साहित्य को समृध्ध बनानेवाले , १९ वी सदी में जन्मे , श्री श्रध्धा राम "फिल्लौरी " सनातनी कार्यकर्ता थे और कर्मठ , समाज सुधारक भी थे। पंजाबी और हिन्दी दोनों भाषामें उन्होने खूब लिखा है। उनके अन्तिम समय में , ये कहते हुए चल बसे , " आज से हिन्दी का बस एक ही सच्चा सपूत रह जायेगा ..जब मैं जा रहा हूँ !"
उनका इशारा श्री भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की और था। उस समय कहे ये भावपूर्ण शब्द शायद अतिशयोक्ति से लगे हों ..पर ये सच निकले ॥
श्री राम चंद्र शुक्ला जी , जो आलोचक थे वे कहते हैं कि, "श्रध्धा राम जी की वाणी में तेज था और सम्मोहन भी था और वे अपने समय के एक प्रखर लेखक कहलाये जायेंगें " ॥
कम लोगों को ये पता होगा कि श्रध्धा राम जी का लिखा " ॐ जय जगदीश हरे " भजन भी है जो भारत और अब परदेस के हर भारतीय त्यौहार और पर्व में आरती के समय, घर घर में और हर अनुष्ठान में भक्ति भाव से गाया जाता है -
किसी भी कृति का कालजयी होना इसी तथ्य से प्रमाणित होता है जब कृति उस कर्ता की न होकर के समाज के प्रत्येक व्यक्ति की , अपनी - सी बन जाये - जिस तरह ' राम चरित मानस " या " श्री भगवद गीता " या नानक बानी कालाँतर मेँ, बन पायीँ हैँ है -
इसी तरह "श्रध्धा राम जी " का लिखा ये भजन आज हरेक सनातनी , हिंदू धर्मी के लिए श्रध्धा का पर्याय बन गया है - हर शब्द श्रध्धा से भीगा हुआ ईश्वर की प्रार्थना और मनुष्य की श्रध्धा को प्रतिबिंबित करता है उनका अटूट विशवास ये कहता है कि ईश्वर के सामने शरणागत भाव से , प्रार्थना करो ...जो सब सुखों का द्वार है ...मोक्ष का रास्ता वहीं से आगे जाता है ..आगे बढो ...
" मात पिता तुम मेरे , शरण गहुँ मैं किसकी ,
तुम बिन और न दूजा आस करूँ मैं जिसकी ।"
" जो ध्यावे फल पावे दुःख विनशे मन का ,
सुख सम्पति घर आवे कष्ट मिटे तन का ।"
http://www.youtube.com/watch?v=2ChSzECkdew
" सत्य धर्म मुक्तावली " और " शातोपदेश " उनके लिखे अन्य ग्रन्थ उन्हें भक्ति मार्गीय संत कवियों के समकक्ष ला खडा करते हैं
श्रध्धाराम जी का जन्म ब्रह्मण कुल में , ग्राम ,फिल्लौर (जालंधर ) १८३७ में हुआ था -- पिताजी का नाम था जय दयालु जी जो ज्योतिषाचार्य थे जिन्होँने पुत्र के जन्म समय ही भविष्यवाणी की थी " ये बालक अपनी लघु जीवनी में चमत्कारी प्रभाव वाले कार्य करेगा " ये बात सत्य साबित हुईं " सीखन दे राज दी विथिया " + " पंजाबी बातचीत " ये श्रधा राम जी के गुरमुखी में लिखे, ग्रन्थ हैं । .
