http://video.aol.com/video-detail/mahabharat-arjun-gives-arrow-bed-to-bhishma-pitamah/540748085
" जिस तरह महाभारत युग के कुरुवँश के ज्येष्ठ थे और कुरुवँश का भार उनके चौडे कँधोँ पर था, वैसे ही द्वापर युग के इस महाभारत को आज के इस कलियुग मेँ टी.वी. के परदे पर लानेवाले महारथियोँ मेँ अगर किसी को , भीष्म पितामह की उपाधि दी जा सकती है तो वे थे हमारे स्वर्गीय पँडित नरेन्द्र शर्माजी।
जिस तरह द्वापर युगके भीष्म पितामह को धर्म का पूरा ज्ञान था, वैसे ही पँडित जी को महाभारत का पूरा ज्ञान था और महाभारत बनाने का कोई कदम उनसे पूछे बगैर नहीँ उठाया जाता था।
टीका कैसा होना चाहिये ( किसी कीरदार के माथे पर ) इस छोटी सी बात से लेकर , आयु, रूप रंग , वेशभूषा -
ये सभी बाते पँडितजी बताते थे जैसे वे वहाँ मौजूद थे !
चोपडा साहब से लेकर डा. राही मासूम रज़ा , सतीश भटनागर, भृँग तुपकरी सब उन पर निर्भर थे, हम सभी कलाकार भी, चाहे शकुनी मामा या अर्जुन या कर्ण या विकर्ण सभी उनका मुँह छोटी -छोटी बातोँ के लिये यूँ ताकते थे जैसे किसी शब्द के अर्थ के लिये शब्द कोष की ओर लपकते हैँ !
वैसे तो पँडितजी हिन्दी साहित्य - सागर के एक बहुत कीमती रत्न थे, जिनकी प्रसिध्धि देश -विदेश तक फैली थी॥ मैँने भी स्कूल मेँ हिन्दी की किताबोँ मेँ उनके अक्सर दर्शन किये थे॥ पर सही भावोँ मेँ मेरा साक्षात्कार उनसे, "महाभारत " के निर्माण के दौरान चोपडा साहब के ओफिस मेँ ही हुआ। मैँने सही मानोँ मेँ उन्हेँ वहीँ देखा और वहीँ पहचाना और जैसा सुना था, उससे कहीँ अधिक गुना विशाल व्यक्तित्व मैँने पाया। हिन्दी साहित्य के प्रति उनका क्या योगदान था , ये तो सभी जानते हैँ पर महाभारत सीरियल जो आज हिन्दुस्तान ही नहीँ बल्कि पूरी दुनिया के लोगोँ को हमारी भूली हुई सँस्कृति का दर्शन करा रहा है, उसको, उसके रँग, रुप और आकार मेँ लाने का बहुत बडा श्रेय पँडितजी को ही जाता है। मैँने जब बी. आर ओफिस मेँ पहली बार उनके बारे मेँ सुना तो कोई कह रहा था,
" जब महाभारत की स्टोरी सीटीँग मेँ पँडितजी " महाभारत " का कोई द्रश्य सुनाते हैँ तो वो अक्सर इतने तन्मय हो जाते हैँ कि खडे होकर सुनाने लगते हैँ ..." तब श्री कृष्ण चाबुक लेकर दौडे ..." ऐसे लगता है, जैसे वो खुद महभारत के मैदान मेँ होँ ! इतना सजीव चित्रण वो करते हैँ कि हम सबके रोँगटे खडे हो जाते हैँ ! वो जो कुछ कहते हैँ , उनके एक एक शब्द कीमती होते हैँ और कुछ छूट न जाये इसका हमने उपाय किया है ! एक छोटा टेप रिकार्डर रख दिया जाता है और उनके हर शब्द रेकार्ड कर लिये जाते हैँ "
इतना सुनने के बाद मेरे मन मेँ उनका व्यक्तित्व बन चुका था , लिकिन "महाभारत " की शूटीँग शुरु होनेके बावजूद मैँ उनसे मिल नहीँ सका था । सिर्फ उनके बारे मेँ औरोँ से सुना था कि,
" आज उन्होँने ये "सीन" सुनाया , वो "सीन " सुनाया ! "
स्टोरी सीटीँग सुबह होती थी और मैँ शहर के दूसरे कोने मेँ रहने की वजह से वहाँ अक्सर दोपहर को ही जाता था ।- इसीलिये कभी उनसे मिल नहीँ पाया - फिर एक दिन जब मैँ आफिस मेँ उसी समय गया जब स्टोरी सीटीँग चल रही थी , तो वहीँ पहली बार उनके दर्शन किये और पहले ही दर्शन मेँ उनसे पूरी तरह प्रभावित हो गया ।
मुस्कुराता चेहरा, हँसतीँ आँखेँ , पानकी लालीसे रँगेँ होँठ और उनके पूरे चेहरे से ज्ञान दमकता था ! वो उस समय , महाभारत का कोई द्रश्य सुना रहे थे मैँ पीछे बैठकर सुनता रहा, बिना उन्हेँ डीस्टर्ब किये ! जो कुछ सुना था, वही पाया , या उससे कहीँ अधिक ही ! वो पूरी तरह आत्म विभोर होकर सुना रहे थे और सब उनकी ओर ताकते बैठे थे - कुछ देर बाद जब द्रश्य पूरा हुआ, तो वो पीछे मुडे । मैँने उठकर अपना परिचय दिया तो बडी आत्मीयता से मिले और बोले कि, " You are doing a great job " !"
