Thursday, July 31, 2008
अशोक चक्रधर जी की हास्य कविता
आलपिन कांड / अशोक चक्रधर
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
बंधुओ, उस बढ़ई ने चक्कू तो ख़ैर नहीं लगाया
पर, आलपिनें लगाने से बाज़ नहीं आया।
ऊपर चिकनी-चिकनी रेक्सीन, अन्दर ढेर सारे आलपीन।
तैयार कुर्सी नेताजी से पहले दफ़्तर में आ गई,
नेताजी आएतो देखते ही भा गई।
और,बैठने से पहले एक ठसक, एक शान के साथ
मुस्कान बिखेरते हुए उन्होंने टोपी संभालकर मालाएं उतारीं,
गुलाब की कुछ पत्तियां भी कुर्ते से झाड़ीं,
फिर गहरी उसांस लेकर चैन की सांस लेकर
कुर्सी सरकाईऔर भाई, बैठ गए।
बैठते ही ऐंठ गए।
दबी हुई चीख़ निकली, सह गए पर बैठे-के-बैठे ही रह गए।
उठने की कोशिश कीतो साथ में ,कुर्सी उठ आई
उन्होंने , जोर से आवाज़ लगाई-किसने बनाई है?
चपरासी ने पूछा- क्या?
क्या के बच्चे ! कुर्सी! क्या तेरी शामत आई है?
जाओ फ़ौरन उस बढ़ई को बुलाओ।
बढ़ई बोला- "सर मेरी क्या ग़लती है,
यहां तो ठेकेदार साब की चलती है।"
उन्होंने कहा- कुर्सियों में वेस्ट भर दो
सो भर दीकुर्सी, आलपिनों से लबरेज़ कर दी।
मैंने देखा कि आपके दफ़्तर में
काग़ज़ बिखरे पड़े रहते हैं
कोई भी उनमें
आलपिनें नहीं लगाता है
प्रत्येक बाबू
दिन में कम-से-कम डेढ़ सौ आलपिनें नीचे गिराता है।
और बाबूजी,नीचे गिरने के बाद तो हर चीज़ वेस्ट हो जाती है
कुर्सियों में भरने के ही काम आती है।
तो हुज़ूर,
उसी को सज़ा देंजिसका हो कुसूर।
ठेकेदार साब को बुलाएंवे ही आपको समझाएं।
सज़ा देंजिसका हो कुसूर।
ठेकेदार साब को बुलाएंवे ही आपको समझाएं।
अब ठेकेदार बुलवाया गया, सारा माजरा समझाया गया।
ठेकेदार बोला-
" बढ़ई इज़ सेइंग वैरी करैक्ट सर!
हिज़ ड्यूटी इज़ ऐब्सोल्यूटली परफ़ैक्ट सर!
सरकारी आदेश हैकि सरकारी सम्पत्ति का सदुपयोग करो
इसीलिए हम बढ़ई को बोलाकि वेस्ट भरो।
ब्लंडर मिस्टेक तो आलपिन कंपनी के प्रोपराइटर का है
जिसने वेस्ट जैसा चीज़ कोइतना नुकीली बनाया
और आपकोधरातल पे कष्ट पहुंचाया।वैरी वैरी सॉरी सर। "
अब बुलवाया गयाआलपिन कंपनी का प्रोपराइटरपहले तो वो घबरायासमझ गया तो मुस्कुराया।
बोला-
" श्रीमान,मशीन अगर इंडियन होती तो आपकी हालत ढीली न होती
क्योंकि पिन इतनी नुकीली न होतीपर हमारी मशीनें तो अमरीका से आती हैं
और वे आलपिनों को बहुत ही नुकीला बनाती हैं।
अचानक आलपिन कंपनी के मालिक ने सोचाअब ये अमरीका सेकिसे बुलवाएंगे
ज़ाहिर है मेरी हीचटनी बनवाएंगे।
इसलिए बात बदल दी औरअमरीका से
भिलाई की तरफ डायवर्ट कर दी !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अशोक चक्रधर जी की हास्य कविता - वाकई लाजवाब होतीं हैं !! :-))
Wednesday, July 30, 2008
"लोस एंजिलिस " : शानदार शहर का परिचय
" बोब होप " के नाम से पहचाना जाता विमान स्थल जहाँ आप १५ मिनटों में , आपका बैग लेकर बाहर आ पाते हैं बनिस्बत LAX एअर पार्ट के, जहाँ से बैग लेकर बाहर आते आते, ३ घंटे तो हो ही जायेंगे ...अगर आपको कहीं के लिए विमान लेना है तब तो ३ से ४ घंटे या ५ भी , घंटे पूर्व ही आप , लोस एंजिलिस के प्रमुख एअर पोर्ट के लिए अवश्य निकलें ...अन्यथा , आपका विमान , आपके बिना ही उड़ जाने की नौबत आ सकती है !!
...हमें मुख्य हवाई अड्डे से ही , कोन्नेक्टिंग उड़ान लेनी थी ...अत: हम ३ घंटे पहले निकले और नोआ जी साथ थे इसलिए , हवाई अड्डे के भीतर भी लिफ्ट से , ऊपर या नीचे जाना था इस कारण , लम्बी लम्बी , कतारों से , बच गए ! :-)
...लोस एंजिलिस के प्रमुख हवाई अड्डे के भीतर , आपको विश्व के हर देश और प्रांत से हर तरह की विमान सेवा के विमान कतार बध्ध खड़े दीखलाई देंगे टेक ऑफ़ के लिए २० से ज्यादा प्लेन खड़े होंगें ..और हवाई अड्डे के भीतर ही , अपने गेट तक , आने के लिए असंख्य स्व चालित सीढीयाँ , एस्केलेटर और उस तक पहुँचने के लिए , अन्दर ही चलतीं ट्रेन में भी सवारी करनी पड़ती है
हमारा कोन्नेक्टिंग एअर पोर्ट था दक्षिण दिशा में बसा अटलांटा शहर जो जार्जिया प्रांत की राजधानी है। ये एअर पोर्ट भी अति बृहदाकार का है और वहाँ भी हमें इसी तरह एअर पोर्ट के भीतर ट्रेन से सवारी करनी पडी और एस्केलेटर या एलेवेटर या लिफ्ट से भी फासला तय करना पडा ( अमरीकी लिफ्ट के बजाय एलेवेटर ही कहते हैं और टैक्सी को कैब ही बुलाते हैं) --
बाजार खुला हुआ था जहाँ बीचोंबीच , कई सारी गतिविधियाँ , मनोरंजन और मन बहलाव के लिए , सतत , चलतीं थीं ॥व्यस्त शहर के बीच बीच , फार्म फ्रेश , फल और सब्जियों की दुकाने भी तम्बू लगाकर बेच रहे थे और सारे फल ओर्गानिक, रसीले और बड़े आकार के थे ...
आजकल पीच , संतरा, नारंगी , एप्पल, अंगूर, फिग ( अंजीर ) शहतूत, चेरी , टमाटर, इत्यादी बहुत बड़ी मात्रा में , बाज़ार में आए हैं ...और उनसे बने , रस को सलाद के ड्रेसिंग में भी उपयोग में लिया जाता है - जैसे पीच के रस में मिर्च मिलाकर वो रस सलाद पे डालते हैं और यहाँ सलाद बहुत ज्यादा परोसा जाता है -- भोजन के पहले सलाद अवश्य खाते हैं --
$531,534
2 br ba 841 sqft
Single-Family Home
From: http://www.trulia.com/transfer.php?s_id=10287901&p_id=1060934032&t_id=odpt4
Listing Type: Resale
Status: For Sale What's this?
Year Built:
Price/sqft: $632
Lot Size:
Days on Market: Just added
ZIP Code: 90049
Neighborhood: Brentwood
Additional Info: Prior sale history, Assessor records
पाम के पेड़ -- ये लोस एंजिलिस शहर की विशेषता है, यहाँ आकाश तक पहुँचते हुए ऐसे पेड़ , नीले आसमान से बातें करते हुए मानो ऊपर देखने के लिए बाध्य कर देते हैं !
अकसर जहाँ घर होते हैं वहाँ कार की गति बहुत धीमी राखी जाती है ..फ्री वे पे ६५ या ७० मील की स्पीड से गाडियां दौड़तीं हैं !
चलिए, आज इतना ही ...लोस एंजिलिस शहर १९७४ से १९७६ तक हमारा शहर रहा है और आज भी , अपना - सा लगता है जैसे बंबई भी ! जहाँ इतने साल गुजारें हों वह शहर अपना ही लगता है ना ! ..इसलिए मन किया आप से भी इस शानदार शहर का परिचय करा दूँ ...आशा है आपको भी Los Anjeles पसंद आया !
