Tuesday, August 26, 2008

" इच्छा - मृत्यु" वेद व्यास की "जय गाथा : महाभारत " से

" यत्र योगेश्वर कृष्ण: यत्र पार्थो धनुर्धर "
श्री कृष्ण का "पाँचजन्य "
(पाँच प्रकार के जीवोँ पर जिसका राज है वही पाँचजन्य है)
और अर्जुन माने , धनँजय (जो अर्जुन का एक और नाम है) उसका शँख था :
" देवदत्त " ये शँख, महाभारत कथा से विख्यात हुए।
महाबली भीम का पौँड्र नामी शँख था और युधिष्ठिर का शँख "अनँतविजय" था। नकुल का " सुघोष" और सहदेव का
" मणिपुष्प" नामक शँख था ~
क्षीर सागर मँथन से पाँचजन्य शँख की उत्त्पत्ति होते ही
महाप्रणव नाद गुँजायमान हुआ, जिसके घोष से, असुर डरे !
तब महाविष्णु ने उसे धारण किया !
यही श्री कृष्ण का भी शँख, महाभारत मेँ
भगवान वेद व्यास द्वारा बतलाया गया है!
वेद व्यास ने, महाभारत मेँ , इस तरह,
नारायण विष्णु व श्री कृष्ण का
ऐक्य भी साबित किया !
" भगवान शँकर" शँख धारी ईश्वर हैँ जिनका आह्वान किया जाता है हर सत्कार्य के आरँभ मेँ। आज भी बँगाल मेँ लग्नोत्सव के पहले , स्त्रियाँ, शँखनाद करके , वातावरण और अनुष्ठान को पवित्रता व माँगल्य प्रदान करतीँ हैँ।

पतले शँख को "शँखिनि " स्त्रीलिँग माना जाता है और गाढे तने का पुर्लिँग
" शँख "कहलाता है। ये है शँखनाद : click here
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…महाभारत के पात्रोँ मेँ अनेक प्रकार की विशेषताएँ हैँ -
कहीँ काशी नरेश की कन्या अँबा का भीषम द्वारा हस्तिनापुर की बहुरानी बनाये जाने के लिए, काशीसे बलपूर्वक लाना और फ़िर अम्बा का त्याग !
- फिर राजकुमारी अम्बा का अगले जन्म मेँ द्रौपदी के दूसरे भाई शिखँडी के रुप मेँ जन्म लेना जो एक किँपुरुष गिना गया भीष्म पितामह की द्रष्टि मेँ !....
.द्रौपदी के बडे भाई ध्युष्टधुम्न का आचार्य द्रौणाचार्य का शिरच्छेद करना ॥
अरे, महायुध्ध के पहले , श्री कृष्ण का सँधि के लिये अँतिम प्रयास करते हस्तिनापुर जाना और दुर्योधन का घमँडी बर्ताव जिसका अँध १०० कौरवोँ के पिता राजवी धृतराष्ट्र का अनदेखा करते हुए अपने दुष्ट पुत्र दुर्योधन के दुस्साहस को,
बढावा देना और श्री कृष्ण का धर्मात्मा विदुर के घर जाकर सादा भोजन और आतिथ्य स्वीकार करना
ये महा समर की पूर्व भूमिका रहीँ !-॥ श्री कृष्ण का , युध्ध के निर्णय तक ये कहना कि "मैँ अस्त्र नहीँ उठाऊँगा ~~ एक तरफ मेरी वीर सेना
रहेगी दूसरी तरफ निहत्था मैँ ! जिसे चाहो, ले लो "
और दुर्मति दुर्योधन का सेना लेने का निर्णय और अर्जुन का श्री कृष्ण के चरण पकड कर उनकी शरणागति लेनी यही युध्ध के पहले की घटनाएँ हैँ॥
भीष्म पितामह ने सेनापति पद लेकर युध्धारँभ किया
- घोर तबाही मची !
श्री कृष्ण अपना प्रण भूल गये और भीष्म का वध करने हेतु,
हाथ मेँ टूटे हुए रथ का पहिया ही
अपने अजेय आयुध " सुदर्शन चक्र " की तरह घुमाते हुए,
रौद्र रुपसे , दौडे ॥
अर्जुन यिधिष्ठिर दोनोँ ने उन्हेँ रोकने की कोशिश की और स्बयम्` भीष्म, गद्`गद्` होकर, अपने अस्त्र फँककर प्रभु की स्तुति करने लगे कि,
" हे केशव ! आज मेरा जन्म सफल हुआ ! आप साक्षात नररुप हरि, मेरा सँहार कीजिये ! आज मैँ आपकी कृपा पाकर धन्य हुआ !"
ये चित्र उसी अवसर का है ...

