नाच रे मयूरा!
खोल कर सहस्त्र नयन,
देख सघन गगन मगनदेख सरस स्वप्न,
जो किआज हुआ पूरा!
नाच रे मयूरा!
गूँजे दिशि-दिशि मृदंग, प्रतिपल नव राग-रंग,
रिमझिम के सरगम पर छिड़े तानपूरा!
नाच रे मयूरा!
सम पर सम, सा पर सा, उमड़-घुमड़ घन बरसा,
सागर का सजल गान क्यों रहे अधूरा?
नाच रे मयूरा!
- पं नरेंद्र शर्मा
ये गीत आकाशवाणी रेडियो कार्यक्रम का सबसे प्रथम प्रसारित किया गया गीत है जिसे स्वर दिया मन्ना डे जी ने और संगीत दिया था श्री अनिल बिस्वास जी ने।
राग : मियाँ की मल्हार
30 comments:
बहुत सुन्दर! हमारे तो घर के आसपास मोर नाचते ही रहते हैं।
घुघूती बासूती
पापा जी की रचना गजब की है. आपका आभार यहाँ पेश करने के लिए.
गीत को पढ़ने में ही प्रकृति का कण-कण बज उठा है। मन्ना-डे के स्वरों में तो और खिल जाती होगी।
पण्डितजी की कविता पढ़ कर तो मन मयूर हो गया!
सागर का सजल गान क्यों रहे अधूरा?
नाच रे मयूरा!
वाह!
जम कर नाचा मयूरा
बहुत अच्छी कविता. और उतने ही सुंदर चित्र. हर दिन की शुरुआत यूं ही हो तो क्या बात है. बहुत खूब. शुक्रिया.
Lavanyaji
Kitne khubsurat shabda hain.
Naman to papaji.
Geet sunvaneka bhi prabandh ho jata to sone me suhaga!
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
बाहर रिमझिम सावन यहाँ नाचता मोर और सुंदर रचना ..आनंद ही आनंद है :) बहुत सुंदर मन्ना डे की आवाज़ में सुना दे तो और भी अच्छा :)
बहुत बहुत बहुत सुंदर.. चित्र भी और कविता भी
लावण्या जी नाच रे मयूरा को आपने याद किया तो अब हम आपसे वादा करते हैं कि रेडियोवाणी पर जल्दी ही ये गीत सारी दुनिया को सुनवाएंगे ।
दी, नैनो को भी सुख/मन को भी :)
इतनी सुन्दर कविता पढ़कर और मनमोहक मयूर को देखकर अपना मन मयूर भी नाच उठा..इंत्ज़ार है कब युनूसजी गीत सुनवाते हैं..
नाच रे मयूरा!
वाह!
ऐसी दुर्लभ चीजेँ
आप जैसे सँगीत के साधक लोग ही ऐसे गीतोँ को
हम सभीको सुनवाते हैँ ..
उसका बहुत आभार युनुस भाई :)
" नाच रे मयूरा "
और हम सब के पापा जी के
दूसरे गीत भी आप
" रेडियोनामा " से
सुनवाइयेगा तो बडी खुशी होगी !
अग्रिम धन्यवाद के साथ
आपको व ममता जी
को मेरा बहुत स्नेह, -
-- लावण्या
घुघूती जी, कितना मनोरम द्रश्य होगा जो आप इस तरह देख पातीँ हैँ -
-- लावण्या
समीर भाई, हाँ मुझे भी ये गीत बहुत पसँद है
मना बाबू व अनिल दा ने
क्या सँगत दी है!
-- लावण्या
जी, दिनेश भाई जी ,
अब युनूस भाई शीघ्र ही " रेडियोनामा " के जरीये ये गीत सुनवा भी देँगेँ !
- लावण्या
ज्ञान भाई साहब,
मेघोँ का उद्`गम स्थान भी
सागर ही तो है ना
फिर वो कैसे ना शामिल हो
जब पूरी प्रकृति
इस पावस ऋतु मेँ
नृत्यरत हो ? :)
- लावण्या
धन्यवाद महाशक्ति जी
- लावण्या
कोशिश तो यही होनी चाहीये
मीत भाई साहब
क्यूँकि हर दिन
एक नई सौगात लेकरके आता है
- लावण्या
Harshad bhai,
aapke sneh ke liye sada aabhaare rehti hoon - shukriya, yehan aaneka aur hausla badhane ke liye bhee
sa sneh,
-Lavanya
रँजूजी, मेरी सहायता मेरे भाई युनूस जी करनेवाले हैँ !
( I still donot know how to upload songs etc on my Blog which is a shame !
i know ..
:(
"रेडियोनामा" पे ये गीत सुनवायेँगेँ - आखिर "आकाशवाणी" के आरँभ का ये प्रथम गीत, अब युनुस भाई की कर्मभूमि का गीत भी तो है !- लावण्या
कुश जी
आपको पसँद आया,
उसकी बेहद खुशी है :)
- लावण्या
पारुल, अब श्रवण सुख भी मिल जायेगा :)
युनुस भाई ने कह जो दिया है !
( हाँ ,
आप मेरी, कविता को
कब अपना " beautiful स्वर " प्रदान करेँगीँ :) ??
- लावण्या
जी मीनाक्षी जी ,
मुझे भी रहेगा इँतज़ार ..
शुक्रिया
- लावण्या
शुक्रिया अनुराग भाई !
- लावण्या
बहुत ही सुन्दर गीत, ओर फ़िर मनाडे जी की आवाज मे, धन्यवाद हा जब मे मई मे भारत गया तो जब खेतो के पास से गुजराते थे तो मोरो की कू कू कि मधुर आवाज बहुत सुन्दर लगती थी, यहा चित्र देख कर वो आवाजे याद आ गई
राज भाई साहब,
आपको भारत की यादोँ मेँ खीँच ले गयी यह पोस्ट
ये तो बडी अच्छी बात हुई !
बस ..
यूँ ही तार जुडे रहेँ ..
जीवन चलता रहे
यही बहुत है
-लावण्या
लावण्या जी आभार इस सुंदर गीत के लिए,मोर हमेशा से मुझे प्रिय रहा हैं,न जाने कितने रंग स्वयं में संजोया हुआ और उतनी ही सुंदर यह कविता आद्वितीय,इस को मैं सेव करके रखूंगी.मेरी पसंदिता कविताओ में.हा यह गीत मैंने कभी सुना नही हैं,आशा करती हु जल्द ही सुनने मिलेगा,और मैं इसे विचित्र वीणा पर जरुर बजा उंगी,यह मेरा सौभाग्य होगा.धन्यवाद इस सुंदर गीत के लिए पुनः:एक बार .
धन्यवाद राधिका जी - अरे ! आपने इस गीत को कभी नहीँ सुना क्या ! तब तो युनूस भाई से आग्रह करुँगी कि जल्द सुनवाये उनके ब्लोग " रेडियोवाणी " पर - और उसे सुनियेगा और आप "विचित्र वीणा " पर बजायेँगीँ तब तो ये गीत और भी अमूल्य हो जायेगा !!
- मेरी शुभकामनाएँ व आशिष सदा आप जैसी गुणी कलाकार के लिये हैँ ~~
स्वीकारीयेगा -
बहुत स्नेह के साथ,
- लावण्या
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