Tuesday, July 29, 2008
" अनफोर्गेटेबल " लोस - अन्जिलिस मेँ
नितिन मुकेश भाई , हम और मोनिका बहुरानी
जी हाँ , अमिताभ बच्चन जी , अभिषेक बच्चन , ऐश्वर्या राय बच्चन , का मशहूर शो देख आए हम, अमेरीकी के लोस ~ अन्जिलिस शहर में -नाम , आप सभी ने अब तक सुन लिया होगा - " अनफोर्गेटेबल "
Sunday, July 20, 2008
जो वादा किया वो निभाना पडेगा और , लाइव शो
http://thaxi.usc.edu/rmim/sami/R-lataConcert.txt
एक पुरानी पेशकश ...
http://www.truveo.com/The-Magical-Lata-Mangeshkar-Live-Jo-Wada-Kiya-Wo/id/806584292
और , वही गीत ..अरसे के बाद भी , उतना ही मधुर ...
http://www.truveo.com/Lata-Mangeshkar-Jo-Wada-Kiya-Live-Performance/id/2360663917
और
यारा सीली सीली और आइये 'प्यार किया तो डरना क्या " मुगल आजम के अविस्मरनीय गीत के साथ मधुबाला के बेमिसाल हुस्न और नौशाद साहब की धुन से रूबरू हो जाएँ ...
http://www.truveo.com/Lata-Mangeshkar-Jo-Wada-Kiya-Live-Performance/id/2360663917
आगे ....
http://www.indiahits.com/classics/latainconcert.htm
http://www.indiahits.com/classics/latainconcert.htm
हम को हमीं से चुरालो :
http://www.youtube.com/watch?v=NCMy3a1BgGk&feature=related
http://www.youtube.com/watch?v=S82MGLyEXTE&feature=related
हरीश भिमानी , अमिताभ बच्चन , लता Speaks
दिल मेरा तोडा /Toda उठाये जा उनके सितम / Sitam
औरऔर
हम प्यार में जलने वालोंको /Walonko
औरMedley (५ गीत / Songs ) (सुदेश भोसले )
लारा लप्पा , शोला जो भड़के / भोली सूरत , सीने में सुलगते हैं, याद किया , प्यार हुआ इकरार हुआ
Pyar Hua Ikraar Hua Woh Bhooli Dastan Zara Si Aahat Kuch Dil Ne Kaha Medley ( ७ गीत / Songs )
मुश्किल है बहुत ,साजन की गलियां , कलि कलि रात , मोहे भूल गए , ठंडी हवाएं , यह शाम की तान्हायियन , यह रत यह चांदनी
औरबाहों में चले आओ / Aao तेरे बिना जिंदगी से दिलबर दिल से/ Se सावन का महिना / Mahina
( सुदेश भोसले ) दिन सारा गुज़ारा / Guzara
सुदेश भोसले Medley (६ गीत / Songs )
ज्योति कलश , चंदन सा बदन , मुझे तुम मिल गए , क्या जणू सा जन , मेरा साया , रहें न रहें हम ,
लग जा गले से / Se ( राधा मंगेशकर )
Julie I Love youसुदेश भोसले
चुरा लिया / आदिनाथ मंगेशकर & रचना शाह
( रचना मीना जी की बेटी हैं - लता, आशा, उषा और मीना ये ४ बहनें हैं )
हम तुम एक कमरे में ( सुदेश भोसले )
दम दम मस्त कलंदर ( बैजनाथ मंगेशकर )
( बैजू , हृदयनाथ जी का बेटा है )
मुन्गदा / Mungda ( उषा मंगेशकर )
बैयाँ न धरो , चलते चलते, मेगा छाये , एक प्यार का , नाम गम , मार दिया जाए , दफ्लिवाले , है तेरे साथ
( अमिताभ बच्चन ) Medley ( ६ गीत/ Songs )
जाने क्या बात है , तुने ओ रंगीले , आजा रे ओ मेरे दिलबर , सीशा हो या दिल हो, तुझे देखा तो ये जाना , यारा सीली सीली
और आख़िर में : ~~Friday, July 18, 2008
ॐ जय जगदीश
साहित्य को समृध्ध बनानेवाले , १९ वी सदी में जन्मे , श्री श्रध्धा राम "फिल्लौरी " सनातनी कार्यकर्ता थे और कर्मठ , समाज सुधारक भी थे। पंजाबी और हिन्दी दोनों भाषामें उन्होने खूब लिखा है। उनके अन्तिम समय में , ये कहते हुए चल बसे , " आज से हिन्दी का बस एक ही सच्चा सपूत रह जायेगा ..जब मैं जा रहा हूँ !"
उनका इशारा श्री भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की और था। उस समय कहे ये भावपूर्ण शब्द शायद अतिशयोक्ति से लगे हों ..पर ये सच निकले ॥
श्री राम चंद्र शुक्ला जी , जो आलोचक थे वे कहते हैं कि, "श्रध्धा राम जी की वाणी में तेज था और सम्मोहन भी था और वे अपने समय के एक प्रखर लेखक कहलाये जायेंगें " ॥
कम लोगों को ये पता होगा कि श्रध्धा राम जी का लिखा " ॐ जय जगदीश हरे " भजन भी है जो भारत और अब परदेस के हर भारतीय त्यौहार और पर्व में आरती के समय, घर घर में और हर अनुष्ठान में भक्ति भाव से गाया जाता है -
किसी भी कृति का कालजयी होना इसी तथ्य से प्रमाणित होता है जब कृति उस कर्ता की न होकर के समाज के प्रत्येक व्यक्ति की , अपनी - सी बन जाये - जिस तरह ' राम चरित मानस " या " श्री भगवद गीता " या नानक बानी कालाँतर मेँ, बन पायीँ हैँ है -
इसी तरह "श्रध्धा राम जी " का लिखा ये भजन आज हरेक सनातनी , हिंदू धर्मी के लिए श्रध्धा का पर्याय बन गया है - हर शब्द श्रध्धा से भीगा हुआ ईश्वर की प्रार्थना और मनुष्य की श्रध्धा को प्रतिबिंबित करता है उनका अटूट विशवास ये कहता है कि ईश्वर के सामने शरणागत भाव से , प्रार्थना करो ...जो सब सुखों का द्वार है ...मोक्ष का रास्ता वहीं से आगे जाता है ..आगे बढो ...
" मात पिता तुम मेरे , शरण गहुँ मैं किसकी ,
तुम बिन और न दूजा आस करूँ मैं जिसकी ।"
" जो ध्यावे फल पावे दुःख विनशे मन का ,
सुख सम्पति घर आवे कष्ट मिटे तन का ।"
http://www.youtube.com/watch?v=2ChSzECkdew
" सत्य धर्म मुक्तावली " और " शातोपदेश " उनके लिखे अन्य ग्रन्थ उन्हें भक्ति मार्गीय संत कवियों के समकक्ष ला खडा करते हैं
श्रध्धाराम जी का जन्म ब्रह्मण कुल में , ग्राम ,फिल्लौर (जालंधर ) १८३७ में हुआ था -- पिताजी का नाम था जय दयालु जी जो ज्योतिषाचार्य थे जिन्होँने पुत्र के जन्म समय ही भविष्यवाणी की थी " ये बालक अपनी लघु जीवनी में चमत्कारी प्रभाव वाले कार्य करेगा " ये बात सत्य साबित हुईं " सीखन दे राज दी विथिया " + " पंजाबी बातचीत " ये श्रधा राम जी के गुरमुखी में लिखे, ग्रन्थ हैं । .
