Saturday, August 30, 2008

भीष्म बने मुकेश खन्ना की बातें - जारी --

वैसे तो चोपडा साहब और रविजी का निर्देशन ही है जिसने मुझे सही मार्ग पर डाला और मुझे वो गल्तियाँ करने से रोका, जो हर किरदार कहीँ न कहीँ कर बैठता है । यह डायरेक्टर का काम होता है कि वह हर कलाकार की खामियाँ छुपाये और उसके "प्लस पाइँट" को उभारे। भीष्म के किरदार को जीने मेँ उन्हँने मेरा बहुत मार्गदर्शन किया. इसके अलावा डा. राही मासूम रज़ा साहब ने इस किरदार की वाणी को इतने भारी - भरकम और जोरदार सँवाद दिये कि जिनकी वजह से आज यह भीष्म पितामह का किरदार , लोगोँ को इतना विशाल लग रहा है इसका सारा श्रेय राही साहब को ही जाता है।
लेकिन भीष्म पितामह की आत्मा से अगर मुझे किसीने मिलाया तो वे पँडित नरेन्द्र शर्मा ही थे !
उनके पास मैँ जितनी बार बैठा, कुछ ज्ञान अर्जित करके ही उठा । वैसे तो इत्तफाकन मैँने "महाभारत " बचपन से ही पढी है, जिसकी वजह से मुझे "महाभारत " के सभी किरदारोँ के बारे मेँ काफी कुछ पता है , लेकिन जब पँडितजी बोलते, तो मुझे पता चलता कि , " महाभारत " कितना विशाल है, उसमेँ जानजे जैसा कितना कुछ है !
कई बार वे कुछ गूढ बातेँ बोल जाते कि मैँ उसे समझना छोडकर उनका मुँह ताकता रह जाता और मेरे दिमाग मेँ उस वक्त यही बात टेप की तरह चलती रहती कि कितना ज्ञान है इनमेँ ! जैसे एक बार वे मुझे कालिया मर्दन का तत्व समझा रहे थे और दस मिनट तक मैँ उनका मुँह ताकता रह गया बातेँ इतनी गूढ थीँ कि मेरे तुच्छ दिमाग को क्या समझ आतीँ !
मैँ पूरी तरह आत्म विभोर होकर उनका दिया ज्ञानग्रहण करने की कोशिश करता रहा भले वह बात पूरी तरह मेरे भेजे मेँ गयी नहीँ लेकिन उस दिन मुझे अहसास हुआ की ज्ञान की कोई सीमा नहीँ होती, उस वक्त मुझे पता चला कि पढने और समझने मेँ क्या फर्क है !
भीष्म प्रतिज्ञा : लिंक :
http://www.youtube.com/watch?v=H6dpP0OdlBE&feature=related

और गीत : दिन पर दिन बीत गए :
http://www.youtube.com/watch?v=4gY_3vNZigA&feature=related

" उनकी भविष्यवाणी अक्षरश:सत्य हुई उन्होँने कहा था कि " .and now you wait for a terrific boost in coming weeks " ......" और सचमुच कुछ ही हफ्तोँ मेँ भीष्म पितामह का किरदार पूरे भारत वर्ष मेँ छा गया - यह सारा श्रेय मैँ उन्हीँ को देता हूँ जिन्होँने मुझे भीष्म पितामह की आत्मा के दर्शन करवाये इस तरह से महाभारत बनती रही और हर कदम पर अपने मार्गदर्शन लेते रहे - हर कलाकार एक बार उनसे मिलकर, अपना किरदार जान लेना, समझ लेना, जरुरी समझता था।

अक्सर लोग उनके घर भी पहुँच जाते थे, पता नहीँ ये सँयोग था कि मैँ चाहकर भी उनके घर नहीँ जा पाया ! एक बार जब आखिरकार उनके घर पहुँचा भी तो उनसे मिल नहीँ पाया ! उनकी तबियत उस दिन कुछ ठीक नहीँ थी उनकी धर्मपत्नी मुझसे बडी आत्मीयता से मिलीँ और मुझसे कहा,

" बेटे , उनकी तबियत कुछ खराब थी इस्लिये अभी लेटे हैँ, कहो तो उन्हेँ उठा दूँ ? " मैँने कहा, ;

" नहीँ , मैँ तो सिर्फ मिठाई देने आया हूँ "

मैँने नई मारुति गाडी ली थी और उसीकी मिठाई देने गया था पँडित जी को !

