe Gorakh Nath ji ke aarti,chalisa , unke jeevan ke ware mai aache aache collection cahaye......mujhe kahsa se milenge....please suggest me:9582269163
There are so many untold & unfold stories about Gorakh nath. मरौ वे जोगी मरौ मरौ मरन है मीठा।
तिस मरणी मरौ, जिस मरणी गोरष मरि दीठा।।....बहुत ही पुन्य कार्य कर रहे है ...आप....बहुत बहुत साधुवाद ...आदेश आदेश !!
आदि-नाथ कैलाश-निवासी, उदय-नाथ काटै जम-फाँसी।
सत्य-नाथ सारनी सन्त भाखै, सन्तोष-नाथ सदा सन्तन
की राखै। कन्थडी-नाथ सदा सुख-दाई, अञ्चति अचम्भे-
नाथ सहाई। ज्ञान-पारखी सिद्ध चौरङ्गी, मत्स्येन्द्र-नाथ
दादा बहुरङ्गी। गोरख-नाथ सकल घट-व्यापी, काटै कलि-
मल, तारै भव-पीरा। नव-नाथों के नाम सुमिरिए, तनिक
भस्मी ले मस्तक धरिए। रोग-शोक-दारिद नशावै, निर्मल
देह परम सुख पावै। भूत-प्रेत-भय-भञ्जना, नव-नाथों का
नाम। सेवक सुमरे ,पूर्ण होंय सब काम।।”
जय जय गुरु देव , जय जय नव नाथाय नमः
नमः शिवाये , बहुत बहुत धन्यबाद बहुत ज्ञान प्राप्त हुआ । मुझे गोरक्ष गीता की पुस्तक और बाबा गोरख नाथ के बारे में और ज्ञान चाहिए ।अविनाश
रौचक !👍
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