" सीखन दे राज दी विथिया " ....पहली पुस्तक ने उनको "आधुनिक पंजाबी भाषा के जनक " की उपाधि दिलवाई -- इस पुस्तक में सीख धर्म का इतिहास और राजनीति से जुडी बातों पे प्रकाश डाला गया है । ३ खंडों में इसका विभाजन किया गया है । तीसरे और अन्तिम आध्याय में, रीत रिवाज, लोक गीत, व्यव्हार इत्यादी पे लिखा गया है इसी कारण से शायद इस पुस्तक को , उच्च कक्षा की पढाई के लिए चुना गया है
" पंजाबी बातचीत " में मालवा, मझ्झ जैसे प्रान्तों में जो इस्तेमाल की जातीं हैं वो बोली, बातचीत, पहनावा, सोच , मुहावरे , कहावतें जैसी बातों को समेटा गया है हर प्रांत के बदलाव के साथ ..और इसी कारण इस पुस्तक को भारतीय आईएस की परिक्षा के लिए कोर्स में , अनिवार्य , पठनीय , पुस्तक विषय के रूप में चुना गया है ।
श्रधा राम जी की एक और किताब है " भाग्यवती " जो समय से बहुत पहले ये सोच लेकर सामने आई के स्त्री शिक्षा , स्त्री को समानता का दर्जा मिलना स्वस्थ समाज के लिए लाभकारी है। भाग्यवती अपने पति से कहती है के नन्ही सी कन्या की शादी करना , ग़लत बात है और बेटा या बेटी दोनों समान हैं। प्रौढ शिक्षा देना जरूरी है ये भी मुद्दा लिया है -
" सत्यामृत प्रवाह " ...किताब में व्यक्ति के उसूलों पर बल दिया गया है - लेखक कहते हैं " एक बच्चे की बात अगर ऊसुलोँ पे टिकी हुई और न्याय संगत , है , उसे मैं ज्यादा तवज्जो दूंगा ,वेद पुरानों में कही गयी बिना तर्क या न्याय हीन बातों के बजाय " --
श्रध्धा राम जी विवेकी, न्यायप्रिय , स्वतंत्र विचारक , नए और खुले ढंग से वेदों का निरूपण करने के हिमायती थे।
उन पर ब्रितानी सरकार ने आरोप लगाया था कि वे लोगों को भड़काने वाली बातें का प्रचार करते हैं ।
' महाभारत ’ के " शल्य पर्व " पे कहे गए श्रध्धा राम जी के विचार और भाषण , पुलिस में दाखिल होनेवाले असंख्य लड़कोंने सुने थे और उसी के लिए उन्हें , फिल्लौर से देश निकाला दिया गया।
पंजाब राज्य में साहित्य और राजनीति में
उनका अनुदान अविस्मरणीय रहेगा --
Thursday, July 17, 2008
वक्त क्या है ?
वक्त क्या है ? बँटा हुआ सच , की माया - जाल ?
भूत , भविष्य या वर्तमान ?
फ्रीज़ - फ्रेम में बंद लम्हे , फोटो इमाजिज़ , स्लाईड शो है ?
पद्म पत्र पर लेटे, बाल मुकुंद , शेष शायी नारायण ,
क्षीर सागर पर , उल्काएं ब्रह्माण्ड में , तिरोहित व्योम पार सृष्टि सर्जन , नटराज नर्तन फ़िर समाधी कैलाश पर !
बन चले , राम रघुराई , संग जानकी माई और साथ ,
लक्ष्मण जैसा भाई ! रावण - वध !
मिस्सर में उठते पिरामिड, शिला ढोती पीठ !
हम्मु रब्बी का नियामक शिला लेख , अस्स्यिरिया में !
चीन में बारूद , कागज की इजाद , इस्तेमाल , फानूस सुंदर
सिन्धु घाटी सभ्यता की नींव और अचानक मिट जाना!
यह वक्त बीता , आए समुद्र गुप्त, चंद्र गुप्त, अशोक , पाणिनि , भव- भूति , वराह मिहिर , आर्य भट्ट और चाणक्य !
शक , कुषाण हूण, तैमुर लँग, चौल राज , चालुक्य ,पाँड्य राज, सात वाहन, मदुरई , मीनाक्षी, बसे मन्दिर नगर , खजुराहो , अजंता !
मुगल आए , इन्द्र प्रस्थ को देहली, ये अब नया नाम दिया !
ताज महल , मोती मस्जिद , कुतुब मीनार , सिकरी बुलुंद दरवाजा
सामने आए !
उन्हें देखते , सलाम करते अब गोरे आ घुसे भारत की भूमि पर ! औद्योगिक क्रांति ने मोडी दिशा पस्स्चात्य सभ्यता की और लड़ मरे , फ्रांसीसी , इटालियन , जर्मन , स्पेनिश , डच , ब्रितानवी यहूदी से , आपस में ..... देखता रहा इन युद्धों को मध्य एशिया , पूर्वी एशिया तथा रूस और चीन !
बसा अम्रीका भू खंड , तब युरोप के ही अंश से औरबहुत आगे बढ़ा ! चाँद पर जा पहुँचा आदमी , भूत कल अब आज का वर्त मान ,
बीसवी सदी बना ! दो दो महा - युद्ध आए और चले गए ,
दौड़ती रहीं मशीन हर उप - खंड पे , अनु संधान , बम विस्फोट से नर , पूर्ण नर -संहारक है अब बना !
क्या होगा भविष्य , मानव जाति का ,मानव निर्मित सभ्यता का ?
सोचें अगर हम, इस २१ वीं सदी के आरम्भ में तब क्या कहें ? मोबाइल , वायर लेस तकनीक , DVD, सी डी, TV , कंप्यूटर , मल्टाइ मीडिया , ट्रांसपोर्टेशन , क्वाँटम फिजिक्स , विज्ञान की देन , सुविधाएं अति आधुनिक युग की हैं देन !
और आगे फैला है , महा - सागर , आनेवाले भावी इतिहास का ,
जो है अनिस्चित्त ! "वसुधैव कुटुम्बकम्` यथार्थ "
दुनिया एक छोटा गोला है ~~ " नील ग्रह , पृथ्वी !
येही , विशाल व्योम के मध्य में , एक हमारा घर है !
बड़ा सुंदर है ~~
क्या हम इसे नाश्ता होने देँगेँ?
या स्वर्ग स्थापित करेंगे , धरा पर ?
यह आगे की शेष कथा , क्या होगी ?
ये आनेवाला वक्त ही लिखेगा , नई कविता !
जो सोच रहें हैं आज , ये हमारी बस प्रार्थना ये दुआये ,
वक्त के नाम हैं !
Tuesday, July 15, 2008
सुख ~ दुःख
सुख
मेरे कुछ ख्याल भी यहाँ कह देती हूँ ,सुनिए
Monday, July 14, 2008
उषाकिरण जी :
Sunday, July 13, 2008
अब मैँ नाच्यौ बहुत गोपाल
सूरदास जी : जन्म : १४७८ निर्वाण : १५८३
" अब मैँ नाच्यौ बहुत गोपाल "
राग : धनाश्री
अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल।
काम क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ विषय की माल॥
महामोह के नूपुर बाजत, निन्दा सब्द रसाल।
भरम भर्यौ मन भयौ पखावज, चलत कुसंगति चाल॥
तृसना नाद करति घट अन्तर, नानाविध दै ताल।
माया कौ कटि फैंटा बांध्यो, लोभ तिलक दियो भाल॥
कोटिक कला काछि दिखराई, जल थल सुधि नहिं काल।
सूरदास की सबै अविद्या, दूरि करौ नंदलाल॥
" द्रढ इन चनन केरो भरोसो" राग : बिहाग मेँ , "चकित चली चरन सरोवर " राग बिलावल मेँ तो कभी राग सारँग मेँ ठाकोरजी को रीझाते शुध्धाद्वैत मेँ आस्था रखनेवाले, पुष्टीमार्गीय, वल्ललाभाचार्य के अष्टछाप शिष्योँमेँ अग्रणी, आँखोँ की ज्योति विहिन अवस्था से विवश परँतु मन के प्रकाश से, श्रीकृष्ण के साक्षात दर्शन करनेवाले महात्मा सुरदासजी का जन्म १४७८ ईस्वी में मथुरा आगरा मार्ग के किनारे स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ। सूरदास के पिता रामदास गायक थे।
६ वर्ष की आयु मेँ इस अँध बालक ने स्वयम को निराधार पाया - गौघाट के पास परम वैषणव वल्लभाचार्य जी से मिलन होने के पस्चात यमुना मेँ स्नान करने के बाद, गुरु के आदेश से बाल कृष्ण की लीला के पद रचते हुए सुरदास जी का जीवन, प्रकाशित हुआ जिससे ब्रज भाषा को असीम वैभव प्राप्त हुआ -
ये सुंदर वर्णन इस प्रभाती में है --
"जागिए ब्रजराज कुंवर कमल-कुसुम फूले।
कुमुद -बृंद संकुचित भए भृंग लता भूले॥