उन्हेँ ये जानकर बहुत खुशी हुई वे बोलीँ,

" पँडितजी अक्सर तुन्हेँ याद करते हैँ तुम्हेँ बहुत चाहते हैँ वो ! "

जब मुझे बाहर छोडने आयीँ तो बोलीँ,

" तुम और भी तरक्की करो और अगली बार इससे भी बडी गाडी मेँ आओ ! " लेकिन विधाता का खेल कि मैँ पँडित जी को उनके घर पर कभी नहीँ मिल पाया ! :-(

अगली बार जब उनके घर पर गया तब मिला उनके पार्थिव शरीर से !

मुझे जब गुफी ने उनके निधन की खबर दी तो मैँ चकरा गया !

यह कैसे हो गया ? ऐसा लगा मानोँ सर पर से पिता का साया चला गया हो !

कुछ पल फोन पकडकर सुन्न यूँ ही बैठा रहा ! ऐसा लगा, जैसे हम अनाथ हो गये हैँ ! महाभारत से जुडे सभी के मन मेँ पहला प्रश्न यही आया कि अब " महाभारत " कैसे बनेगी ?

उनके घरवालोँ के लिये यह बहुत बडा नुकसान है ही पर महाभारत से जुडे सभी के साथ ऐसा हुआ मानोँ कोई रेगिस्तान मेँ अकेला छोडकर चला गया जहाँ मीलोँ कहीँ पानी ही न हो ! हम सबके सर से एक बुजुर्ग का हाथ उठ गया था - वह हाथ जो हर कदम पर सहारा देने को तत्पर था, एक ज्ञानी पुरुष जो ज्ञान बाँटने के लिये तैयार खडा रहता था वही आज हमारे सामने से अचानक चला गया था, हमेँ अज्ञान के मरुस्थल मेँ अकेला छोडकर !

मैँ जब उनके घर पहुँचा तब सारा समाँ शोक मेँ डूबा हुआ था - हर कोने मेँ लोग स्तब्ध खडे थे - मुझे उनकी बेटी उनके पार्थिव शरीर की ओर ले गई मैँने वहाँ उनके अँतिम दर्शन किये - चरण छुए - उनकी बेटीने कहा,

" आपको बहुत याद करते थे , तीन दिनोँ से आपके बारे मेँ ही पूछ रहे थे ! "

उनकी पत्नी से मिलने भीतर घर मेँ गया तो आँसू भरी आँखोँ से बोलीँ,

" वे कल से तुम्हारे बारे मेँ परेशान थे कि मुकेश कैसा है ? वो तो मैसुर गया होगा फिर मैँने ही बताया कि आप ठीक हो और परसोँ नई गाडी की मिठाई देने आप आये थे "

मुझे "टीपू सुल्तान " की शूटीँग के लिये मैसूर जाना था !

भगवान कृपासे वो टल गया था - और मैँ, वहाँ शूटीँग सेट पर लगी भयानक आग के हादसे से बच गया था !

- जब से उन्होँने उस भीषण आग की खबर पढी थी वे मेरी चिँता मेँ पड गये थे - उनकी बेटीने बताया कि ३ दिनोँ से उनकी तबियत ठीक न थी फिर भी वे मेरे बारे मेँ चिँतित थे !

मेरी आँखोँ मेँ आँसू उमड आये - मेरे मन मेँ यह टीस और भी जोर से उभरी कि तीन दिन पहले उनके घर गया था फिर भी आखिरी पलोँ मेँ उनसे न मिल पाया ! काश, वे जागे होते तो उनसे मिल पाता !