" सीखन दे राज दी विथिया " ....पहली पुस्तक ने उनको "आधुनिक पंजाबी भाषा के जनक " की उपाधि दिलवाई -- इस पुस्तक में सीख धर्म का इतिहास और राजनीति से जुडी बातों पे प्रकाश डाला गया है । ३ खंडों में इसका विभाजन किया गया है । तीसरे और अन्तिम आध्याय में, रीत रिवाज, लोक गीत, व्यव्हार इत्यादी पे लिखा गया है इसी कारण से शायद इस पुस्तक को , उच्च कक्षा की पढाई के लिए चुना गया है
" पंजाबी बातचीत " में मालवा, मझ्झ जैसे प्रान्तों में जो इस्तेमाल की जातीं हैं वो बोली, बातचीत, पहनावा, सोच , मुहावरे , कहावतें जैसी बातों को समेटा गया है हर प्रांत के बदलाव के साथ ..और इसी कारण इस पुस्तक को भारतीय आईएस की परिक्षा के लिए कोर्स में , अनिवार्य , पठनीय , पुस्तक विषय के रूप में चुना गया है ।
श्रधा राम जी की एक और किताब है " भाग्यवती " जो समय से बहुत पहले ये सोच लेकर सामने आई के स्त्री शिक्षा , स्त्री को समानता का दर्जा मिलना स्वस्थ समाज के लिए लाभकारी है। भाग्यवती अपने पति से कहती है के नन्ही सी कन्या की शादी करना , ग़लत बात है और बेटा या बेटी दोनों समान हैं। प्रौढ शिक्षा देना जरूरी है ये भी मुद्दा लिया है -
" सत्यामृत प्रवाह " ...किताब में व्यक्ति के उसूलों पर बल दिया गया है - लेखक कहते हैं " एक बच्चे की बात अगर ऊसुलोँ पे टिकी हुई और न्याय संगत , है , उसे मैं ज्यादा तवज्जो दूंगा ,वेद पुरानों में कही गयी बिना तर्क या न्याय हीन बातों के बजाय " --
श्रध्धा राम जी विवेकी, न्यायप्रिय , स्वतंत्र विचारक , नए और खुले ढंग से वेदों का निरूपण करने के हिमायती थे।
उन पर ब्रितानी सरकार ने आरोप लगाया था कि वे लोगों को भड़काने वाली बातें का प्रचार करते हैं ।
' महाभारत ’ के " शल्य पर्व " पे कहे गए श्रध्धा राम जी के विचार और भाषण , पुलिस में दाखिल होनेवाले असंख्य लड़कोंने सुने थे और उसी के लिए उन्हें , फिल्लौर से देश निकाला दिया गया।
पंजाब राज्य में साहित्य और राजनीति में
उनका अनुदान अविस्मरणीय रहेगा --
16 comments:
bahut accha likha hai
इस प्रार्थना को गाते वक्त कितने लोगों को फिल्लौरी जी का नाम याद आता है ?
बहुत उम्दा और जबरदस्त जानकारी. आभार आपका.
श्रद्धा राम जी के बारे में जानकारी देने का बहुत शुक्रिया। ब्लॉग लेखन में आपकी ऊर्जा बहुत सशक्त है!
अभी सुबह आपकी पोस्ट पढ़ी , लगा जैसे मन मंदिर में चला गया. नेक काम करने वालों के नाम हमेशा तवारीख़ में दर्ज़ हो जाते हैं लावण्या बेन.
एक अनाम को रेखांकित करने के लिये प्रणाम आपको.
इतना उर्जावान ब्लॉग मैने कही और नही देखा.. जानकारी वाकई बहुत उम्दा है.. आपको कोटि कोटि धन्यवाद
सुबह सुबह आपका ब्लॉग पढ़ना दिन की शुरुआत को बेहतरीन बना देता है ..आभार इतनी अच्छी जानकारी के लिए
bachpan se ye aarati sun raha hoon, magar aaj pata chala iske lekhak ke baare me. aapne sach kaha ki ye unki shraddha aur bhakti hi hai ki ye arati unki rachnaon tak seemit nahi rahi, balki desh ke manas me ghar kar chuki hai. vastutah, ye bhajan ab har bhakt ki aart pukar bankar goonjta hai.
itni achchi jankari ke liye bahut bahut dhanyawad
SHUKRIYA....
आज आप ने बहुत कीमती जानकारी दी है। वास्तव में इस जानकारी से लोग अनभिज्ञ ही था। आज आप से ही फिल्लोरी जी के बारे में कुछ जानकारी मिली है।
achchi jaankari...
बहुत अच्छी जानकारी, ये आरती तो अनेको बार सुनी पर लेखक कौन था ये अभी तक नहीं जान पाए थे .
एक महत्वपूर्ण जानकारी मिली,
मैं तो आग्रह करूँगा कि ऎसे गवेषणात्मक लेख देती रहें, बल्कि इसकी
एक शृंखला ही बना लें ।
सचिन जी,
अजित भाई,
समीर भाई ,
ज्ञान भाई साहब,
सँजय भाई,
कुश जी,
रँजू जी,
अभिजीत जी,
अनुराग भाई,
दिनेश भाई जी,
पल्लवी जी,
अभिषेक भाई
और डा. अमर जी,
आप सभी को ये जानकारी पसँद आयी तो लिखना सफल हुआ -
ज्ञान भाई साहब,और कुश जी, "उर्जा "
इन पवित्र आत्माओँ से
ब्लोग - लेखन मेँ आ समाती है
ऐसा मानती हूँ -
धन्यवाद सभी का .
स स्नेह,
- लावण्या
लावण्याजी,जब मैंने अपने मां-पापा को इस भजन के रचयिता के बारे में बताया तो वो अचरज से भर गये,मेरी पीठ थपथपाते उससे पहले ही मैने आपका नाम ले लिया.उनके सहित मेरा भी धन्यवाद श्री श्रद्धा राम जी से परिचय करवाने का.आपके हर लेख में कुछ जानने-सीखने को मिलता है.
इला जी ..आज आपका कमेन्ट देखा -आपका भी बहुत आभार !
- लावण्या
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