मैँ पहली ही मीटीँग मेँ उनका कायल हो गया - फिर इसके बाद कई बार उनका और मेरा सामना ओफीस मेँ हुआ और हर बार वे ऐसे मिलते जैसे पिता पुत्र से मिल रहा हो और सचमुच उस ओफिस मेँ उनका स्वागत ऐसे होता था जैसे वो सबके पितामह होँ ! मेरे काम से वे सम्तुष्ट थे , इसकी खबर मुझे किसी न किसी के द्वारा मिल ही जाती थी। "
" आज पँडितजी ने ये कहा ...आज पँडितजी ने वो कहा "
एक बहुत बडा कोम्प्लीमेन्ट जो उन्होँने मेरे काम के बारे मेँ दिया, मैँ ज़िँदगी भर भूल न पाऊँगा। मुझे किसी ने आकर कहा कि आज पँडितजी ओफिस मेँ कह रहे थे कि,
" मुकेश, भीष्म के कीरदार को जी रहा है और बाकी सब तो अच्छी एक्टीँग कर ही रहे हैँ ( शेक्सपीएरियन टाइप की ) मगर, भीष्म महाभारत को सजीव कर रहे हैँ "
मुझे इतना अच्छा काम्प्लीमेम्ट आज तक नही मिला और वो भी मेरी पीठ पीछे ! ये सुनकर मेरी छाती फूल कर दुगुनी हो गयी थी - फिर जिस रोज़ टीवी पर महाभारत प्रदर्शित हुआ, उसके तीसरे हफ्ते जब मेरा प्रवेश " महाभारत " मेँ हुआ ( बडे देवव्रत के रुप मेँ ) तो इत्तफाक से दूसरे दिन मेरी मुलाकात उनसे बी. आर. ओफिस के दरवाजे पर ही हुई वे जा रहे थे और मैँ आ रहा था मैँने उनसे आशीर्वाद लिया और कहा,
" कल आपने मुझे " महाभारत " मेँ "लैन्ड" ( प्रवेश ) करवा ही दिया "
तो मुस्कुराते हुए, मुझे सुधारते हुए बोले,
" लैँड नहीँ हुए तुम, "टेक -ओफ " हुआ है and now you wait for a terrific boost in coming weeks " ....
मैँने उनसे कहा
" मुझे आशीर्वाद दीजिए कि इस किरदार को मैँ पूरी तरह जी सकूँ "
उन्होँने मुझे आशीर्वाद दिया । उन्हीँ के आशीर्वाद का फल है कि मैँ भीष्म पितामह हुआ हूँ ! "
क्रमश: ~~~~~~
( शेष ~ अशेष पुस्तक से साभार : प्रेषक : लावण्या )
12 comments:
बहुत अच्छा लग रहा है मुकेश खन्ना जी का यह संस्मरण पढ़ना ...इन्तजार है अगली कड़ी का.
नमस्कार, महा भारत यही आ कर देखी हे, बच्चो के साथ, सभी बहुत अच्छे लगे, मुकेश जी के संस्मरण पढना बहुत अच्छा लगा, हम भी इन्जार मे हे आगे ...
धन्यवाद
महाभारत अकेला हिन्दी सीरियल है जो मैंने पूरा देखा है और पूरा डीवीडी में भी मेरे पास है. और मुकेश खन्ना ने सच में भीष्म पितामह के चरित्र को जीवंत बना दिया. अच्छी प्रस्तुति !
सुन्दर प्रस्तुति...
जब महाभारत का प्रसारण होता था उस समय रविवार को सुबह ९ बजे से १० बजे तक सड़कों पर जैसे कर्फ़्यू लग जाता था। लगभग सभी लोग टेलीविजन के सामने ही होते थे। हमने भी कोई एपीसोड नहीं छोड़ा था।
पर्दे के पीछे की बातों के संस्मरण के लिए आभार।
आपने बहुत सुंदर और प्रिय चरित्र के बारे में बताया है !
और ये भी सही है की बिना चरित्र में घुसे अभिनेता
वो उंचाइयां नही पा सकता ! और पंडित जी की तो
शान ही निराली थी ! आप तो ऐसे ही बताती रहियेगा !
बहुत अच्छा लगता है ! धन्यवाद !
अरे वाह.. क्या प्रस्तुति है.. मज़ा आ गया.. मुकेश जी के बारे में इतना कुछ पढ़कर
Mksesh khanna ne sach mein Bhishma Pitaham ko apne abhinay ke dwara kalyug mein dobara Zinda kar diya.... bahut acha laga unka khud ka lekh padhkar
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मेरी पहली कविता...... अधूरा प्रयास
bahut bahut dhanyavaad di..ye sansamaran bantane ka
इन्तजार है अगली कड़ी का.
bilkul sahi
jeewant abhinay raha Mukesh g ka
achhi prastuti ke liye badhai..
Achcha laga Mukesh Kanna ji ke sansmaran padh kar aapkea dhanyawad prastuti ke liye.
रुचिकर संस्मरण।
कृपया 'पँडित' नहीं 'पंडित' या 'पण्डित' लिखें।
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