मुझे पता है, ज़िँदगी भर मुझे इस बात का अफसोस रहेगा !

प्रभु के खेल निराले हैँ जिस आत्मीयता और तन्मयता से पँडितजी "महाभारत " के प्रोजेक्ट से जुडे हुए थे और कमाल का योगदान था उसे के पूर्ण होने तक वे नहीँ रहे ! इसके पहले भी सभी जानते हैँ उन्होँने कई प्रोजेक्टोँ को उन्होँने बुलँदियोँ ता पहुँचाया था मैँ समझता हूँ कि महाभारत जैसे विशाल ग्रँथ को " गीता " जैसे गूढ ज्ञान को साकार रुप देने के मिशन को जिसमेँ वे पूरी तन्मयता से जुडे थे। -

उनके बिछुडने का जितना अफसोस हमेँ है, किसी को न होगा ! जाते जाते भी वे इतना कुछ बता गये हैँ महाभारत लेखन मँडली को कि उस लौ को अँत तक ले जाने मेँ वे सफल ही होँगेँ पँडितजी की दिव्यात्मा वैकुँठ से जब महाभारत के पूरे स्वरुप को देखेगी तो उन्हेँ पूर्ण सँतोष ही होगा ।

आखिर मेँ यही कहना चाहूँगा कि जिस तरह से भीष्म को "इच्छा मृत्यु " का वरदान मिला था, वैसे ही काश, हमारे पँडितजी को भी इच्छामृत्यु का वरदान मिला होता तो वे इस तरह द्वापर युग मे महाभारत को कलियुग मेँ पूरा किये बिना न जाते !

मैँ उनकी दीव्यात्मा को कोटि कोटि प्रणाम करता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि उनकी आत्मा को शाँति प्रदान करे *

( प्रस्तुति : - लावण्या " शेष ~ अशेष से साभार )

21 comments:

mamta said...

मुकेश खन्ना ने जो भीष्म पितामह का किरदार जिया था उसका कोई मुकाबला नही है । अब समझ मे आ रहा है कि उस महाभारत के हर किरदार के पीछे पंडित जी का आशीर्वाद था इसीलिए सब इतने जीवंत थे। वरना आजकल तो न जाने कितनी महाभारत आ रही है टी.वी.पर अगर भूल से भी कोई इन्हे देख ले तो दोबारा नही देखेगा।आज कि महाभारत मे न तो बी.आर चोपडा वाली महाभारत वाला ग्रेस है और न ही वो दम है ।

शुक्रिया लावण्या जी इस प्रस्तुति के लिए।

Manish Kumar said...

शुक्रिया मुकेश जी के संस्मरण को यहाँ बाँटने के लिए। ममता जी के क्न से पूर्णतः सहमत हूँ। रामायण और महाभारत की जो गरिमा पहली बार दूरदर्शन के पर्दे पर दिखी थी वो अब नहीं रही।

रंजू भाटिया said...

रोचक जानकारी दी है आपने .

Gyan Dutt Pandey said...

यह संस्मरण बताने के लिये बहुत धन्यवाद। पण्डित नरेन्द्र शर्मा के व्यक्तित्व के प्रति आदर और भी इण्टेन्स हुआ है।

पारुल "पुखराज" said...

beet gaye din per din beet gaye.....ye geet mahaabharat dekhney ke baad bahut gaaya hai mainey di, aaj aapki post se- bahut dino baad suna....

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बहुत रुचिकर और प्रभावी प्रस्तुति.
नई-नई जानकारी के साथ आपकी साधना...संवेदना
और सशक्त पृष्ठभूमि का लाभ हमें बरबस मिल जाता है.
=================================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

makrand said...

बहुत यादगार लेख बन जायेगा आने वाले समय में !
बहुत धन्यवाद !

ताऊ रामपुरिया said...

आपकी इस प्रस्तुती में इतना तारतम्य बन गया है की ऐसा लगता है हम प्रत्यक्ष मौजूद हो गए हैं ! मुझे तो बड़ा आनंद आता है ! और अगले एपिसोड का इंतजार ही रहता है ! बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण है ! बधाई !

