ताकि जो सूचना लिखी हुई है उसे आप बडे अक्षरोँ मेँ पढ पायँगेँ ~~~
जब भी मानव पॅँछियोँ को खुले आसमान मेँ उडता देखता,
उसे भी ऐसा लगता, कि,
" काश ! मैँ भी बादलोँ को छू सकता ! "
अरे ये गीत भी याद होगा आपको,
" पँछी बनूँ उडती फिरुँ मस्त गगन मेँ,
आज मैँ आज़ाद हूँ, दुनिया के चमन मेँ "
जी हाँ बिलकुल ऐसा ही अँदाज़ !
ये भूतल पर बसे, धरती से जुडे हरेक इन्सान के मन मेँ
कभी ना कभी, कहीँ ना कहीँ आनेवाला विचार था -
जिसे आधुनिक युग मेँ सबसे पहली बार बलुन से जुडी एक टोकरीनुमा यान मेँ बैठकर आसमान मेँ ऊँचे उडकर सम्पन्न किया गया।
मेरे प्राँत के एक छोटे से शहर मेँ !
डेटन नाम है इस कस्बे का !
जहाँ 'राईट बँधुओँ ने सर्व प्रथम विमान की सफल उडान भरकर
मानव को मुक्त गगन मेँ विचरने के लिये प्रेरित करता सफल प्रयोग किया था।
- समय था २० वीँ सदी का आरँभ -
सन्` १९०० एक नवीन समय शताब्दि लेकर पृथ्वी पर आया।
जहाँ मानव के मशीनी युग ने आसमान छूने की पहल की थी -
गत सप्ताह मेरे जीजाजी बकुल मोदी बँबई से मुझे मिलने आये तो उनके साथ हमने भी , इस राईट बँधुओँ के म्युझियम की सैर की -
ये चित्र आज देखिये , दूसरे कई सारे चित्र , आगे दीखाते हुए
आपको भी सैलानी बनाते हुए ले चलेँगेँ ....
आशा है आपको भी ये जानकारियाँ रोचक लगेँगीँ !
टीप्पणी अवश्य करियेगा और आपके सुझाव भी रखियेगा .
॥अग्रिम धन्यवाद के साथ, अभी इतनी बातेँ करते हुए...आज्ञा .....
- लावण्या
सन्` १९००१९०१,
१९०२ ....
( अभी अभी ब्लोगवाणी पर देखा तो मेरी पोस्ट के साथवाली पोस्ट का शीर्षक है " आजकल पाँव ज़मीँ पर, नहीँ पडते मेरे " और मेरी पोस्ट का शीर्षक है, " काश मैँ भी बादलोँ को छू सकता !! है ना मज़ेदार इत्तेफाक !! )
:-))
-- लावण्या
25 comments:
आपने दो साल पहले की यादें ताजा करा दी, जब मैं वहाँ गया था. बहुत आभार.
लावण्या दी ,
चीज़ो को देखने - परखने और चुनने का आपका अंदाज़ बेहद सरल है। इस सरलता में ही मुझे निरालपन लगता है क्योंकि मैं ऐसी सहजता और सरलता से बात नहीं कह पाता।
अच्छी पोस्ट...
शुक्रिया समीर भाई और अजित भाई !
समीर भाई आप कब आये और हमेँ मिले भी नहीँ ? ऐसा क्यूँ ?
अब ऐसा नहीँ करियेगा !
- ok ? :)
How was Vegas ?
स स्नेह,
-लावण्या
बहुत अच्छा। मजा आ गया। आपने तो घर बैठे ही सैर करा दिया
मन मयूर हो गया यह पढ़ देख कर।
उत्साह से लिखना कोई आप से सीखे!