तमचुर खग करत रोर बोलत बनराई।
रांभति गो खरिकनि मैं बछरा हित धाई॥
विधु मलीन रवि प्रकास गावत नर नारी। "
सूर श्रीगोपाल उठौ परम मंगलकारी॥
और
" रानी तेरो चिरजीयो गोपाल ।
बेगिबडो बढि होय विरध लट, महरि मनोहर बाल॥
उपजि पर्यो यह कूंखि भाग्य बल, समुद्र सीप जैसे लाल।
सब गोकुल के प्राण जीवन धन, बैरिन के उरसाल॥
सूर कितो जिय सुख पावत हैं, निरखत श्याम तमाल।
रज आरज लागो मेरी अंखियन, रोग दोष जंजाल॥ "
"सूरसारावली' " होली" के त्योहार पे आधारित पदावलियाँ हैँ
जिनमेँ श्रीकृष्ण भगवान को सृष्टिकर्ता का स्वरुप देकर
उनकी आराधना की गयी है।
नल-दमयन्ती: ब्याहलो : दो अप्राप्य हैं।
अन्य भजन हैं --
अखियाँ हरि दर्शन की प्यासी ।
देखो चाहत कमल नयन को, निस दिन रहत उदासी ॥
केसर तिलक मोतिन की माला, वृंदावन के वासी ।
नेहा लगाए त्यागी गये तृण सम, डारि गये गल फाँसी ॥
काहु के मन की कोऊ का जाने, लोगन के मन हाँसी ।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस बिन लेहों करवत कासी ॥
साहित्य ~ लहरी मेँ मुख्यत: प्रभु भक्ति के गीत हैँ तो प्रमुख कृति सुर ~ सागर मेँ १००,००० कृष्ण जीवन लीला को बखानते हुए मधुर भजन व गीत हैँ जो ब्रज भाषा व जगत के साहित्य की अमुल्य धरोहर हैँ।
राग : केदार
प्रभू मोरे अवगुण चित न धरो ।
समदरसी है नाम तिहारो चाहे तो पार करो ॥
एक लोहा पूजा में राखत एक घर बधिक परो ।
पारस गुण अवगुण नहिं चितवत कंचन करत खरो ॥
एक नदिया एक नाल कहावत मैलो ही नीर भरो ।
जब दौ मिलकर एक बरन भई सुरसरी नाम परो ॥
एक जीव एक ब्रह्म कहावे सूर श्याम झगरो ।
अब की बेर मोंहे पार उतारो नहिं पन जात टरो ॥
और
निसिदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।।
अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे।
कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे॥
आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे।
'सूरदास' अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे॥
सूरदास जी रोज ही कृष्ण भजन लिखा करते थे - श्री राधेरानी और हरी के सौन्दर्य का वर्णन इतना सजीव होता मानो वे सामने हों -
आख़िर वृध्ध हो चले सूरदास जी एक रात्री को भजन गाकर मन्दिर से अपनी कुटी की और हाथ में लाठी लिए चल पड़े ..मार्ग निर्जन था , अन्धकार में दिशा भ्रम हुआ और वे एक गहरे कुवेँ में गिरने ही वाले थे के एक बालक ने उनकी लाठी थाम कर उन्हें मधुर स्वर में सावधान करते कहा,
" बाबा ! ठहरो ..."
सूरदास जी का रोम रोम रोमांचित था, एक अज्ञात उल्लास से ह्रदय , आंदोलित हो गया ..और बरसों की तपस्या फलीभूत होती लगी और वे जान गए की शायद उनका गोपाल ही आज उन के प्राण रक्षा हेतु आ पहुंचा है ! सूरदास जी ने धीरे से हाथ लाठी पे सरकाते हुए, कसकर बालक की नर्म , दिव्य हथेली थामने की कोशिष की और बालक लाखों सुवर्ण की घंटियां एक साथ खनक उठीं हों उस तरह हंसने लगा और हाथ हटाकर दूर हो गया ! अब सूरदास जी रोने लगे, गिर पड़े और करुना विगलित स्वर से आर्त पुकार करने लगे,
" हे कृष्ण , हाथ छुडाकर जात हो, मोरे मन से जाओ तब जानूं "
श्री कृष्ण ने भक्त की भक्ति स्वीकार कर ली ।
सूरदास जी को दीव्य द्रष्टि से श्री नारायण के अष्टभुजा स्वरूप का दर्शन प्राप्त हुआ --
ये दीव्य कथा आज कहने को मन किया - आज मानस कथा की पूर्णाहुति हुई है , मन है की अब भी वहाँ से विमुख नहीं हो पा रहा - इसीलिये श्री राम के नाम के साथ श्री कृष्ण को भी याद कर रही हूँ -
शुभम :
Friday, July 11, 2008
सँत श्री मोरारी बापु
राजीव नेत्रं रघुवंशनाथम
कारुण्य रूपं करुणा करनतम
श्री राम चन्द्रम शरणम् प्रपद्ये
जनक -सुता जग जननी जानकी
अतिसय प्रिय करुणा निधान की
ताके जुग पद कमल मनावौं
जासु कृपा निर्मल मति पावों
जब जब होई धरम कै हानि
बढहहिँ असुर अधम अभिमानी
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा
हरिहैँ कृपानिधि सज्जन पीरा
श्रध्धेय श्री मोरारी बापू ने हाथों में करताल उठा ली और भाव मग्न हो गए ~
राम धुन गाने लगे , श्रोता गण, उठ कर, नाचने लगे !.....
http://www.bindasscafe.com/play.php?vid=351
४ घंटों तक, लगातार, कथा संबन्धी बातें सुनाना , व्यास पीठ पे, आसन ग्रहण किए रहना , अद्भुत लगा !
" राम चरित मानस एही नामा, सुनत श्रवण पायो विश्रामा " व्यास पीठ से संत श्री मोरारी बापू की छवि के दर्शन कीजिये -
तस उत्पात तात बिधि कीन्हा मुनि मिथिलेस राखी सबु लीन्हा
मुनि मिथिलेस सभा सब काहू भरत बचन सुनी भयौ उछाहू
श्री राम जे राम जे जे राम ..............श्री राम जे राम जे जे राम
" बंदौ गुरु पद कंज कृपा सिन्धु नर रूप हरी
महामोह तं पुंज जासु बचन रविकर निकर"
अतुलित बल धामम् , दनुज -वन - कृषाणुम
ज्ञानी -नाम अग्रगण्यम् सकल -गुण-निधानम्
वानराणाम्-धिषम रघुपति -प्रियम भगतम्-वातजातं नमामि
श्री बापू ने कहा :
" सतसंग से मनुष्य की मति (positive intellect),
कीरति (fame), गति (right path of progress),
भूति (fortune), भलाई (goodness)
विवेक (appropriate knowledge/awareness)
को प्रगति प्राप्त होती है ।
माता पार्वती अपने पतिदेव शिव जी से कहतीं हैं ,
" जौँ मो पर प्रसन्न सुख -रासी
जानिय सत्य मोही निज दासी
तौ प्रभू हरहु मोरे अज्ञाना
कही रघुनाथ कथा बिधि नाना
कहहु पुनीत राम गुना गाथा
भुजग -राज भूषण सुर -नाथा
अति आरती पूछों सुर -राया
रघुपति कथा कहहु करी दाया "
जाकी कृपा लवलेश ते मति मंद तुलसीदास हूँ।
पायो परम बिश्राम राम समान प्रभू नाही काहूँ ॥
Thursday, July 10, 2008
पैगाम :
'बरखा ~ बहार' से जुड़े कुछ , नगमे, कुछ गीत , ग़ज़ल और नज़्म पेश करेंगें
तारीख याद रखें , जुलाई - १५ !! उनके ब्लॉग पर आजकल एक बढिया
आत्म कथ्य या संस्मरण लिखा देखें --
" यादों की वादियों में…"
महावीर शर्मा http://mahavir.wordpress.com/2008/07/08/yadon-ki-vadiyon-mein/
नाम लिखा था रेत पर ,
हवा का एक झोंका आया
आ कर , उसको मिटा गया !
हवाओं पे लिख दूँ हलके हाथों से दुबारा , क्या मैं, उनका नाम ?
ओ पवन , तू ही ले जा !
यह संदेसा मेरा उन तक , पहुंचा आ !
कह देना जा कर उनसे
तुम आए हो वहीँ से जो था , उनका गाँव !
तेरी भी तो कुछ खता , अरी बावरी पवन
कुछ पल को रूक जा !
रेतों से अठखेली कर , लुटाये तुने ,
मुझ बिरहन के पैगाम !
तू वापिस लौट के आना
मेरा भी पता बताना ,
हाँ , साथ उन्हें भी लाना !
अब , इन्तेज़ार रहेगा तेरा ,
चूड़ी को , झूमर को ,पायल को और बिंदी को !
