Wednesday, August 13, 2008

वह अगस्ती रात मस्ती की

" भर दी रोली से मांग प्रथम चुम्बन में,
बीती बातों में रात, हुआ फ़िर प्रात प्रथम चुम्बन में "
कवि श्री नरेन्द्र शर्मा
वह अगस्ती रात मस्ती की , गगन पर चाँद निकला था अधूरा,
किंतु, काले बादलों के बीच, मेरी गोद में था, चाँद पूरा
श्री हरिवंशराय "बच्चन "
मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
अधर अधर से छू लेने दो!
है बात वही, मधुपाश वही,
सुरभी सुधारस पी लेने दो!
अधर अधर से छू लेने दो!
कंवल पंखुरी लाल लजीली,
है थिरक रही, नई कुसुम कली सी !
रश्मिनूतन को, सह लेने दो!
मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
तुम जीवन की मदमाती लहर,
है वही डगर, डगमग पगभर,
सुख सुमन-सुधा रस,पी लेने दो!
मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
अधर अधर से छू लेने दो! -

12 comments:

रंजू भाटिया said...

तुम जीवन की मदमाती लहर,
है वही डगर, डगमग पगभर,
सुख सुमन-सुधा रस,पी लेने दो!
मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
अधर अधर से छू लेने दो! -

बहुत ही सुंदर .भावपूर्ण और दिल को छु लेने वाली है यह ..बहुत अच्छी लगी दिल से :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

रामायण रच देने वाले पलों को अभिव्यक्त करने वाले गीत हैं दोनों ही।

राज भाटिय़ा said...

सुख सुमन-सुधा रस,पी लेने दो!
मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
अधर अधर से छू लेने दो! -
बहुत ही सुन्दर भाव,धन्यवाद सुन्दर कविता के लिये

Udan Tashtari said...

है बात वही, मधुपाश वही,
सुरभी सुधारस पी लेने दो!
अधर अधर से छू लेने दो!


वाह! बहुत खूब! आनन्द आ गया.बहुत सुन्दर.

कुश said...

उपर की चार पंक्तियो ने जिस रस में डुबोया था आपने अपनी रचना में वही बरकरार रखा.. आनंद के सागर में गोते लगा लिए..

L.Goswami said...

क्या कहूँ शब्द नही मिल रहे .सुन्दरतम कहना भी कम ही होगा .

Ila's world, in and out said...

कहने को शब्द नहीं मिल रहे.गूंगे का गुड जैसी हालत हो गयी है,दोनों रचनाओं को पढ कर.

शोभा said...

तुम जीवन की मदमाती लहर,
है वही डगर, डगमग पगभर,
सुख सुमन-सुधा रस,पी लेने दो!
मेरे अधर अधर से छू लेने दो!
अधर अधर से छू लेने दो!
-बहुत सुन्दर लिखा है। स्वागत है आपका।

Harshad Jangla said...

Beautiful, wonderful,nice....

I don't find words.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आप सभी की टीप्पणीयोँ का आभार - स्नेह सहित,
- लावण्या

Unknown said...

नि:शब्द।
सादर,
पंकज

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

धन्यवाद पँकज जी !
- लावण्या