फिर से एक बार इंन्सान के उड़ने के प्रारंभ की जानकारी चित्र सहित प्राप्त कर अच्छा लगा। इसे हवा में तैरना भी कहा जा सकता है। अब तो बिना हवा के चलना (अंतरिक्ष में) भी सीख लिया है इंसान ने।
मन भी उड़ा इसको पढ़ कर ..बहुत अच्छा लगा इसको पढ़ कर शुक्रिया लावण्या जी
इस तरह की पोस्ट्स के लिए बहुत आभार । आपके सैर के प्रमाण देख कर हम भी आनन्दित हो लिए।
लावण्या जी,
अच्छी और जानकारीपूर्ण पोस्ट!
धन्यवाद!
बहुत बढ़िया लगा। आभार।
लावण्या जी , आप की जो संस्मरण और यात्रा वृत्तांत लिखने की शैली है वो मेरा जी चुरा ले जाती है......और लगता है कि सही अर्थ में हिन्दी साहित्य को योगदान दिया जा रहा है , अन्यथा काफ़ी ब्लॉगर सिर्फ़ अपनी भडास निकलते प्रतीत होते है......सस्नेह नमन ...स्वाति
बेहद उम्दा प्रस्तुति .....पिछले दिनों कुछ व्यस्त रही है शायद ........आपकी लाइन चुरा ले जा रहा हूँ ...काश मै भी बादलो को छू सकता
लवण्या जी, बहुत बढिया पस्तुति..
आपके यात्रा वृत्तांत से सैर की सैर और ज्ञान वर्धन अलग से !
आपको पढ़ने में बहुत आनंद आता है ! बहुत धन्यवाद और
शुभकामनाएं !
एक बिल्कुल ही अलग अनुभव हो रहा है इस उड़ान मे।
शुक्रिया।
rokiye jaise bane in swapna walo ko
swarga ki hi oar badhte aa rahe hai ve
Panktiya.n chritarth ki...!
thx DI,..post munbhaayi....
लावण्याजी
बेशक अति रोचक जानकारी | न जाने भविष्य में मानवका यह स्वप्न साकार भी हो सकता हैं |
एक और गीत याद आता है : पंख होते तो उड़ आती मैं ......
आभार |
हर्षद जांगला
एटलांटा युएसए
वॉशिंगटन डीसी की एक म्यूज़ियम में ऐसे चित्र दिखे थे. कई सारे दस्तावेज और मॉडल भी.
अच्छी प्रस्तुति.
लावण्या जी ऎसा भी जरुर होगा एक दिन आज कल के बच्चे बहुत सपने देखते हे, ओर उन की हिम्मत की दाद भी देनी चाहिये , जो कुछ करना चाअते हे पहले ऎसे सपने ही देखते हे
धन्यवाद एक सुन्दर जान कारी के लिये
आप सभीने
इस जानकारी को पसँद किया
उसकी बहुत खुशी है -
अनेकोँ धन्यवाद !
- स स्नेह्,
लावण्या
ये दस्तावेज़ीकरण बहुत आवश्यक हो गया है.आने वाली नस्लें आपकी इस पोस्ट को ढूँढ ढूँढ कर पढेंगी मोटाबेन.
अशेष शुभेच्छाएँ आपके इस सुकार्य के लिये.
"लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` "
इस हिन्दी ब्लोग को
अगर आनेवाले समय मेँ
पढा जाये तब सारी मेहनत सफल होगी !
मुझसे ऊम्र मेँ भले ही छोटे
मगर कला पारखी नज़रोँ मेँ बडे
मेरे सँजय भाई को
(दीव्य द्रष्टिवाले भाई को :-)
"मोटा बेन " का बहुत आभार !!
- इसी भाँति आशिष भी मिलता रहे आपका और स्नेह भी
तब सारा प्रयास सही रहेगा ~
-लावण्या
विज्ञान से जुड़ी जानकारी बहुत रोचक तरीके से दी आपने... इससे पहली पोस्ट मे भी सरल तरीके से बढिया जानकारी दी है..
मीनाक्षी जी
मेरी यात्राएँ
आपके साथ शेर कर रही हूँ :)
शुक्रिया टीप्पणी का
स स्नेह,
-लावण्या
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