मेरे जियरा से छाए बादलों के संग संग
सहमी हुई है आस !
- लावण्या
Monday, July 7, 2008
..." दिन आये ...दिन जाये, ..
प्राईवेट रेकोर्ड " प्रेम, भक्ति मुक्ति " से है -
संगीत पण्डित हृदयनाथ मंगेशकर : स्वर : लता दीदी
"राम श्याम गुण गान " से एक और गीत है पण्डित भीमसेन जोशी और लता दीदी का गाया हुआ बाजे रे मुरलिया बाजे
ये कलात्मक चित्र बनाया उषा मंगेशकर जी ने -- जो एल्बम कवर है प्रेम भक्ति मुक्ति का -- गीतों की रस - वर्षा में भीगते हुए , आइये चलें ..
और सभागार मेँ जाने के लिये तैयार हम ! :)
रास्ते मेँ , कयी छोटे बडे घर,गेस स्टेशन, गिरजाघर, अस्पताल, स्कूल,दुकानेँ,लोग,ये सब तो आता ही है...एक ये भी अकसर दीख जाता है ॥जी हाँ ये है कब्रगाह ॥अजीब सी बात लगेगी आपको,ये सुनकर ताज्जुब होगा कि, अमरीका के हर शहर की बस्ती के ठीक बीचोँबीच, ऐसे कई दीख पडते हैँ जिँदा और मुर्दा सभी को बराबरी का दर्जा मिला हुआ है इस देश मेँ ॥ बम्बई मेँ भी जुहु पर देखा है और अरब समुद्र की उत्तल तरँगोँ से लगा हुआ डाँडा के मछुआरोँ की बस्ती के पास भी एक शम्शान देखा है बस जब भी पैडर रोड से समुद्र के साथ दौडती है, डाँडा कोलीवाडा से पहले, ये जगह दीख जाती थी - कई बार जलती चिता भी देखी है ॥"जातस्य ही ध्रुवो मृत्यु " ..ये सच है हर जीवन का ! और जब तक जीवन शेष है अगर परम पिता या सुप्रीम पावर का ध्यान ना किया तो क्या जिये ?
बिनती सुनिए नाथ हमारी "
http://www.youtube.com/watch?v=64CIDDEt0uE&feature=related
और महा - रास महाभारत से.
http://www.youtube.com/watch?v=aKHRxCilE3s&feature=related
जिसका संगीत दिया है श्री राजकमल जी ने
और शब्द दिए span style="color:#cc0000;">पण्डित नरेन्द्र शर्मा
Saturday, July 5, 2008
हमारे पडौसी : सिने कलाकार : जयराज अंकल
जयराज जी का जन्म सितम्बर २८ , १९०९ निजाम स्टेट के करीमनगर जिल्ले में हुआ था। वे सरोजिनी नाइडु , पद्मा जा नाइडु ( जो बंगाल की गवर्नर थीं ) उनके भतीजे थे - पाइदीपाटी जैरुला नाइडु उनका आन्ध्रीय नाम था --
उनके पिताजी सरकारी दफ्तर में लेखाजोखा देखा करते थे - उनकी जिंदगी हिन्दी सिने जगत के इतिहास के साथ साथ चलती हुई , एक सिनेमा की कहानी जैसी है।
उनकी माताजी बड़े भाई को ज्यादा प्यार देतीं थीं और उनकी इच्छा थी इंग्लैंड जाकर पढाई करने की जिसका परिवार ने विरोध किया जिससे नाराज होकर, युवा जयराज , बंबई चले आए ! समंदर के साथ पहले से बहुत लगाव था सो, डोक यार्ड में काम करने लगे ! वहाँ उनका एक दोस्त था जिसका नाम "रंग्या " था उसने सहायता की ...और तब , पोस्टर को रंगने का काम भी मिला जिससे स्टूडियो पहुंचे -
वहाँ , उनकी मजबूत कद काठी ने जल्द ही उन्हें निर्माता की आंखों में , चढ़ा दिया - महावीर फोटोप्लेज़ में काम मिला --
उस समय चित्रपट मूक थे ! कई काम , ऐक्टर के बदले खड़े डबल का मिला - पर बाद मुख्य भूमिकाएं भी मिलने लगीं -
जयराज जी की प्रथम फ़िल्म " जगमगती जवानी " १९२९ जिसके मुख्य कलाकार माधव केले के स्टंट सीन भी उन्हींने किए थे ! उसके बाद यँग इन्डीया पिक्चर्स ने , ३ रुपया माह , २ वक्त का भोजन और ४ अन्य लोगों के साथ गिरगाम बंबई में रहने की सुविधा वाला काम दिया - अब जीवन की गाडी चल निकली ! १९३० में "रसीली रानी " फ़िल्म बनी ! माधुरी उनकी , हेरोइन थीं -
उसके बाद शारदा फ़िल्म कम्पनी से जुड़े -- ३५ रुपया से ७५ रुपये मिलने लगे जेबुनिस्सा हिरोइन थीं जो हिन्दुस्तानी ग्रेटा , के नाम से मशहूर थीं -- और जयराज जी गिल्बर्ट थे हिन्दोस्तान के ! (Anthony Hope's The प्रिज़नर ऑफ़ जेंडा : ही "रसीली रानी " हिन्दी फ़िल्म के रूप में बनी थी )
जयराज जी कहते हैं, " हम सभी साथ साथ हमारा काम सीख रहे थे - शारिरीक पैंतरेबाजी , तलवार चलाना , मुंह के हावभाव , दर्शकों को हंसाना , जिसकी चार्ली चेपलिन, सबसे उत्तम मिसाल हैं ..वो हम पहले बातचीत करके तय किया करते थे और फ़िर , शूटिंग करते थे - सूरज की रोशनी में ही सारा काम निपटाना होता जिसे हम सुबह ७ से शाम ५ बजे तक पूरा करते थे -- हम गलती करके सुधारते हुए सीखते थे और सिनेमा विझुअल मीडीयम है , मूक फ़िल्म आज भी वैसी ही समझ में आतीं हैं बजाय के बोलतीं फिल्मों के जो अपने समय का प्रतिबिम्ब और प्रतिनिधित्त्व करतीं दीखालायीं देतीं हैं -- १९३१ से भारतीय सिनेमा बोलने लगा उस समय सिने कलाकारों को , नीची द्रष्टि से देखा जाता था और जयराज जी के भाई और परिवार ने उनसे सम्बन्ध तोड़ दिए -- १९३२ में बनी फ़िल्म शिकारी में उन्होंने सांप , बाघ, शेर जैसे हिंसक जानवरों के साथ लड़ने के द्रश्य दिए और बहादुरी का किरदार किया था -- हैदराबाद में पले बड़े हुए जिससे उर्दू भाषा पे पकड़ अच्छी थी वो काम आयी - बोलती फ़िल्म के साथ संगीत शुरू हुआ कई कलाकार , अब , प्ले बेक भी देने लगे पर १९३५ से , दूसरे गाते और कलाकार सिर्फ़ , ओंठ हिलाते , जिससे आसानी हो गयी -- अब ,
सिनेमा संगीतमय हो गया !