राज भाटिय़ा said...

मुकेश खन्ना जी तो तो जान डाल दी थी इस रोल मे , ओर आप ने इतना अच्छा वर्णन किया की मजा आ गया, अगली पोस्ट का इन्तजार
धन्यवाद

Smart Indian said...

पंडितजी के बारे में यह संस्मरण दिल को गहरे तक छू गया. सच है जो दर्शन भाग्य में नहीं लिखा वह होता नहीं है. आपके द्बारा बहुत कुछ देखने, सोचने और समझने को मिल रहा है, आभार!

Abhishek Ojha said...

आभार इस जानकारी के लिए, महभारत श्रेष्ठ महाकाव्य और ये सीरियल महासीरियल तो था ही.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

सचमुच ज्ञान की कोई सीमा नहीँ होती। महाभारत को जितनी बार पढ़िए उतनी बार कुछ नया मिलेगा। बेहतरीन रोचक पोस्ट।

RADHIKA said...

आपके पिताजी के बारे में जानकर बार बार श्रद्धान्वित हो जाती हूँ,आपने मुकेश जी का संस्मरण पढ़वाया आभार .

admin said...

शायद यह महाभारत का ही सुरूर है कि मुकेश खन्ना भीष्म पितामह ही हो गये हैं। उनके संस्मरण पढवाने का शुक्रिया।

pallavi trivedi said...

ममता से पूरी तरह सहमत हूँ....बहुत अच्छी पोस्ट है ये आपकी!

Unknown said...

मेरे प्रणाम,
एक अनुभव है आपसे साझा करना चाहता हूं। लेकिन कैसे कहूं पता नहीं आप यकीन करेंगी या नहीं। गोमती बैराज से गुजरते हुए अचानक एक महाविशाल आकृति ने रास्ता रोक लिया। देखा तो कार की विंड स्क्रीन सघन, धवल दाढ़ी से ढकी थी। बाहर निकला तो आंखे और माथा बीएसएनएल के टावर जितनी ऊंचाई पर थे। यह भीष्म ही थे जिन्होंने बादलों की सी गरजती आवाज में पूछा किसका अन्न खाते हो।

कहना चाहता था जिसका आपने खाया लेकिन मुंह से निकला किसान का। भीष्म ने खिलवाड़ भाव से अपनी दाढ़ी का एक बाल तोड़कर फेंका। यह क्या नदी के ऊपर एक सफेद सड़क बन गई जिससे चलकर मैं घर आया। तब से अक्सर नींद में वह चेहरा आकर पूछता है कि किसका अन्न खाते हो। कुछ और सिर्फ विराटता और भय से आक्रांत हूं। क्या करूं कृपया बताएं.अन्न को स्रोत पूछती वह तेजस्वी महाकाय आकृति और अदना सा मैं।

art said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति है। सस्नेह

betuki@bloger.com said...

ऐतिहासिक तथ्यों के बारे में जानकारी मिली। बहुत अच्छा लगा। आगे भी आपसे जानकारियां मिलती रहेंगी।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आप सभी का सच्चे ह्र्दय से आभार -- आगे भी इसी तरह की अनोखी जानकारीपूर्ण बातेँ
आप तक पहुँचाने का वादा करते हुए, आगे बढते हैँ -
बहुत स्नेह सहित ,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अनिल यादव जी,
ये तो कोई मनोवैज्ञानिक ही रहस्य का कारण + आपका स्वप्न विष्लेषण कर पायेगा !
पर है वृताँत एकदम अनोखा !
- लावण्या

Ritu Verma said...

My goodness.....after reading these lines I got to know how Pandit ji was associated with the making of Mahabharat. I have always been a big fan of this serial but never knew who was the team leader behind the scenes....What realistic scenes were they.....As I had mentioned, I only remember Pandit ji's name appear on the screen....
And this was news to me that the fire that had happened on the sets of the sword of Tipu Sultan happened a few days from Pandit ji's demise.....we remain unaware of so many things....Thank you so much for sharing ma....