किसी तरह भीष्म पितामह को परास्त किया जाये उसके उपाय स्वरुप 'शिखँडी " को आगे रखा गया और पीछेसे अर्जुन के तीक्ष्ण बाण भीष्म पितामह की छाती बीँधते हुए रक्त पीने लगे तब माहात्मा भीष्म ने कहा था,
" जानता हूँ बाण है यह वीर अर्जुन का,
नहीँ शिँखँडी चला सकता एक भी शर,
बीँध पाये कवच मेरा, किसी भी क्षण,
बहा दो, सँचित लहू तुम आज सारा " -
( लावण्या )
और वे चोट पे चोट सहते गये और धरा पर, घायल सिँह की तरह गिर पडे !
मानोँ आकाश ही धरा पर आ गिरा था !
उसके बाद का द्रश्य कविता द्वारा कहने का प्रयास है अब,
इच्छा ..............
" इच्छा - अनिच्छा के द्वंद में धंसा , पिसा मन
धराशायी तन , दग्ध , कुटिल अग्नि - वृण से ,
छलनी , तेजस्वी सूर्य - सा , गंगा - पुत्र का ,
गिरा , देख रहे , कुरुक्षेत्र की रण- भूमि में , युधिष्ठिर!
[ युधिष्ठिर] " हा तात ! युद्ध की विभीषिका में ,
तप्त - दग्ध , पीड़ित , लहू चूसते ये बाणोँ का , सघन आवरण ,
तन का रोम रोम - घायल किए ! ये कैसा क्षण है ! "
धर्म -राज , रथ से उतर के , मौन खड़े हैं ,
रूक गया है युद्ध , रवि - अस्ताचलगामी !
आ रहे सभी बांधव , धनुर्धर इसी दिशा में ,
अश्रु अंजलि देने , विकल , दुःख कातर, तप्त ह्रदय समेटे ।
[ अर्जुन ] " पितामह ! प्रणाम ! क्षमा करें ! धिक् - धिक्कार है !"
गांडीव को उतार, अश्रु पूरित नेत्रों से करता प्रणाम ,
धरा पर झुक गया पार्थ का पुरुषार्थ ,
हताश , हारा तन - मन , मन मंथन
कुरुक्षेत्र के रणाँगण में !
[ भीष्म पितामह ] " आओ पुत्र ! दो शिरस्त्राण,
मेरा सर ऊंचा करो !"
[ अर्जुन ] " जो आज्ञा तात ! "
कह , पाँच तीरों से उठाया शीश
[ भीष्म ] " प्यास लगी है पुत्र , पिला दो जल मुझे "
फ़िर आज्ञा हुई , निशब्द अर्जुन ने शर संधान से , गंगा प्रकट की !
[ श्री कृष्ण ] " हे , वीर गंगा -पुत्र ! जय शांतनु - नंदन की !
सुनो , वीर पांडव , " इच्छा - मृत्यु", इनका वरदान है !
अब उत्तरायण की करेंगें प्रतीक्षा , भीष्म यूँही , लेटे,
बाण शैय्या पर , यूँही , पूर्णाहुति तक ! "
कुरुक्षेत्र के रण मैदान का , ये भी एक सर्ग था ~~
-- लावण्या

14 comments:

Radhika Budhkar said...

लावण्या जी बहुत ही अच्छी, सारगर्भित और ऐतिहासिक पोस्ट के लिए आभार और बधाई

Tarun said...

Dhanyvaad is aalekh ke liye, humne khoob kiya hai ye shankhnaad. shankh naad karne ki bhi ek style hoti hai sirf jor se phoonk maarne ya jaroori nahi ki utni hi jor se bajega.....jai ho

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लगा पढ़कर और आपका बहुत आभार. ऐसे ही ज्ञानवर्धन करती रहिये.

art said...

badi hi gyanvardhak post.....saabhaar swati

Harshad Jangla said...

Lavanyaji

Excellent writing, nice pictures and interesting information.

Thanx.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

दिनेशराय द्विवेदी said...

महाभारत महाकाव्य के चित्र सजीव हो उठे।

राज भाटिय़ा said...

लावण्या जी, आप का अंदाज बहुत ही मन को भाया. ओर बहुत अच्छा लागा.
धन्यवाद

Abhishek Ojha said...

वाह ! आनंद आ गया ये पोस्ट पढ़कर ऐसे जितना पोस्ट कर सकतीं हैं कीजिये... बहुत अच्छी पोस्ट है. महाभारत के चरित्र तो एक से बढ़कर एक अतुलनीय हैं ! फिर भीष्म और कृष्ण तो हैं ही उनमें सबसे ऊपर.

Smart Indian said...

बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आपने ऐतिहासिक जय-संहिता के अंश को इतनी सुंदर-सरल भाषा में. आपके उत्कृष्ट काव्य और समुचित चित्रों ने.
बहुत आनंद आया, धन्यवाद!

Gyan Dutt Pandey said...

महाभारत की प्रस्तुति पढ़ कर रोमांच हो जाता है। वही हो रहा है।

डॉ .अनुराग said...

नीले वाला चित्र बहुत सुंदर है.....बरसो बाद देखा इसे

ज्ञानवर्धन करती रहिये.

ताऊ रामपुरिया said...

अतुलनीय चित्र और उतने ही सुंदर
शब्दों से रची आपकी ये महाभारत
की कथा बहुत वन्दनीय है ! मन अति
हर्षित हुआ और ज्ञान वर्धन भी हुआ !
प्रणाम !

पारुल "पुखराज" said...

di,do baarr padhi puuri post..bahut acchhi lagi..sarthak post

Ashok Pandey said...

महाभारत के प्रसंग को पढ़ना और चित्रों को देखना बहुत अच्‍छा लगा। लावण्‍या दी, आभार आपका।