हमजोली का बहुत पुराना गीत : नूर जहाँ और जयराज जी ने काम किया था
http://www.musicplug.in/songs.php?movieid=2132
राइफल गर्ल , भाभी , हमारी बात ये फ़िल्म मिलीं जहाँ , हमारी बात से , उनकी मुलाक़ात मेरे पापा जी से हुई -
तब आयीं स्वामी जिसमें सितारा देवी थीं - हातिम ताई, तमन्ना, उस समय के सिनेमा थे - मराठी, गुजराती फ़िल्म भी कीं -
दिलीप कुमार की पहली फ़िल्म " प्रतिमा " का निर्देशन भी जयराज जी ने किया
मीना कुमारी , मधुबाला और सुरैया के साथ भी उन्होंने काम किया था -बिब्बो (१९३४ ), महताब (लेधर फेस १९३९ ), Devika Rani : हमारी बात -- ये उनकी अन्य फिल्में हैं -- Nargis अंजुमन १९४८ जैसी अदाकाराओं के साथ काम करते हुए ३० , ४० ५०, और ६० के दशक पार करते हुए अब , नयी उभरती अदाकारों के साथ भी जयराज जी ने काम किया जैसे के, मासूम बहुत बाद में, १९८८ में , रेखा की खून भरी मांग में भी उनका काम था -
Rifle Girl १९३८ , भाभी १९३९ , खिलौना १९४२ , मेरा गाँव १९४२ , तमन्ना नाम नाम कहानी '१९४३, बादबान १९५४ , मुन्ना १९५४ , अमरसिंह राठोड १९५६ , हातिमताई १९५६ , परदेसी १९५७ , चार दिल चार राहें १९५९ , रजिया सुलतान १९६२ ।
एक फ़िल्म जयराज जी ने बनाना शुरू किया था जिसके रंगीन पोस्टर हमने , बरसों बाद घर पे , देखे थे जिसमें नर्गिस , भारत भूषन और ख़ुद वे काम कर रहे थे नाम था सागर -- राज कपूर उन्हें हमेशा " पौपी " के प्यारभरे नाम से पुकारते थे -
बंबई शहर में कुश्ती कम्पीटीशन के वे जज बनते और दारा सिंघ जी उनके घर मेहमान बनकर आए थे तब, पूरे २ बकरे, ६ मुर्गियां १२ अंडे और बहुत सारी दाल सब्जियाँ बना था वह मुझे अब भी याद है ! हम बच्चों के लिए वो "भीम भाई का भोज " ही लगा था ! उनके घर बंजारे झोलियाँ ले कर आते जिसमें बटेर पक्षी , फडफडाते रहते , जिन्हें उनके बागीचे में , स्वर्ग लोक पहुंचाया गया था रात के भोज के लिए -- वे लोग मांसाहारी थे और हम लोग शुध्ध शाकाहारी ..पर हर दसहरे की सुबह आयुध पूजा के बाद, नाश्ते पे हम हर साल उनके घर पर मौजूद होते और बहुत बढिया खाना मिलता - जिसका आरम्भ नीम के पानी को पी कर किया जाता ..ये बचपन की यादें हैं .
..पहलवानों सा डील डौल होने से जयराज अंकल ने , टीपू सुलतान, हैदर अली, अमर सिंघ राठौड़ ,पृथ्वी राज चौहान ,शाह जहाँ जैसे ऐतिहासिक किरदारों को उन्होंने रजत परदे पे बखूबी जिया और यादगार बनाया --
उनका बहुत नाम था सिने जगत में और कई सारे निर्माता , निर्देशक, कलाकार उन्हें जन्म दिन की बधाई देने सुबह से उनके घर पहुँचते थे - उन सभी को हमने देखा पर तब ये समझ नहीं थी के ये कौन लोग हैं ! मशहूर थे - हमें उनसे क्या ? हमें मस्ती और खेल कूद ही सुहाते थे !
फ़िल्म फेयर अवार्ड्स भी वही नियोजित करते थे -
१९५१ में सागर फ़िल्म बनायी -- जो लोर्ड टेनिसन की " इनोच आर्डेन पे आधारित कथा थी वह निष्फल हुई क्यूँकि जयराज जी ने अपना खुद का पैसा लगाया था और उन्होने कुबुल किया था कि व्यवासायिक समझ उन्मेँ नहीँ थी जिससे सिनेमा के व्यापारीक पहलू पे वे ध्यान नहीँ दे पाये और असफल हुए " ५० के दशक में उन्हें लाइफ टाइम अचिएवेमेंट से नवाजा गया -
१९६० से वे सह कलाकार की भूमिका लेने लगे - १९६३ मेँ नाइन आवर्स टू रामा मार्क रोब्सन निर्मित फिल्म मेँ काम किया जो आज तक हिन्दुस्तान मेँ प्रदर्शित नहीँ होने दी गयी है माया फिल्म मेँ आई एस जोहर के साथ काम किया ये दोनोँ अमरीकी फिल्मेँ हैँ।
१९८२ में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिला
जयराज जी का निधन : लीलावती अस्पताल बंबई में, अगस्त की ११ तारीख , सन २००० को हुआ और हिन्दी सिने संसार का मूक फिल्मों से , आज तक का मानो एक सेतु , ही टूट कर अद्रश्य हो गया ! ११ मूक चित्रपट और २०० बोलती फिल्मों से हमारा मनोरंजन करनेवाले एक समर्थ कलाकार ने इस दुनिया से बिदा ले ली और रह गयीं यादें .....
उनके ५ संतान थीं। सबसे बड़े दिलीप राज जो ऐक्टर बने ..के ऐ अब्बास की " शहर और सपना " को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था पर घर पे हम सब उन्हें गुज्जू भैया कहा करते थे उनका विवाह दिल्ली की अनु भाभी से हुआ उनके २ बेटे , ankur = बिम्बू और अनुज हैं -
सभी बच्चोँ को हमने खूब प्यार से गोदी खिलाये हैँ
दूसरी बिटिया थी जयश्री जिसे हम , बिज्जी दीदी कहते थे और उनका ब्याह हुआ था राज कपूर की पत्नी कृष्णा जी के छोटे भाई भूपेन्द्र नाथ के साथ जिन्हें हम टिल्लू भैया कहा करते थे। उनके प्रिया, प्रीती २ बिटिया और रमण ३ बच्चे हैं।
फ़िर थीं दीपा जिसे सब टिम्मी हते थे ! उनके बेटा बेटी हैं देहली ब्याही थी - फ़िर बेटा जे तिलक जो शिकागो रहता है और जर्मन मूल की कन्या से ब्याहा है -
फ़िर थी मेरी सहेली गीतू ..सबसे छोटी ॥
ये देखिये ...गीतू और अंकल जी पे आलेख : अवश्य देखें : ~~~
http://www.rediff.com/entertai/2000/jul/24jai.htm
http://www.upperstall.com/jairaj.html
Friday, July 4, 2008
अमरीका का स्वाधीनता दिवस है आज
डीज्नी लैंड : केलिफोर्निया में है और डिज़नी वर्ल्ड है फ्लोरिडा में
अंपायर स्टेट मकान १०२ मंजिल का
जिसकी कुल लागत थी $४० ,९४८ ,९०० !
इस मकान में , १ , ८६० सीढीयाँ ,
मैं २ बार १०२ वीं मंजिल पे पहुँची हूँ
अंपायर स्टेट बिल्डींग से आतिशबाजी का द्रश्य देखते हुए लोगों का है ~~ क्या नज़ारा है !!
लिंक पे क्लीक करें : ~~ http://www.panoramas.dk/fullscreen2/full28.html
The Statue of LIBERTY
स्वतंत्रा की देवी
भारत के लिए २६ जनवरी और १५ अगस्त का जो महत्व है वही दुनिया के अन्य देशों के लिए,
साल के अलग दिवस पे रहता है --
मेक्सिको का स्वतँत्रता दिवस है -सेप्टेम्बर १६
हंगरी अगस्त २० ...संत स्टीफन दिवस। जिस को , बुडापेस्ट में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है ...दान्युब नदी के किनारे पटाखोँ को रात्रिके काले आकाश मेँ छोडकर प्रकाश से जगमगा दिया जाता है -
फ्रांस जुलाई १४ को आज़ादी का पर्व मनाता है !....पेरिस फ्रांस की राजधानी है वहां लोग खुशी से घूमते दीखलाई देते हैं
इंग्लैंड और समस्त यु के में गाय फॉक्स दिवस नवंबर ७ को मनाया जाता है , आयरलैण्ड और स्कॉट्लैंड भी इसमें शामिल होते हैं
अमरीका ४ जुलाई को स्वाधीनता दिवस मनाता है और ये राज्य में , बहुत बड़े पैमाने पे , सुबह से बारबेक्यू माने अंगीठी पे , बाहर खाना तैयार करके , दोस्तों के साथ और परिवार के साथ मौज मस्ती में , दिन गुजार के मनाया जाता है। रात को काले होते आकाश को पटाखों से , प्रकाशित होता हुआ देखने सभी पहुँच जाते हैं --
अमरीकी गीत की धुन भी बेफीक्री और मौज से भरी है -
उत्तर दिशा के प्रान्तों में रहनेवाले अमरीकी को यांकी कहते हैं
गीत उसी पर है : ~~
Yankee Doodle went to town,
A-Riding on a pony;
He stuck a feather in his hat,
And called it macaroni। :)
क्लिक करें सुनिए ये गीत की धुन ~~
. Yankee Doodle : by Carrie Rehkopf
और ये है अमरीका का जन गीत :
"The Star-Spangled Banner"
The Star-Spangled Banner :
चित्र देखें : )
http://www.rockyou.com/show_my_gallery.php?source=ppsl&instanceid=116813018
Thursday, July 3, 2008
महात्मा गांधी : बापू और बा
He usually spoke in HINDI - this is a rare Speech just discovered & put up by the Washington Post News Paper --
http://www.washingtonpost.com/wp-dyn/content/video/2008/06/27/VI2008062703016.html
Wednesday, July 2, 2008
अमेरिका में क्या देखा ?
जी हाँ देखी गगनचुँबी विशाल इमारतेँ ,
तेज रफ्तार से ६०, ७० मील की रफ्तार से दौडती,
हर प्रकार की आधुनिक मोटर कारेँ ,
और विशाल स्मारक जैसे कि ये ! जो हर शहर मेँ दीख पडता है और ये पानी को सँग्रह करने के लिये है और चौडी सडकेँ जहाँ यातायात व्यवस्थित, रेले की तरह , दिन रात, बस बहता रहता है
अमेरिका में क्या देखा ? 'अमेरिका की धरती से' :
नामक कॉलम - संपादक
अमरीका की छवि कुछ हद्द तक एक क्लास के बुली या गुंडे की तरह है !
यहाँ रहते हुए ये भी देख पायी हूँ कि, कई बड़ी-बड़ी शैक्षणिक संस्थाओं में, धनिक वर्ग और अन्य नागरिक भी अपना धन दान करते हैं । जहाँ उच्च शिक्षा सुलभ और सुव्यवस्थित है। शोध और विकास पर भी बहुत जोर दिया जाता है और हर उद्योग तथा संस्था में ये एक बहुत बड़ा अंग होता है। ये ना सिर्फ़ वैज्ञानिक शोध के साथ ही नहीं कई अन्य विषय से जुडी संस्था में भी प्रमुख कार्यवाही की जाती हुई, अनेक किस्म की मजबूत व्यवस्था है। राजनीति के लिए कई "थिंक टेन्क " है, जिनमें हर आनेवाले या वर्तमान के प्रश्नों पर सामग्री इकट्ठा की जाती है और प्रसार-प्रचार भी किया जाता है । विमर्श के बाद इनकी दी हुई सलाह को तवज्जो दी जाती है।
दूसरी तरफ़ ऐसा हिस्सा भी है, यहाँ एक ऐसा वर्ग भी है जहाँ, शराब, हर तरह की नशा, धूम्रपान जैसे शौक , जीवन को धुंधला और बीमार बनानेवाला नाना प्रकार का रोग लगा हुआ है - क्या ये सिर्फ़ यहीं पर होता है ? नहीं ना ! ये तो लगभग हर देश की सभ्यता का हिस्सा बन गया है । वर्तमान समाज की यह सामाजिक व्याधि है, जिससे कोई खंड अछूता नहीं रह गया ।
एड्स हर जगह फ़ैल चुका है । कोकेन लेती अशादीशुदा माता के गर्भ में पडी संतान, जन्म से ही बीमारी का अभिशाप लेकर पैदा होती है । अशिक्षित व बेरोजगार आबादी, एकल अभिभावाक वाले परिवार में पनपती आगामी नस्ल, समलैंगिक जोड़े और तलाक लेकर दोनों तरफ़ बहु पतियों और पत्नियों से बसे परिवार में पल रहे बच्चे, भूतपूर्व पति और भूतपूर्व पत्नी के रिश्तों में उलझते समाज व उनकी संतानें क्या आज सिर्फ़ अमरीकन समाज की पहचान हैं या ये दृश्य किसी भी मुल्क में अब दिखाई देने लगा है ?
अमरीका में ३० साल पहले टीवी पर एक शो आया करता था । पति, पत्नी और उनका प्यार और सुखी कुटुंब की छवि को पूरा करते बच्चे । आज ये धुंधलाती हुई छवि है । सच नहीं, किसी परिकथा की मनगढ़ंत कथा जैसी लगती है ।
शायद भारत की वह छवि आज भी कायम है । छोटे कस्बो में, गाँवों और शहरों में अभी आधुनिकता का ये सैलाब दाखिल नहीं हुआ या हुआ भी हो तब उसकी गति धीमी है । वहाँ आज भी जीवित हैं हमारे पीढियों से संचित सुसंस्कार और सुरक्षित है सामाजिक मूल्यों की धरोहर, परन्तु इन संस्कारों पर आज हर क्षेत्र से आक्रमण जारी है, नुकीले तीर और मिसाइल अपना निशाना खोजते हुए आ रहे हैं । कब तक बच्चा रहेगा हमारा आदर्शवाद ? यह सोचनेवाली बात है !
अमरीका में भारत से आकर बसे परिवार आज भी इन्हीं अमूल्य मूल्यों की धरोहर को बचाए रखने की कड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं -
कईयों को आशिंक सफलता मिली है, परंतु कुछ मुद्दे आज भी परेशान करते हैं और कई जगह असफलता भी हाथ लगी है ।
कहने की ज़रुरत नहीं -
आना ही बहुत है, इस दर पे तेरा, शीश झुकाना ही बहुत है ।
कुछ है तेरे दिल में उसको ये ख़बर है,
बंदे तेरे हर हाल पर मालिक की नज़र है,
आना है तो आ, राह में कुछ फेर नहीं है,
भगवान के घर देर है अँधेर नहीं है !
सृजनगाथा से : ~~ देखिये लिंक : ~~
http://www.srijangatha.com/2008-09/july/usa%20ki%20dharti%20se%20-%20lshahji.htm
◙◙◙
Tuesday, July 1, 2008
दीदी और पापा
कुमारी लता मंगेशकर - युवावस्था का एक चित्र - ये नीचेवाला मेरे पास है --
पापा जी, संजीव कोहली ( मदन मोहनजी के पुत्र और दीदी )
पापाजी और दीदी २ ऐसे इंसान हैं जिनसे मिलने के बाद , मुझे ज़िंदगी के रास्तों पे आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा मिली है -
सँघर्ष का नाम ही जीवन है। कोई भी इसका अपवाद नहीं -
सत्चरित्र का संबल, अपने भीतर की चेतना को प्रखर रखे हुए किस तरह अंधेरों से लड़ना और पथ में कांटे बिछे हों या फूल, उनपर पग धरते हुए, आगे ही बढ़ते जाना ये शायद मैंने इन २ व्यक्तियों से सीखा। उनका सानिध्य मुझे ये सीखला गया कि, अपने में रही कमजोरियों से किस तरह स्वयं लड़ना जरुरी है - उनके उदाहरण से , हमें इंसान के अच्छे गुणों में विशवास पैदा करवाता है।
पापा जी का लेखन , गीत, साहित्य और कला के प्रति उनका समर्पण और दीदी का संगीत , कला और परिश्रम करने का उत्साह , मुझे बहुत बड़ी शिक्षा दे गया ।
उन दोनों की ये कला के प्रति लगन और अनुदान सराहने लायक है ही परन्तु उससे भी गहरा था उनका इंसानियत से भरापूरा स्वरूप जो शायद कला के क्षेत्र से भी ज्यादा विस्तृत था ! दोनों ही व्यक्ति ऐसे, जिनमें इंसानियत का धर्म , कूटकूट कर भरा हुआ मैंने , बार बार देखा और महसूस किया ।
जैसे सुवर्ण , शुध्ध होता है, उसे किसी भी रूप में उठालो, वह समान रूप से दमकता मिलेगा वैसे ही दोनों को मैंने हर अनुभव में पाया। जिसके कारण आज दूरी होते हुए भी इतना गहरा सम्मान मेरे भीतर पैठ गया है के , दूरी , महज एक शारीरिक परिस्थिती रह गयी है। ये शब्द फ़िर भी असमर्थ हैं मेरे भावों को आकार देने में --
दीदी ने अपनी संगीत के क्षेत्र में मिली हर उपलब्धि को सहजता से स्वीकार किया है और उसका श्रेय हमेशा परम पिता , ईश्वर को दे दिया है।
पापा और दीदी के बीच , पिता और पुत्री का पवित्र संबंध था जिसे शायद मैं मेरे संस्मरण के द्वारा बेहतर रीत से कह पाऊँ -
हम ३ बहनें थीं - सबसे बड़ी वासवी , फ़िर मैं, लावण्या और मेरे बाद बांधवी
हाँ, हमारे ताऊजी की बिटिया गायत्री दीदी भी , सबसे बड़ी दीदी थीं जो हमारे साथ साथ अम्मा और पापाजी की छत्रछाया में पलकर बड़ी हुईं। पर सबसे बड़ी दीदी , लता दीदी ही थीं - उनके पिता पण्डित दीनानाथ मंगेशकर जी के देहांत के बाद १२ वर्ष की नन्ही सी लडकी के कन्धों पे, मंगेशकर परिवार का भार आ पडा था जिसे मेरी दीदीने , बहादुरी से स्वीकार कर लिया और असीम प्रेम दिया अपने बाई बहनों को जिनके बारे में , ये सारे किस्से मशहूर हैं । पत्र पत्रिकाओं में आ भी गए हैं --
उनकी मुलाक़ात , पापा से , मास्टर विनायक राव, जो सिने तारिका नंदा के पिता थे , के घर पर हुई थी - पापा को याद है दीदी ने " मैं बन के चिडिया , गाऊँ चुन चुन चुन " ऐसे शब्दों वाला एक गीत पापा को सुनाया था और तभी से दोनों को एकदूसरे के प्रति आदर और स्नेह पनपा --
दीदी जान गयीं थीं पापा उनके शुभचिंतक हैं - संत स्वभाव के गृहस्थ कवि के पवित्र ह्रदय को समझ पायीं थीं दीदी और शायद उन्हें अपने बिछुडे पिता की छवि दीखलाई दी थी।
वे हमारे खार के घर पर आयीं थीं जब हम सब बच्चे अभी शिशु अवस्था में थे और दीदी अपनी संघर्ष यात्रा के पड़ाव एक के बाद एक, सफलता से जीत रहीं थीं -- संगीत ही उनका जीवन था - गीत साँसों के तार पर सजते और वे बंबई की उस समय की लोकल ट्रेन से , स्टूडियो पहुंचतीं जहाँ रात देर से ही अकसर गीत का ध्वनि- मुद्रण सम्पन्न किया जाता चूंके बंबई का शोर शराबा शाम होने पे थमता - दीदी से एक बार सुन कर आज दोहरा ने वाली ये बात है !
कई बार वे भूखी ही, बाहर पडी किसी बेंच पे सुस्ता लेतीं थीं , इंतजार करते हुए ,ये सोचतीं
" कब गाना गाऊंगी पैसे मिलेंगें और घर पे माई और बहन और छोटा भाई , इंतजार करते होंगें , उनके पास पहोंच कर , आराम करूंगी ! "
दीदी के लिए माई कुरमुरोँ से भरा कटोरा , ढँक कर रख देतीं थी जिसे दीदी खा लेतीं थीं पानी के गिलास के साथ सटक के ! आज भी कहीं कुरमुरा देख लेतीं हैं उसे मुठ्ठी भर खाए बिना वे आगे नहीं बढ़ पातीं :)
ये शायद उन दिनों की याद है - क्या इंसान अपने पुराने समय को कभी भूल पाया है ? यादें हमेशा साथ चलतीं हैं, ज़िंदा रहतीं हैं -- चाहे हम कितने भी दूर क्यों न चले जाएँ --
फ़िर समय चक्र चलता रहा - हम अब युवा हो गए थे -- पापा आकाशवाणी से सम्बंधित कार्यों के सिलसिले में देहली भी रहे ..फ़िर दुबारा बंबई के अपने घर पर लौट आए जहाँ हम अम्मा के साथ रहते थे , पढाई करते थे ।
हमारे पडौसी थे जयराज जी - वे भी सिने कलाकार थे और तेलेगु , आन्ध्र प्रदेश से बंबई आ बसे थे। उनकी पत्नी सावित्री आंटी , पंजाबी थीं / (उनके बारे में आगे लिखूंगी ) --
उनके घर फ्रीज था सो जब भी कोई मेहमान आता , हम बरफ मांग लाते शरबत बनाने में ये काम पहले करना होता था और हम ये काम खुशी , खुशी किया करते थे ..पर जयराज जी की एक बिटिया को हमारा अकसर इस तरह बर्फ मांगने आना पसंद नही था - एकाध बार उसने ऐसा भी कहा था " आ गए भिखारी बर्फ मांगने ! " जिसे हमने , अनसुना कर दिया। ! :-)) ...आख़िर हमारे मेहमान , का हमें उस वक्त ज्यादा ख़याल था ...ना के , ऐसी बातों का !!
बंबई की गर्म , तपती हुई , जमीन पे नंगे पैर, इस तरह दौड़ कर बर्फ लाते देख लिया था हमें दीदी नें ..... और उनका मन पसीज गया !
- जिसका नतीजा ये हुआ के एक दिन मैं कोलिज से, लौट रही थी , बस से उतर कर , चल कर घर आ रही थी ... देखती क्या हूँ के हमारे घर के बाहर एक टेंपो खडा है जिसपे एक फ्रिज रखा हुआ है रसीयों से बंधा हुआ !
तेज क़दमों से घर पहुँची , वहाँ पापा , नाराज , पीठ पर हाथ बांधे खड़े थे !
अम्मा फ़िर जयराज जी के घर , दीदी का फोन आया था , वहाँ बात करने आ , जा रहीं थीं ! फोन हमारे घर पर भी था - पर वो सरकारी था जिसका इस्तेमाल , पापा जी सिर्फ़ , काम के लिए ही करते थे और कई फोन हमें , जयराज जी के घर रिसीव करने दौड़ कर जाना पड़ता था ! दीदी , अम्मा से , मिन्नतें कर रहीं थीं
" पापा से कहो ना भाबी, फ्रीज का बुरा ना मानें ! मेरे बाई बहन आस पडौस से बर्फ मांगते हैं ये मुझे अच्छा नहीं लगता - छोटा सा ही है ये फीज ..जैसा केमिस्ट दवाई रखने के लिए रखते हैं ... "
अम्मा पापा को समझा रहीं थीं -- पापा को बुरा लगा था -- वे , मिट्टी के घडों से ही पानी पीने के आदी थे ! ऐसा माहौल था मानों गांधी बापू के आश्रम में , फ्रीज पहुँच गया हो !!
पापा भी ऐसे ही थे ! उन्हें क्या जरुरत होने लगी भला ऐसे आधुनिक उपकरणों की ? वे एक आदर्श गांधीवादी थे - सादा जीवन ऊंचे विचार जीनेवाले , आडम्बर से , सर्वदा , दूर रहनेवाले, सीधे सादे, सरल मन के इंसान !
खैर ! कई अनुनय के बाद अम्मा ने , किसी तरह दीदी की बात रखते हुए फ्रीज को घर में आने दिया और आज भी वह, वहीं पे है ..शायद मरम्मत की ज़रूरत हो ..पर चल रहा है !
हमारी शादियाँ हुईं तब भी दीदी , बनारसी साडियां लेकर आ पहुँचीं ..अम्मा से कहने लगीं, " भाभी , लड़कियों को सम्पन्न घरों से रिश्ते आए हैं ! मेरे पापा कहाँ से इतना खर्च करेंगें ? रख लो ..ससुराल जाएँगीं , वहाँ सबके सामने अच्छा दीखेगा " --
कहना न होगा हम सभी रो रहे थे ..और देख रहे थे दीदी को जिन्होंने उमरभर शादी नहीं की पर अपनी छोटी बहनों की शादियाँ सम्पन्न हों उसके लिए , साडियां लेकर हाजिर थीं ! ममता का ये रूप , आज भी आँखें नम कर रहा है जब ये लिखाजा रहा है ...मेरी दीदी ऐसी ही हैं । भारत कोकीला और भारत रत्ना भी वे हैं ही ..मुझे उनका ये ममता भरा रूप ही , याद रहता है --
फ़िर पापा की ६० वीं साल गिरह आयी -- दीदी को बहुत उत्साह था कहने लगीं ,
"मैं , एक प्रोग्राम दूंगीं , जो भी पैसा इकट्ठा होगा , पापा को , भेंट करूंगी ! "
पापा को जब इस बात का पता लगा वे नाराज हो गए, कहा,
" मेरी बेटी हो , अगर मेरा जन्मदिन मनाना है , घर पर आओ, साथ भोजन करेंगें , अगर , मुझे इस तरह पैसे दिए , मैं तुम सब को छोड़ कर, काशी चला जाऊंगा , मत बांधो मुझे माया के फेर में ! "
उसके बाद, प्रोग्राम नहीं हुआ - हमने साथ मिलकर , अम्मा के हाथ से बना उत्तम भोजन खाया और पापा अति प्रसन्न हुए !
आज भी यादों का काफिला चल पडा है और आँखें नम हैं ...इन लोगों जैसे विलक्षण व्यक्तियों से , जीवन को सहजता से जीने का , उसे सहेज कर, अपने कर्तव्य पालन करने के साथ, इंसानियत न खोने का पाठ सीखा है उसे मेरे जीवन में कहाँ तक , जी पाई हूँ , ये अंदेशा , नहीं है फ़िर भी कोशिश जारी है .........
- लावण्या